अगर एक कलाकार कायर बन जाता है, तो समाज भी कायर बन जाता है : प्रकाश राज
प्रकाश राज 54 वर्षीय अभिनेता-राजनीतिज्ञ हैं, जो इस बार मध्य बेंगलुरु निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़कर चुनावी राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं। बहुभाषी अभिनेता दक्षिणपंथी राजनीति और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुखर आलोचक रहे हैं। उन्होंने मई 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया के लिए भी प्रचार किया था। इस साक्षात्कार के जरिये, वे कई मुद्दों पर न्यूज़क्लिक के साथ चर्चा कर रहे हैं, जिसमें उनकी उम्मीदवारी के पीछे के कारण, वैकल्पिक राजनीति के बारे में उनके विचार और कुछ प्रमुख मुद्दे हैं जिन्हें वह संबोधित करना चाहते हैं। साक्षात्कार के कुछ संपादित अंश यहां पेश हैं :
इस बार आम चुनाव में, आप सेंट्रल बेंगलुरु निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। क्या चुनावी राजनीति में यह आपका प्रवेश है?
आमतौर पर ऐसा होता है कि हर नीतिगत निर्णय पार्टी और उसके वोट बैंक को ध्यान में रखकर लिया जाता है। कोई यह नहीं पूछता है कि लिया गया फैसला लोगों के हित में है या नहीं या इसमें कोई दूर दृष्टि भी है। इसलिए, हमें संसद में एक ऐसी आवाज़ की ज़रूरत है जो किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित न हो, जो हमेशा एक प्रहरी के रूप में मूल्यांकन करे और काम करता हो। हमें ऐसे सांसदों की जरूरत है जो 'हाई कमांड' के व्हिप से मुक्त हों। आपको लोगों को यह बताना होगा कि आप स्वतंत्र हैं, और आप किसी भी राजनीतिक दल की ‘बी टीम’ नहीं हैं। इसके बजाय, आप लोगों की 'ए' टीम हैं कहीं न कहीं, हमें वैकल्पिक राजनीति शुरू करने की जरूरत है जो लोगों को बेहतर प्रतिनिधित्व दे। मुझे लोगों से शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है, और मैं इसे लेकर बहुत खुश हूं।
आपकी राजनीतिक चेतना को किस चीज ने बनाया है?
ईमानदारी से बताऊं तो, कुछ समय पहले तक मुझे चुनावी राजनीति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। मेरा यह विकास जैविक है। मैंने कभी जानबूझकर अपनी इस यात्रा का रास्ता नहीं चुना था। इन यात्राओं ने खुद मुझे चुना है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक बड़ा अभिनेता हो सकता हूं। मुझे कभी नहीं पता था कि मैं निर्माता बन सकता हूं। मुझे कभी नहीं पता था कि मैं निर्देशन या लेखन का काम भी कर पाऊंगा। मुझे कभी नहीं पता था कि मैं एक किसान भी हो सकता हूं। हालांकि, मेरा मानना है कि आप चुनावी राजनीति का हिस्सा हो या न हो, हर नागरिक का स्वभाव वैज्ञानिक होना चाहिए। उन्हें इस देश की राजनीति को जानना चाहिए क्योंकि आपके द्वारा चुने गए लोगों के फैसले, हर पल आपके जीवन को प्रभावित करते हैं। आपको अपने नीति निर्माताओं को चुनने और उन्हें जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है। आपको यह समझने की आवश्यकता है कि यह आपका पैसा और आपका देश है। आपको यह महसूस करने की आवश्यकता है कि इस देश के लोग बहुमत में हैं और राजनीतिक दल अल्पमत में हैं।
आपके पास मतदाताओं को देने के लिए ऐसा क्या है जो अन्य राजनीतिक दलों के पास नहीं हैं?
