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बाइडेन का पहला साल : क्या कुछ बुनियादी अंतर आया?

जनआंदोलनों के दबाव की प्रतिक्रिया में बाइडेन ने अपने कार्यकाल के लिए ऊंचे-ऊंचे लक्ष्य तय किए थे। लेकिन इनमें से कितने पूरे हुए?
Biden
क्या बाइडेन अपने कार्यकाल के पहले साल में चुनावों में किए गए वायदों में से किसी को भी पूरा करने और जरूरी बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं? (फोटो: गेग स्किडमोर)

2019 में चुनाव अभियान के दौरान जो बाइडेन ने अपने अमीर दानदाताओं को वायदा किया था कि अगर वे राष्ट्रपति चुने जाते हैं, तो "किसी तरह का बुनियादी बदलाव नहीं लाया जाएगा"। पूअर पीपल्स कैंपेन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के बाद ही बाइडेन का यह वक्तव्य आया था। दिलचस्प है कि इस कैंपेन में बोलते हुए बाइडेन ने कहा था कि "गरीबी एक ऐसी चीज है, जो उनके देश को बर्बाद कर सकती है।" लेकिन एक दिन बद ही उन्होंने बेहद अमीर लोगों के कार्यक्रम में कहा कि "जीवन जीने के स्तर में बाइडेन के राष्ट्रपति कार्यकाल में कोई बदलाव नहीं आएगा।"

अमेरिका में दुनिया की जेल में रहने वाली सबसे बड़ी आबादी है। वहां संपदा में असमानता 1989 से 2016 के बीच में दोगुनी हो गई। 2019 में बाइडेन की टिप्पणी के कुछ वक़्त बाद ही अमेरिका अपने इतिहास के सबसे भयावह स्वास्थ्य संकट में फंस गया। 

अमेरिका के लोग सामान्य तौर पर मानते हैं कि अब बुनियादी बदलावों का वक़्त आ गया है। सभी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं, 15 डॉलर की न्यूनतम मज़दूरी दर, इलाज़ पर आने वाले खर्च पर सरकारी नियंत्रण जैसे सुधारों के लिए बहुमत का समर्थन है, हाल में नस्लवाद के खिलाफ़ हुए जन आंदोलन औ    र बीते दिनों हड़तालों की लहर ने भी जनता का मत साफ़ कर दिया है। 

क्या बाइडेन अपने कार्यकाल के पहले साल में चुनावों के दौरान किए गए वायदों में से किसी को पूरा करने में कामयाब रहे हैं। चलिए देखते हैं:

कुप्रबंधन ने बढ़ाया महामारी का संकट

अमेरिका में जब बाइडेन का राष्ट्रपति कार्यकाल शुरू हुआ, तब वहां कोविड-19 के प्रतिदिन 2 लाख नए मामले आ रहे थे। हर दिन करीब़ 1 लाख 20 हजार लोग अस्पताल में भर्ती हो रहे थे। तब संक्रमण दर करीब़ 11.3 फ़ीसदी थी। आज भी देश ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों की चपेट में है। आज भी लगभग 7,40,000 मामले रोजाना आ रहे हैं, वहीं 1,50,000 लोग अस्पताल में रोजाना भर्ती हो रहे हैं। फिलहाल संक्रमण दर 46.8 फ़ीसदी बनी हुई है। 

महामारी से निपटने के बाइडेन के प्रबंधनों पर करीब़ से नज़र डालने, खासतौर पर दूसरे देशों से तुलना करने पर समझ आता है कि इतनी भारी संख्या में इन मामलों से बचा जा सकता था। उदाहरण के लिए अमेरिका में पिछले साल 4,15,000 लोगों की मौत हुई। जबकि चीन में सिर्फ़ दो लोगों की मौत हुई। 

