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भारत
राजनीति
प्रेस स्वतंत्रता पर अंकुश को लेकर पश्चिम में भारत की छवि बिगड़ी
प्रधानमंत्री के लिए यह सरासर दुर्भाग्य की बात थी कि यद्यपि पश्चिमी मीडिया में उनके दौरे के सकारात्मक कवरेज को सुनिश्चित करने के लिए उनके बैकरूम प्रचारक ओवरटाइम काम कर रहे थे, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की ‘स्लाइड’ पर रिपोर्ट यूरोपीय मीडिया में उछल गई।
बी. सिवरामन
07 May 2022
Press Freedom Index

नरेंद्र मोदी अपनी छवि को लेकर काफी सचेत रहते हैं, खासकर जब उन्हें विदेशों में पेश करने की बात आती है। एक आरएसएस प्रचारक के रूप में, उन्होंने भारत में जवाहरलाल नेहरू की विरासत को दफनाने की शपथ भले ही ली हो, लेकिन वह गर्व से नेहरू जैकेट या शेरवानी पहनते हैं, जब उनके अपमार्केट, मुंबई स्थित आउटफिट डिजाइनर ट्रॉय कोस्टास फैसला करते हैं कि 2002 की विरासत के बावजूद वह उन्हें सम्मान दिलाएगा। तब यह शायद ही मायने रखता है कि नेहरू जैकेट का मूल कश्मीर है, जिसे वह बहुत पसंद नहीं करते।

इसी तरह, वह चीनियों से भले ही नफ़रत करें, उन्हें अपनी शेरवानी में फैशनेबल चीनी कॉलर पहनने में कोई झिझक नहीं होती।आखिर छवि महत्वपूर्ण है!

सितंबर 2019 में, ह्यूस्टन, अमेरिका में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में ट्रम्प के साथ अतिरिक्त प्यार जताते हुए  हुए कस्टम-मेड 10 लाख रुपये की जैकेट और 1.4 लाख रुपये वाला मेबैक काला चश्मा पहनने से जरूर विवाद पैदा हो सकता है। परंतु यह जाहिर है कि इसने उन्हें या उनके आउटफिट डिजाइनरों को किसी भी तरह से हतोत्साहित नहीं किया। 

यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध पर पुतिन का पक्ष लेने पर कुछ प्रतिकूल प्रचार के बाद अपनी एक सुखद छवि पेश करने के लिए उन्होंने अपने यूरोपीय दौरे के समय वैसी ही महंगी डिजाइनर जैकेट में खुद को सजाना पसंद किया। 

राजनीतिक रूप से, पीएमओ अच्छी तरह से जानता था कि उनकी सरकार को जहांगीरपुरी और तुग़लकाबाद में अपनी बुलडोजर राजनीति और विश्व-विख्यात शाहीनबाग में प्रस्तावित डिमॉलिशन के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रतिकूल प्रचार मिला है। मीडिया गपशप के अनुसार, पीएमओ की ओर से राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को अनौपचारिक निर्देश भेजे गए थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पीएम की यूरोप यात्रा के दौरान ईद शांतिपूर्ण ढंग से गुजर जाए। अविश्वसनीय बातें हुईं। यूपी के योगी राज में, शांतिपूर्ण ईद उत्सव सुनिश्चित करने के लिए हजारों पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। योगी ने व्यक्तिगत रूप से ईद पर निर्बाध बिजली आपूर्ति और जल आपूर्ति का वादा किया और इसे सुनिश्चित भी किया। यह एक परिवर्तन है! कर्नाटक में, बोम्मई ने भी अपना रुख बदला और पहली बार ईद मनाने वाले मुसलमानों की सुरक्षा की बात की। भाजपा शासित किसी भी राज्य में एक भी सांप्रदायिक घटना के बिना ईद का त्योहार बीत गया।

लेकिन, यह अजीब बात है कि कांग्रेस शासित राजस्थान में, जोधपुर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और 2-4 मई 2022 को मोदी के जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस के यूरोपीय दौरे की पूरी अवधि के दौरान यह हिंसा काफी समय तक जारी रही। कांग्रेस सरकार बेहतर जानती होगी इसके पीछे कारण क्या हैं, पर वह न केवल इसे शुरू होते ही दबाने में विफल रही, बल्कि इसे 5 मई तक चलने दिया गया, जब मोदी अपने यूरोपीय दौरे के समापन पर स्वदेश लौटे। हर साम्प्रदायिक दंगे के पीछे राजनीतिक रहस्य होते हैं। हालांकि यह मीडिया द्वारा पड़ताल का एक अलग विषय है।

वैसे भी, सभी सावधानियों के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में कुछ अप्रत्याशित खुलासों ने मोदी सरकार की छवि को उनके यूरोपीय दौरे के समय मलिन कर दिया। 3 मई को, जब मोदी यूरोप में लोकतंत्र के केंद्र फ्रांस जाने की तैयारी कर रहे थे, तब मीडिया की सुर्खियों में आया कि भारत विश्व में प्रेस स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में पिछले वर्ष 142 से 8 स्थान लुढ़ककर 150वें स्थान पर आ गया था। 

