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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पश्चिमी एशिया के दौरे के कारण क्यों सवालों के घेरे में हैं?

जो बाइडेन ने पश्चिमी एशिया के हालिया दौरे में ऊर्जा और क्षेत्रीय सुरक्षा के अलावा ईरान परमाणु समझौते और जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या जैसे विषयों पर चर्चा की। इन विषयों पर उन्हे भले ही कुछ हद्द तक सफलता मिली हो लेकिन मानवाधिकारों जैसे विषयों पर वह साफतौर से पक्षपाती दिख रहे हैं।
Joe Biden

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन वैश्विक स्तर पर चल रही अस्थिरता के बीच बीते सप्ताह पश्चिमी एशिया के दौरे पर थे। यह उनका बतौर राष्ट्रपति पश्चिमी एशिया का पहला दौरा था। उन्होंने अपनी इस यात्रा के दौरान ऊर्जा सुरक्षा, क्षेत्रीय सुरक्षा, मानवाधिकार से संबंधित मुद्दों, ईरान परमाणु समझौते, पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या और विशेष रूप से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच संबंधों की दुबारा बहाली से संबंधित विषयों पर चर्चा की।

वैश्विक स्तर पर महंगाई और ऊर्जा संबंधित उत्पादों के दामों में बेतहाशा वृद्धि के बीच राष्ट्रपति बाइडेन का यह दौरा अहम माना जा रहा है। दरअसल कोरोना महामारी के बाद हर ओर विभिन्न स्तर पर अस्थिरता देखी जा रही है और रुस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने इस समस्या में और इज़ाफ़ा कर दिया है। दोनों देशों में चल रहे युद्ध के कारण पेट्रोलियम उत्पादों के दामों में भी बेतहाशा रूप से वृद्धि दर्ज की गई है, जिस कारण आम ज़रूरत के उत्पादों के मूल्यों में भी वृद्धि देखने को मिल रही है। वर्तमान समय में पूरा विश्व महंगाई और ऊर्जा से संबंधित उत्पादों के अभाव जैसी समस्या की मार झेल रहा है।

ज्ञात हो कि रुस द्वारा यूक्रेन पर युद्ध करने की घोषणा के बाद से रुस पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। रूस पर लगे विभिन्न तरह के प्रतिबंधों का प्रभाव विश्व पर बुरी तरह पड़ रहा है। इसी अस्थिरता को कम करने और ऊर्जा आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिए बाइडेन ने पश्चिमी एशिया का यह दौरा किया है। इसी क्रम में ऊर्जा संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिका को साथी की सख्त ज़रूरत है। गौरतलब हो कि वैश्विक स्तर पर वेनेज़ुएला, ईरान और सऊदी अरब ही तीन ऐसे देश हैं, जिनके पास आवश्यकता से अधिक तेल निकालने की क्षमता है। वेनेज़ुएला और ईरान पर अमेरिका और यूरोपीय देश विभिन्न कारणों से प्रतिबंध लगाए हुए हैं। जिस कारण अमेरिकी राष्ट्रपति के पास केवल एक ही साथी सऊदी अरब बचता है, जो विश्व स्तर पर तेल की मांग को पूरा कर सकता है। वैश्वीक स्तर पर तेल के दामों में हो रही वृद्धि को नियंत्रण में रख सकता है।

तेल की समस्या के अलावा भी भू-राजनीतिक रूप से कुछ अहम कारण हैं, जिसकी वजह ने राष्ट्रपति को यह यात्रा करने और सऊदी अरब के साथ संबंध बेहतर बनाने को मजबूर कर दिया। इसमें पहला कारण ईरान परमाणु संधि है। दरअसल 2018 में ईरान परमाणु समझौते से अचानक से अमेरिका के हाथ बाहर खींच लेने के बाद इस क्षेत्र में तनातनी पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है। सऊदी अरब, इज़राइल और बाकी अरब देशों को ऐसा लग रहा है कि ईरान परमाणु बम बनाने के लिए संवर्धित यूरेनियम की आवश्यक मात्रा के करीब पहुँच गया है और ऐसे में अगर ईरान परमाणु बम बनाने में सफल हो जाता है तो यह क्षेत्र के अरब देशों के लिए समस्या का पात्र होगा। इस कारण उनके इस दौरे में ईरान परमाणु संधि का मुद्दा प्रमुखता से हावी थी।

इसके अलावा दूसरी वजह, “अब्राहम अकॉर्ड्स” के अस्तित्व में आने के बाद पश्चिमी एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव देखने को मिल रहा है। पश्चिमी एशिया के सुन्नी बहुल देश जैसे संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन, इज़राइल के साथ पूर्ण रूप से औपचारिक संबंध बहाल कर रहे हैं। ऐसे में सऊदी अरब का इज़राइल के साथ औपचारिक रूप से संबंध बहाल होना, अरब-इज़राइल संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में अगला प्रभावी कदम होगा। बिना अमेरिकी मदद के इज़राइल, सऊदी अरब के साथ संबंध बेहतर नहीं बना सकता है और साथ ही अगर अगर अमेरिका, सऊदी अरब को इज़राइल के साथ लाने में सफल हो जाता है तो “अब्राहम अकॉर्ड्स” को अरब देशों में पूरी तरह से वैधता प्राप्त हो जाएगी। इस कारण भी बाइडेन पश्चिमी एशिया की यात्रा के लिए मजबूर हो गए थे।

