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वैक्सीन के गंभीर प्रतिकूल प्रभावों और इससे होने वाली मौतों के डेटा को लेकर इतनी गोपनीयता क्यों है?

ब्रिटेन में कोविड-19 के बाद की सारी रिपोर्टें स्वत: ही सार्वजनिक पहुंच के दायरे में हैं, लेकिन भारत में इसके डेटा, टीकाकरण के बाद की प्रतिकूल घटनाएं और कोरोना वायरस से होने वाली मौतों पर एक रहस्य की चादर डाल दी गई है।
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ब्रिटेन में कोविड-19 के बाद की सारी रिपोर्टें स्वत: ही सार्वजनिक पहुंच के दायरे में हैं लेकिन भारत में इसके डाटा, टीकाकरण के बाद की प्रतिकूल घटनाएं और कोरोना वायरस से होने वाली मौतों पर एक रहस्य की चादर डाल दी गई है।अब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में काम करने वाले वकीलों और वैज्ञानिकों ने सरकार को  दो पत्र लिखा है और उसे टीकाकरण के बाद की प्रतिकूल घटनाओं इससे होने वाली मौतों और इसकी जांच के ब्योरे को सार्वजनिक करने के लिए कहा है। लेकिन इस दिशा में सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है। अगर सरकार इसी तरह से चीजों को छिपाना जारी रखा तो व्यवस्था में लोगों का विश्वास उठ जाएगा और टीकाकरण को ले कर उनकी हिचक बढ़ती जाएगी। इसे लेकर आगाह करती हैं -वीणा जौहरी 

कोरोना वायरस से भाऱत में होने वाली मृत्यु दर 1.38% है, जब भी संक्रमण के नये-नये मामले औसतन 40,000 तक पहुंच गए हैं। टीकाकरण की दर बढ़ाये जाने के बावजूद महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने फिर से जोर पकड़ लिया है। रोजाना औसतन लगभग 25 लाख लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है।

सरकार ने दूसरे चरण के टीकाकरण अभियान में बुजुर्गों और 45 वर्ष से ऊपर के ऐसे लोगों को जो अन्य बीमारियों से भी ग्रस्त हैं, उनको प्राथमिकताएं दी हैं। पर विडंबना यह है कि जो लोग ऐसे इलाकों में रह रहे हैं, जहां कोविड-19 के सक्रिय मामलों के टीके नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं, वे इस अर्हता के दायरे में नहीं आते जबकि टीके की 6.5 फीसदी (23 लाख) खुराकें बर्बाद हो जाती हैं। क्या यह जो बर्बादी है, वह टीके के वितरण की समस्या के कारण है या वायल (हरेक वायल में 10 खुराक होती है) के खुलने के 4 घंटे की अंदर में टीका नहीं देने की वजह से है या भरोसे की कमी की वजह से?

मानव शरीर में किसी भी मेडिकल हस्तक्षेप के चाहे वह दवा के रूप में हो, शल्य चिकित्सा की शक्ल में हो या फिर किसी रोग का टीकाकरण हो, उसके अतिरिक्त प्रभाव होते ही हैं। ऐसे में इसके बाद होने वाली प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को पहचान कर (एईएफआइ), उनकी वजह की जांच कर और उनके अनुरूप किए जाने वाले उपायों को लागू करे, टीकाकरण या टीके से संबंधित गड़बड़ियों को दूर किया जा सकता है। यह तो रोकथाम  के लायक है और सही समय पर उसका चिकित्सकीय प्रबंधन किया जा सकता है।

रिपोर्टिंग की कमी

पुष्टीकरण,उसकी पहचान और उसकी जांच, टीकाकरण अभियान के क्रियान्वयनों के आयामों का परीक्षण, इसी तरह की प्रतिकूल घटनाओं का निर्धारण, और इनसे संबंधित होने वाली क्रियाओं को किसी भी टीके के प्रसार का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि कोविड-19 के टीके के लाभ उसके जोखिम के बनिस्बत अधिक हो सकते हैं।

