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असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?

असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
assam flood
image credit- social media
पूर्वोत्तर राज्य असम एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है। भारी बारिश के चलते यहां 26 जिलों के लगभग चार से पांच लाख लोग प्रभावित हैं और अब तक सात से ज्यादा लोगों की जान जाने की खबर है। सेना और असम राइफल्स के सुरक्षा बल राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बाढ़ बचाव अभियान के तहत कार्यरत हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक असम की बराक घाटी और दीमा हसाओ जिले समेत पड़ोसी राज्यों त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर के कुछ हिस्सों से सड़क और रेल संपर्क टूट गया है। वहीं बुधवार, 18 मई से शुरू होने वाली 11 वीं कक्षा की परीक्षा आंशिक रूप से निलंबित कर दी गई है।
 
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के बुलेटिन में जानकारी दी गई है कि 80,659 बच्चों और 1,39,541 महिलाओं सहित कम से कम 4,03,352 लोग प्रभावित हुए हैं और 26 जिलों के 1,089 गांवों में लगभग 1,900 घर आंशिक रूप से और पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। 39,558 से अधिक लोगों ने 89 राहत शिविरों में शरण ली है।
 
बता दें कि असम में हर साल बाढ़ के कारण जान-माल की भारी तबाही होती है। लेकिन जटिल सरकारी प्रक्रियाओं के तहत जबतक बाढ़ के नुकसान का आंकलन होता है तबतक प्रदेश में अगली बाढ़ आ जाती है। लिहाजा लोग तटबंध निर्माण तथा अन्य मरम्मत के काम को लेकर हमेशा सरकार पर सवाल उठाते है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आमजन को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
 
आमजन की समस्याएंं
 
असम के कई गांवो में ज्यादातर लोग खेती करके अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन हर साल बाढ़ के कारण इनकी फ़सल बर्बाद हो जाती है। यहां अधिकतर किसानों का आरोप है कि बाढ़ का पानी सूखने के बाद ज़िला प्रशासन के लोग नुक़सान का आंकलन करने ज़रूर आते हैं लेकिन नुक़सान के एवज में मिलता कुछ नहीं है।
 
दरअसल असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है लेकिन सरकार की तरफ से पीड़ितों को उनकी आवश्कता के अनुसार मदद नहीं मिलती जिसके कारण उनकी हालत और ख़राब हो जाती है। यहां बाढ़ और भूकटाव के कारण ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जो अपनी जमीन गंवा चुके हैं। 1950 से अब तक यहां करीब 25 से ज्यादा बड़े सैलाब आ चुके हैं। प्रदेश ने 1986 के बाद सबसे भयंकर बाढ़ और जान-माल की हानी का मंजर देखा है।
 
जलवायु परिवर्तन के चलते यहां बाढ़, मिट्टी के कटाव और भूकंप का खतरा हर वक्त मंडराता रहता है। ऐसे परिवार जो पीढ़ियों से आजीविका के लिए खेती करते आ रहे है अब मिट्टी के कटाव के कारण बेघर होते जा रहे हैं। इंसानों के साथ-साथ मवेशियों और काजीरंगा नेशनल पार्क के जानवरों को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
 
शासन-प्रशासन की अनदेखी
 
गौरतलब है कि असम में साल-दर-साल भयानक बाढ़ आने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी पर अध्ययन करने वाले जानकार बताते है कि बढ़ते प्रदूषण और तापमान से तिब्बत के पठार पर जमी बर्फ़ और हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। जिसके चलते ब्रह्मपुत्र नदी पर बने बांधों और नदी दोनों का जलस्तर बढ़ जाता है।
 
भारत, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश यानी चार देशों से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम को दो हिस्सों में बांटती है। इसकी दर्जनों सहायक नदियां भी हैं। तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आती है, जो धीरे-धीरे असम के मैदानी इलाकों में जमा होता रहता है। इससे नदी की गहराई कम होती है और पानी बढ़ने पर बाढ़ और तटकटाव की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। दरअसल तिब्बत में नदी के उद्गम स्थल पर तलछट इकट्ठा होना शुरू हो जाता है, क्योंकि ग्लेशियर पिघलकर मिट्टी को नष्ट कर देते हैं।
 
जैसे-जैसे पानी असम की ओर बढ़ता है, यह अधिक तलछट इकट्ठा करके अपने साथ लेकर आता है। जबकि ब्रह्मपुत्र की अन्य सहायक नदियाँ इस तलछट को नष्ट करने में अप्रभावी बताई जाती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ आती है और मिट्टी का कटाव होता है। अपने साथ तलछट लाने वाली दुनिया की शीर्ष पांच नदियों में ब्रह्मपुत्र एक है। इसे लेकर प्रशासन के पास पुख्ता जानकारी और अध्ययन दोनों मौजूद हैं बावजूद इसके शासन-प्रशासन लोगों को राहत देने के लिए बाढ़ और तबाही का इंतजार करता है।

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