तो क्या चीज गलत हुई? ओमिक्रॉन के चलते अमेरिका में कोविड-19 की सबसे बड़ी लहर आई है। इसके चलते बाइडेन की महामारी नीति की असफलताएं भी सामने आ गई हैं। यह असफलताएं ओमिक्रॉ़न की लहर के बहुत पहले से मौजूद थीं। जैसे अति-दक्षिणपंथी वैक्सीन विरोधी आंदोलन पर लगाम नहीं लगाई गई। इस आंदोलन के बड़े पैमाने पर फैलने की वजह ऑनलाइन और प्राउड ब्वॉयज़ जैसे दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा लगातार फैलाई जा रही भ्रामक जानकारी है। इस आंदोलन की कीमत कई जानें रही हैं। वैक्सीन लगवा चुके लोगों की तुलना में, वैक्सीन ना लगवाने वाले लोगों की मृत्यु दर कहीं ज़्यादा है। एक अध्ययन का अनुमान है कि पिछले साल जून और नवंबर के बीच अमेरिका में टीकाकरण के ज़रिए 1,63,00 लोगों की जान बचाई जा सकती थी। 

इस आंदोलन को रोकने के लिए बाइडेन के प्रशासन ने कोई गंभीर कदम नहीं उठाए हैं। ना बड़े पैमाने पर जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए, ना ही बड़े स्तर पर गलत जानकारी को हटाया गया। लेकिन क्यूबा जैसे दूसरे देशों से तुलना करने पर पता चलता है कि इस तरह की नीतियों से भले ही पूरी तरह वैक्सीन विरोधी आंदोलन का खात्मा ना हो पाता, लेकिन यह बहुत कमज़ोर हो जाता है। क्यूबा में सरकार ने सभी लोगों के लिए वैक्सीन अनिवार्य नहीं की है, इसके बावजूद वहां 90 फ़ीसदी लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं। जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 60 फ़ीसदी ही है। क्यूबा ने एक तेज-तर्रार सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा तंत्र विकसित किया है, जो लगातार समुदायों के बीच में जाता है, जिससे लोगों का इसमें विश्वास बना रहता है। 

बाइडेन प्रशासन सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) में लोगों के विश्वास को बढ़ाने के अपने लक्ष्य में काफ़ी पीछे रह गया है। अमेरिका में बड़े-बड़े कॉरपोरेशन चाहते हैं कि उनके कर्मचारी काम पर वापस लौटें, इसलिए उनके दबाव में सीडीसी को कोविड संक्रमण के बाद एकांत में रहने का समय 10 दिन से घटाकर 5 दिन करना पड़ा।  हाल में यह नीति आई है कि हर परिवार में सिर्फ़ चार कोविड टेस्ट ही मुफ़्त में सरकार की तरफ से किए जाएंगे। यह प्रतिक्रियावादी नीति हाल में ओमिक्रॉन की लहर के बाद आई है, बल्कि कुछ दिन पहले ही व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी जेन प्साकी ने इस तरह के प्रस्ताव की खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि यह संभव नहीं है। 

हाल में एक उलझन पैदा करने वाली घटना में में उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा था कि जिन लोगों को मुफ़्त में कोविड जांच करने वाले स्थानों (साइट) की जानकारी चाहिए, उन्हें गूगल देखना चाहिए। 

निष्क्रियता के चलते चुनाव अभियान में किए गए वायदों और वास्तविकता के बीच अंतर बढ़ा

अपने शुरुआती 100 दिनों में बाइडेन ने कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए, जिनसे डोनाल्ड ट्रंप की बेहद नस्लीय नीतियों को बदला गया। इनमें सेना में ट्रांसजेंडर लोगों के जाने पर लगाया गया प्रतिबंध, पेरिस समझौते में वापस शामिल होना, विवादित कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन की अनुमति वापस लिया जाना और ट्रंप की मेक्सिको सीमा पर बनने वाली दीवार का निर्माण रोकना शामिल था। यह कोई मामलू सुधार नहीं थे।

बाइडेन प्रशासन और कांग्रेस के डेमोक्रेट नेताओं ने अमेरिकन रेस्क्यू प्लान नाम के अधिनियम पर भी हस्ताक्षर किए, जिसके चलते तात्कालिक स्तर पर राहत पहुंचाने वाले कदम उठाए गए। इन कदमों में प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण, संघीय बेरोज़गारी भत्ते को बढ़ाया गया।

