Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

घर से काम : कितनी सुविधा, कितना शोषण!

Work from home की सच्चाई दरअसल मीडिया सहित काफी लोगों को मालूम नहीं है। इन्फोसिस, टीसीएस जैसी बड़ी कम्पनियों के साथ-साथ छोटे बीपीओ और स्टार्ट अप्स में भी कानून का उल्लंघन कर कर्मचारियों का बेइंतहा शोषण हो रहा है, यहां तक कि वे टूटन के कगार पर हैं।
work from home
'प्रतीकात्मक तस्वीर' फोटो साभार: यूट्यूब

घर से काम (work from home) -यह कोविड 19 के लॉकडाउन वाले दौर में एक व्यापक परिघटना बन गयी है-खासकर सेवा क्षेत्र में। यह काम करने वालों के लिए वरदान है या अभिशाप?

कई कर्मचारियों को लगा था कि यह बड़े फायदे की चीज़ है। एक कर्मचारी, जो ऑफिस आने-जाने में 3-4 घंटे खर्च करता/करती थी, का समय और पैसा बचता है। अभिभावक अपने बच्चों के साथ समय बिता सकते हैं। काम में लचीलापन होगा, यानी बीच में कभी एक झपकी ले ली, घर के काम और ऑफिस के काम साथ-साथ निपट गए, और घरेलू माहौल का आनन्द ले लिया।

जवान महिलाओं को यौन उत्पीड़न नहीं झेलना पड़ेगा और कोई हर समय आपके सिर पर सवार नहीं रहेगा, कि bullying जैसा लगे। खाना, चाय-नाश्ता अपने हिसाब से खा सकते हैं और थक गए तो थोड़ा व्यायाम कर लिया या बगीचे में टहल लिया। काम करते समय पसंदीदा संगीत सुन सकते हैं।

और, सबसे बड़ी बात तो यह कि social distancing बरकरार रखते हुए काम होगा-यह कोविड के दौर में संक्रमण के खतरे से बचाता है और भीड़-भाड़ वाली जगहों से गुज़रने, ठसाठस भरी बसों में घुसने और बंद कार्यालयों में काम से मुक्ति दिलाता है।

देखने में तो ढर सारे फायदे हैं, फिर क्यों घर से काम लाखों के लिए वरदान कम, अभिशाप अधिक बनता जा रहा है?

Work from home की सच्चाई दरअसल मीडिया सहित काफी लोगों को मालूम नहीं है। इन्फोसिस, टीसीएस जैसी बड़ी कम्पनियों के साथ-साथ छोटे बीपीओ और स्टार्ट अप्स में भी कानून का उल्लंघन कर कर्मचारियों का बेइंतहा शोषण हो रहा है, यहां तक कि वे टूटन के कगार पर हैं।

एक systems engineer ने बताया, ‘‘आई टी क्षेत्र में पहले जो लोग 9-10 घंटे काम करते थे अब 12-14 घंटे बिना विराम के काम कर रहे हैं। सप्ताह के अंत और छुट्टियों पर भी काम करना पड़ता है। 1 मई को छुट्टी थी पर पूरे दिन हम जूझते रहे। रोज़ 2-3 बार ऑनलाइन मीटिंग होती है, और समय बॉस तय करते हैं। पहली मीटिंग सुबह 8 बजे शुरू होती है तो अंतिम रात 10.30-11 बजे समाप्त होती है। यह इसलिये होता है कि भारतीय कम्पनियां विदेशी कम्पनियों के लिए काम करती हैं और वे अपने टाइम ज़ोन के हिसाब से मीटिंग रखते हैं। मैनेजर असमय फोन करते हैं और कर्मचारियों से अपने प्रॉजेक्ट के आलावा छोटे-छोटे काम करने को कहते हैं। पर जो काम दिया जाता है वह निश्चित समय-अवधि में करना होता है, तो कर्मचारी भारी दबाव में रहते हैं। फिर खाना बनाने का समय तक नहीं मिलता, तो कई बार बिस्कुट-चाय से काम चलाया जाता है। यह अच्छा नहीं है, क्योंकि इससे हमारी प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो सकती है, जो कि कोविड के समय खतरनाक है।’’

