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बंद होंगी सिलिकोसिस फैलाने वाली फैक्ट्रियां

सिलिकोसिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है कि सिलिकोसिस से सैकड़ों मजदूरों की मौत की जिम्मेदार फैक्ट्रियों को बंद किया जाए।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Indian Express

मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर जिले के भील एवं भीलाला आदिवासी इन दिनों अपने पारंपरिक भगोरिया मेले में व्यस्त हैं। फागुन महीने में आयोजित इन मेलों को देखने दूर-दूर के सैलानी आते हैं। मेले में आदिवासी नृत्य करते हैं। इस दरम्यान मेले में शामिल युवा युगल एक-दूसरे को पसंद करते हैं। पसंद जाहिर करने के लिए युवक पान का बीड़ा युवती को देता है, यदि युवती उसे ले लेती है, तो वे दोनों मेले से भाग जाते हैं। वे तबतक घर नहीं लौटते, जबतक कि उनके परिवार वाले शादी के लिए रजामंद नहीं हो जाते। युवाओं के भागने की यह परंपरा सुखद और प्रेम से सरोबार होती है।

लेकिन भगोरिया से हटकर इस क्षेत्र के युवा पिछले कई सालों से एक और काम के लिए अपने गांव से भागते (पलायन) हैं, वह है रोजगार की तलाश। वे रोजगार के लिए सीमावर्ती राज्य गुजरात में उन फैक्ट्रियों में पहुंच जाते हैं, जहां होता है उनके जीवन का दुःखद अंत। अपने गांव-जिले में रोजगार के अभाव में सैकड़ों युवा मजदूर गोधरा एवं बालासिनोर में जाकर वहां के क्वार्ट्ज फैक्ट्री में काम करते हुए सिलिकोसिस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं और फिर इस लाइलाज बीमारी से कम उम्र में ही मौत के शिकार हो जाते हैं। पहले तो सरकार इस बीमारी को झुठलाते रही और फिर जब स्वीकार किया, तो उसके बाद भी इन कारखानों में न तो सुरक्षा मानकों को लागू करवा पाई और न ही मजदूरों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा दे पाई। ऐसे में सिलिकोसिस पीड़ित संघ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उन फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश सुनाया, जो सिलिकोसिस के लिए जिम्मेदार हैं।

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(झाबुआ के रमेश रामसू।  सिलिकोसिस की वजह से सितंबर 2018 में इनकी जान चली गई।)

सिलिकोसिस फेफड़ों से संबंधित बीमारी है, जो पत्थर खदानों एवं क्वार्ट्ज क्रशिंग खदानों में हवा के माध्यम से सिलिका के बारीक कणों का लंबे समय तक सांस के द्वारा अंदर जाने के कारण होता है। 

आदिवासियों के पैरोकार बताने वाली भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने इस मामले में आदिवासियों के स्वास्थ्य की अनदेखी की। पिछले 15 सालों से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार रही और गुजरात में इसके पहले से ही भाजपा की सरकार है। स्थानीय संगठन उन फैक्ट्रियों में सुरक्षा मानकों को लागू करवाने की गुहार करते रहे, लेकिन राजनेताओं ने इन पर ध्यान दिया। फिर उन्होंने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं पीआईएल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। 

सिलिकोसिस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका क्रमांक 110/2006 की सुनवाई न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी और न्यायमूर्ति एस. नजीर की खण्डपीठ ने की और अभी 5 मार्च को अपना फैसला सुनाया। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ता सिलिकोसिस पीड़ित संघ की ओर से पैरवी की। उन्होंने गुजरात में स्थित उन फैक्ट्रियों को बंद करने की मांग की, जहां पर अलीराजपुर, झाबुआ एवं धार से लोग मजदूरी करने गए थे और उन फैक्ट्रियों में पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन एवं सुरक्षा मानकों का पालन नहीं होने से हजारों लोग लाइलाज बीमारी सिलिकोसिस की गिरफ्त में आए थे। न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी और न्यायमूर्ति एस. नजीर ने माना की इन ईकाइयों से सिलीकोसिस के साथ ही अन्य गंभीर प्रभाव हो रहे हैं और उन्होंने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तत्काल इन कारखानों की जांच कर पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली एवं मजदूरों को मारने वाली ईकाइयों को बंद कर छह माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।

