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अनुच्छेद 370 पर जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेस की याचिका पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार

जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेन्स ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केन्द्र को निर्णय को चुनौती दी है और राज्य पुनर्गठन कानून तथा राष्ट्रपति के आदेश को ‘असंवैधानिक और शून्य’ घोषित करने का अनुरोध किया है।
SC

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के फैसले और राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन के खिलाफ ‘जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्‍फ्रेंस’ (जेकेपीसी) की याचिका पर सुनवाई के लिए सोमवार को तैयार हो गया।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की एक पीठ ने जेकेपीसी की याचिका को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के फैसले और राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन के खिलाफ पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया। इन सभी याचिकाओं को पहले ही पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जा चुका है।

हालांकि, पीठ ने इस मामले में दूसरी नई याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की संख्या बढ़ाने के पक्ष में नहीं है।  पीठ ने कहा कि इस मामले में जो भी बहस करना चाहते हैं, वे पक्षकार बनने के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं।

पीठ ने इस मामले में दायर अनेक याचिकाओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम विधायी कार्रवाई की वैधता की जांच कर रहे हैं।’ पीठ ने कहा कि इन सभी याचिकाओं पर संविधान पीठ अक्टूबर के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगी।

जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेन्स के वकील ने जब अपनी याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, ‘आपको इस न्यायालय में पहले आना चाहिए था।’

जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेन्स ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने संबंधी अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केन्द्र को निर्णय को चुनौती दी है और राज्य पुनर्गठन कानून तथा राष्ट्रपति के आदेश को ‘असंवैधानिक और शून्य’ घोषित करने का अनुरोध किया है।

इस पार्टी ने कहा है कि राज्य जून 2018 से संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत है और राज्यपाल राज्य सरकार के रोजमर्रा के निर्णय लेते हैं जो राष्ट्रपति के प्रतिनिधि हैं।

राज्य के संवैधानिक दर्जे में किये गये बदलावों को नेशनल कांफ्रेन्स के बाद शीर्ष अदालत में चुनौती देने वाला जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेन्स दूसरी राजनीतिक दल है।  नेशनल कांफ्रेन्स के दो सांसदों मोहम्मद अकबर लोन और सेवानिवृत्त न्यायाधीश हसनैन मसूदी ने केन्द्र के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर कर रखी है। अकबर लोन राज्य विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं जबकि हसनैन मसूदी जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में मसूदी ने ही 2015 में अपने फैसले में व्यवस्था दी थी कि अनुच्छेद 370 संविधान का स्थाई अंग है।  जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेन्स ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य के राज्यपाल ने समूचे राष्ट्र को अंधेरे में रखा और देश को इसकी जानकारी ही नहीं दी गयी कि राज्य के हितों के खिलाफ इस तरह की कठोर कार्रवाई की जा रही है।
 
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नौ अगस्त को जम्मू और कश्मीर के बंटवारे और दो केन्द्र शासित प्रदेश-जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख- का 31 अक्टूबर तक सृजन करने संबंधी विधेयक को अपनी संस्तुति प्रदान की थी। देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की 31 अक्टूबर को जयंती होती है। सरदार पटेल ने देश को आजादी मिलने के बाद करीब 565 राजवाड़ों का भारत संघ में विलय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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