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के सऊदी अरब के दौरे और मोहम्मद बिन सलमान के साथ हुई मुलाकात का उनके गृह स्थान के अलावा यूरोपीय देशों में प्रतिरोध देखा जा रहा है। दरअसल राष्ट्रपति बाइडेन के सऊदी अरब दौरे की अमेरिका में तीखी आलोचना के पीछे की मुख्य वजह पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या से जुड़ा मसला है।

वर्ष 2018 के ऑक्टोबर महीने में सऊदी मूल के अमेरिकी नागरिक जमाल ख़ाशोज्जी जो “द वाशिंगटन पोस्ट” अखबार में पत्रकार थे, की हत्या तुर्की स्थित सऊदी दूतावास के अंदर कर दी गई थी। और हालिया राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मसले को अपने चुनावी अभियान के दौरान मुखर होकर उठाया था। चुनावी रैलीयों में उन्होंने पत्रकार की मौत का जिम्मेदार साफतौर से क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को बताया था, और यहाँ तक की सलमान को (Pariah) यानि की सबसे निचली जाती का आदमी तक कहा था। इसके अलावा सलमान के इस कृत्य के लिए सऊदी अरब को अलग-थलग करने की बात भी की थी। वहीं इसके अलावा चुनाव जीतने के बाद बाइडेन ने अमेरिकी खुफिया विभाग (सीआईए) द्वारा पत्रकार की हत्या से संबंधित गुप्त दस्तावेज को भी पब्लिक करवाया था। इस रिपोर्ट में पत्रकार की हत्या मे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के संलिप्त होने की बात कही गई थी। इन तमाम वजहों के कारण अमेरिका के सऊदी अरब के साथ पिछले आठ दशकों से भी अधिक के संबंध कटु हो गए थे। और अब जब सलमान के ऊपर पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के आरोप हैं, इस बीच उनसे मिलना, राष्ट्रपति बाइडेन को आलोचना के घेरे में अवश्य खड़ा करता है। इसी कारण बाइडेन के सऊदी अरब दौरे और क्राउन प्रिंस से मिलने की तीखी आलोचना हो रही है।  

हालांकि जो बाइडेन अपने पश्चिमी एशिया दौरे के खात्मे के बाद व्हाइट हाउस में प्रेस से संवाद करने के दौरान कहा कि उन्होंने मोहम्मद बिन सलमान के सामने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या का मसला उठाया था। और साथ ही सऊदी अरब सरकार द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघनों की समस्या को भी उनके सामने रखा था। विषय से थोड़ा इतर होकर अगर देखें तो अमेरिकी राष्ट्रपति की जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में सऊदी सरकार की जवाबदेही तय करने व सऊदी अरब को मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ कटघरे में खड़ी करने जैसी बाते देखने और सुनने में भलीभाँति शानदार और जानदार लगती है। और साथ ही उन्हे और अमेरिका को मानवाधिकार का हिमायती भी दिखाती है, लेकिन क्या यह बात शत प्रतिशत सही है।

यह बात सही है कि पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के पीछे जो लोग जिम्मेदार हैं उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि सऊदी अरब मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है, और इस कृत्य के लिए उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। लेकिन इन सबके इतर अगर सऊदी अरब के बिल्कुल करीबी देश पश्चिमी एशिया के एक और मुल्क इज़राइल पर नजर डालें तो क्या वह इस तरह के कृत्य नहीं करता है। क्या इज़राइल मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है? क्या वह अवैध रूप से कॉलोनियों का निर्माण नहीं कर रहा है? क्या अलजज़ीरा की पत्रकार शिरीन अबू अक़लेह की मौत के लिए इज़राइल जिम्मेदार नहीं है? खुद अमेरिकी सरकार की शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है की पत्रकार की मौत इज़राइली सैनिकों द्वारा हुई है, तो ऐसे में जो बाइडेन इज़राइल को अलग थलग करने की बात क्यूँ नहीं करते हैं? इज़राइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट जिनके कार्यकाल में शिरीन की इज़राइली सैनिकों द्वारा हत्या की गई, उन्हें जो बाइडेन Pariah यानि की सबसे नीच जाति का मनुष्य क्यों नहीं कहते? पत्रकार की हत्या के पीछे इज़राइली सरकार की जवाबदेही क्यों नहीं तय होती है? इन तमाम कारणों से दोनों देशों के संबंध कटु होने के बजाय और भी अधिक स्तर पर क्यों फल-फूल रहे हैं? क्या केवल सऊदी सरकार और मोहम्मद बिन सलमान के प्रति की गई प्रतिक्रिया अमेरिकी राष्ट्रपति के दोहरापन को नहीं दिखाती है? क्या एक के खिलाफ आक्रामकता और दूसरे के खिलाफ चुप्पी अमेरिका का पक्षपाती होना नहीं बताती है? पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या पर सवाल उठना चाहिए, बिना कोई अगर-मगर के उठना चाहिए। लेकिन एक को सवाल के घेरे में खड़ा कर दूसरे को वाहवाही की टोकरी में बिठाना, क्या किसी भी रूप से सही है?
 
शिरीन अबू अक़लेह की हत्या का मामला न केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन में आता है बल्कि यह “वॉर क्राइम” के अंतर्गत आता है। और ऐसे में इस मसले पर बाइडेन की चुप्पी अपने आप में बहुत कुछ बयान करती है और साथ ही उनके मानवाधिकारों के संरक्षण के देवता कहलवाने के ऊपर एक बड़ा सा सवालिया निशान लगती है।

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