मानव शरीर में किसी भी मेडिकल हस्तक्षेप के चाहे वह दवा के रूप में हो, शल्य चिकित्सा की शक्ल में हो या फिर किसी रोग का टीकाकरण हो, उसके अतिरिक्त प्रभाव होते ही हैं। ऐसे में इसके बाद होने वाली प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को पहचान कर, उनकी वजह की जांच कर और उनके अनुरूप किए जाने वाले उपायों को लागू करे, टीकाकरण या टीके से संबंधित गड़बड़ियों को दूर किया जा सकता है। यह तो रोकथाम  के लायक है और सही समय पर उसका चिकित्सकीय प्रबंधन किया जा सकता है।

हालांकि, तब भी,प्रत्येक गंभीर घटनाओं की रिपोर्टिंग करने, उसकी जांच करने और उसका विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि क्या इन सब का संबंध टीके या टीकाकरण से तो नहीं है। गंभीर एईएफआइ को कम करने के लिए इसकी पहचान किया जाना महत्वपूर्ण है कि ऐसे जोखिम या अतिरिक्त दुष्प्रभाव होते हैं। इसको कम करने का तरीका हर टीकाकरण केंद्र पर मुहैया कराने की जरूरत है। 

व्यवस्थित और पूरी जांच उपलब्ध न करा कर, त्वरित चिकित्सकीय देखभाल उपलब्ध न कराकर और नुकसान की स्थिति में उचित मुआवजा न दिला कर जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा और टीकाकरण के बाद स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालेगा।

हालांकि, तब भी,प्रत्येक गंभीर घटनाओं की रिपोर्टिंग करने, उसकी जांच करने और उसका विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि क्या इन सब का संबंध टीके या टीकाकरण से तो नहींं है। गंभीर एईएफआइ को कम करने के लिए इसकी पहचान किया जाना महत्वपूर्ण है कि ऐसे जोखिम या अतिरिक्त दुष्प्रभाव होते हैं। इसको कम करने का तरीका हर टीकाकरण केंद्र पर मुहैया कराने की जरूरत है। 

रोटावायरस के साथ हाल के दिनों में एईएफआइ की रिपोर्टिंग का महत्व बढ़ गया है, जहां स्वीकृत टीके लेने के बाद इंटसेस्पशन की प्रतिकूल घटनाएं बढ़ गई हैं। इसलिए टीके के बाद होने वाले प्रतिकूल प्रभावों की निगरानी की जानी चाहिए और उनका समय पर समाधान करना चाहिए, जिससे कि ऐसे घातक नतीजों से बचा जा सके। 

खुला समाज

ब्रिटेन में कोविड-19 के बाद शुरू किए गए टीकाकरण से संबंधित सभी डाटा अपने आप सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध हैं। 16 मार्च 2021 को कोविड-19 टीके के एस्ट्राजेनेका विश्लेषण में बताया गया कि 4 जनवरी 2021 से 7 मार्च 2021 तक किये गये टीकाकरण से 2,28,337 प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं सामने आईं जिनमें 289 के परिणाम घातक रहे हैं। ब्रिटेन में फीजर वैक्सीन एनालिसिस में भी इसी तरह की रिपोर्टिंग की गई हैं। 

कुछ यूरोपीय देशों में गंभीर प्रतिक्रियाओं की जांच करने और इसका निदान ढूंढ़ने तक टीकाकरण अभियान को रोक दिया गया था। खून के थक्के जम जाने की प्रक्रिया के निर्धारण कर लिए जाने और प्लेटलेट्स घटने जैसी कुछ असामान्य प्रतिक्रियाओं के तय हो जाने के बाद उनमें से कुछ देशों ने टीकाकरण अभियान को फिर से शुरू कर दिया है। 

जांच के इन निष्कर्षों को सार्वजनिक क्षेत्र के दायरे में रखते हुए, उनका खुलासा करते हुए और इन कामों में पारदर्शिता बरतते हुए एईएफआइ न केवल व्यवस्था में विश्वास पैदा कर रही है, बल्कि लोगों को ही टीके से जुड़े हुए जोखिम के बारे में जागरूक किया है।

