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देशभर में मज़दूरों का ज़िला मुख्यालयों पर 'हल्ला बोल'

मज़दूर संगठन सीटू के बैनर तले देशभर में केंद्र सरकार द्वारा चार श्रम कोड और तीन कृषि कानून पारित करने के खिलाफ 7-8 जनवरी, को ज़िला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया गया।
देशभर में मज़दूरों का ज़िला मुख्यालयों पर हल्ला बोला

देशभर में मज़दूरों ने 7 -8 जनवरी को किसान आंदोलन के समर्थन और अपनी मांग को लेकर जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन किया। इस दो दिवसीय अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन का आह्वान सेन्टर ऑफ इन्डियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) ने किया था। जिसके तहत मज़दूरों ने केन्द्र सरकार द्वारा चार श्रम कोड और तीन कृषि कानून पारित करने के खिलाफ देश के सभी जिला अधिकारी कार्यालय/उप जिलाधिकारी कार्यालयों पर हल्ला बोला। इसके माध्यम से उन्होंने प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा।

इस प्रदर्शन में देश के तमाम राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्य प्रदेश तमिलनाडु , हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और देश के राजधानी दिल्ली के मज़दूरों की बड़ी भागीदारी देखने को मिली।

दिल्ली के अलग-अलग ज़िला कार्यालयों पर प्रदर्शन

इस अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन के तहत 7 -8 जनवरी को प्रदर्शन किया गया। इसमें दक्षिण-पश्चिम में सात जनवरी को और बाकी जिलों दक्षिणी दिल्ली, उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली में आठ जनवरी को विरोध प्रदर्शन किया गया। उपरोक्त कार्यक्रम में अलग-अलग इंडस्ट्रीयल एरिया के कारखाना मजदूर, जल बोर्ड के कर्मचारी, मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव, रेहड़ी पटरी लगाने वाले, कर्मचारियों के साथ महिला संगठन जनवादी महिला समिति और नौजवान संगठन डीवाईएफआई ने भी हिस्सा लिया।

सीटू दिल्ली के महासचिव अनुराग सक्सैना द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार इन प्रदर्शन में सीटू के राज्य स्तरीय नेताओं के साथ जिले के नेताओं ने लोगों को संबोधित किया। वक्ताओं ने अपने सम्बोधन में कहा कि "मोदी सरकार ने कोविड-19 में लगाई गई पाबंदियों का उपयोग करते हुए ‘‘आपदा को अवसर” का नारा देते हुए चार श्रम कोड और तीन कृषि कानून पारित किए, जिसके प्रभाव में मजदूरों के लिए सभी सामाजिक सुरक्षा की कटौती कर दी गई।"

तेलगु भाषी राज्यों में किसानो का हल्ला बोल

गुरुवार और शुक्रवार (7 और 8 जनवरी) को, तेलुगु भाषी राज्यों (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में ट्रेड यूनियनों के साथ-साथ किसानों ने दोनों राज्यों के कलेक्ट्रेट ऑफिस को घेर लिया और श्रम कोड्स और नए कृषि कानूनों को 'नल्ला चटालु' यानी 'काला कानून' करार दिया। यहाँ लगातार कृषि कानूनों के खिलाफ बड़े बड़े आंदोलन आयोजित हो रहे हैं जिनमें आम लोगों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।

गुरुवार को सीटू की राष्ट्रिय अध्यक्ष हेमलता के साथ राज्य अध्यक्ष सी नरसिंह राव और अन्य मज़दूर नेताओं और किसान नेताओं को पुलिस ने विशाखापत्तनम शहर में 'कलेक्ट्रेट घेराव' के दौरान हिरासत में लिया। प्रकाशम, कृष्णा, कुरनूल और चित्तूर जिला कलेक्टरों में किसानों को गिरफ्तार किया गया था। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सभी जिला मुख्यालयों में बड़े पैमाने पर रैलियाँ की गईं। इस दौरान वहां नए कृषि कानूनों और श्रम कोड की प्रतियां भी जलाई गई।

हिमाचल प्रदेश में भी मज़दूरों का प्रदर्शन

देशव्यापी विरोध के तहत 7 जनवरी को हिमाचल प्रदेश में भी मजदूरों ने रैली,धरने व प्रदर्शन किए। शिमला के डीसी ऑफिस पर प्रदर्शन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में मज़दूर नेताओं और मज़दूरों ने भाग लिया।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि "श्रम कानूनों को खत्म कर बनाई गईं मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के खिलाफ,न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने,...किसान विरोधी तीन कानूनों व बिजली विधेयक 2020 के मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश के मज़दूर सड़कों पर उतरे।"

उन्होंने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में मजदूरों व किसानों के इन मुद्दों पर प्रदेशभर में फैक्टरी, उद्योग, एसटीपी, होटल, रेहड़ी फड़ी, आंगनबाड़ी, मिड डे मील, ट्रांसपोर्ट, हाइडल प्रोजेकटों, स्वास्थ्य,बिजली आदि से सम्बंधित कार्यस्थलों पर जोरदार प्रदर्शन किए गए।

