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चिंता: उन पांच करोड़ से अधिक भारतीयों का क्या होगा जिनके पास हाथ धोने की सुविधा नहीं?

वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ मैट्रिक्स ऐंड इवेल्यूएशन के शोधकर्ताओं के मुताबिक पांच करोड़ से अधिक भारतीयों के पास हाथ धोने की ठीक व्यवस्था नहीं है जिसके कारण उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने और उनके द्वारा दूसरों तक संक्रमण फैलने का जोखिम बहुत अधिक है।
 हाथ धोने की ठीक व्यवस्था नहीं है
'प्रतीकात्मक तस्वीर' फोटो साभार : मीडिया इंडिया ग्रुप

दिल्ली: भारत में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्‍या अब ज्‍यादा तेजी से बढ़ रही है। पिछले हफ्ते जहां औसतन 3800 मामले रोज आ रहे थे, इस हफ्ते यह आंकड़ा बढ़कर 5500+ हो गया है। शनिवार सुबह केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटों में 6,654 नए मामले सामने आए हैं। इस दौरान 137 लोगों की मौत हुई है। भारत में कुल मामलों की संख्‍या सवा लाख से ज्‍यादा हो गई है। तो वहीं मरने वालों की संख्‍या 3,720 है।

दूसरी ओर लॉकडाउन 4.0 में दिहाड़ी मजदूरों का सैलाब सड़कों पर उतर आया है। ये पैदल ही अपने घरों की ओर बढ़ रहे हैं। डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि लॉकडाउन में लोगों के एकसाथ ऐसा करने से कोरोना वायरस महामारी के सामुदायिक संक्रमण का खतरा है लेकिन इन मजदूरों की व्यथा यह है कि इन्हें भूख और बेकारी के चलते पलायन करना पड़ रहा है।

इसके चलते अब गांवों तक कोरोना का संक्रमण पहुंच गया है। उदाहरण के लिए बिहार में कोरोना मरीजों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 15 मई को जहां प्रदेश में महज 1000 पॉजिटिव केस आए थे, वहीं एक हफ्ते के अंदर ही ये बढ़कर 2100 का आंकड़ा पार गया है। बिहार हेल्थ सोसाइटी के मुताबिक, तीन मई से अब तक बिहार लौटे 1184 प्रवासी मजदूरों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है।

अगर यह इसी रफ्तार के बढ़ता रहा तो सबसे ज्यादा खतरा उस गरीब तबके पर है जिसके पास हाथ धोने तक की ठीक से व्यवस्था नहीं हैं। आपको बता दें कि पांच करोड़ से अधिक भारतीयों के पास हाथ धोने की ठीक व्यवस्था नहीं है जिसके कारण उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने और उनके द्वारा दूसरों तक संक्रमण फैलने का जोखिम बहुत अधिक है।

अमेरिका में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ मैट्रिक्स ऐंड इवेल्यूएशन (आईएचएमई) के शोधकर्ताओं ने कहा कि निचले एवं मध्यम आय वाले देशों के दो अरब से अधिक लोगों में साबुन और साफ पानी की उपलब्धता नहीं होने के कारण अमीर देशों के लोगों की तुलना में संक्रमण फैलने का जोखिम अधिक है। यह संख्या दुनिया की आबादी का एक चौथाई है।

जर्नल एन्वर्मेंटल हैल्थ पर्सपेक्टिव्ज में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक उप सहारा अफ्रीका और ओसियाना के 50 फीसदी से अधिक लोगों को अच्छे से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। आईएचएमई के प्रोफेसर माइकल ब्राउऐर ने कहा, ‘कोविड-19 संक्रमण को रोकने के महत्वपूर्ण उपायों में हाथ धोना एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह निराशाजनक है कि कई देशों में यह उपलब्ध नहीं है। उन देशों में स्वास्थ्य देखभाल सुविधा भी सीमित है।’

शोध में पता चला कि 46 देशों में आधे से अधिक आबादी के पास साबुन और साफ पानी की उपलब्धता नहीं है। इसके मुताबिक भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया, कांगो और इंडोनेशिया में से प्रत्येक में पांच करोड़ से अधिक लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है।

ब्राउऐर ने कहा, ‘हैंड सैनिटाइजर जैसी चीजें तो अस्थायी व्यवस्था है। कोविड से सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक उपायों की जरूरत है। हाथ धोने की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हर साल 700,000 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।’

अध्ययन में कहा गया है कि घरों के अलावा दूसरी जगहों जैसे स्कूल, कार्यस्थल, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और अन्य सार्वजनिक स्थानों, बाजारों में हाथ धोने की सुविधाएं बहुत कम रहती हैं।

गौरतलब है कि इस महीने के शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने चेतावनी दी थी कि कोरोना महामारी मानव समुदाय के लिए सबसे भयानक त्रासदी में से एक बन सकती है। विशेषज्ञों ने कहा था कि दुनिया के गरीब देशों में कोरोना से 30 लाख से अधिक लोग मर सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी के सीईओ डिविड मिलबैंड ने कहा, ‘कोरोना वायरस से गरीब देशों में एक अरब से अधिक लोग संक्रमित हो सकते हैं। कोविड 19 की वजह से इन देशों में 30 लाख से अधिक जान जा सकती है।’ संयुक्त राष्ट्र की रेस्क्यू एजेंसी ने आगाह किया है कि अगर अमीर देश कोरोना संकट के दौर में गरीब देशों की मदद नहीं करेंगे तो वहां स्थिति भयावह हो सकती है।

जानकारों का मानना है कि कोरोना को ग़रीबों ने नहीं, अमीरों ने फैलाया है लेकिन अब इसकी सबसे बड़ी मार हाशिए पर मौजूद गरीब तबके पर ही है। अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनिया में रिटेल और मैन्‍युफैक्‍चरिंग से जुड़े कई कारोबार बंद होने की कगार पर खड़े हैं। इसकी वजह से दुनियाभर में 1.6 अरब श्रमिकों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

फिलहाल ऐसी स्थिति में हमारी सरकारों को दोहरी लड़ाई लड़नी है। पहली मजदूरों, किसानों, गरीब तबकों के लोगों को बेहतर तरीके की स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराए तो दूसरी ओर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बेहतर बनाकर बड़ी आबादी को राशन पहुंचाने का काम करे। साथ ही देश की बड़ी आबादी को तत्काल नगद राशि उपलब्ध कराये जाने की जरूरत है। जिससे गरीब तबके के लोग अपने जीने लायक संसाधन इकट्ठा कर सकें। अन्यथा इस संक्रमण के वो सबसे आसान शिकार हैं। 

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