यह प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की गणना रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) द्वारा की गई है। ऐसा नहीं है कि यह जानबूझकर मोदी की यात्रा के साथ मेल खाने के लिये प्रकाशित किया गया था क्योंकि 3 मई को हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रधानमंत्री के लिए यह सरासर दुर्भाग्य की बात थी कि यद्यपि पश्चिमी मीडिया में उनके दौरे के सकारात्मक कवरेज को सुनिश्चित करने के लिए उनके बैकरूम प्रचारक ओवरटाइम काम कर रहे थे, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की ‘स्लाइड’ पर रिपोर्ट यूरोपीय मीडिया में उछल गई।

यहां तक कि ह्यूमन राइट्स वॉच की फरवरी 2022 की एक पुरानी रिपोर्ट में भारत में मीडिया पर हमलों की सूची को यूरोपीय मीडिया सामने लाया। साथ ही अमेरिकी विदेश विभाग की 12 अप्रैल की एक रिपोर्ट को अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, एंटनी ब्लिंकन द्वारा जारी किया गया था, जो यूरोपीय मीडिया संगठनों द्वारा प्रचार के लिए खोद निकाली गई थी ताकि भारत में मानवाधिकारों व प्रेस स्वतंत्रता के उल्लंघन पर विशेष टीवी शो दिखाए जा सकें।  

सामान्य तौर पर, भारत में मोदी की गोदी मीडिया ने इन प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों को पश्चिमी शक्तियों द्वारा मोदी की बढ़ती वैश्विक छवि को गिराने हेतु साजिश करार दिया होता। लेकिन दुर्भाग्य, कि कोई भी पश्चिमी सरकारी प्रतिष्ठान मानवाधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर मोदी सरकार के रिकॉर्ड की आलोचना के नवीनतम दौर में शामिल नहीं था। नौ अन्य संगठन जिन्होंने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता खत्म करने और पत्रकारों पर बढ़ते हमलों पर एक बयान जारी किया, वे प्रतिष्ठित नागरिक समाज के संगठन थे जैसे कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (Committee to Protect Journalists), फ्रीडम हाउस (Freedom House), पेन अमेरिका (PEN America), इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (International Federation of Journalists), सिविकस (CIVICUS), एक्सेस नाउ (Access Now), इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स (International Commission of Jurists, एमनेस्टी इंटरनेशनल (AI) और ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW)।

एमनेस्टी इंटरनेशनल, जिसकी संपत्ति सितंबर 2020 में मोदी सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी, और जिसे भारत से बाहर भगाया गया था, ने मोदी की यूरोप यात्रा की पूर्व संध्या को भारत में मीडियाकर्मियों पर हमलों के संबंध में बयान जारी करके बदला लिया। उसने दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी की गिरफ्तारी और अदालत द्वारा उन्हें जमानत देने के बाद फिर से गिरफ्तारी की घटना को प्रमुखता से उठाया। यह भाजपा शासित असम में एक ट्वीट के संबंध में हुआ था, जिसमें उन्होंने मोदी से गुजरात के खंबात में सांप्रदायिक शांति सुनिश्चित करने का अनुरोध किया था। सीबीआई द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल के इंडिया बोर्ड के अध्यक्ष आकार पटेल के खिलाफ विच -हंट, जिसमें उन्हें लुकआउट नोटिस जारी करके विदेश यात्रा करने से रोक दिया गया था और दिल्ली के सीबीआई कोर्ट द्वारा सीबीआई को अप्रैल में अभियुक्त बनाकर आकार पटेल से माफी मांगने के लिए कहा था- इस सब पर भी मोदी के यूरोपीय धरती पर उतरने के बाद प्रकाश डाला गया। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल के बयान में कहा गया: “विरोधी आवाजों (dissenting voices) के लिये जगह को लगातार संकुचित करके, भारतीय अधिकारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का माखौल बना रहे हैं। अधिकारियों के आलोचकों के खिलाफ उनका अनवरत विच-हंट भारत के अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सदस्य के रूप में उसकी भूमिका को पूरी तरह खंडित करता है। ” यह वास्तव में एक जबरदस्त अभियोग था जिसे यूरोपीय लागों के बीच एक किस्म की विश्वसनीयता मिली।

एमनेस्टी इंटरनेशनल की आलोचना को मोदी समर्थक ‘व्यक्तिगत विद्वेष से प्रेरित’ कहकर खारिज कर सकते हैं। लेकिन वे संयुक्त राष्ट्र के साथ ऐसा नहीं कर सके। संयुक्त राष्ट्र के विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम "डिजिटल घेरेबंदी के तहत पत्रकारिता" (Journalism Under Digital Siege) थी। स्पष्ट रूप से इजरायली पेगासस सॉफ्टवेयर के उपयोग के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा पत्रकारों की जासूसी करने की बात पर प्रकाश डाला गया - "पत्रकारों पर निगरानी और डिजिटल जरिये से हमलों और इस सब के परिणामस्वरूप डिजिटल संचार में जनता के विश्वास पर असर की वजह से पत्रकारिता खतरे में है।" (“the multiple ways in which journalism is endangered by surveillance and digitally-mediated attacks on journalists, and the consequences of all this on public trust in digital communications.”)

