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शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने वाले सैकड़ों शिक्षक सड़क पर प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

केंद्र की मोदी सरकार भारत को विश्वगुरु बनाने के अनेकों दावे आए दिन करती रहती है। इन दावों में एक देश के शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का भी है, हालांकि बात जब वादों और दावों से निकलकर ज़मीनी हक़कीकत तक पहुंचती है, तो कुछ ऐसे ही फुस नज़र आती है जैसे इन शिक्षकों की हालत फिलहाल दिखाई दे रही है।
teachers protesting on the street

"करीब 40 दिन से हम रोज सुबह शास्त्री भवन जाते हैं, वहां शांतिपूर्वक बैठते हैं और उनको अपने होने का एहसास कराते हैं कि हम लोग वो हैं, जिनके काम की तारीफ नीति आयोग और आपकी एजेंसियों ने की है, बावजूद इसके हमें 30 सितंबर को कॉलेज से निकाल दिया गया है।"

ये बातें देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ने वाले उन शिक्षकों की हैं जो बीते कुछ महीनों से दिल्ली के शास्त्री भवन के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन सभी ने आईआईटी-एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की है लेकिन अब सरकारी अनदेखी के चलते राजधानी दिल्ली के लुटियन जोन में कड़कती धूप और बरसाती बारिश में सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। ये लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से अपनी एक ही स्थिरता की मांग को लेकर दिल्ली आए हैं। इनका कहना है कि शास्त्री भवन और इनके बीच की दूरी केवल एक सड़क है, बावजूद इसके शिक्षा मंत्रालय तक उनकी बातें नहीं पहुंच पा रही है।

शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और बेहतर बनाने का प्रयास

बता दें कि तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (टेकिप) के तहत इन सभी शिक्षकों की भर्ती 2017 मेंं हुई थी, सभी सहायक प्रोफेसर आईआईटी और एनआईटी से पढ़े हैं। ये शिक्षक अपने प्लान, शिक्षण और अनुभवों से तंग शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं।

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साल 2020, सितंबर में इस कार्यक्रम की समयावधि समाप्त होनी थी। लेकिन राज्य और एमएचआरडी के बीच हस्ताक्षरित एमओयू में यह कहा गया था कि परियोजना के समाप्त होने के बाद इन सहायक प्रोफेसेरों को बनाए रखा जाएगा। परियोजना के खत्म होने के बाद केंद्र से मिलने वाले वेतन की जगह इन सहायक प्रोफेसरों को राज्य के कोष से वेतन दिया जाएगा। लेकिन अब तक किसी राज्य सरकार ने टेकिप-3 से नियुक्त किये गए किसी भी सहायक प्रोफेसर को राजीकीय शिक्षा व्यवस्था में शामिल नहीं किया है। साल 2020 के बाद से यह शिक्षक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

कोविड के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने दो बार- सितम्बर 2020 और मार्च 2021 में छह- छह महीने के लिए टेकिप-3 की अवधि को बढ़ा दिया। लेकिन किसी भी राज्य सरकार ने इस बीच कोई नियुक्ति नहीं की। 30 सितम्बर 2021 को केंद्र की आखिरी छह महीने की अवधि भी समाप्त हो गई लेकिन इनमें से किसी भी शिक्षक की भर्ती नहीं की गई। ऐसे में सभी शिक्षक बेरोज़गार हो गए हैं और अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं।

प्रदर्शन में शामिल शिक्षकों ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “मोदी सरकार शिक्षा में सुधार की बात करती है, प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार शिक्षा सुधार और क्वालिटी एजुकेशन पर जोर देने की बात कह चुके हैं। लेकिन टेकिप प्रोजेक्ट जो तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी को सुधारने के लिए ही शुरू किया गया था वो महज 4 सालों में ही ये अधर में लटक गया है, ये कैसी नीति और नीयत है, अगर शिक्षक ही सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर हैं तो देश की शिक्षा प्रणाली का भविष्य कैसा होगा?”

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पूरा मामला क्या है?

तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम यानी टेकिप की शुरुआत आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों और विशेष श्रेणी के राज्यों में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से हुई थी। इसके तीसरे चरण की शुरुआत केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (जो अब शिक्षा मंत्रालय बन गया है) ने वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर अप्रैल 2017 में की थी। इस दौरान 12 राज्यों में ग्रामीण और कुछ क्षेत्रों को फोकस किया गया जिसमें 70 से अधिक इंजीनियरिंग संस्थानों के लिए अस्थायी आधार पर 1,500 से अधिक सहायक प्रोफेसरों की भर्ती की गई थी।

ये सभी सहायक प्रोफेसर देश के प्रमुख संस्थानों- भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटी) से ग्रेजुएट अथवा पोस्ट ग्रेजुएट थे। इन्हें तीन साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर नियुक्त किया गया था। सबकी नियुक्ति एक प्रोसेस और साक्षातकार के बाद हुई थी। इस परियोजना के तहत इन सहायक प्रोफेसरों को पीएचडी पूरी करने के लिए छात्रवृत्ति भी दी जाती है।

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साल के बाद स्थाईकरण का लिखित आश्वासन

अब प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि केंद्र सरकार तीन साल तक विश्व बैंक की सहायता से चयनित शिक्षकों को सैलरी देगी। तीन साल के बाद जो वेल परफार्मिंग फैकल्टी बचेंगी, जिनका रेगुलर इंटरवल पर अप्रेजल होता है उनको राज्य सरकार अपने संस्थानों में रेगुलर करेगी। इसके लिए बकायदा केंद्र और राज्यों के बीच एक एमओयू साइन किया गया था। लेकिन जब तीन साल का समय निकट आ गया तो राज्यों ने कुछ नहीं किया। केंद्र ने राज्यों को खुद पत्र लिखकर शिक्षकों के रेगुलराइजेशन की बात कही और इन शिक्षकों को छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया।

लेकिन अब केंद्र सरकार की ओर से दी गई छह महीने की एक्सटेंशन भी बीती 30 सितंबर को खत्म हो गई है और राज्यों की ओर से इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। अब ये असिस्टेंट प्रोफेसर बेरोजगार हैं, लगभग 40 दिन से दिल्ली की सड़कों पर धरना देकर बैठे हैं लेकिन अब इनकी सुनवाई केंद्र भी कर रहा। इस दौरान इनकी मुलाकात शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से भी हुई और मंत्रालय के सक्षम अधिकारियों से भी। लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ न मिला।

समय बीत गया, लेकिन नौकरी नहीं मिली

कमलजीत एनआईटी कुरुक्षेत्र से पीएचडी की पढ़ाई कर रही हैं। टेकिप-3 परियोजना के अंतर्गत वो आईयूएसटी पुलवामा में पढ़ाती हैं। कमलजीत का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उन्हें पुलवामा में पढ़ाने के लिए भेजा गया। सुरक्षा के लिहाज से उनका परिवार इसके लिए तैयार नहीं था बावजूद इसके वे अपने बेहतर भविष्य के लिए वहां इस उम्मीद में गईं कि तीन साल बाद उन्हें स्थाई रूप से शिक्षा व्यवस्था में शामिल कर लिया जाएगा लेकिन अब उनके सभी अरमानों पर पानी फिर चुका है। कश्मीर में इतना लंबा समय बीताने के बाद भी उन्हें अब तक नौकरी नहीं मिली है।

वे कहती हैं, “देश के अलग- अलग केंद्रीय कॉलेजों में हजारों पद खाली हैं, फिर भी सरकार हमें शिक्षा प्रणाली में अब तक शामिल नहीं कर पाई है। जबकि केंद्र सरकार ने खुद हमारी ट्रेनिंग करवाई है।हम लोग कोई आउट ऑफ द बॉक्स डिमांड नहीं कर रहे हैं, जो हमारे प्रोजेक्ट इम्प्लिमेंटेशन प्लॉन में लिखा था हम उसी की मांग कर रहे हैं। हम सारे अधिकारियों से मिलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कोई मिल नहीं रहा है, जो मिल रहे हैं वो कुछ क्लियर कट बता नहीं रहे हैं। सरकार हमारे साथ-साथ हमारे विद्यार्थियों का भविष्य भी अंधेरे में डाल रही है।"