सेल्स के क्षेत्र में काम करने वाली एक IT Executive ने कहा, ‘‘ प्रबंधकों का लालच कोविड के समय भी नहीं कम हुआ, तो सबको इनके revenue targets पूरे करने के लिए दूनी मेहनत करनी पड़ रही है, क्योंकि प्रबंधकों ने बोर्ड या पूंजीवादी बाज़ार को वायदा कर दिया है कि वे मांग के हिसाब से संख्या पूरी करेंगे। 8 बजे सुबह से 8 बजे रात तक लगातार फोन आते रहते हैं, क्योंकि हम कहीं बाहर नहीं जाते। ऐसा हाल होता है कि न हम आराम कर सकते हैं न ही अपने बच्चों का ध्यान रख पाते हैं। अब तो विडियो कॉल ही सामान्य नियम बन गया है और यह intrusion on privacy ही तो है, क्योंकि इसका कोई निश्चित समय नहीं होता। घर में बेहतर काम करने के लिए कम्पनी न ही अच्छे मॉनिटर, न तेज़ रफ्तार वाली इंटरनेट सेवा, या खास किस्म के ergonomic chair देती है।

टारगेट दिखाने के लिए वरिष्ठ कर्मचारी भी काफी दबाव में रहते हैं; कई दिन वे 4 घंटे सोकर काम चलाते हैं। यह इसलिए है क्योंकि उनके सालाना increments and perks उनके काम के आधार पर तय किये जाते हैं। वे मेहनत करने वाले कर्मचारियों के बल पर अपनी क्षमता की शेखी बघारते हैं। अधिकतर प्रबंधक काफी उबाऊ, बेवकूफ और घमंडी किस्म के होते हैं, वे केवल संख्या दिखाने के चक्कर में रहते हैं और उन्हें कर्मचारियों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं रहता।’’

NASSCOM (National Association of Software and Service Companies) का एक पर्चा 5 मई 2020 को जारी हुआ है। वह कहता है, ‘‘आज 43.6 लाख आईटी कार्यशक्ति का 90-95 प्रतिशत हिस्सा सफलतापूर्वक work-from-home model की ओर संक्रमित हो गया है, यह एक चमत्कारिक उपलब्धि है, जिसके कारण यह विश्व का शायद सबसे बड़े पैमाने का work-from-home scale projects है।’’

हैदराबाद में कार्यरत एक आईटी कर्मी ने बताया, ‘‘हर प्रॉजेक्ट को time-bound बना दिया गया है और निचले स्तर के प्रबंधक दिखाना चाहते हैं कि वे अपनी टीम से कम-से-कम समय में काम करवा सकते हैं। काम तो किसी टीम को दिया जाता है, तो टीम की सबसे कमज़ोर कड़ी पर सबसे अधिक भार आता है। वैसे तो आईटी क्षेत्र अधुनिकता का पर्याय माना जाता है पर कर्मचारियों के साथ गुलामों जैसा बतार्व होता है और प्रबंधकों व कर्मियों के बीच संबंध काफी अलोकतांत्रिक और असभ्य हो जाता हैं।’’

सुश्री परिमला पंचात्चरम, जो इन्फोसिस की पूर्व कर्मचारी रही हैं और वर्तमान समय में आईटी कर्मियों के संगठन Forum for IT Employees (FITE) की अध्यक्ष हैं, और जो अपनी यूनियन के तहत आईटी कर्मियों के कई केस लड़ रही हैं, का कहना है, ‘‘नन्दन नीलकानी और नारायणमूर्ति समाज में बहुत सम्मानित और बड़े नाम हैं। पर इनके नेतृत्व में बड़े नाम वाली कम्पनियां जिस तरह के कॉरपोरेट अपराधों में लिप्त हैं, उससे लगता है कि ये भी आईटी क्षेत्र के ‘रंगा-बिल्ला’ हैं। गर्भवती महिलाएं और महावारी के दौर से गुज़र रही युवतियों को सुबह 8 बजे से रात 1-2 बजे तक भी काम करने को मजबूर होना पड़ता है। हमने log in and log out time के रिकार्ड को screenshots के माध्यम से साक्ष्य के तार पर जुटाकर रखे हैं और ऐसे लोगों को सबक सिखाने के उद्देश्य से उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने पर विचार कर रहे हैं।’’

इसे भी पढ़ें : इतना आसान नहीं है महिलाओं के लिए वर्क फ्रॉम होम!