इस अवसर पर, संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनेस्को द्वारा " खतरे जो चुप कराते हैं: पत्रकारों की सुरक्षा से सम्बंधित रुझान" “Threats that Silence: Trends in the Safety of Journalists” शीर्षक एक चर्चा पत्र पेश किया गया, जो सुर्खियों में आया। चर्चा पत्र में विशेष रूप से भारत का नाम लिया गया था और उल्लेख किया गया कि पिछले वर्ष भारत में 22 पत्रकारों को उनके कर्तव्य निभाने के कारण मार डाला गया था। संयुक्त राष्ट्र भारत में पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित था। मोदी और उनके समर्थक भी उनकी छवि को लेकर चिंतित थे, जिसे यूनेस्को जैसी तटस्थ एजेंसी ने मानो कीचड़ में घसीट दिया हो।

अत्यधिक भुगतान लेने वाले मोदी के इमेज मेकओवर विशेषज्ञों की भारी परेशानी थी कि ठीक जब मोदी जर्मन धरती पर पधारे, , अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता पर जर्मन वैश्विक प्रहरी डीडब्ल्यू अकादमी (DW Akademie) ने, बड़ी चतुराई से लैटिन अमेरिका के उरुग्वे में ‘डिजिटल सत्तावाद’ पर एक पैनल चर्चा की व्यवस्था की। इसमें पैनेलिस्ट्स ने पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग करके भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन पर प्रकाश डाला। उन्होंने 1 अप्रैल 2022 की एक रिपोर्ट से बड़े पैमाने पर उद्धृत किया, जिसका शीर्षक ग्लोबल वॉयस द्वारा प्रकाशित ‘विरोध प्रदर्शनों के दौरान भारत में तकनीक-आधारित उपकरणों के उपयोग की तलाश करना’ था । यह एक वित्त पोषित एनजीओ भी नहीं है, बल्कि ब्लॉगर्स और कार्यकर्ताओं का एक ढीला -ढाला नेटवर्क है जो ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए समर्पित है। 

सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के प्रतिबंध, इंटरनेट बंदी, विशेष रूप से कश्मीर के कब्जे वाले इलाकों में, प्रदर्शनकारियों के चेहरे रिकॉर्ड करने के लिए ड्रोन का उपयोग, भारत में पुलिस द्वारा विरोध  प्रदर्शनों के रिकार्ड रखने और प्रदर्शनकारियों की छवियों को कैप्चर करने के लिए चेहरे-की-पहचान तकनीकों का उपयोग, विरोध स्थलों पर सीसीटीवी कैमरों और पुलिस द्वारा किराए पर लिए गए "ओपन-सोर्स" वीडियोज़ का व्यापक उपयोग, फोन-टैपिंग और स्मार्ट फोन की जियोलोकेशन तकनीकों का उपयोग करके कार्यकर्ताओं की आवाजाही को ट्रैक करना, कानून में संशोधन करना जो पुलिस को नागरिकों की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और अन्य बायोमेट्रिक डेटा को रिकॉर्ड और स्टोर करने का अधिकार देता है। और यहां तक कि मोबाइल संचार को अवरुद्ध करने के कई अन्य तरीकों का सहारा लेना जैसा कि जहांगीरपुरी आदि में बुलडोजर एडवेंचर के दौरान हुआ था, रिपोर्ट में हाइलाइट किया गया है। 

पैनल चर्चा के आधार पर जर्मन टीवी चैनल डीडब्ल्यू ने प्रेस की स्वतंत्रता पर मोदी सरकार के रिकॉर्ड की धज्जियां उड़ा दीं। मोदी ने बर्लिन में जिस चमचमाती शेरवानी का जलवा बिखेरा, वह किसी काम नहीं आया ।

इमेज मेकओवर के लिए मोदी सरकार ओवरटाइम लगी हुई है। पूर्व विदेश सचिव एपी वेंकटेश्वरन ने एक बार दिवंगत राजीव गांधी से कहा था, जो विदेशों में अपनी सरकार की छवि के बारे में समान रूप से चिंतित थे; "अगर मैं भौतिकी के नियमों को समझ रहा हूं, श्रीमान प्रधानमंत्री जी, किसी वस्तु की छवि कभी भी मूल की तुलना में अधिक उज्जवल नहीं हो सकती है।" यह सच है और मोदी एंड कंपनी पर बराबर लागू होता है।

उन्हें अवश्य बदलाव की दृष्टि से अपनी प्रेस स्वतंत्रता व मानवाधिकार रिकॉर्ड में सुधार लाने पर ध्यान देना चाहिए।

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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