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क्या राजस्थान कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगा?

आख़िर ऐसा क्यों न हो, क्योंकि भाजपा के पास बहुत पैसे हैं। मगर, इस बीच गहलोत के समर्थक कुछ अच्छा होने की उम्मीद कर रहे हैं। क्या इसका अंत कुछ रोमांचक होने वाला है?
Sachin Pilot and Ashok Gehlot

सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक और परेशानी में आ गयी है। इसके पीछे की वजह इस बात की आशंका है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार राज्य के उपमुख्यमंत्री और टोंक से विधानसभा के सदस्य (विधायक) सचिन पायलट के विद्रोह के बाद अपना बहुमत खो सकती है। सचिन पायलट के बारे में कथित तौर पर माना जा रहा है कि वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लगातार संपर्क में बने हुए हैं।

ऐसे में सवाल है कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी इस संकट को टाल सकते हैं और राजस्थान को मध्य प्रदेश की राह पर जाने से रोक सकते हैं, जहां कांग्रेस की अगुवाई वाली कमलनाथ सरकार को भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों द्वारा अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने के बाद सत्ता से बाहर कर दिया था?

पायलट खेमे में विधायकों की संख्या को लेकर परस्पर विरोधी रिपोर्टें हैं। ज़्यादातर मीडिया संस्थानों का कहना है कि 16 कांग्रेस और तीन निर्दलीय विधायक उनके साथ हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया इस इस संख्या को 25 बताता है।

नंबर गेम

200 सदस्यीय राज्य विधानसभा में इस समय कांग्रेस 107 विधायकों के साथ बहुमत में है और उसे 13 निर्दलियों का समर्थन हासिल है। जब दिसंबर 2018 में विधानसभा का गठन हुआ था, तो उस समय कांग्रेस के पास 100 विधायक थे, भाजपा के पास 72 विधायक, 13 निर्दलीय विधायक, छह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक और बाक़ी विधायक अन्य दलों से थे, जिनमें राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो-दो और राष्ट्रीय लोकदल के एक विधायक थे।

चुनाव के बाद बसपा के छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये थे। कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायकों के साथ पार्टी को 200 में से 120 सदस्यों का समर्थन हासिल है।   

अगर, कुछ देर के लिए यह मान भी लिया जाय कि कांग्रेस के 17 विधायक सरकार का समर्थन देना बंद कर देते हैं और वे अयोग्य घोषित कर दिये जाते हैं, तो विधानसभा की प्रभावी ताक़त 183 रह जायेगी, बहुमत का आंकड़ा 92 हो जायेगा और कांग्रेस की ताक़त 83 विधायकों की हो जायेगी। ऐसे में गहलोत सरकार के बचे रहने की संभावना पहले के मुक़ाबले थोड़ी अनिश्चित हो जायेगी।

गहलोत ने अपने निवास पर रविवार रात सभी कांग्रेस विधायकों की एक बैठक बुलायी।

एनडीटीवी के मुताबिक़, सचिन पायलट और भाजपा के बीच चर्चा लॉकडाउन से पहले ही शुरू हो गयी थी। कथित तौर पर भाजपा पायलट को मुख्यमंत्री का पद देने के लिए तैयार नहीं है। एक राजनीतिक विश्लेषक ने इन लेखकों में से एक को बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कभी भी इस तरह का समाधान नहीं चाहेगी और भाजपा के 72 में से कम से कम 45 विधायक “उनके पीछे मज़बूती के साथ” खड़े हैं।

रविवार दोपहर की ख़बरों से पता चलता है कि बाग़ी विधायक इस समय गुरुग्राम और दिल्ली के आईटीसी ग्रांड और आईटीसी मौर्या जैसे पॉश होटलों में ठहरे हुए हैं। पायलट भी कथित तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में ही हैं।

पायलट, जो आमतौर पर हर समय पत्रकारों के लिए सुलभ रहते हैं, लेकिन इस समय वे किसी के संपर्क में नहीं हैं और कहा जाता है कि वह कांग्रेस नेताओं के फ़ोन भी नहीं उठा रहे हैं। पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया है: “पिछले 24 घंटों से, @ SachinPilot… पत्रकारों के फ़ोन नहीं उठा रहे हैं। इससे यह पक्का संकेत मिलता है कि एक राजस्थानी थाली पकायी जा रही है। शेफ़ दिल्ली में है, किचन जयपुर में है। हमें देखना यह है कि कितने विधायकों को यह थाली परोसी जाती है ! इस पर नज़र बनी रहे !"