उन्होंने [अन्य राजनीतिक दलों] क्या पेशकश की है? मैं किसी भी उम्मीदवार को मीडिया के सामने आकर बोलने की चुनौती देता हूं, और हर प्रश्न का उत्तर देकर दिखाएँ। वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में [लोगों के बीच] नहीं रहते हैं। वे ग्राहक बना रहे हैं। पैसा दो और वोट दो या डर पैदा करो और वोट लो। मैं अगले पांच साल तक लोगों के साथ रहूंगा। मैं उनके साथ बैठूंगा, और सवाल पूछने के लिए में उन्हें गले लगाऊंगा। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि वे समझें कि उनके अधिकार क्या हैं।
आप इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ेंगे। आप अकेले क्यों जाना पसंद करते हैं?
अकेले तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। एक व्यक्ति केवल चुनाव लड़ सकता है, लेकिन उसके पीछे, एक टीम काम कर रही होती है। आपको बहुत सारे लोगों के समर्थन और सहायता की आवश्यकता होती है। नागरिक समाज का समर्थन महत्वपूर्ण है। व्हाइटफील्ड राइजिंग [एक नागरिक सामूह] मुझे समर्थन कर रहा है। कई नागरिक समाज समूह मेरे साथ हैं; कई राजनीतिक दल भी अपना समर्थन दे रहे हैं।
क्या आपकी कोई राजनीतिक पार्टी बनाने की कोई योजना है?
इसे जैविक रहने दें। यही मेरा जीवन जीने का तरीका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरा कार्यकाल चाह रहे हैं। उनके पिछले पाँच वर्षों के शासन को और नीतियों को आप किस नज़रिये से देखते हैं?
नरेंद्र मोदी अब आखिरकार महसूस करने लगे हैं कि लोग मूर्ख नहीं हैं। लोगों ने इस सरकार के एजेंडे को समझ लिया है। ये पिछले पांच साल में बहुत अराजक हुए हैं –जो भयानक हिस्टीरिया का समय रहा है। मोदी ने एक चतुर कलाकार के रूप में शुरुआत की, लेकिन वे केवल लोगों को आधारहीन बयान दे सकते थे। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने एक कार्यक्रम शुरू कर दिया जिसे वे अंत तक जारी नहीं रख सके। आज, मैं उनके समर्थन में गिरावट देख रहा हूं। हर जगह मोहभंग हुआ है।
अब, अंत में, ऐसा लगता है कि वह एक और कार्यक्रम शुरू करने की कोशिश कर रहे है। लेकिन अब हमें महसूस हो रहा है कि कैसे उन्होंने केवल लोगों की धार्मिक भावनाओं का उपयोग किया है। उन्होंने एक कहानी को बढ़ाया है जो मुसलमानों और ईसाइयों से हिंदुओं को डराने का प्रयास करती है। उन्हें यह तर्कहीन भय है कि हिंदुओं का सफाया हो सकता है या उनका अपमान हो सकता है। इसलिए, यह देश, पिछले पांच वर्षों में, भय के साथ मतदान कर रहा है। डर यहां एक राष्ट्रीय बीमारी बन गई है। यह नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धि रही है।
हमने आमिर खान या नसीरुद्दीन शाह को कभी मुसलमान नहीं माना। अगर आज अब्दुल कलाम यहाँ होते तो क्या करते? मोहम्मद रफी के बारे में क्या? हमने कभी इस चश्मे से उनकी तरफ नहीं देखा। हमारा आम आदमी ऐसा नहीं है। लेकिन बीजेपी के संरक्षण के साथ, फ्रिंज तत्वों का विस्तार हो गया है। देखिए बुलंदशहर में क्या हुआ। कोई सिर्फ पुलिस वाले को मारकर कैसे भाग सकता है? यह आपको इस समाज के ताने-बाने की स्थिति के बारे में बहुत कुछ बताता है। यह कैसा विकास है? जब तक हम एकता और अखंडता की भावना का विकास नहीं करेंगे तब तक इसका कोई फायदा नहीं है।
आपकी राय में, देश को वैकल्पिक राजनीति की आवश्यकता क्यों है?