आज तक ब्रिटेन ने अपनी युवा आबादी के आधे हिस्से को किसी न किसी रूप में टीकाकरण कर दिया है। ब्रिटेन में कोविड-19 के बाद शुरू किए गए टीकाकरण से संबंधित सभी डाटा अपने आप सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध हैं। 16 मार्च 2021 को कोविड-19 टीके के एस्ट्राजेनेका विश्लेषण में बताया गया कि 4 जनवरी 2021 से 7 मार्च 2021 तक किये गये टीकाकरण से 2,28,337 प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं सामने आईं जिनमें 289 के परिणाम घातक रहे हैं। ब्रिटेन में फीजर वैक्सीन एनालिसिस में भी इसी तरह की रिपोर्टिंग की गई हैं। 

सरकार ने कहा है कि 16 मार्च 2021 तक टीकाकरण के बाद 71 मौतें हुई हैं, इनमें 80 फ़ीसदी  मौतें कोविशिल्ड टीके लगाने के चलते हुई हैं, जबकि कुछेक मौतें कोवैक्सीन से हुई हैं, जिन्हें भारत बॉयोटेक ने बनाया है। 

कोविशिल्ड टीके को भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका से करार के मुताबिक बनाया है और भारत के कुछेक स्वस्थ लोगों पर किये गये इससे संबद्ध परीक्षणों के बाद मिली आपातकालीन अनुमति के बाद इसको आगे बढ़ाया गया है।

सरकार ने मीडिया में बयान जारी किया है कि वैक्सीन से किसी की मौत नहीं हुई है और इसीलिए डरने की कोई बात नहीं है। हमें टीके और टीकाकरण से जुड़ीं सूचनाओं, जिनमें एईएफआइ और गंभीर एआईएफआइ से संबंधित जानकारियां शामिल हैं, को जानने का अधिकार है।

वहीं दूसरी ओर, भारत में, बचाव या प्रतिरक्षण के बाद होने वाली प्रतिकूल घटनाओं के बारे में कोई भी आंकड़ा सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा रोजाना यही जानकारी दी जाती है कि इतनी संख्या में लोगों का टीकाकरण हो गया लेकिन इस मीडिया ब्रीफिंग में यह नहीं बताया जाता कि टीकाकरण के बाद कितनी प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं आईं। सरकार ने बस इतना कहा है कि 16 मार्च 2021तक टीकाकरण के बाद कुछ लोगों की मौत हुई हैं, जिनमें ज्यादातर कोविशिल्ड  टीका लेने की वजह से हुई हैं। 

दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार यह महसूस नहीं करती कि सार्वजनिक क्षेत्र में बिना डाटा के केवल बयान जारी करना और इस टीकाकरण के बारे में आंकड़े मुहैया नहीं कराना,व्यवस्था में लोगों का विश्वास को मिटा देता है।

सूचनाओं की मांग

स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले, अधिवक्ताओं और वैज्ञानिक आदि के एक समूह ने सरकार को जो पत्र लिखा है और उनसे कोविड-19 वैक्सीन प्रतिरक्षण टीके के बाद होने वाली प्रतिकूल घटनाओं का पूरा विवरण मुहैया कराने और इनके आंकड़ों को लोगों के समक्ष रखने का अनुरोध किया है। 

इस समूह ने एक पत्र  31 जनवरी 2021 को टीकाकरण अभियान शुरू किए जाने के 15 दिनों के भीतर ही लिखा है, जब कोरोना से अगले मोर्चे पर लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों पर टीकाकरण के पहले चरण का अभियान शुरू किया गया था। 

स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले,  अधिवक्ताओं और वैज्ञानिक आदि के एक समूह ने सरकार को जो पत्र लिखा है और उनसे कोविड-19 वैक्सीन प्रतिरक्षण टीके के बाद होने वाली प्रतिकूल घटनाओं का पूरा विवरण मुहैया कराने और इनके आंकड़ों को लोगों के समक्ष रखने का अनुरोध किया है। हालांकि इन चिट्ठियों का कोई जवाब नहीं दिया गया और न ही सरकार द्वारा इससे जुड़ी कोई सूचना लोगों के सामने जाहिर की गई।

