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कोविड-19 : क्यों भारत का राहत पैकेज पूरी तरह अपर्याप्त है?

दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का राहत पैकेज बहुत छोटा है, जबकि कोरोना और लॉकडाउन के चलते होने वाला नुक़सान कई गुना बड़ा होगा।
कोविड-19

यह साफ़ हो चुका है कि COVID-19 और इसके चलते होने वाले लॉकडाउन से स्वास्थ्य और वैश्विक अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में काफ़ी नुकसान होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था को भी इससे गहरा झटका लगेगा, जिसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा ग़रीबों को भुगतना होगा। इस आर्टिकल में ''सांख्यिकीय आंकड़ों के मॉडल'' से इस प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण से पता चलता है कि कोरोना से लड़ने के लिए भारत ने तुलनात्मक तौर पर एक छोटा राहत पैकेज जारी किया है, जबकि भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है।

मार्च के दूसरे हफ़्ते से ही मीडिया रिपोर्ट्स में कोरोना के चलते होने वाले आर्थिक नुकसान की बातें सामने आनी लगी थीं। 9 मार्च को जारी किए गए UNCTAD के एक विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी के चलते दुनिया को 2020 में एक ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। 26 मार्च को UNCTAD ने अपने विश्लेषण में सुधार करते हुए कहा कि ''वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला प्रभाव पिछले अनुमान से कहीं ज़्यादा होगा।''

भारत की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार वैसे ही ढलान पर थी, अब कोरोना वायरस और लॉकडॉउन की मार अलग पड़ेगी। सरकार पर अब अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पैकेज जारी करने का दबाव बढ़ रहा है।

लेकिन बड़े आर्थिक स्तर की योजना बनाने से पहले स्थिति का विकरालता जानना जरूरी है। लेकिन विकरालता का सही अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में अलग-अलग सेक्टरों की स्थिति एक-दूसरे पर निर्भर करती है। ऊपर से अनौपचारिक क्षेत्र के आंकड़ों की कमी है। हांलाकि मौजूदा आर्थिक गतिविधियां और उस पर निकट भविष्य में कोरोना से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कुछ पता तो लगाया ही जा सकता है।

''ब्लैक बॉक्स नॉन लीनियर कंप्यूटेबल जनरल इक्विलीब्रियम (ग़ैर रेखीय गणनायुक्त सामान्य संतुलन मॉडल)'' मॉडल के जमाने में पुराने साधारण औज़ार इस्तेमाल नहीं किए जाते। इन पुराने साधारण औज़ारों को अर्थशास्त्री और नीति-निर्माता विकासशील देशों में ख़ूब इस्तेमाल करते थे। ''जनरल इक्विलीब्रियम'' मॉडल के बजाए साधारण इनपुट-आउटपुट (IO) विश्लेषण भी सही तस्वीर दे सकता है, क्योंकि यहां 'मांग-आपूर्ति संतुलन' से भटकाव काफ़ी ज़्यादा होगा।

इस लेख में साधारण IO विश्लेषण से कोरोना के आर्थिक प्रभावों के नतीजों को बताया गया है।

वैसिली लियोनटिफ द्वारा खोजी गई IO विश्लेषण की एक विधि है, जिससे अर्थव्यवस्था में मौजूद सभी अंत:निर्भरताओं को ध्यान में रखने हुए आर्थिक प्रभाव का पता लगाया जाता है। इसके नतीज़ों में हर क्षेत्र और ग्राहकों के हर वर्ग (परिवार, सरकार आदि) की कुल मज़दूरी, लाभ, बचत और ख़र्च भी शामिल होते हैं।

भारत में योजना आयोग के खात्मे के बाद नीति आयोग बनाया गया था। लेकिन तभी से सरकार ने ''इनपुट-आउटपुट मैट्रिक्स'' को जारी नहीं किया है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था में IO विश्लेषण मुश्किल हो जाता है। पिछली मैट्रिक्स 2007-08 में जारी की गई थी। सरकार ''नेशनल अकाउंट स्टेटिस्टिक्स'' प्रकाशित करती है, लेकिन इनसे IO सूची की तरह अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों की एक-दूसरे पर निर्भरता की जानकारी नहीं मिलती। जबकि छोटी अवधि में चक्रवात और लॉकडॉउन जैसी बड़ी अवधि की घटनाएं अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करती हैं।

इसका प्रत्यक्ष प्रभाव मापना आसान है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रभाव की गणना करना कठिन। क्योंकि इसके नतीजे सेक्टरों की स्वतंत्रता और एक दूसरे पर निर्भरता से आते हैं। उदाहरण के लिए यातायात की मांग में कमी से सिर्फ़ यातायात सेक्टर प्रभावित नहीं होगा, बल्कि मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि जैसे क्षेत्रों पर भी बुरा असर पड़ेगा।