कांग्रेस और भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे के समने एकमात्र विकल्प नहीं हो सकते हैं। हमें और नेताओं को साथ लाने की जरूरत है; हमें नए पथप्रदर्शक नेताओं की आवश्यकता है। हमने पिछले कुछ वर्षों में कई गठबंधन सरकारों को सत्ता में आते देखा है, लेकिन मैंने किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मजबूत नहीं देखा है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत को पार्टी प्रणाली का पुनर्गठन करने की आवश्यकता है। वैकल्पिक राजनीति की जरूरत है। कृपया इस बात को समझें कि लोग प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं करते हैं। लोग प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। यह ऐसे प्रतिनिधि हैं जो प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं। वे कौन हैं [भाजपा नेता] लोगों से अपने अगले प्रधानमंत्री के लिए वोट मांगने के लिए? यह कितना अभिमानी और अलोकतांत्रिक है!
वैकल्पिक राजनीति के बारे में आपका क्या विचार है?
मुझे नहीं लगता कि राष्ट्रीय दल सही दिशा में देश का नेतृत्व कर सकते हैं। हमें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि क्षेत्रीय दलों को एक साधारण कारण के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। एक राज्य के किसानों के मुद्दे दूसरे राज्य के किसानों से भिन्न हैं। यह राज्य का विषय होना चाहिए।
इसके अलावा, हमें विभिन्न संस्कृतियों समाजों समुदायों के प्रतिनिधियों की आवश्यकता है, जो एक साथ नए न विचारों और अद्वितीय समाधानों को पेश कर सकते हैं।
वैकल्पिक राजनीति में, जैसा कि मैं कल्पना करता हूं, नागरिक समाज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है - एक प्रहरी की भूमिका। सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच सहमति होनी चाहिए। यह एक राजनीतिक दल, एक नेता, एक धर्म या एक भाषा के बारे में नहीं होना चाहिए। यह देश एक समूह की सनक और पसंद के अनुसार नहीं चल सकता है।
कौन सी ऐसी वजह है कि आप भाजपा-आरएसएस और उसकी सरकारों के मुखर आलोचक बन गए हैं?
मेरी किसी के साथ व्यक्तिगत रंजिश नहीं है। मैंने जो महान साहित्य पढ़ा है, उसने मुझे बनाया है। मेरे थियेटर ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मुझे राष्ट्र की चिंता है। यह मेरी पीड़ा है, क्रोध नहीं। यह मेरा दर्द है। और एक कलाकार, एक अभिनेता, होने के नाते मुझे संवेदनशील होना चाहिए। अगर एक कलाकार कायर बन जाता है, तो समाज कायर बन जाता है। जब उन्होंने मुझे एक कुर्सी पर बिठाया, तो मुझे उनके लिए खड़ा होना होगा। यह साहस है। अगर उनके जैसा कोई [भाजपा-आरएसएस नेता] झूठ बोलने की हिम्मत कर सकता है, तो मुझ में सच कहने की हिम्मत क्यों नहीं होनी चाहिए?
दक्षिणपंथी सरकार ने तर्कवादियों और आलोचकों पर हमला किया, और उन्हे अतीत में मारा। क्या आपको डर है कि आप भी उनका निशाना बन सकते हैं?
किसी को साहसी बनना होगा। हम एक और गौरी लंकेश को नहीं खोना चाहते हैं। धमकी और भय का वातावरण होगा। लेकिन किसी को तो इसे चुनौती देनी होगी। आपका डर उनकी शक्ति है। इन तर्कवादियों को मारकर - [गोविंद पानसरे, एम. एम. कलबुर्गी और नरेन्द्र दाभोलकर] - वे ऐसे 100 गौरी और पानसरे को अपनी आवाज़ उठाने से रोकना चाहते थे। इसलिए, हमारे लिए इस तथ्य पर जोर देना जरूरी है कि अगर एक आवाज को शांत किया जाएगा, तो 100 आवाज ज़ोर से उठेगी।
फिल्म-बिरादरी के अधिक से अधिक सदस्य दक्षिणपंथी दादागिरी के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए आगे क्यों नहीं आते हैं?
