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वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को मिले नोबेल शांति पुरस्कार का क्या अर्थ है?

भूख को शांत करने का मतलब है दुनिया के कई देशों के बीच शांति को स्थापित करना और कई तरह के आपसी संघर्षों को रोक देना। अगर यह होना संभव हुआ है तो इसमें वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की बहुत बड़ी अहमियत है।
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम
Image courtesy : WFP

मेरे साथी ने कहा कि देखिए अबकी बार का नोबेल का शांति पुरस्कार मिल भी गया और किसी तरह का हो हल्ला भी नहीं हुआ। शांति के पुरस्कार को इतना भी कवरेज नहीं मिला जितना नोबेल से जुड़े विज्ञान और साहित्य के पुरस्कार को मिला। जानते हैं इसकी वजह क्या है? इसकी वजह यह है की अबकी बार शांति का नोबेल जिसे मिला है, वह कोई शख्स नहीं है जिसकी मौजूदगी ही कई तरह की सुर्खियां लेकर चलती है। अबकी बार का नोबेल एक वैश्विक कार्यक्रम को मिला है। और वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग के द्वारा चलाई जाने वाले कार्यक्रमों की ब्रांड वैल्यू इतनी नहीं होती है कि वह लोगों की बातचीत का हिस्सा बने। अपने साथी की बात बहुत  वाजिब लगी।

पुरस्कारों के संदर्भ में एक बात पहले गांठ बांधकर चलनी चाहिए। किसी भी तरह के पुरस्कार के पीछे एक खास राजनीति और रणनीति भी चलती है। इस लिहाज से अगर पुरस्कार वैश्विक स्तर का हो तब तो घनघोर  किस्म की कूटनीति छिपी होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसकी वजह से पुरस्कारों की अहमियत कम हो जाती है। यह हमारे दुनिया की एक हकीकत है। और इस हकीकत के अंदर ही पुरस्कारों को स्वीकारना चाहिए, देखना चाहिए, अपनाना चाहिए। एक लाइन में कहने का मतलब इतना ही है कि दुनिया की अपनी गति है, उस गति को देखकर सीखना जरूर चाहिए लेकिन बहुत अधिक प्रभावित भी नहीं होना चाहिए।

नोबेल कमिटी ने साल 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को देने को ऐलान किया है। वजह यह कि इस कार्यक्रम ने विश्व भर में भूख से निपटने के लिए बड़ी अहम भूमिका अदा की है। भूख को शांत करने का मतलब है दुनिया के कई देशों के बीच शांति को स्थापित करना और कई तरह के आपसी संघर्षों को रोक देना। अगर यह होना संभव हुआ है तो इसमें वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की बहुत बड़ी अहमियत है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम पूरी दुनिया में भूख से लड़ने के लिए काम कर रही सबसे बड़ी मानवीय संस्था है। पिछले साल यानी कि साल 2019 में भूख से सबसे अधिक लड़ रहे तकरीबन 88 देशों में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने मदद पहुंचाई। साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल करके योजना बनाई गई थी। इस योजना में एक गोल यह भी था की पूरी दुनिया से भुखमरी का खात्मा किया जाए। इस भुखमरी से लड़ने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम सबसे पहली पंक्ति में खड़े होकर मौजूदा वक्त में काम कर रहा है।

पिछले कुछ सालों से दुनिया के कई इलाके लड़ाई के मैदान बन चुके हैं। लोग या तो हथियारों के दम पर लड़ते हुए जिंदगी जीते हैं या भूख के कगार पर रहते हुए दम तोड़ देते हैं। यमन, रिपब्लिक ऑफ कांगो, नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान से लड़ाई और भुखमरी की खबरें पूरे साल भर आती रहती हैं। इनके साथ इस बार पूरी दुनिया ने करोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी का भी सामना किया। इस वजह से कई सालों के बाद पिछले साल तकरीबन 13.5 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए।

करोना वायरस के दौरान भूखमरी की संभावना सबसे बड़ी दुश्मन के तौर पर खड़ी है। इससे लड़ने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने बहुत ही जबरदस्त काम किया है।

वर्ल्ड हेल्थ प्रोग्राम का कहना है कि जब तक कोरोना का वैक्सीन नहीं आ जाता तब तक कोरोना की वजह से दुनिया को छीना झपटी, लूटपाट और अराजकता से बचाने के लिए सबसे बड़ा वैक्सीन यह है कि भुखमरी की स्थिति पैदा ना होने दी जाए।

भूख और हथियारों की लड़ाई के बीच एक लिंक होता है। यह दोनों मिलकर एक बहुत बुरे चक्र की संभावना पैदा करते हैं। अगर भूख है तो संघर्ष और युद्ध भी निश्चित है और अगर युद्ध है और लड़ाई है तो इसकी अंतिम मंजिल न हार होती है न जीत बल्कि भुखमरी होती है। इसलिए अगर दुनिया को भुखमरी से बचाना है तो ऐसे प्रोग्राम की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा है। ऐसे प्रोग्राम में पैसा देना जरूरी है। अगर दुनिया के बीच आपसी सहयोग नहीं होगा और ऐसे प्रोग्राम द्वारा पैसे के निवेदन को नहीं स्वीकारा जाएगा तो भुखमरी से लड़ना बहुत अधिक मुश्किल हो जाएगा।