लेकिन ऐसे कई वायदे रहे जिन्हें साकार करने के लिए बाइडेन ने अपनी ऊर्जा और वक़्त नहीं लगाया। कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) सम्मेलन में बाइडेन ने वायदा किया था कि अमेरिका 2050 तक सकल-शून्य कार्बन उत्सर्जन पर पहुंचेगा। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद बाइडेन ने 8 करोड़ एकड़ ज़मीन जीवाश्म ईंधन से संबंधित कंपनियों को दे दी। यह अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ी गैरतटीय खनन लीज़ है। बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान में न्यूनतम मज़दूरी भत्ते को 15 डॉलर प्रति घंटे करने का वायदा किया था, बाइडेन ने इसे अमेरिकन रेस्क्यू प्लान में शामिल करने भी योजना बनाई थी। लेकिन एक बार जब "सीनेट पार्लियामेंटेरियन" (एक बिना चुना हुआ पद, जिसके बारे में अमेरिकी लोग कम ही जानते हैं) ने कहा कि भत्ते के इस प्रावधान को शामिल नहीं किया जा सकता, तो बाइडेन तुरंत पीछे हो गए। जबकि नियम के हिसाब से उप राष्ट्रपति कमला हैरिस पार्लियामेंटेरियन का फ़ैसला पलट सकती थीं।

जब बाइडेन राष्ट्रव्यापी आवास निकासी प्रतिबंध को आगे बढ़ाने के लिए अनिच्छुक दिखे, जिससे लाखों अमेरिकी अपने घरों में रह सकते थे, तब हाल में चुने गए प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता कोरी बुश कांग्रेस के प्रवेश द्वारा के बाहर धरने पर बैठ गए। जिसके चलते इस निकासी प्रतिबंध को बढ़ा दिया गया, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके चलते लाखों लोगों पर महामारी के बीच में किराये का भार पड़ा।

बाइडेन की प्रवास नीति को देखें, तो कई लोगों को यह देखकर हैरानी हुई कि हैती के शरणार्थी सीमा पार करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें बॉर्डर पेट्रोल एजेंट पीट रहे हैं। इनकी तस्वीरें नस्लीय प्रवासी नीति का एक घिनौना उदाहरण थीं। जिन्हें तब और बल मिला, जब इन शरणार्थियों को बाइडेन प्रशासन ने शरण देने से इंकार कर दिया। बाद में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने ग्वाटेमाला के शरणार्थियों को साफ़ साफ़ कह दिया कि वे अमेरिका ना आएं। कई लोगों के लिए यह बाइडेन प्रशासन का दोमुंहा चेहरा था, जिसने ट्रंप के कार्यकाल में लागू प्रवासी डॉक्ट्रीन को बदलने का वायदा किया था। 

मंचिन और सिनेमा से संघर्ष के बजाए, सिर्फ़ तुष्टिकरण की नीति जारी

फिर उन नीतियों का क्या, जिनके ऊपर काम करते हुए बाइडेन प्रशासन ने ज़्यादा वक़्त लगाया है? बाइडेन के नीतिगत लक्ष्यों में से एक बड़ा सामाजिक खर्च विधेयक था, जिसका नाम "बिल्ड बैक बेटर" था। कई खरबों डॉलर के इस विधेयक के ज़रिए ऐसे सुधार किए जाने का लक्ष्य था, जिनसे कामग़ार वर्ग के लोगों की जिंदगी में बड़े बदलाव आने थे: उन्हें प्री-स्कूल शिक्षा मुफ़्त दी जानी थी, बेइंतहां महंगी दवाईयों का नियंत्रण किया जाना था, शिशु सेवा के लिए आर्थिक राहत और बुजुर्गों के लिए आर्थिक मदद के साथ-साथ अन्य वायदे। 

दुर्भाग्य से यह विधेयक अभी सीनेट में लंबित है और इसमें कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है। क्यों? दक्षिणपंथी डेमोक्रेटिक सीनेटर जो मंचिन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। चूंकि सीनेट में डेमोक्रेट का बहुमत का अंतर बहुत ही थोड़ा है, फिर सभी रिपब्लिकन विधेयक का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में यह पास नहीं हो सकता। इस तरह कामग़ार वर्ग के लिए महामारी के बीच में 1.75 खरब डॉलर की राहत अधूरी रह गई। 