इस लेख में जिन नतीजों का ज़िक्र है, उनके लिए IO इनपुट ''वर्ल्ड इनपुट-आउटपुट डेटाबेस'' से 2014 के आंकड़े लिए गए हैं, जिनके आधार पर 2020 के आउटपुट की गणना की गई है। यह डेटाबेस 48 देशों के आंकड़े देता है। यह महामारी के पहले के अनुमान हैं। हमने माना कि इकनॉमी के हर सेक्टर में शटडॉउन के चलते कुछ दिन काम बंद रहेगा। साथ में हमने यह धारणा भी बनाई कि हर सेक्टर में सालाना आउटपुट, औसत तौर पर एक जैसा वितरित है, तब जाकर आउटपुट के नुकसान की गणना की जा सकी। इस आउटपुट नुकसान का इस्तेमाल करते हुए 2020 में भारत के लिए एक ''पोस्ट-Covid-19 सूची'' बनाई जा सकती है।

इनपुट-आउटपुट टेबल से महामारी के चलते जीडीपी में हुए नुकसान को निकाला जा सकता है। पहली सूची में ''तीन परिदृश्यों'' में इस तरह का विश्लेषण किया गया है। यह हैं उच्च, मध्यम और पारंपरिक परिदृश्य। पारंपरिक स्थिति में माना गया कि हर सेक्टर में बहुत कम काम के दिनों का नुकसान हुआ। मध्यम में माना गया कि ज़्यादा दिनों को नुकसान हुआ और उच्च में कई दिनों के नुकसान की स्थिति मानी गई।

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पारंपरिक स्थिति वाली सूची में जो नतीजे दिख रहे हैं, वो भारत की आज की स्थिति नहीं है। अलग-अलग सेक्टर में कम से कम 21 दिनों के काम का नुकसान होगा। लेकिन कई अध्ययन बताते हैं कि सरकार के पास दूसरी रणनीति के अभाव में 21 दिन का लॉकडॉउन संक्रमण को रोकने में सफल नहीं होगा।  मेरी राय में भारत के हालात दूसरे और तीसरे परिदृश्य की तरह बन सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कुल उत्पाद नुकसान 40 लाख करोड़ से 66 लाख करोड़ रुपये से बीच का होगा। यह जीडीपी का 20 से 32 फ़ीसदी हिस्सा होगा।

इस संकट की स्थिति में लंबे लॉकडॉ़उन का मांग और आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। साथ में बड़ा मानवीय संकट भी पैदा होगा। लॉकडॉउन के कुछ कदम तो उठाने ही चाहिए। लेकिन सरकार को मानवीय और आर्थिक नुकसान को लॉकडॉउन में कम करने के लिए कुछ उपाय करने चाहिए। इसके लिए जो योजना बनाई जाए, उसके प्रभावों का पहले ज़बरदस्त मात्रात्मक और गुणात्मक विश्लेषण होना चाहिए। ताकि इसे कितने राजस्व की जरूरत होगी, किस तरीके से इस योजना का क्रियान्वयन किया जाएगा, किस दिशा में इसे आगे बढ़ाया जाएगा, जैसी चीजें पता लगाई जा सकें। फिर हम एक बड़ी मानवीय आपदा रोकने में कामयाब रहेंगे।

लेकिन कोरोना महामारी पर सरकार के मौजूदा रवैये से ऐसा लगता है कि एक अच्छी आर्थिक योजना बहुत जल्दी नहीं आने वाली है। आंकड़े खुद अपनी गवाही देते हैं। दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था ने इतनी बड़ी आपदा में एक बेहद कमजोर राहत पैकेज दिया है। (सूची दो में भारत के राहत पैकेज की तुलना दूसरे देशों से देखें)। ध्यान रहे कि आपदा से करीब 40 से 66 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है, जबकि राहत पैकेज महज 1.7 लाख करोड़ रुपये का है। 

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भारत में आने वाले वक़्त में चालीस लाख करोड़ रुपये का आउटपुट नुकसान हो सकता है, इसे देखते हुए सरकार को संक्षिप्त और दीर्घकाल में अपने ख़र्चों में बढ़ोत्तरी करनी होगी। लेकिन केवल खर्च बढ़ाने से फायदा नहीं होगा। सबसे ज़्यादा संवेदनशील आबादी के लिए सावधानीपूर्वक राजकोषीय नीतियां बनाकर और उन्हें लागू कर, उसके बाद आर्थिक गतिविधियां को गति दी जा सकती है। अगर सरकार अपनी राजस्व मितव्ययता, बड़े उद्योंगों को बेलआउट करने, अमीरों को कर रियायत और ग़रीबों की सब्सिडी कम करने की नीतियों पर ही चलती रहती है, तो इससे संकट और गहरा ही होगा।

लेखक ''नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़'' के स्कूल ऑफ़ नेचुरल साइंसेज़ में एनर्जी एनवायरनमेंट प्रोग्राम से जुड़े हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Why India’s Covid-19 Package is Grossly Inadequate

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