रिपोर्ट है कि टीकाकरण अभियान के शुरू होने के 15 दिनों के भीतर ही 42 से 56 वर्ष के लोगों के बीच 11 मौतों की खबर आई थीं, जिसे उन लोगों के पहले से बनीं हृदय से जुड़ी समस्याओं या मस्तिष्काघात (ब्रेनस्ट्रोक) से जुड़ी मौत करार दे दिया गया था। दूसरी चिट्ठी कोविड-19 के टीकाकरण अभियान शुरू होने के 2 महीने बाद 16 मार्च 2021 भेजी गई थी, जब टीकाकरण के बाद 65 लोगों के मर जाने की खबर आई थी। हालांकि 17 मार्च 2021 को सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था, 16 मार्च 2021 तक टीकाकरण के बाद 71 लोगों की मौत हुई हैं।

उन पत्रों में न केवल एईएफआइ रिपोर्ट्स को रेखांकित करने की महत्ता उजागर किया गया था बल्कि सच तो यह है कि ये मौतें डब्ल्यूएचओ द्वारा परिभाषित गंभीर एईएफआइ के “कलस्टर” मौतों की कोटि में आती हैं, जिसकी अवश्य ही तत्काल जांच की जानी चाहिए। “एक ही समय, स्थान पर और टीकाकरण के कारण दो या दो से अधिक लोगों को मौत हो जाती है,उसे ही कलस्टर एईएफआइ में परिभाषित किया गया है।” इसमें कहा गया है,“टीके से होने वाली प्रतिकूल की प्रतिक्रिया की दरों और इन घटनाओं की पृष्ठभूमि दरों के बारे में जागरूकता कलस्टर के संदर्भ में आकलन के लिए आवश्यक है, जिसका यह संकेत मुहैया  करता है।”

कोई जवाबदेही नहीं

हालांकि इन चिट्ठियों का सरकार के किसी भी विभाग से कोई जवाब नहीं दिया गया और नहीं इन सूचनाओं को सार्वजनिक किया गया।सरकार की चुप्पी से टीकाकरण के बाद की इन घटनाओं की रिपोर्टिंग, इनकी जांच और प्रतिरक्षण अभियान की डेटा के विश्लेषण की प्रणाली को लेकर गंभीर संदेह पैदा होता है। सरकार ने  टीकाकरण के लिए को-विन (Co-WIN app) ऐप के जरिए  निबंधन ( रजिस्ट्रेशन)  पर जोर दिया है। 

हालांकि व्यवस्था में खामियों, उसका  उपभोक्ता के मित्रवत उपयोग का न होना और डेटा को दर्ज कराने की मंद गति जैसी गड़बड़ियां सवाल पैदा करती हैं कि इन प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्टिंग तत्परतापूर्वक की जा रही हैं या नहीं। 

गंभीर प्रतिकूल घटनाओं के लिए, जहां लोगों की मौतें हो जाती हैं या उनके अस्पताल की सुविधा को लेकर कोई डाटा नहीं है कि क्या किसी को अस्पताल तक पहुंच हुई कि नहीं, अगर हुई तो उस गंभीर प्रतिक्रियाओं की जांच किस तरह की गई और उसके नतीजों के डाटा क्या मिला। वास्तव में, विभिन्न एईएफआइ कमेटियां भी गोपनीयता बरतती हैं। 

सरकार की बहानेबाजी 

इस संदर्भ में भारत में हुए विगत के अनुभव तो आंखें खोल देने वाले हैं।  2012 में जब एचपीवी  के टीके को भारत के लिए प्रस्तावित किया गया  तो उसके चौथे चरण का परीक्षण भारत के दो राज्यों के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में किया गया था। इसे डिमॉन्सट्रेशन प्रोजेक्ट  कहा गया था। इस टीके की वजह से 9 से लेकर 14 साल की 7 लड़कियों की मौत हो गई थी।  इनमें से कुछ लड़कियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट उपलब्ध ही नहीं थी और कुछ मामले में यह रिपोर्ट उपलब्ध थी भी तो इसमें एकदम नगण्य ब्योरा दिया गया था। लिहाजा, इन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वैक्सीन से जुड़ा कोई भी निष्कर्ष नहीं  मिल सका। हालांकि सरकार ने इन लड़कियों की मौत से जुड़े आंकड़ों को छिपा दिया और यह कह दिया कि टीका के अलावा उनकी मौत की और भी कई वजह हो सकती हैं। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है और इससे जुड़े  पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा  देने का कोई आदेश अभी तक नहीं दिया गया है। 