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अनुराग त्रिपाठी, 29साल के हैं और आईआईटी- दिल्ली से एमटेक की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। वे टेकिप-3 के अंदर बीआईटी झांसी में बतौर सहायक प्रोफेसर पढ़ा रहे थे। लेकिन अब शास्त्री भवन के सामने रोजना धरने पर बैठते हैं, इस आस में की शायद शिक्षा मंत्री या कोई अधिकारी किसी दिन उनकी कोई बात सुन ले।

अनुराग ने मीडिया को बताया, " हम ये बताने के लिए दिल्ली की सड़कों पर हैं की हमसे वादा किया गया था कि आपको एक प्रोसेस के जरिए सस्टैनबिलिटी दी जाएगी। हम लोगों ने कभी जिंदगी में नहीं सोचा था कि हमें इतने दिन तक यहां इस तरह बैठना पड़ेगा। हमें लगा था कि हम उन्हें अपनी स्थिति बताएंगे तो वे हाथों-हाथ लेंगे और सॉल्यूशन देंगे। लेकिन वे तो धैर्य चेक कर रहे हैं कि हम कितने दिन बैठ सकते हैं।"

प्रोजेक्ट की स्थिरता की योजना पर अतिशीघ्र निर्णय हो

अनुराग आगे कहते हैं, "इस प्रोजेक्ट को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि केंद्र सरकार तीन साल तक विश्व बैंक की सहायता से चयनित शिक्षकों को सैलरी देगी, तीन साल के बाद जो वेल परफार्मिंग फैकल्टी बचेंगी, जिनका रेगुलर इंटरवल पर अप्रेजल होता है उनको राज्य सरकार अपने संस्थानों में रेगुलर करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। केंद्र ने बार- बार राज्य सरकारों को नोटिस भेजा, लेकिन राज्य सरकारें कान बंद करके बैठी हैं। पूरा कॉलेज हमारे सहारे चलता है, अगर हम ही चले गए तो केवल डायरेक्टर बचेंगे। फिर वे लोग घंटे के हिसाब से पढ़ाने वाले शिक्षक लेकर आएंगे जो सस्ते में पढ़ाते हैं। टेकिप-3 में बने रहने के लिए हर साल हमारा परफॉरमेंस अप्प्रैसल होता है। यहां बैठे अधिकतर शिक्षकों को तीन बार यह अप्प्रैसल मिल चुका है, लेकिन किसी को नौकरी नहीं मिली है।"

वहीं उज्जैन इंजिनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर अंशुल अवस्थी बताते हैं कि वो कड़ी मेहनत करके इस पद तक पहुंचे हैं और इस तरह बिना स्थिरता का निर्णय लिए प्रोजेक्ट बंद होने से उनके सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया है और वो जल्द ही पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में अक्षम हो जायेंगे। उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रोजेक्ट की स्थिरता की योजना पर अतिशीघ्र निर्णय लिया जाए।

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "जिन्होंने अपने कैरियर के चार महत्वपूर्ण साल दिए हैं उनका क्या दोष? पॉलिसी तो बनाई जा सकती है मोदी जी।"

विश्वगुरु भारत और शिक्षकों की हालत

न्यूज़क्लिक ने टेकिप फैकल्टी की मांगों पर सरकार का पक्ष जानने के लिए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन उनके कार्यालय से हमें कोई जवाब नहीं मिल सका। अगर मंत्रालय से कोई जवाब आता है तो खबर आगे अपडेट की जाएगी।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार भारत को विश्वगुरु बनाने के अनेकों दावे आए दिन करती रहती है। इन दावों में एक दावा देश के शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की भी है, हालांकि बात जब वादों और दावों से निकलकर ज़मीनी हक़कीकत तक पहुंचती है, तो कुछ ऐसे ही फुस नज़र आती है जैसे इन शिक्षकों की हालत बयां कर रही है।

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