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निर्मला सीतारमण जी! किस दुनिया में रह रही हैं आप?

वित्त मंत्री ने हाल में देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश की है। उन्होंने कुछ कथित कदमों का ऐलान किया है और दावा किया है इससे इकनॉमी पटरी पर आ जाएगी।
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पिछले सप्ताह (12 नवंबर, 2020) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक जोरदार प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की गरज से कुछ फैसलों का ऐलान किया। इन कदमों के ऐलान से पहले उन्होंने कुछ आंकड़े दिए। दरअसल, सीतारमण इन आंकड़ों को पेश करके यह बताना चाह रही थीं कि देश की अर्थव्यवस्था दरअसल पटरी पर आ चुकी है और अब बस इसमें तेजी आने ही वाली है। लेकिन इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है इसके एक दिन पहले ही आरबीआई ने कहा था कि जुलाई-सितंबर (2020) तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में गिरावट जारी रहेगी। 

आरबीआई ने अपने बुलेटिन में ‘Nowcast’ ( इकनॉमी के पिछले दौर का नहीं बल्कि मौजूदा दौर का विश्लेषण) किया था और इसमें साफ कहा था कि जुलाई-सितंबर (दूसरी) तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 8.6 फीसदी की दर से सिकुड़ जाएगी। कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान लॉकडाउन की वजह से पहली तिमाही में यह 23 फीसदी की गिरावट देख ही चुकी थी।

लेकिन वित्त मंत्री ने आरबीआई के उसी आकलन का हवाला देकर कहा कि तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में ग्रोथ दर्ज हो सकती है लेकिन यह छिपा गईं कि केंद्रीय बैंक ने महंगाई को लेकर क्या कहा था? आरबीआई ने अपने आकलन में कहा था कि महंगाई एक गंभीर चिंता बनी हुई है और इससे अर्थव्यवस्था को लेकर उठाए गए नीतिगत फैसलों का असर कम हो सकता है। लगातार बढ़ती महंगाई अर्थव्यवस्था में ग्रोथ की संभावनाओं को कुचल सकती है। आरबीआई ने यह भी कहा था कि अब कोविड-19 की दूसरी लहर दुनिया को घेरने में लगी है और इससे अर्थव्यवस्था में मांग लगभग ध्वस्त हो जाएगी। इससे आम उपभोक्ता परिवारों और कंपनियों का तनाव और बढ़ने का खतरा है। हो सकता है यह संकट अभी तुरंत न आए लेकिन इसकी आशंका कम नहीं हुई है।” आरबीआई का यह कहना था कि स्थिति अभी काफी नाजुक है और हम बड़े ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं।

वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था की बेहतरी की संभावनाओं का दावा करने वाली जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, उसमें शायद वह कुछ आंकड़ों को पेश करने करने में नाकाम रही हैं। चलिए इस पर एक नजर डाल लेते हैं। आप नीचे चार्ट में इसे देख सकते हैं।

इसमें आप देख सकते हैं कि बेरोज़गारी किस कदर कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। अक्टूबर, 2020 में भी यह सात फीसदी के ऊंचे स्तर पर बरकरार है। बेरोज़गारी को लेकर CMIE के आंकड़े और गंभीर हैं। इसके मुताबिक अक्टूबर में 55 लाख लोग बेरोज़गार हुए हैं। इसका मतलब यह है कि मई में लॉकडाउन में छूट की शुरुआत के बाद रोज़गार बढ़ने की जो थोड़ी-बहुत रफ्तार दर्ज हुई थी वह भी अब धीमी पड़ने लगी है। CMIE के आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि अक्टूबर में लेबर पार्टिसिपेशन 40.66 फीसदी ही रही। लॉकडाउन लगने से पहले यानी फरवरी के लेबर पार्टिसिपेशन से यह कम है। लॉकडाउन के महीनों को छोड़ कर इकनॉमी में श्रम बल की हिस्सेदारी कभी भी 42 फीसदी से नीचे नहीं गई थी।

आरबीआई के विश्लेषण में कहा गया है कि उद्योगपतियों का कारोबार अच्छा चल रहा है। बिक्री में गिरावट के बावजूद उनका मुनाफा बढ़ रहा है। यह तभी संभव है जब उनका परिचालन खर्च  (operating expenses) कम हो। ऐसा कामगारों की संख्या और वेतन में कटौती करके ( या फिर उन पर काम का बोझ बढ़ा कर) हो सकता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर वित्तीय कंपनियों को छोड़ कर अपने वित्तीय नतीजों का ऐलान करने वाली 887 लिस्टेड (शेयर बाजार में सूचीबद्ध) कंपनियों की दूसरी तिमाही में बिक्री घटी है। लेकिन पहली तिमाही की तुलना में गिरावट कम है। हालांकि पिछले साल सितंबर तिमाही (जुलाई-सितंबर) की तुलना में 2020 की सितंबर तिमाही में कंपनियों के खर्चे बिक्री की तुलना में काफी तेजी से घटे हैं। इससे अर्थव्यवस्था में गिरावट वाली लगातार दो तिमाहियों ( अप्रैल-जून, जुलाई-सितंबर 2020) में उनका परिचालन लाभ ( Operating Profit) बढ़ गया। इसके अलावा दूसरी आय भी बढ़ी। इससे कंपनियों ने अच्छा-खासा मुनाफा कमा लिया। वाहन कंपनियों की ओर से उत्पादन में जिस इजाफे का इकॉनमी के ग्रीन शूट्स’ के तौर पर स्वागत किया जा रहा था उसकी भी कलई फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलरस एसोसिएशन यानी FADA ने खोल दी। आरबीआई ने अपने विश्लेषण में इसका जिक्र किया है। इसमें कहा गया है कि अक्टूबर, 2020 में टू-व्हीलर्स की बिक्री 27 फीसदी गिर गई, जबकि पैसेंजर गाड़ियों की बिक्री में 9 फीसदी की गिरावट आई। कॉमर्शियल वाहनों और थ्री-व्हीलर्स की बिक्री में तो और तेज गिरावट आई। कॉमर्शियल वाहनों की बिक्री अक्टूबर में 30 फीसदी गिर गई। जबकि थ्री-व्हीलर्स की बिक्री में 65 फीसदी की भारी गिरावट आई।

