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एमवे के कारोबार में  'काला'  क्या है?

साल 2021 में इस सम्बन्ध में उपभोक्ता संरक्षण नियम बने। इसके तहत नियम बना कि कोई भी डायरेक्ट सेलिंग कंपनी यानी वैसी कम्पनी जो उपभोक्ताओं को सीधे अपना माल बेचती हैं, वह कमीशन देने की शर्त पर अपना माल नहीं बेच सकती हैं।
amway

एमवे (Amway) का नाम तो आपने सुना ही होगा। अगर आपके घर की आमदनी 20 हजार प्रति महीना से ज्यादा है, तो आपने एमवे के सामानों को जरूर देखा होगा। रिश्तेदारों से इसके बारे में सुना होगा। बैग में भरकर एमवे ब्रांड से साबुन, क्रीम, परफ्यूम, दन्तमजन जैसे कई सामान दिखाने वालों से आपकी मुलाकात जरूर हुई होगी। एमवे का सामान दिखाने वाले ने केवल सामान नहीं दिखाया होगा। कहा होगा कि सामान खरीदिये और एमवे के सदस्य भी बनिए। यह भी कहा होगा कि एमवे के सामान सबसे बढ़िया हैं। सामान खरीदकर आप सदस्य बनेंगे। सदस्य बनकर आप भी सामान बेचेंगे। दूसरे सामान खरीदेंगे और वह भी एमवे के सदस्य बनेंगे। इस तरह से हर सामान खरीदने वाला एमवे का सदस्य होगा। सबको कमीशन मिलेगा। सबकी कमाई होगी। जो जितना सदस्य बनाएगा वह उतना पैसा कमा कमायेगा। वह उतना अमीर बनेगा। 

इस सपने के साथ एमवे ने भारत में कारोबार किया। एमवे ने खूब कमाई की। लेकिन एमवे के सभी डिस्ट्रीब्यूटरों और सदस्यों ने नहीं। सिर्फ उनकी ही जेबें भारी हुईं जो नेटवर्क चेन में सबसे ऊपर थे। इस कम्पनी पर भारत सरकार के प्रवर्तन  निदेशालय यानी इनफोर्समेंट डाइरेक्टोरेट ने हाल ही में  छपा मारा है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने एमवे के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उसकी 757 करोड़ 77 लाख  रुपये की संपत्ति जब्त कर ली है। जब्त की गयी सम्पति में कम्पनी की जमीन, फ़ैक्ट्री, गाड़ी और कई तरह की स्थाई और अस्थाई सम्पत्तियां शामिल हैं। जब्त करने का मतलब है कि एमवे इन सम्पतियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। प्रवर्तन निदेशालय ने यह कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉड्रिंग एक्ट के तहत की है।  

एमवे पर यह ईडी की प्रेस रिलीज बताती है कि एमवे ने 2002-03 से 2021-22 के दौरान अपने बिजनेस ऑपरेशन से 27 हजार 562 करोड़ रुपए कमाए। इनमें से 7,588 करोड़ रुपए उसने कमीशन के रूप में अपने अमेरिका और भारत के डिस्ट्रीब्यूटर्स और मेंबर्स को दिए। एमवे एक अमेरिकी कंपनी है। एमवे ने साल 1995 -96 में भारत में कदम रखा था। कंपनी ने 21 करोड़ 39 लाख रूपये से शुरुआत की थी। इंवेस्टर्स और मूल संस्थाओं को लाभांश, रॉयल्टी और अन्य भुगतान के नाम पर 2020-21 तक 2,859.10 करोड़ रुपए भुगतान किये।

यह एक तरह की पिरामिड स्कीम है। यहां प्रोडक्ट यानी सामान बेचने का काम नहीं किया जाता, बल्कि सदस्य बनाकर कमीशन से कमाई करने का काम किया जाता है। ग्रहाकों को लुभाने के लिए यह कंपनियां बड़े-बड़े सेमिनार करती है। सोशल मीडिया से लेकर हर जगह प्रचार करती है। इसके प्रचार का जरिया इसके ग्राहक होते हैं, जो केवल ग्राहक नहीं होते, बल्कि इसके सदस्य भी होते हैं। यह लोगों के सामने उन लोगों का उदाहरण पेश करते हैं, जो पिरमिड में सबसे ऊपर हैं।  जिनकी अच्छी खासी कमाई है। इनके लाइफस्टाइल को दिखाकर अमीर बनने का सपना बेचा जाता है।  