यह घटनाएं इस साल कई बार हुई हैं। बाइडेन ने जब भी कामग़ार वर्ग के लिए अहम सुधारों की बात की है, दक्षिणपंथी डेमोक्रेटिक सांसदों, जो मंचिन और क्रिस्टेन सिनेमा ने उनका विरोध किया है, फिर बाइडेन प्रशासन बिना ज़्यादा संघर्ष के अलग हट जाता है। 

कई लोगों को इन दोनों सांसदों के तुष्टीकरण को देखकर हैरानी है। बिल्ड बैक बेटर विधेयक के दौरान बाइडेन ने पर्दे के पीछे मंचिन के साथ खूब मोलभाव किया, विधेयक को 3.5 ट्रिलियन डॉलर के कमकर 1.75 ट्रिलियन डॉलर तक ले आए, इस दौरान कामग़ारों को बीमारी और परिवार के साथ समय बिताने के दौरान भुगतान वाली छुट्टियों के प्रावधान को हटा दिया गया। जबकि कई महीनों के मोलभाव के बावजूद मंचिन ने विधेयक को समर्थन नहीं दिया। 

हाल में बाइडेन ने एक ऐतिहासिक मताधिकार विधेयक को पास करवाने की कोशिश की, जिससे नागरिक अधिकार अधिनियम को कुछ प्रावधानों को दोबारा सक्रिय करवाया जा सकता था, जिससे अश्वेत मतदाताओं को दमन से बचाया जा सकता था, साथ ही लाखों कामग़ार लोगों को मताधिकार की सुविधा मिलती, क्योंकि इसके तहत मतदान के दिन को छुट्टी का दिन घोषित किया जा रहा था। लेकिन दक्षिणपंथी डेमोक्रेटिक सांसद क्रिस्टेन सिनेमा ने इस पर समर्थन से इंकार कर दिया। और एक पुराने नियम के चलते यह विधेयक लंबित रह गया। उनके हिसाब से इस विधेयक को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी उपबंध का समर्थन करना "पक्षपातपूर्ण" होता।

मंचिन और सिनेमा दोनों को ही बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनियों, जीवाश्म ईंधन कंपनियों और पारंपरिक दानदाताओं से पैसे मिलते हैं। मंचिन ने खुद कोयला उद्योग से लाखों कमाए हैं। मंचिन के यह सारे हित प्रगतिशील विधेयकों के चलते ख़तरे में पड़ जाएंगे। कई लोगों का कहना है कि यही कारण है कि मंचिन और सिनेमा इन विधेयकों को आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं।

फिर बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी भी इन सांसदों के खिलाफ़ कड़े संघर्ष के लिए तैयार नहीं दिख रही है, जबकि उनके पास ऐसा करने के कई तरीके हैं। जैसे इनके कैंपेन का पैसा लंबित किया जा सकता है, या फिर चुनावी सत्र में प्राइमरी के दौरान इनके खिलाफ़ प्रत्याशी खड़ा करना।

साम्राज्यवादी युद्धों के लिए पैसा कभी खत्म नहीं होता

बाइडेन और अमेरिकी कांग्रेस सामाजिक खर्च के लिए संघर्ष करने से बच रहे हैं, लेकिन युद्ध और कब्ज़े की बात आती है, तो इसके लिए पैसा कभी खत्म नहीं होता। पिछले महीने सीनेट ने 768 बिलियन डॉलर का रक्षा बजट पास किया। बाइडेन ने जितने की मांग की थी, यह उससे करीब़ 24 बिलियन डॉलर ज़्यादा था। 100 में से सिर्फ़ 11सीनेटर्स (सांसदों) ने ही इसका विरोध किया था।

बाइडेन प्रशासन ने दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्र में सैन्य कवायद, पश्चिम एशिया में बमबारी, खासकर ईरान को सहयोग देने के लिए इराक़ और सीरिया में बमबारी जारी रखी है। इसके अलावा क्यूबा और वेनेजुएला के खिलाफ़ कड़े प्रतिबंध भी बरकरार रखे हैं।