हालात छिपाने वाले आंकड़े

सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई आंकड़े दिए। उन्होंने बड़े ही सुविधाजनक तरीकों से इन आंकड़ों को उठाया था और इससे किसी को भी रफ्तार के आसार दिख सकते हैं। इनमें रेलवे माल ढुलाई, बैंक की ओर से दिए जान वाले कर्ज, एफडीआई में बढ़ोतरी जैसे आंकड़े थे। लेकिन इनमें से भी कुछ तथ्यों को छिपा रहे थे। जैसे- सितंबर (2020) में बैंक क्रेडिट में 5.1 फीसदी की ग्रोथ दिखाई गई थी। यह सही है। लेकिन वित्त मंत्री यह बताना भूल गईं कि सितंबर 2019 में बैंक क्रेडिट की ग्रोथ 8.8 फीसदी थी। और जो दूसरे आंकड़े दिए गए उनसे यह जाहिर हो रहा था कि मांग बढ़ी है। लेकिन दरअसल यह लॉकडाउन और कोविड-19 की के दौरान दबी हुई मांग थी, जो थोड़ी स्थिति संभलने के बाद बढ़ोतरी के तौर पर सामने आई थी। फिर भी यह मांग जरूरत के हिसाब से कम है। इस आंकड़े को देख कर यह नहीं कहा जा सकता है कि इकनॉमी को रफ्तार देने वाली मांग पैदा हो रही है।

 उपभोक्ता खर्च लगभग ठप पड़ा है। सीतारमण ने यह नहीं बताया कि सितंबर (2020) में बैंक डिपोजिट में 10.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका मतलब यह है कि लोगों के पास जो पैसा बचा है, उसे खर्च नहीं करना चाहते। यह संकट के समय की खास निशानी है। यह दिखाता है कि इकनॉमी में लोगों का विश्वास कम हो रहा है। उन्हें नहीं लगता कि हालात आगे सुधरेंगे। ये चीजें क्या बता रही हैंये बताती हैं कि लोगों की आय की अनिश्चितता बनी हुई है। लोग बुरे समय के लिए पैसा बचा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान ऐसे ही हालात थे।

नई पॉलिसी पैकेज

सीतारमण ने लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को खड़ा करने की गरज से कई ऐलान किए। लेकिन ये ऐलान पुराने ढर्रे पर ही हैं, जिनमें सरकार ज्यादा  खर्च नहीं करती है। वह सिर्फ लोन को बढ़ावा देती है, इस उम्मीद में कि कारोबारी कर्ज लेकर निवेश करेंगे। इससे पहले इस ढर्रे का बड़ा ऐलान मई में किया गया था। लेकिन संकट वाले पांच महीने के गुजर जाने के बाद भी मोदी सरकार पुरानी लीक पर ही चल रही है। वह वही कदम उठा रही है, जो इकनॉमी को पटरी पर लाने और लोगों को बड़ी राहत पहुंचाने में नाकाम रहे हैं।

उदाहरण के लिए रोजगार बढ़ाने के कथित कदमों  ले लीजिए। इसके तहत मार्च से नौकरी गंवा चुके लोग अगर नई नौकरी में आते हैं तो सरकार कंपनियों (नियोजक) और कर्मचारियों के पीएफ कंट्रीब्यूशन का दोनों हिस्सा देगी। यह सब्सिडी बेहद कम है। वैसे भी नई नौकरियां सिर्फ पीएफ के मद में कंपनियों की बचत से पैदा नहीं होंगी। नई नौकरियां तब पैदा होंगी जब चीजों की मांग बढ़ेगी। जब तक मांग नहीं होगी कंपनियां उत्पादन क्यों बढ़ाएंगीतो इस तरह लीपापोती वाले कदम उठाए जा रहे हैं- कंपनियों को थोड़े टुकड़े डाल दो और यह दिखाओ कि सरकार इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए उन्हें राहत दे रही है।

वित्त मंत्री ने कहा कि नया पैकेज 2.65 लाख करोड़ रुपये का होगा जो कि देश की जीडीपी का 15 फीसदी  है। लेकिन इनका हिसाब-किताब जोड़ा जाए तो पता चलेगा कि सरकार सिर्फ 1.2 से 1.5 लाख करोड़ रुपये ही खर्च करेगी। उसमें भी मुख्य तौर पर यह खर्च 65 हजार करोड़ रुपये की फर्टिलाइजर सब्सिडी के तौर पर होगा। जिस प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम के तहत 1.45 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान हुआ है, वह आठ साल में होगा। ऐसा लगता है कि इस पर इस साल 20-22 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च नहीं होगा। पीएम आवास योजना और पीएम आवास योजना के अलावा बाकी सारा पैकेज कर्ज के तौर पर होगा।

कुल मिलाकर, मोदी सरकार नए-नए आंकड़े उछाल कर अपनी पीठ थपथपाने में लगी है और लोगों को यह जता रही है कि देखो हम इकनॉमी की बेहतरी के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे हैं। जबकि जनता कोविड-19 और लगातार खराब हो रही अपनी माली हालत से बेहाल है।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने  के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

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