जब समाज को आपकी ज़रूरत है और आप उस वक्त आगे नही बढ़ते हैं, तो लोग समझ जाएंगे कि आप वास्तविक हीरो हैं या नहीं। कुछ लोग मेरी तरह हिम्मत वाले नहीं भी हो सकते हैं। अब लोगों ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। ‘यह आदमी आ गया है; दूसरे क्यों नहीं आ रहे हैं?’ आपको आगे आना होगा। समाज ने आपको ताकत दी है। आपको अपने इस विशेषाधिकार वाले जीवन का कर्ज़ समाज को चुकाना होगा। आपको लोगों के साथ खड़ा होना होगा।
ऑक्सफैम की ताज़ा रपट के अनुसार, भारत में ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों का देश की 77.4 प्रतिशत आय/सम्पत्ति पर कब्ज़ा है, जबकि नीचे के 60 प्रतिशत लोगों के पास मात्र 4.8 प्रतिशत आय/सम्पत्ति है। यह भारत में मौजूद बेहद गरीबी और असमानता को दिखाती है। इसे बदलने के लिए हमें किस तरह की नीतियों की ज़रूरत है।
एक ढाँचागत सुधार की ज़रूरत है – एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव की भी ज़रूरत है। लेकिन मेरे अकेले का विचार ज्यादा अंतर नही पैदा करेगा। इसके लिए एक नागरिक समाज का अंदोलन होना चाहिए। हमें इस मुद्दे को बार-बार उठाने की ज़रूरत है।
क्या आपके दिमाग में कोई योजना है?
आज़ सबसे पहले उन लोगों को बाहर उठा कर फेंकने की ज़रूरत है जो लोग फैसलाकुन बने हुए हैं। हमें नए नेताओं और वैकल्पिक राजनीति के लिए जगह बनानी होगी। हमें एक परस्पर भागेदारी वाले जनतंत्र को स्थापित करना होगा। और यह काम केवल सांसद या राजनीतिज्ञों का ही नहीं है। यह नागरिक समाज और आम लोगों का काम है। आपकी 40 प्रतिशत जनता वोट ही नहीं करती है। उनमें से ज्यादातर सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र से आते हैं, और जो अच्छे शिक्षित लोग हैं। मतदान न करके वे ऐसे लोगों बढ़ावा ही दे रहे हैं जो इसके लायक नहीं हैं? इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज इस तरह के जोकर सत्ता में आ गए हैं।
मलयालम फिल्म उद्योग में महिला कलेक्टिव बनाने के बारे में आपकी क्या राय है? क्या आपके विचार में फिल्म उद्योग जेंडर न्याय के मामले में बेख़बर है?
मैं पहला व्यक्ति हूं जिसने इन महिलाओं को समर्थन किया था। क्या यह सही नहीं है कि महिलाओं का शोषण होता है? क्या यह सच नहीं है कि आदमी जानबूझ कर या अनजाने में, महिलाओं का शोषण करते हैं? क्या समाज का यह दायित्व नहीं कि वे उनके साथ खड़े हों? और महिलाओं के प्रति संवेदनशील होकर आप उनपर कोई एहसान नहीं कर रहे होते हैं। अगर महिलाएं सत्ता में आती हैं या समानता हासिल करती हैं तो इससे आपको ही बल मिलेगा। समाज जीवन के प्रति उनके नज़रिये से ताकतवर बनेगा।
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(केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के साथ महिला कलेक्टिव का एक प्रतिनिधिमंडल)
हाल ही के वर्षों में, हमारे कॉलेज परिसरों में विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए पूरे देश में व्यवस्थित कोशिश की गई। कुछ नौजवान छात्र नेता देशद्रोह के आरोप का सामना कर रहे हैं। आप युवाओ को इस संबंध में क्या संदेश देना चाहोगे?
कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शेहला रशीद... क्या अच्छी आवाजें नहीं हैं? क्या इन्हें असंतुष्ट होने का अधिकार नहीं है? बिना प्रतिरोध के लोकतंत्र कायम नहीं रह सकता है। बिना विपक्ष के जनवाद के कोई मायने नहीं हैं। इस पर प्रतिबंध लगाकर, मोदी तानशाह बनना चाहते हैं? क्या राष्ट्रीयता भाजपा की बपौती है? क्या देश की संस्कृति भाजपा की बपौती है? क्या धर्म भाजपा की बपौती है? उनका वोट कितना है? 31 प्रतिशत। इसलिए मैं इन छात्रों को कहता हूं कि लडाई जारी रखो। अपने देश को बचाओ।
हमने किसान और मज़दूरों को पूरे देश में आंदोलन करते हुए देखा है और अनेक मुद्दे उठाए गए। आप इन संघर्षों को किस नज़रिये से देखते हैं?
आप कब तक कर्ज़ माफ़ी का बिगुल बजा कर रखेंगे? आप उन्हे कर्ज़ माफ़ी पर निर्भर नहीं रख सकते हैं। किसानों की समस्या पानी के सवाल तक नहीं सीमित है। यह उनके आत्म-सम्मान की लड़ाई है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और आय के वैकल्पिक साधनों की लड़ाई है।
क्या आप कहेंगें कि हां, एक फासीवादी युग में रह रहे हैं?
मुझे लगता है कि हम फासीवादी युग से बाहर आ रहे हैं। मुझे इसकी उम्मीद है और विश्वास भी। सौभाग्यवश, लोग अब मह्सूस कर रहे हैं कि यह समाज के लिए अस्वस्थ है।
क्या आप देश के भविष्य के प्रति आशावान हैं?
जब लोग नफ़रत के खिलाफ इकट्ठा हो रहे हैं, जब लोग सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ इकट्ठा हो रहे हैं, तो एक उम्मीद पैदा होती है। इतिहास गवाह है कि जब भी सांप्रदायिक और फासीवादी ताकते सत्ता में आती हैं तो उन्हें बाहर का दरवाज़ा दिखा दिया जाता है। और उनका अंत बहुत ही खराब होता है।
आपने प्रकाश राज फाउन्डेशन (PRF) की 2015 में शुरुआत की। क्या आप इसकी गतिविधि के बारे में बता सकते हैं?
मैं निर्माणकारी काम में विश्वास करता हूं। हमने तमिलनाड़ु, तेलंगाना और कर्नाटक में एक-एक गांव गोद लिया। गांव को गोद लेने का मतलब यह नहीं कि हम वहां सिर्फ स्कूल बनाएं। हम लोगों को सशक्त बना रहे हैं। हमने अभिभवावक और शिक्षक समूह को संगठित किया है। पी.आर.एफ. अकेले काम नहीं करती है। यह एक मंच बना है और इस काम में अन्य संगठनों को भी शामिल किया गया है। यह एक आंदोलन बन सकता है।
हमारी एक अन्य फाउन्डेशन है जो स्वास्थ्य पर काम करती है। हमारे सामुदायिक सह-संयोजक हैं। हमारे पास थियेटर से लोग हैं जो उन गाँवों में ठहरते हैं। मैं उनकी ज़रूरत के लिए पैसा भी खर्च करता हूं। मैं उन्हें सशक्त बना सकता हूं। लेकिन वे असली काम करेंगे। इसलिए यह सामूहिक प्रक्रिया है। मैं तो एक पुल हूं।
जिप्सन जॉन और जिथीश पी.एम. Tricontinental: Institute for Social Research से जुड़े हैं और अन्य अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रकाशन में अपना योगदान देते रहते हैं। आप उन्हे इस मेल [email protected]and [email protected]. पर संदेश भेज सकते हैं।
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