नोबेल कमेटी का कहना है कि दुनिया में शांति और समृद्धि स्थापित करने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने भूखमरी से लड़ने का रास्ता चुना है और यह रास्ता काबिले तारीफ है। दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया  जैसे महा देशों में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने बड़ी शानदार भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ के देशों की आपसी मदद से शांति स्थापित करने की राह में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

यह सारी बातें नोबेल कमेटी द्वारा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को नोबेल पुरस्कार दिए जाने के दौरान कही गई हैं। अब बात करते हैं वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के पहचान से जुड़े तथ्यों पर।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) के फूड प्रोग्राम से जुड़ा एक संगठन है। यह जरूरतमंदों को खाना खिलाता है और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है। इस संगठन को 1961 में बनाया गया था।

यह प्रयोग के तौर पर स्थापित किया हुआ प्रोग्राम था जिसका मकसद था कि संयुक्त राष्ट्र तंत्र के सिस्टम का इस्तेमाल कर दुनिया के जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुंचाया जाए। भुखमरी को दूर करने का काम किया जाए।

लेकिन अब यह संगठन भुखमरी से लड़ने के लिए और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से काम करने वाले संगठनों के बीच दुनिया का सबसे बड़ा संगठन बन चुका है।

साल 1962 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के स्थापना के 1 साल बाद ही ईरान की धरती को भयंकर भूकंप का सामना करना पड़ा। इसी विपत्ति में मदद करने से वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की मदद करने की विरासत की शुरुआत हुई। साल 1983 में इथोपिया में 100 साल में सबसे बड़ा सूखा पड़ा। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने तकरीबन 20 लाख लोगों तक अपनी मदद पहुंचाई। अफ्रीका का देश लड़ाई हो से जूझता हुआ देश है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम साल 1989 से लड़ाई के बीच अपनी मदद पहुंचाने का काम करते आ रहा है। साल 2004 में हिंद महासागर की कोख में भयंकर सुनामी और जबरदस्त भूकंप के झटके पैदा हुए। आसपास का इलाका तहस-नहस हो गया। इस विनाश लीला में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने रिलीफ ऑपरेशन मैं बहुत अधिक मदद की।

मध्य एशिया का इलाका पिछले कई सालों से संघर्ष में जी रहा इलाका बन चुका है। सीरिया में सबसे अधिक बर्बादी हुई है। साल 2011 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने यहां अपनी मदद पहुंचाई। साल 2019 तक आते-आते इसका जाल इतना फैल चुका है कि इस संगठन ने पिछले साल तकरीबन 88 देशों में तकरीबन 10 करोड लोगों की मदद की।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि साल के किसी भी दिन मदद पहुंचाने के लिए इसके पास 5608 ट्रक, 30 समुद्री जहाज, 100 हवाई जहाज हमेशा मौजूद रहते हैं।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का सबसे अहम काम आपातकालीन समय में राहत पहुंचाना, पुनर्वास करना और विकास के कामों में मदद करना है। World food program का तकरीबन दो तिहाई काम उन इलाकों में होता है जहां लड़ाइयां लड़ी जा रही होती हैं। वजह यह है कि यहां पर अल्प पोषण और कुपोषण की संभावना दुनिया के किसी भी दूसरे इलाके से 3 गुने से अधिक होती है।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को दुनिया के देश अपनी इच्छा अनुसार यानी स्वैच्छिक तौर पर ध्यान देते हैं। साल 2019 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को दुनिया के देशों के द्वारा तकरीबन 8 बिलियन डॉलर पैसा मिला। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि उसने इस पैसे से तकरीबन 4.2 मिलियन मीट्रिक टन अनाज जरूरतमंदों तक पहुंचाया। इस संगठन में तकरीबन 17000 स्टाफ काम करते हैं। जिनमें से 90 फ़ीसदी स्टाफ उन इलाकों में काम करते हैं जहां पर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम द्वारा मदद पहुंचाई जा रही होती है

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया की भूखमरी की मौजूदा परेशानियों में तकरीबन 70 फ़ीसदी का इजाफा होने वाला है। ऐसे में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसे संगठन की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है।

भारत में यह संस्था भारत सरकार की मदद से पब्लिक डिसटीब्यूशन सिस्टम द्वारा बांटी जा रही राशन के कामों में मदद कर रही है। राशन बांटने के काम में धांधली को रोकने के लिए ऑटोमेटिक ग्रेन दिसपेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें भी वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की मदद ली जा रही है।

अब अंत में यह समझने वाली बात है कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम कोई व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि एक संगठन है। वह भी कोई ऐसा संगठन नहीं है जो किसी या तीन चार देशों के आपसी सहयोग के द्वारा मिलकर बना हो और इन्हीं के द्वारा चलाया जा रहा हो। बल्कि यह एक ऐसा संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र संघ का हिस्सा है और जिसकी बुनावट में दुनिया के सभी देशो का सहयोग शामिल है। इसलिए अगर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसे संगठन को नोबेल पीस प्राइज से नवाजा गया है तो इसमें पूरी दुनिया को इस बात के लिए भी सराहा गया है कि उन्होंने मिलकर एक ऐसा संगठन बनाया है जो विश्व में भुखमरी से लड़ने के लिए काम कर रहा है।

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