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(झाबुआ में पीड़ित परिवारों की महिलाएं बैठक करते हुए)

सिलिकोसिस पीड़ितों के मुआवजे एवं पुनर्वास के संबंध में कोर्ट ने मध्यप्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों को निर्देशित किया है कि 4 मई 2016 एवं 23 अगस्त 2016 को दिए गए आदेशों के पालन में राज्य सरकारों द्वारा पीड़ितों को दिए गए मुआवजे एवं उनके पुनर्वास के संबंध में अगली सुनवाई से पहले स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करे। पश्चिम बंगाल, झारखंड एवं गोवा में सिलिकोसिस के के कारण कई मजदूरों की जान गई है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इस मसले पर राज्यों के उदासीन रवैये पर कई बार नाखुशी जाहिर कर चुका है। सिलिकोसिस पीड़ित संघ की याचिका पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की अनुशंसा पर सिलिकोसिस के कारण मौत के शिकार मजदूरों के वारिसों को तीन लाख का मुआवजे का आदेश हुआ है। सिलिकोसिस पीड़ित संघ के दिनेश रायसिंह ने वर्तमान में सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए पेंशन एवं समुचित पुनर्वास की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सुप्रीम कोर्ट कमिटी ऑन सिलिकोसिस के सदस्य अमूल्य निधि ने बताया कि श्रम संस्थान महानिदेशालय एवं खान सुरक्षा महानिदेशालय के अनुसार भारत में ढाई लाख मजदूर सिलिकोसिस की गिरफ्त में हैं। माननीय न्यायालय से व्यावसायिक स्वास्थ्य के लिए एक व्यापक व्यवसायिक स्वास्थ्य नीति बनाने की अनुशंसा की है। राज्य सरकार ने नीति का एक ड्राफ्ट तैयार किया है, लेकिन इसे शीघ्र ही क्रियान्वित करने की जरूरत है। मध्यप्रदेश के अलीराजपुर, धार एवं झाबुआ के साथ ही पन्ना, विदिशा, छतरपुर, बैतूल, मंदसौर, भिंड, शिवपुरी में भी सिलिकोसिस के मामले मिले हैं। उनके भी पुनर्वास की व्यवस्था सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि अलीराजपुर, धार एवं झाबुआ के 589 आदिवासी मजदूर पिछले 15 सालों में गोधरा, बालासिनोर की इन फैक्ट्रियों में काम करके मौत के शिकार हो गए हैं। वर्तमान में एक हजार से ज्यादा मजदूर अभी भी इस लाइलाज बीमारी से संघर्ष कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के इन आदिवासी बहुल जिलों में रोजगार का अभाव इतना ज्यादा है कि स्थानीय युवा जानते हुए भी इन फैक्ट्रियों में मजदूरी के लिए पलायन करने पर विवश हो जाते हैं। कई फैक्ट्रियां मजदूरों का सही रिकॉर्ड नहीं रखती, जिससे वहां की सही स्थिति का पता नहीं चल पाता।

इन दिनों राजनेता इन आदिवासियों को लुभाने में लगे हैं। वे भगोरिया में शामिल होकर आदिवासियों के हितैषी होने की बात कर रहे हैं। लेकिन वे आदिवासी बहुल इस क्षेत्र की प्रमुख समस्या शिक्षा, स्वास्थ्य पर चुप हैं, वे रोजगार देने और पलायन रोकने के मसले पर भी चुप हैं। ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया है, तो उम्मीद की जा सकती है कि इन राजनेताओं पर सिलिकोसिस के मसले पर जन दबाव बनेगा।

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