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महाराष्ट्र के इकलौते हाथी शिविर में क्यों मर रहे हैं हाथी?

एक समय यहां हाथियों की खासी संख्या हुआ करती थी। लेकिन, मौजूदा समय में यहां जो आठ हाथी बचे हैं उनमें भी नरों की संख्या महज दो रह गई है। स्थिति यह है कि हाथियों की देखभाल के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं बचा है।
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हाथियों के संरक्षण के लिए बनाया गया कमलापुर का हाथी शिविर ब्रिटिश काल से अस्तित्व में हैं। यहां पर हाथियों की वंशावली में वृद्धि हुई है। लेकिन, वर्तमान में यहां आठ हाथी हैं। इसमें से छह मादा और दो नर हैं। यह महाराष्ट्र में हाथियों के लिए एकमात्र शिविर है। यह और बात है कि कमलापुर का हाथी शिविर हाथियों के मौत के कारण एक बार फिर सुर्खियों में है।

इसके पहले यह गुजरात के एक नामी उद्योगपति के एक निजी परिसर में हाथियों को भेजने को लेकर सुर्खियों में आया था, लेकिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के नक्सल प्रभावित कमलापुर का हाथी शिविर एक बार फिर सुर्खियों में है तो इसकी वजह है कि यहां हाथी के एक और नवजात की मौत हुई है। पिछले दिनों मंगला नाम के गर्भवती हथिनी के शावक की प्रसव के बाद मौत हो गई थी। वनकर्मी जब हाथी की तलाश में शिविर के पास जंगल में गए तो उन्हें हाथी का बच्चा मरा हुआ मिला। यह बात गंभीर तौर पर चिंताजनक इसलिए भी है कि यहां पहले भी हाथी के चार शावकों की मौत हो चुकी है। पशु चिकित्सा अधिकारियों का प्रारंभिक अनुमान है कि इन शावकों की मृत्यु यौन संचारित संक्रमण रोग से हुई है। वहीं, कुछ वन्य-जीव प्रेमियों का कहना है कि चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण हाथियों के शावकों की असमय मौत हो रही है।

जैसा कि कहा गया है कि यह शिविर ब्रिटिश काल से इस्तेमाल में लाया जा रहा है। तब से अब तक यह हाथियों के संरक्षण के अपने उद्देश्य में सफल भी होता रहा है और एक समय यहां हाथियों की खासी संख्या हुआ करती थी। लेकिन, मौजूदा समय में यहां जो आठ हाथी बचे हैं उनमें भी नरों की संख्या महज दो रह गई है। स्थिति यह है कि हाथियों की देखभाल के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं बचा है। यह बताता है कि हाथियों के संरक्षण को लेकर सरकार गंभीर नहीं है और अब तक वह इस समस्या की अनदेखी ही करती रही है। यही वजह है कि प्रशिक्षित महावतों, स्थायी वन्यजीव पशु चिकित्सा अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी के कारण हाथियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इससे हाथियों को बीमारी का अच्छी तरह उपचार नहीं हो पा रहा है। वहीं, विशेष तौर पर मादा हाथियों की डिलीवरी के दौरान उचित इलाज नहीं मिल पाता है। नतीजतन हाथियों की मौत हो जाती है। जो हालात है उसमें शिशु हाथी विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। इनकी संख्या वैसे भी कम हैं और यदि यह चिकित्सा के अभाव में मरते हैं तो शिविर के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा।

हाथियों की नहीं रही आवश्यकता!

एक समय था जब ये हाथी वन विभाग के कर्मचारी हुआ करते थे और वन विभाग के अधिकारियों को मदद किया करते थे, लेकिन जैसे-जैसे मशीनीकरण होता गया, वन विभाग के लिए हाथियों आवश्यकता कम होती गई। हालांकि, अब वन विभाग के सामने इन हाथियों के रखरखाव की बड़ी चुनौती है। इसके लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने सरकार से कई बार गुहार लगाई है। लेकिन, सरकार की तरफ से इस संबंध में अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। इसलिए, मौजूदा सुविधाओं और कर्मचारियों के भरोसे हाथी शिविर चल रहा है। स्थिति यह है कि हाथियों की स्वास्थ्य समस्या होने पर चंद्रपुर से वन्यजीव पशु चिकित्सा अधिकारियों को बुलाना पड़ रहा है। इसके लिए उन्हें करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है और आपातकाल की स्थिति में जब तक वे शिविर तक पहुंचते हैं, उसके पहले हाथी की मौत हो चुकी होती है। जाहिर है कि हाथियों के इलाज में देरी हो रही है। इसके चलते यहां चिकित्सा अधिकारियों व कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति ही एकमात्र विकल्प है। लेकिन, चूंकि यह फैसला राज्य स्तर पर है, इसलिए वन विभाग भी बेबस है।

हाथी शिविर में फिलहाल जो आठ हाथी बचे हैं उनके नाम इस प्रकार हैं: बसंती, प्रियंका, मंगला, रूपा, रानी और लक्ष्मी, ये सारी छह मादा हैं, जबकि दो नर है: गणेश और अजीत। कृष्णा, आदित्य, साईं और अर्जुन की असमय मौत हो चुकी है, जबकि एक अन्य नवजात शावक पिछले दिनों खत्म हो गया है। देखा जाए तो पिछले छह से सात साल में हाथियों के पांच शावकों की मौत हो गई है। इनके रख-रखाव के लिए फिलहाल कुल 5 महावत हैं। हालांकि, यह संख्या पर्याप्त नहीं हैं।

पर्यटक और वन्यजीव प्रेमियों में नाराजगी क्यों?

राज्य के एकमात्र हाथी शिविर के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान दूर-दूर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। इस बीच यहां के हाथियों को एक नामी उद्योग के निजी परिसर में भेजा जाना था। हालांकि, पूरे राज्य में गुस्से की लहर के बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया था। लेकिन, पर्यटकों और पशु प्रेमियों ने चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव में यहां हर साल हाथियों के शावकों की मौत होने पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि इससे इस अंचल में पर्यटन स्थल बंद हो जाएगा। इसलिए मांग की जा रही है कि इस मुद्दे पर सरकार प्राथमिकता से ध्यान दे और यहां की समस्या का समाधान करे। एक राय यह भी है कि अगर प्रशासन या राज्य सरकार समस्या का समाधान नहीं कर पा रही है तो हाथियों को मारने से अच्छा है कि उन्हें यहां से कहीं दूर दूसरी ऐसी जगह पर स्थानांतरित कर दिया जाए, जो हाथियों के जीवन के अनुकूल हो।

दूसरी तरफ, अफसोस की बात यह है कि चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिलों में किसी भी वन्यजीव स्वास्थ्य समस्या के निराकरण के लिए एक भी स्थायी वन्यजीव पशु चिकित्सा अधिकारी नहीं है। अभी केवल एक वन्यजीव पशु चिकित्सा अधिकारी है जो कि संविदा पर कार्यरत है। इसलिए यह अधिकारी हमेशा व्यस्त रहता है। वन्यजीव प्रेमी यह भी मानते हैं कि कमलापुर हाथी शिविर क्षेत्र हाथियों के लिए स्वर्ग है। यहां के प्राकृतिक जल स्रोत और जंगल उनके लिए पोषक हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में यहां के हाथी एक संक्रमण रोग के शिकार हो गए हैं। इनमें से ज्यादातर मौतें भी इसी बीमारी से होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यही वजह है कि वन्यजीव पशु चिकित्सा अधिकारियों और उपचार की स्थायी सुविधाएं मुहैया कराने को लेकर सरकार से मांग की जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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