एमवे पर ED  का कहना है कि एमवे ने अपने सामानों को बहुत ऊँचे कीमत पर बेचा। जबकि वैसे ही सामान जो एमवे के जरिये बेचे जा रहे था, उनकी कीमत दूसरे ब्रांड में कम थी। इस तरह का कारोबार लोगों की मेहनत की कमाई लूटने की तरह है।  पिरामिड में सबसे ऊपर बैठे लोगों को कमीशन के जरिये बहुत कमाई होती है और जो नीचे मौजूद है उसकी कमाई कम रहती है या बिलकुल नहीं होती है। एमवे के मुताबिक यह कार्रवाई 2011 के जाँच के संबंध में है। तब से कंपनी विभाग के साथ सहयोग कर रही है।  

जानकरों का कहना है कि एमवे के कामकाज पर संदेह पैदा होता है। ऐसे कैसे मुमकिन है कि दूसरे फ़ास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स से जुड़े ब्रांड की कंपनियां एमवे से बड़ी हैं, लेकिन एमवे जितनी कैटेगरी का सामान बनाता है उतनी कैटेगरी का सामान दूसरे नहीं बनाते। उसका कारोबार भी उतना बड़ा नहीं है, जितना हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड और नेशले का है। वह रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर भी उतना ख़र्च नहीं करता जितना दूसरी कंपनियां करती हैं। इनोवेशन के क्षेत्र में उसका खर्च दूसरों के मुकाबले कम है। तो कंपनी ऐसा कैसे कह सकती है कि उनके सामान सबसे अच्छी क्वालिटी के हैं? वह सबसे  क्वालिटी के अच्छे साबुन, क्रीम, दवाइयां बेचता है? इसलिए उसके कामकाज पर संदेह तो पैदा होता ही है।  

आर्थिक पत्रकार सुचेता दलाल कहती हैं कि एमवे की धांधली बहुत लम्बे समय से चलते आ रही है। पिरामिड स्कीम, डायरेक्ट सेलिंग, मल्टी लेवल सेलिंग को लेकर भारत में कोई सख्त कानून नहीं था। साल 2021 में इस सम्बन्ध में उपभोक्ता संरक्षण नियम बने। इसके तहत नियम बना कि कोई भी डायरेक्ट सेलिंग कम्पनी यानी वैसी कम्पनी जो उपभोक्ताओं को सीधे अपना माल बेचती हैं  वह कमीशन देने की शर्त पर अपना माल नहीं बेच सकती है। वह ऐसा नहीं कह सकती कि जो कम्पनी का माल खरीदेगा, वह कम्पनी का सदस्य बनेगा। इन कंपनियों के डायरेक्ट सेलर के पहचान से जुड़े कागज़ात कम्पनी अपने पास रखेगी। एक शिकायत निवारण तंत्र होगा। इसके तहत शिकायतों का निपटारा होगा। हाल फिलाहल ऐसा है कि कोई भी शिकायत निवारण तंत्र नहीं है। एमवे का सामान खरीदने वाला जिससे सामान खरीदता है, उसके सिवाय नेटवर्क के अन्य सदस्यों को नहीं जानता।  

आर्थिक पत्रकार अंशुमन तिवारी का कहना है कि साल 2021 में कानून बना तब से एमवे के सामने चुनौतियां आनी  शुरू हुईं। हालाँकि, यह एमवे पर साल 2011 के मामले को लेकर कार्रवाई की गयी है। लेकिन जिस स्तर पर सरकार ने एमवे पर कार्रवाई की है, उससे लगता है कि पूरा कारोबार सरकारी कार्रवाई के चपेट में आ गया है। यहां पर जो सबसे बड़ी चूक दिखती है वह यह है कि मल्टीलेवल और पिरामिड कारोबार का थंब रूल है कि कम्पनी 70 प्रतिशत से ज्यादा अपने डिस्ट्रीब्यूटरों के बाहर बेचेंगी, यानि उन्हें बेचेगी जो कम्पनी के सदस्य नहीं होंगे। एमवे के कारोबार से लगता है उसने यही काम किया है। उसने माल बेचने से ज्यादा कमाई सदस्य बनाकर की है।  

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