चीन के खिलाफ़ ट्रंप की बड़बोली नीतियों को बाइडेन के कार्यकाल में भी जारी रखा गया है, जिसके चलते तनाव और भी ज़्यादा बढ़ा है। बाइडेन के गृह सचिव एंटनी ब्लिंकेन ने पारंपरिक मित्रों के साथ फिर से संबंधों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रखा है, यहां तक कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ, चीन के खिलाफ एक समग्र मोर्चा बनाने के लिए रक्षा समझौते भी किए हैं। 

दूसरे नेताओं के साथ-साथ बाइडेन ने बिना तथ्यों की साजिश की धारणाएं रचने का काम किया, जैसे कोविड-19 का स्त्रोत् चीन में एक लैब है या शिनजियांग में चीन की सरकार नरसंहार को अंजाम दे रही है। बाइडेन के अलावा इन देशों में जी-7 में हिस्सा लेने वाले पूर्व साम्राज्यवादी देश भी शामिल हैं। बाइडेन प्रशासन ने एक और दूसरी महाशक्ति रूस के साथ भी क्रीमिया में नाटो के प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर तनाव में बढ़ोत्तरी की है।

बाइडेन ने ओबामा प्रशासन की तरह क्यूबा के साथ सौम्य तरीके अपनाने की नीति नहीं चुनी है। इसके बजाए अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते उपजी आर्थिक दिक्कतों के विरोध में क्यूबा में हुए एक दिन के प्रदर्शन के बाद, बाइडेन प्रशासन ने इन प्रतिबंधों को और भी ज़्यादा कड़ा कर दिया है। प्रदर्शनकारियों के साथ क्यूबा के मिगेल डियाज़ केनेल द्वारा व्यक्तिगत तौर पर मिला गया, लेकिन फिर भी बाइडेन ने खुद ही क्यूबा सरकार को उखाड़ फेंकने की ज़िम्मेदारी उठा ली है। 

इस साल की शुरुआत में बाइडेन प्रशासन ने तालिबान द्वारा कब्ज़ा करने के बाद अफ़गानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की त्रासद निकासी की। तालिबान के शासन में सभी सामाजिक क्षेत्रों में अफ़गानों के अधिकार ख़तरे में आ गए हैं। तालिबान के कब्ज़े के विरोध में बाइडेन प्रशासन ने अफ़गान सरकार के मुद्रा कोष पर कब्ज़ा कर लिया, इसके चलते वहां की मौजूदा सरकार अफ़गानी लोगों को भोजन उपलब्ध कराने या बुनियादी सेवाएं देने की भी स्थिति में नहीं है। कुलमिलाकर एक संकटापन्न देश को इन्होंने मानवीय संकट में बदल दिया। 

एक साल के कार्यकाल के बाद बाइडेन प्रशासन बहुत थोड़े सुधार ही लागू कर पाया है। डोनाल्ड ट्रंप के तानाशाही भरे कार्यकाल के बाद लोगों को बाइडेन प्रशासन से उम्मीद जगी थी, लेकिन अब अमेरिका में कई का विश्वास हिल रहा है। पिछले साल ही मध्य में बाइडेन की रेटिंग काफ़ी नीचे गिर गई थी।

अमेरिका के लोग, जो महामारी के संकट में कोरोना की कई लहरों का सामना कर चुके हैं, उन्हें जरूरी सुधारों का बेसब्री से इंतज़ार है। भले ही बाइडेन प्रशासन ने बुनियादी तौर पर चीजों में बदलाव लाने की कोशिश ना की हो या बाधाओं के खिलाफ़ संघर्ष ना किया हो, लेकिन अमेरिकी लोग स्थितियों को बदलने का अपना संघर्ष नहीं रोक रहे हैं। ऊपर से जब बदलाव नहीं हो रहे हैं, तो नीचे से अमेरिकी जनता आंदोलन के ज़रिए दबाव बना रही है, चाहे वह श्रम के मुद्दे पर हो या मताधिकार, प्रवास या साम्राज्यवाद के विरोध में।

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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