‘‘वास्तव में 8 घंटे काम का कानून Factories Act के तहत आता है, पर आईटी उद्योग इसके तहत नहीं आता- वह Shops and Establishments Act के अंतर्गत आता है, जो हर राज्य के लिए अलग है। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में 8 घंटे काम का नियम है पर कर्नाटक में 9 घंटे का है और कई राज्यों में ओवरटाइम-वेतन का प्रावधान भी नहीं है। हम सभी राज्यों में कानूनी सुधार कर समान रूप से 8-घंटे के कार्यदिवस और ओवरटाइम वेतन की मांग करने वाले हैं। शुरू में कर्मचारी प्रबंधकों के विरुद्ध जाने से डरते थे पर अब हज़ारों को असहनीय शोषण के चलते कम्पनी छोड़ना पड़ रही है, तो वे हमारे पास आ रहे हैं ताकि हम कुछ कार्यवाही करें। हमने तय किया है कि लेबर कोर्ट में हम claim petitions दायर करेंगे और अधिक घंटे काम के पिछले बकाये वेतन की मांग करेंगे। केवल चेन्नई और हैदराबाद में ही नहीं, बल्कि पुणे और बंगलुरु में भी आईटी कर्मियों और टेक-कर्मियों के भीतर एक क्रान्तिकारी अंतरप्रवाह दिखाई पड़ रहा है। ढेरों कर्मचारी हमसे सम्पर्क कर रहे हैं और क्रान्तिकारी, पूंजीवाद-विरोधी साहित्य की मांग कर रहे हैं। कुछ ही समय-अंतराल में आप इसकी अभिव्यक्ति देखेंगे।’’

परिमला कहती हैं, ‘‘जब कोविड-19 संकट खत्म हो जाएगा, तब भविष्य में भी work-from-home norm ही चलेगा। NASSCOM  की भविष्यवाणी है कि आगे आने वाले समय में 50 प्रतिशत से अधिक आईटी कार्य घरों से ही होगा, क्योंकि देखा जा रहा है कि lockdown period में work-from-home  से उत्पादकता बढ़ गई है, और प्रबंधन का काफी पैसा बचेगा, जो सुविधाएं देने में जाता है।’’ परिमला के यूनियन का आंकलन है कि आईटी कम्पनियों की अब आंखें खुल गई हैं, और वे अपने अधिकतर कार्यशक्ति को भविष्य में gig workers में तब्दील कर सकते हैं। उन्हें लगता है कि सरकार को कर्मचारियों के हितों की रक्षा करनी चाहिये।

न केवल प्राईवेट आईटी कम्पनियां, बल्कि सरकारी कर्मचारियों के लिए भी work-from-home के नियम को आम बनाया जा रहा है। कोरोना के दौर में सरकार का आधा काम कर्मचारियों के घरों से हो रहा है। Work-from-home के लिए Department of Personnel and Training (DoPT)  ने work-from-home के लिए मसौदा दिशा-निर्देश तैयार किये हैं पर वह असली चुनौतियों पर मौन है।

सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, इलंगो सुब्रमणियम, जो सरकारी कर्मचारियों के नेता हैं, बताते हैं, ‘‘लगभग सभी मंत्रालयों के अंतर्गत आने वाले अधिकतर केंद्रीय सरकारी कार्यालयों में work-from-home  लागू कर दिया गया है, पर घर से काम तो हो ही नहीं रहा। क्योंकि ठोस दिशा-निर्देश नहीं हैं, सभी ढोंग कर रहे हैं कि काफी काम हो रहा है। पर सच्चाई यह है कि dead work चल रहा है। सरकारी कार्यालयों की अंदरूनी भाषा में dead work के मायने हैं सबसे कम महत्व का काम। जहां तक work-from-home की बात है, इतना आंकड़ा ऑनलाइन देखना पड़ता है, जो उप-सचिव से लेकर सेक्शन अफसर तक को देखना होता है। यदि decentralized access सुनिश्चित नहीं किया जाएगा, तो work-from-home संभव ही नहीं हो सकेगा। पर PMO, Department of Nuclear Power and Defence छोड़कर अधिकतर मंत्रालयों और कार्यालयों में secured communication network नहीं है। बिना VPN (Virtual Private Network) जो लोगों के घरों में हो, ज्यादातर शीर्ष नौकरशाह अपने निम्न स्तर के कर्मचारियों को संवेदनशील डाटा नहीं देना चाहते। मोदी सरकार इन बारीकियों को नहीं समझती और DoPT से अस्पष्ट दिशा-निर्देश दिलवाती है। यह कारगर नहीं होगा। तो lockdown period में खाली बैठना होगा और बाद में काम का अंबार लग जाएगा। यह तो अदूरदर्शिता है। सरकार को सोच-समझकर सही नियम बनाने चाहिये, चाहे वह निजी क्षेत्र में हो या सरकारी क्षेत्र में।’’ 

(लेखक श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest