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बाइडेन ने रूस से समझौते पर संदेह को दूर किया 

इतिहास कभी ख़ुद को नहीं दोहराता। बहरहाल, चीनी विशेषज्ञ चिंतित हैं। 
बाइडेन ने रूस से समझौते पर संदेह को दूर किया 
जिनेवा शिखर सम्मेलन के दौरान नवम्बर 1985 को हाउस ऑफ सॉसर में सोवियत संघ (पूर्व) के महासचिव मिखाईल गोर्बाचोव के साथ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन (फाइल फोटो)।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 6 जून 2021 के वाशिंगटन पोस्ट के संपादकीय पेज पर एक आलेख  My trip to Europe is about America rallying the world’s democracies (मेरी यूरोप की यात्रा विश्व के लोकतांत्रिक देशों को एकजुट करने के लिए) दुनिया की राजधानियों-ब्रसेल्स से लेकर बीजिंग तक का ध्यान व्यापक रूप से अपनी ओर खींचेगी। 

बाइडेन कहते हैं कि एक सप्ताह लंबी उनकी निर्धारित यात्रा उनके राष्ट्रपतित्व काल की पहली विदेश यात्रा होगी। यह अमेरिका के अपने सहयोगियों और साझेदारों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को मज़बूत करने के मकसद से की जा रही है। इससे लोकतंत्र के जरिए चुनौतियों और नए युग के खतरों,  दोनों से ही एक साथ निबटने में उसकी क्षमता को दिखाना है।”  

बाइडेन ने फिर से इसकी पुष्टि की कि “अमेरिका को अवश्य ही अपनी क्षमता और काबिलियत के साथ विश्व का नेत्रत्व करना है”, चाहे वह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर हो या “चीन एवं रूस की सरकारों की खतरनाक गतिविधियों का सामना करने” में। उन्होंने दावा किया कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था पूरी मजबूती के साथ पटरी पर लौट रही है और कि “हम उन राष्ट्रों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हुए हैं जो लोकतांत्रिक तरीके से हमारे भविष्य के मूल्यों और दृष्टिकोणों को साझा करते हैं।” 

युग्म काफी प्रखर तरह से उकेरा गया है : लोकतंत्र बनाम निरंकुशता। बाइडेन ने हालांकि चीन का सीधा नाम नहीं लिया है, शायद इस मसले पर यूरोपीय सहयोगियों को अपने साथ न ले आ पाने की अमेरिका की अक्षमता की वजह से। वहीं, यह भी गौर करना लाजिमी है कि बाइडेन ने तियानमेन स्क्वायर की “वर्षगांठ” पर एक शब्द भी नहीं कहा है। 

बाइडेन ने कहा था  “बड़े लोकतंत्र” चीन के बेल्ट एंड रोड “ से भी उच्च मानक वाले विकल्प पेश करने की योजना बना रहे” हैं , जिससे पश्चिमी देशों का नवाचार एवं मानकों के जरिए दुनिया को बदलने में उसका नेत्रत्व बरकरार रहेगा। और उसकी मंशा “21वीं सदी में कारोबार एवं प्रौद्योगिकी मामलों के लिए नियम-कायदे तय करने में” चीन को महत्ता देने की नहीं है।  हालांकि बाइडेन का चीनी संदर्भ में यह वक्तव्य प्रतिस्पर्धात्मक भावना से बोला गया था।

दिलचस्प है कि बाइडेन ने चीन को विश्व शांति एवं स्थिरता के लिए एक खतरे के रूप में चित्रित करने से अपने आपको रोक लिया है। संक्षेप में, जो बात सबसे अलग है, वह यह है कि अमेरिका ने अपनी चीन नीति का हाथ छोड़ कर पश्चिमी हवाओं का हाथ थामा है। इसे कहते हैं, यथार्थवाद। समूह-7 एवं नाटो के आगामी शिखर सम्मेलनों से ही इस बारे में कोई संकेतक मिलेगा। 

यूरोप के अपने सहयोगी देशों की बाइडेन की यात्रा के शुरू होने के पहले ही अमेरिका एवं चीन ने कारोबार तथा आर्थिक मसले को लेकर आपस में विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है। दोनों के बीच एक हफ्ते के अंदर दो बार फोन पर बातचीत हुई है। ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय (Global Times editorial)  में इसे “वरिष्ठ चीनी एवं अमेरिका के आर्थिक मामलों के अधिकारियों में पूरी-पूरी बातचीत शुरू होने का संकेत”, बताया है। यह दोनों देशों के बीच चले आ रहे तमाम तनावों के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण प्रगति प्रतीत होती है।” 

उसकी तुलना में बाइडेन ने 16 जून को जिनेवा में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ होने वाले शिखर सम्मेलन के संदर्भ में रूस का जिक्र किया। अपने लेख के तीन सारगर्भित पैराग्राफ में बाइडेन ने शिखर सम्मेलन को लेकर अपने दृष्टिकोण की चर्चा की है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि बाइडेन केवल अपने देश के श्रोताओं से ही मुखातिब नहीं थे, बल्कि वे क्रेमलिन और प्रमुख यूरोपीय देशों की राजधानियों (और शायद, इनमें बीजिंग भी शामिल है।) को भी उसी शिद्दत से संबोधित कर रहे थे, जो सभी के सभी अमेरिका-रूस के बीच संबंध की दिशा तय किए जाने की संभावना को व्यग्रता से देख रहे हैं, जिसका बाइडेन ने आह्वान किया है, “एक स्थिर और अनुमानित संबंध, जहां हम रूस से मिलकर रणनीतिक स्थिरता तथा हथियार नियंत्रण जैसे मसलों पर काम कर सकते हैं।”

रूस के साथ संबंध सुधार के विरोध में अमेरिका का विचार अब उतना जहरीला नहीं रहा जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप के जमाने में था। यकीकन, चीन के साथ जुनूनी दुश्मनी को देखते हुए एक डिग्री तक यह स्वीकृति है कि अगर बाइडेन चीन-रूस की धुरी को तोड़ पाते हैं, तो अमेरिका को उसका लाभ मिल सकता है। 

बेशक, सदा की तरह, मास्को को अमेरिकी रुझानों के साथ बांध दिया गया है और क्रेमलिन एक सधे रास्ते पर चल रहा है। मास्को की “पश्चिम-परस्त” लॉबी का ऐतिहासिक विचार है कि रूस का भविष्य यूरोप के साथ जुड़ा है। मंत्र यह कि : ‘सफलता की कोई उम्मीद नहीं है।’ लेकिन जैसा कि चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास में कहा गया है, ‘बार्किस तैयार है।’ यह कहना लाजिमी है कि इस दिशा में पहल करने का सारा दारोमदार बाइडेन पर है। 

बाइडेन ने हालांकि इस बात पर जोर दिया है कि वह “यूक्रेन में रूसी आक्रामकता से शुरू हुई यूरोप की सुरक्षा की चुनौतियों के हल के लिए” पश्चिम की सहमति के साथ आगे बढ़ने के लिए पुतिन के साथ शिखर सम्मेलन में जाएंगे। और, दूसरे, “हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के अमेरिकी संकल्प के बारे में कोई संदेह नहीं होगा, जिसको कि हमारे हितों से अलग नहीं किया जा सकता है।” 

बाइडेन ने पुतिन के साथ बातचीत के अपने आह्वान के बारे में कहा कि वह अपने कदम के बारे में “स्पष्ट और बेधड़क” रहे हैं कि वह पश्चिम के हितों एवं वास्तव में, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के माकूल चुनिंदा संबंध बनाने की संभावनाओं को तलाशते हुए रूस के साथ अमेरिकी संबंधों को स्थिर और अनुमानित बनाना चाहते हैं। 

वहीं इसके विपरीत, बाइडेन ने जोर दिया कि इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह “अमेरिकी संप्रभुता, जिसमें लोकतांत्रिक चुनावों में दखल भी शामिल है, उसके उल्लंघन के लिए रूस से कोई नरमी बरतेंगे। और राष्ट्रपति पुतिन जानते हैं कि मैं भविष्य में होने वाली उनकी नुकसानदेह गतिविधियों का जवाब देने से बाज नहीं आऊंगा।” 

इसी तरह, बाइडेन ने रूस में “मानवाधिकारों और सम्मानों की रक्षा” के लिए सन्नद्ध रहने की बात कही। यह खरी-खरी बात है। बाइडेन की तरफ से इसमें किसी तरह की कोई नरमीयत नहीं है और उन्होंने उनसे हेलेंस्की समझौता भी नहीं किया हुआ है। पुतिन रूस में अपने विरोधियों, मीडिया की आजादी, असंतुष्टों के प्रति जो व्यवहार कर रहे हैं, उसमें अमेरिका हस्तक्षेप करेगा। 

बाइडेन ने यूरोपीय देशों के अपने दौरे से तीन दिन पहले लिखे वैचारिक लेख में बड़ी कुशलता से संतुलन बिठाने का करतब दिखाया है। ऐसा कर उन्होंने संघीय गणराज्य में नागरिकों के इस भ्रम को दूर करने की कोशिश की है कि वे पुतिन से किसी तरह का कोई समझौता करने जा रहे हैं; वहीं, उन्होंने यूरोपीय सहयोगी देशों को भी आश्वस्त किया है कि पुतिन के साथ होने वाली उनकी बातचीत के विचार बिंदु पूरी दृढ़ता से पश्चिमी सहमति से अनुमोदित साझा हितों पर आधारित हैं; और, उन्होंने मास्को और चीन दोनों को संकेत दिया कि उनके साथ अमेरिकी  बातचीत की प्रतिबद्धता “ताकत की अवस्थिति” से होगी। 

दरअसल, बाइडेन की यह भाव-भंगिमा पुतिन के साथ उनके शिखर वार्ता को निराशापूर्ण अवसर में नहीं बदलेगी। रूस-अमेरिका शिखर वार्ता का रहस्य उसकी अननुमेयता में छिपा है, उसके बारे में पहले से कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। 

इसकी तुलना,   जिनेवा में रीगन-गोर्बाचोव के साथ 1985 के नवम्बर में हुई शिखर वार्ता (Reagan-Gorbachev summit at Geneva ) से की जा रही है।  यह वार्ता रीगन के उस प्रसिद्ध भाषण “ईविल एम्पायर” के दो साल बाद हुई थी, जिसे उन्होंने  नेशनल एसोसिएशन ऑफ इवैन्जेलिक को संबोधित करते हुए दिया था। इस भाषण में रीगन ने तत्कालीन सोवियत संघ को “ईविल एम्पायर” (दुष्ट साम्राज्य)  कहा था और उसे “आधुनिक दुनिया में दुष्टता के केंद्र” के रूप में निरूपित किया था। रीगन के जिनेवा शिखर वार्ता के कोई पांच साल बाद, सोवियत संघ और वारसा संधि दोनों का अस्तित्व समाप्त हो गया। 

इतिहास कभी अपने को नहीं दोहराता। बहरहाल, चीनी विशेषज्ञ सोच में हैं (Chinese experts are anxious.)। बीजिंग स्थित एक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार जो अपना नाम जाहिर करना नहीं चाहते, उन्होंने कहा, “अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों की नजर में रूस एक ध्रुवीय भालू है।  यह भालू, उन सबके नजरिये से, अब दुबला-पतला होता जा रहा है। लेकिन अमेरिका सहित ये देश रूस को अभी और नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। वे उम्मीद करते हैं कि अच्छा होगा कि यह भालू एक दिन खुद ब खुद मर जाए ताकि वे उसका गोश्त खा सकें और उसकी खाल उतार सकें। पर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन इन सब लोगों की मंशा से पूरी तरह वाकिफ हैं।” 

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Biden Clears the Air on Russia Ties

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