सीटू ने एलान किया कि उनके द्वारा 24 से 31 जनवरी तक प्रदेश के विभिन्न जिलों में जत्थे चलाकर केंद्र व राज्य सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों का पर्दाफाश किया जाएगा। इस दौरान शिमला, कुल्लू व हमीरपुर से विभिन्न जिलों के लिए तीन जत्थे चलाए जाएंगे। विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा पर मजदूरों का बड़ा प्रदर्शन होगा जिसमें हजारों मजदूर विधानसभा पर हल्ला बोलेंगे व सरकार को मजदूर मांगों को मानने के लिए मजबूर किया जाएगा।

पंजाब-हरियाणा में भी श्रमिकों और खेत मज़दूरों का प्रदर्शन

पंजाब के लुधियाना में किसान विरोधी कृषि कानून, श्रम कानूनों में बदलाव, व बिजली बिल के विरोध में श्रमिक संगठनों के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर सीटू के बैनर तले मजदूरों कर्मचारियों व आशा,आंगनवाड़ी, आदि ने जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया और माँगो से संबंधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। आंदोलनकारियों को सीटू पंजाब सचिव जितेन्दर पाल सिंह व जिला सचिव सुखविंदर सिंह लोटे ने सम्बोधित किया।

डीसी को मांग पत्र देने पहुंच रहे कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस द्वारा धक्का-मुक्की भी हुई जिसमें कई लोगों और नेताओं सुखविंदर सिंह लोटे व जितेंद्र पाल सिंह को चोटे भी आईं। इस पर सीटू नेताओं ने कहा "इससे यह साफ जाहिर होता है ये सरकारें चाहे केंद्र की हों या राज्य की हों ये दोनों सरकारें किसान व मजदूर विरोधी हैं।"

मज़दूरों का कहना था जो अंग्रेजों से लड़कर श्रम कानून को मजदूरों ने लागू करवाया था उसी श्रम कानून को मौजूदा सरकार खत्म करके यह साबित करना चाहती है कि देश के अंदर मजदूर छोटे दुकानदार व मध्यम वर्ग के लोग नहीं रहना चाहिए व खत्म करना चाहती है सरकार और पूंजीपति सिस्टम को लागू करना चाहते हैं। और पूंजीपतियों को लूट करने का बहुत बड़ा मौका दे रहे हैं जिससे मजदूर तो तबाह होगा, देश भी तबाह हो जाएगा और किसान विरोधी अध्यादेश को वापस लेने की मांग की मज़दूर संगठन के नेताओ ने केंद्र की मोदी सरकार को साफ कहा कि अब उनकी मज़दूर और किसान विरोधी कायदे (क़ानून) नहीं चलेंगे।

जबकि हरियाणा के मज़दूर पहले से ही किसान आंदोलन में शामिल है और लगातर बॉर्डरों पर अपनी मांग किसान आंदोलन के साथ पुरजोर तरीके से उठा रहे यहै। सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और निर्माण मज़दूर यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह 7 जनवरी को मज़दूर और श्रमिक के बड़े जत्थे के साथ शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का हिस्सा बने।

मध्य प्रदेश के मज़दूरों ने रैली निकालकर कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया

8 जनवरी को सीटू के राष्ट्रीय आह्वान पर मध्य प्रदेश के गुना में भी सीटू के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन कर रैली निकाली गई। डॉकबंगला गुना से सीटू की रैली शुरू हुई जो हनुमान चौराहा होती हुई कलेक्ट्रेट कार्यालय पर पहुंचकर सभा में परिवर्तित हो गई। सभा को सीटू के राज्य उपाध्यक्ष डॉ विष्णु शर्मा, सीटू के जिला महासचिव महेश सैनी, ज्ञानेश मेर ने सम्बोधित किया। सभी वक्ताओं ने अपने सम्बोधन में मोदी सरकार की मजदूर विरोधी किसान विरोधी नीतियों की निन्दा करते हुये मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को रद्द करने व किसान विरोधी तीनों काले कानूनों को वापस लेने की मांग की।

सभा के बाद 10 सूत्रीय ज्ञापन दिया गया। ज्ञापन में मजदूर विरोधी चारों श्रम संहिताओं को वापस लेने, किसान विरोधी तीनों काले कानून रद्द करने, बिजली अधिनियम 2020 वापस लेने तथा नई पेंशन योजना रद्द कर पुरानी पेंशन सुविधा लागू करने सहित अन्य मांगें शामिल हैं।

आपको बता दें किसान तीन नए कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर एक महीने से अधिक से बैठे है। इस दौरान 55 से अधिक किसानों की मौत भी हो चुकी है। हालंकि कई किसान नेताओं के मुताबिक यह आंकड़ा 70 तक पहुँच गया है। लेकिन इन सबके बाद भी सरकार इन नए तीनो कृषि कानूनों को वापस लेने के मूड में नहीं दिख रही है। किसानों के इस ऐतिहासिक संघर्ष के साथ ही देश का मज़दूर वर्ग भी अपना संघर्ष कर रहे है। दिल्ली की सभी सीमाओं पर किसानों के समर्थन में मज़दूर आ रहे हैं।  

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