कांग्रेस के लिए यह शर्मनाक घटनाक्रम पूर्व नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और 22 अन्य बाग़ी कांग्रेस विधायकों के भाजपा में चल जाने के तीन महीने बाद सामने आया है, जिसके चलते कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार का पतन होना तय हो गया था। सिंधिया को राज्यसभा में एक सीट दिये जाने के तुरंत बाद उनके कुछ समर्थक शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल कर लिये गये थे। हालांकि, उन विधायकों का विधानसभा के लिए फिर से चुना जाना अभी बाक़ी है।

रिश्वत के आरोप

इंडियन एक्सप्रेस ने 11 जुलाई को बताया था कि राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) ने कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को 20 करोड़ से 25 करोड़ रुपये तक की बड़ी रक़म की रिश्वत देने को लेकर राज्य सरकार को कथित तौर पर गिराने की कोशिश करते हुए दो लोगों को गिरफ़्तार किया था। 

एसओजी ने 10 जुलाई को इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसमें कहा गया था,“इन नंबरों पर बातचीत से ऐसा लगता है कि सरकार को गिराने की कोशिश चल रही है, और राज्यसभा चुनाव से पहले इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है। बताया जाता है कि इस बातचीत में  मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच रस्साकशी चल रही है; ऐसी स्थिति में सरकार को गिराने के लिए सत्ताधारी पार्टी के विधायकों और निर्दलीय विधायकों को तोड़ा जा सकता है और पुराने की जगह एक नये मुख्यमंत्री बनाये जा सकते हैं। ”

ऐसी अटकलें हैं कि राजस्थान पुलिस द्वारा पायलट को जारी किये गये समन ने उन्हें आहत किया है और इस बाते से वे बेहद परेशान हुए हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर उनके एक क़रीबी सूत्र ने न्यूज़क्लिक को बताया,“जो कुछ हुआ है,इससे पहले वैसा कुछ नहीं हुआ था। आप सिर्फ़ एक ऐसे व्यक्ति के ख़िलाफ़ ही समन जारी नहीं कर रहे हैं, जो उप-मुख्यमंत्री का पद संभाल रहा है, बल्कि जो संयोगवश, पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) का अध्यक्ष भी है।”

लेकिन, इस बारे में गहलोत के एक क़रीबी व्यक्ति का नज़रिया बिल्कुल अलग है। उन्होंने इस लेख के लेखकों मे से एक को ऑफ-द-रिकॉर्ड बताया,“पायलट जी क्यों परेशान हैं ? मुख्यमंत्री ख़ुद पुलिस के सामने पेश होने के लिए तैयार हैं। कोई भी व्यक्ति क़ानून से ऊपर नहीं है। यह राज्य सरकार के लिए रिश्वत देने का गंभीर मामला है। ”

इन रिपोर्टों के आने के बाद कि पुलिस ने भाजपा के दो नेताओं की फ़ोन पर चल रही बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया है, जिसमें कहा गया कि वे कथित तौर पर विधायकों को रिश्वत देने की कोशिश कर रहे थे, गहलोत ने भाजपा पर अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए दावा किया है, “भाजपा नेता केंद्रीय नेताओं के इशारे पर यह खेल खेल रहे हैं। विधायकों को अग्रिम रूप से 10 करोड़ रुपये और सरकार के गिराये जाने के बाद 15 करोड़ रुपये  दिये जाने की पेशकश की गयी है।"

हालांकि, राजस्थान के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष,सतीश पूनिया ने इन आरोपों को बकवास बताते हैं। वे कहते हैं, “मुख्यमंत्री ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अपनी बात तार्किक रूप से नहीं रखी। यह उनके ख़ुद के भीतर की लड़ाई है, लेकिन दोष वह भाजपा पर मढ़ना चाहते हैं। वह कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं और उनका दर्द जायज़ है, क्योंकि कांग्रेस इस देश में सिकुड़ गयी है।' गहलोत ने जून में होने वाले राज्यसभा चुनावों से पहले भी भाजपा पर विधायकों को साधने की कोशिश करने का आरोप लगाया था।

10 जून को विधानसभा में राज्य सरकार के मुख्य सचेतक,महेश जोशी ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के महानिदेशक के पास एक लिखित शिकायत दर्ज की थी, जिसमें कथित तौर पर कहा गया था,“मुझे विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है कि सरकार को अस्थिर करने के लिए हमारे विधायकों और निर्दलीय विधायकों के सामने प्रलोभन दिये जाने की कोशिश की जा रही है।

क्या पायलट सिंधिया के नक्शेक़दम पर चलेंगे ?