एक बार फिर,  सरकार उसी तरह की चालबाजी की योजना बना रही है, जिसमें  आम आबादी के खास आयु वर्ग के लोगों की मौतों को अन्य कारणों से हुई मौतें बताई जा रही हैं और जाहिर है कि टीकाकरण के बाद होने वाली इन मौतों को भी टीके के बजाय अन्य वजहों से हुई मौत बता दी जाएगी। 

दरअसल ये कमियां व्यापक रूप से प्रतिकूल घटनाओं से संबंधित डाटा जमा न करने की वजह से है, जबकि अस्पताल में लोगों की चिकित्सा कराये जाने से लेकर वहां होने वाली मौतों के सही-सही विवरण पाने, सही तरीके से पोस्टमार्टम किये जाने और उसकी बाकायदा रिपोर्टस पाने, मौत की जांच करने, फिर उस डाटा की राजनीतिक या अन्य किसी तरह के दबावों में आए बिना वस्तुनिष्ठता के साथ जांच करने और उनका विश्लेषण करने की जरूरत है। 

इस तरह की चालबाजियां अपनी खामियों को छिपाने के लिए और इन गड़बड़ियों को दूर करने की अपनी अक्षमता को ढंकने के लिए की जाती है। दरअसल, ये कमियां व्यापक रूप से प्रतिकूल घटनाओं से संबंधित डाटा जमा न करने की वजह से हैं, जबकि अस्पताल में लोगों की चिकित्सा कराये जाने से लेकर वहां होने वाली मौतों के सही-सही विवरण पाने, सही तरीके से पोस्टमार्टम किये जाने और उसकी बाकायदा रिपोर्टें पाने, मौत की जांच करने, फिर उस डाटा की राजनीतिक या अन्य किसी तरह के दबावों में आए बिना वस्तुनिष्ठता के साथ जांच करने और उनके विश्लेषण के जरिये उनके आकलन की प्रक्रिया बनाने की जरूरत है।

इसके लिए साहस और हिम्मती व्यक्ति की जरूरत है, जो सच बोल सके, जो यह कह सके कि हमें क्या जानने की जरूरत है, बजाय इसके कि वे (सरकार) क्या सुनना चाहते हैं। क्या एईएफआइ कमेटियों में ऐसा कोई व्यक्ति है? हम यह कभी नहीं जान पाएंगे। 

लेकिन अगर सरकार टीकाकरण के बाद होने वाली गंभीर प्रतिक्रियाओं  से संबंधित डाटा को लेकर इसी तरह गोपनीयता बरतती रही और उनके ब्योरे देने बचती रही तो व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास कम हो जाएगा,  टीकाकरण को लेकर लोगों की  हिचक बढ़ेगी और  सबसे अधिक तो यह कि लोग  टीका लेने के बजाय, जो रोग के असर को घटा देगा, इस उपाय को आजमाने के बनिस्बत रोग से स्वयं के संक्रमित होने के खतरे उठाने को भी तैयार हो जा सकते हैं (जो कम, मध्यम और गंभीर संक्रमण के रूप में सामने आ सकता है।)। 

(वीणा जौहरी एक अधिवक्ता हैं, जो मुंबई में रहती हैं। वे स्वास्थ्य, मानवाधिकारों, नैदानिक परीक्षणों, दवाओं तक लोगों की पहुंच आदि से जुड़े मसलों पर काम करती हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Why-Secrecy-Around-Vaccine-Deaths-Data-Relating-Serious-Adverse-Events 

 

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