एनडीटीवी में प्रकाशित "फाइटर पायलट ड्रॉज रेड लाइन फ़ॉर कांग्रेस" शीर्षक से एक लेख में पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है कि पायलट ने उन्हें बताया था कि वह निकट भविष्य में कांग्रेस को कभी नहीं छोड़ेंगे।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में पायलट के क़रीबी सूत्र ने इसी विचार से मिलती-जुलती बात रखी है। “मुझे नहीं लगता कि सचिन पायलट वैसा ही कुछ करेंगे,जैसा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के विपरीत कांग्रेस उनके ख़ून में है। दिल्ली में किसी मंत्री पद को लेकर सचिन-जी बिल्कुल बेक़रार नहीं हैं। यह मत भूलिए कि वह दूसरी यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री थे।”

चतुर्वेदी अपने लेख में आगे बताती हैं कि पायलट को तब भी लगा था कि गहलोत को पैनिक बटन नहीं दबाना चाहिए था और हालात से निपटने के लिए उन्हें 'रिसोर्ट पॉलिटिक्स' का सहारा लेना चाहिए था, पार्टी के विधायकों के सामने धन के लालच दिये जाने के बाद अपने राजनीतिक आस्था को बदलने से रोकने के लिए जयपुर के पास एक रिसॉर्ट में विधायकों को रखा गया था, ताकि दो कांग्रेस सांसदों (के सी वेणुगोपाल और नीरज डांगी) को संसद के ऊपरी सदन के लिए चुने जाने को सुनिश्चित किया जा सके।

आपस में बनती नहीं

सचिन पायलट और अशोक गहलोत एक दूसरे के लिए वास्तव में कोई रहस्य तो रहे नहीं हैं। पायलट ने स्पष्ट रूप से सोचा था कि वे दिसंबर 2013 में महज़ पांच साल पहले विधानसभा में कांग्रेस की 200 में से 100 सीटें जीतने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री बन जायेंगे।

उप मुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष का पद स्वीकार करने के लिए पायलट को "राजी" किया गया था। लेकिन, उनकी नाराज़गी चलती रही है और जब भी मौक़ा मिला है, वे गहलोत पर लगातार निशाना साधते रहे हैं।

अलवर के एक पशु व्यापारी,पहलू ख़ान की भीड़ द्वारा हत्या के आरोपियों को जब पुलिस ने बरी कर दिया था, तब पायलट ने कहा था कि अगर गहलोत सरकार ने एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया होता,तो आरोपियों को बरी होने से रोका जा सकता था।

इसी जनवरी महीने में सत्ता में तेरह महीने पूरा करने के बाद पायलट ने कहा था कि उनकी सरकार को कोटा में जे के लोन अस्पताल में एक महीने के भीतर सौ से अधिक बच्चों की मृत्यु के बाद अधिक "दयापूर्ण" और "संवेदनशील" होना चाहिए था। उन्होंने राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री,रघु शर्मा के सामने ही अस्पताल का दौरा किया था। (शर्मा कभी पायलट खेमे में हुआ करते थे,लेकिन शर्मा ने अपनी वफ़ादारी गहलोत के पक्ष में बदल ली थी।)

जब गहलोत ने कहा था कि यह एक "परंपरा" रही है कि राजनीतिक नेताओं को उन बच्चों के शोक संतप्त माता-पिता के घर जाना चाहिए, जिन्होंने अपना जीवन खो दिया है, तो पायलट ने पलटकर जवाब दिया था कि ऐसी परंपराओं का पालन करने लायक हम नहीं रहे।

अप्रैल में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान मध्य प्रदेश के किसी निवासी ने ट्वीट किया था कि कोटा में रह रही उनकी बेटी अस्वस्थ हैं। शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों को उस ट्वीट में मध्य प्रदेश वापस लाने के अनुरोध के साथ टैग किया गया था।

उस टैग के बाद, सिंधिया ने ट्वीट किया था कि वह पायलट के संपर्क में हैं और पायलट ने उन्हें उस लड़की की सकुशलता का भरोसा दिया है।

इससे पहले गहलोत ने दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में जोधपुर से अपने बेटे वैभव गहलोत की हार के लिए पायलट को ज़िम्मेदार ठहराया था। उल्लखनीय है कि अशोक गहलोत जोधपुर से पांच बार सांसद रहे हैं।

राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सत्ता में आने के पांच महीने से भी कम समय के बाद, भाजपा ने लोकसभा चुनावों में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद, मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा था कि उनके उपमुख्यमंत्री को राष्ट्रीय चुनावों में हुए अपनी पार्टी के इस शर्मनाक नुकसान की आंशिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

23 अप्रैल को प्रकाशित न्यूज़क्लिक के साथ एक साक्षात्कार में गहलोत ने कहा था कि उन्हें विश्वास है कि मार्च में मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार और 2019 में कर्नाटक में गठबंधन सरकार के साथ जो कुछ हुआ, उसे राजस्थान में नहीं दोहराया जायेगा।

उन्होंने कहा था,“राजस्थान की तुलना मध्यप्रदेश या कर्नाटक से नहीं की जा सकती। दिल्ली में केंद्र की सरकार हमारी सरकार को गिराने का सपना देख रही है। लेकिन,उनके सपने महज सपने ही रहेंगे। उनके सपने हक़ीक़त नहीं बन पायेंगे। ”

यह तो समय ही बतायेगा कि गहलोत का वह विश्वास ठीक है या नहीं।

जब पायलट के साथ उनके मतभेदों के बारे में सवाल किया गया, तो मुख्यमंत्री इसका जवाब सीधे तौर पर नहीं दे पाये थे। उन्होंने कहा था,“आपने एक दिलचस्प सवाल पूछा है। वह मेरे कैबिनेट सहयोगी, उपमुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री के रूप में मुझे उनके मान-सम्मान को बनाये रखना है। बस मुझे इतना ही कहना है।"

अभिजात वर्ग का हिस्सा

सचिन पायलट 42 साल के हैं और वे उम्र में अशोक गहलोत से 26 साल छोटे हैं। वे इस समय टोंक से राजस्थान की विधानसभा के सदस्य हैं। 2004 में जब वे पहली बार दौसा से संसद सदस्य के रूप में चुने गये थे, तब वे लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद थे। उन्होंने पांच साल बाद 2009 में अपना निर्वाचन क्षेत्र अजमेर बदलने के बाद संसदीय चुनाव जीता था, लेकिन 2014 में लोकसभा चुनावों में भाजपा के तत्कालीन विधायक सांवरलाल जाट से उन्हें 1,70,000 से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।

दिवंगत राजेश पायलट के बेटे, सचिन पायलट की पढ़ाई-लिखाई सेंट स्टीफ़न कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे विशिष्ट संस्थानों से हुई है। उन्होंने पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय स्थित व्हार्टन स्कूल से एमबीए की डिग्री हासिल की है। उन्होंने दिल्ली स्थित ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन और अमेरिकन मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन जनरल मोटर्स के साथ काम किया है।

उनकी पत्नी, सारा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला की बेटी हैं। सारा ने अपने भाई और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के श्रीनगर में सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत नज़रबंद किये जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सचिन पायलट क्षेत्रीय सेना में एक अधिकारी के रूप में कमीशन पाने वाले पहले केंद्रीय मंत्री बने।

क्या कांग्रेस सबक ले पायेगी ?

अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं किये जाने की शर्त पर एक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक न्यूज़क्लिक से बताते हैं कि मध्यप्रदेश में हाल ही में जो कुछ हुआ है, उससे सोनिया गांधी और राहुल गांधी को सबक सीखना चाहिए था। “उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच किसी को चुनना पड़ा था और उन्होंने कमलनाथ को चुना। उन्हें एक ही रास्ता या विकल्प का सामना करना पड़ा था, जो उपलब्ध है या जो कुछ भी नहीं है, उसे चुनने का एक विकल्प।”

मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने जो क़ीमत चुकायी है, वह एक बहुत बड़ी क़ीमत है। इस सिलसिले में राजस्थान का मामला अलग हो सकता है,क्योंकि कमलनाथ की तुलना में गहलोत की सौदेबाज़ी की क्षमता शायद उतनी मज़बूत नहीं हो, गहलोत का बड़े व्यवसाय और मीडिया के साथ बहुत ज़्यादा विवाद रहा है। कांग्रेस का 'आलाकमान' सचिन पायलट को लेकर ज़्यादा उदार हो सकता है।"

पायलट के क़रीबी सूत्र ने बताया है कि उनके पास सीमित विकल्प हैं। "उनके लिए एक क्षेत्रीय पार्टी बनाने का कोई मतलब नहीं है। अगर वे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा नहीं रखते हैं और अभी भी कांग्रेस में बने रहते हैं, तो उन्हें दिल्ली या जयपुर में अपने राजनीतिक सपने पूरे करने के लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ सकता है। मेरा ज्ञात तथ्यों के बजाय अंतर्ज्ञान पर आधारित भावना या अनुमान यह है कि वे (सचिन पायलट) ऐसा कुछ नहीं करेंगे,जो उनके दोस्त (ज्योतिरादित्य सिंधिया) ने किया है।"

आख़िर ऐसा क्यों न हो, क्योंकि भाजपा के पास बहुत पैसे हैं। मगर, इस बीच गहलोत के समर्थक कुछ अच्छा होने की उम्मीद कर रहे हैं।

क्या इसका अंत कुछ रोमांचक होने वाला है?

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Is the Congress About to Lose Rajasthan?

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