पटना: बिहार विधानसभा चुनावों के लिए जैसे-जैसे चुनाव अभियान जोर पकड़ रहा है, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) नेताओं के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में एनडीए के नेताओं में शामिल एक केन्द्रीय मंत्री, बिहार के कुछ मंत्री एवं विधायकों को ग्रामीण इलाकों में जारी चुनाव अभियान के दौरान लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। इसी क्रम में दो दिन पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जोकि एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हैं, तक को असहज होते देखा गया, जब एक चुनावी रैली के दौरान एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उनके खिलाफ नारेबाजी करनी जारी रखी।
वरिष्ठ बीजेपी नेता एवं केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय को मंगलवार को वैशाली जिले की हाजीपुर विधानसभा सीट में चुनाव प्रचार के दौरान कुछ लोगों के समूह से ‘वापस जाओ’ नारेबाजी का सामना करना पड़ा था। हवा में ‘वापस जाओ, वापस जाओ’ के नारों के साथ युवाओं ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दोबारा से वोट न देने की धमकी दे डाली क्योंकि इसकी वजह से हर तरफ बेरोजगारी का आलम छाया हुआ है।
पुलिस अधिकारियों की राय में पिछले वायदों को पूरा कर पाने में सरकार की नाकामी के चलते सेंदुआरी हाई स्कूल के समीप चल रही चुनावी सभा में लोगों ने अपने गुस्से का इजहार व्यक्त किया था। राय के साथ आये बीजेपी नेताओं ने आक्रोशित लोगों को शांत करने के असफल प्रयास किये, जिन्होंने अपने विरोध को जारी रखा और कसमें खाई कि इस बार वे राज्य सरकार को बदल कर रख देंगे।
हालाँकि राज्य मुख्यालय में मौजूद बीजेपी नेताओं ने यह कहते हुए इस घटना को छोटी-मोटी घटना साबित करने की कोशिश की कि असल में ये राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के कुछ कार्यकर्ता और समर्थक थे, जो चुनावी सभा के दौरान बवाल खड़ा करने की कोशिश में थे।
एक अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेता और बिहार के श्रम मंत्री विजय कुमार सिन्हा को भी इसी प्रकार से गुस्साई भीड़ का सामना मंगलवार की शाम को पतनेर गाँव में करना पड़ा था, जोकि उनके ही विधानसभा क्षेत्र लखीसराय में पड़ता है। स्थानीय जनता यहाँ की खस्ता हाल सड़कों को लेकर विरोध कर रही थी, जिसके चलते सिन्हा को उनसे बात किये बिना ही अपने अभियान को खत्म कर वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
ग्रामीण जमकर “सड़क नहीं तो वोट नहीं, वापस जाओ, वापस जाओ” की नारेबाजी करते रहे जबकि गुस्साए ग्रामीणों ने तो पिछली दफा किये सड़क निर्माण के वादे को पूरा नहीं करने को लेकर अभद्र भाषा तक का इस्तेमाल किया।
24 घंटों के भीतर यह दूसरी बार था जब सिन्हा को गुस्साई भीड़ का सामना करना पड़ा था। इससे पहले सोमवार को तरहरी गाँव के ग्रामीणों ने भी एक अभियान के दौरान उनका विरोध किया था। हालाँकि सिन्हा का आरोप है कि इस सबके पीछे उनके प्रतिद्वंदियों का हाथ है।
पिछले महीने लखीसराय के कुछ बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं को इस बारे में सूचित किया था कि आमजन में सिन्हा अलोकप्रिय हो चुके हैं और पार्टी को इस बार उनकी जगह पर किसी नए प्रत्याशी को मौका देना चाहिए। लेकिन पार्टी की ओर से उनकी इस माँग को नजरअंदाज कर दिया गया।
इसी प्रकार वरिष्ठ जेडीयू नेता और बिहार सरकार में मंत्री महेश्वर हज़ारी को भी पूसा में प्रदर्शनकारियों ने रोक दिया था, जोकि समस्तीपुर जिले में उनकी विधानसभा सीट कल्यानपुर में पड़ता है। दर्जनों की संख्या में गुस्साए ग्रामीणों ने उन्हें रोककर सवाल-जवाब किया कि वे बताएं कि आखिर उन्होंने कौन सा विकास कार्य पूरा किया है। जब वे कोई जवाब देने में असफल रहे तो प्रदर्शनकारियों ने उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी और उनसे गाँव से निकल जाने तक के लिए कह दिया।
इस सम्बन्ध में एक वीडियो क्लिप इन दिनों सोशल मीडिया पर सुर्ख़ियों में है जिसमें गाँव वाले उनसे चीख-चीखकर पूछते दिखे, उनसे गाँव से निकल बाहर होने के लिए कह रहे हैं और बिना उनकी इजाजत के दोबारा गाँव में न घुसने की ताकीद कर रहे हैं। हजारी आगामी चुनावों के मद्देनजर लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए अभियान पर आये हुए थे।
करीब दो हफ्ते पूर्व वरिष्ठ जद-यू नेता और बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा को भी कुछ इसी प्रकार का अनुभव जहानाबाद विधानसभा सीट के नाराज मतदाताओं के बीच में अनुभव करने को मिला था। जेडीयू द्वारा वर्मा को इस सीट से मैदान में उतारा गया है, जिन्होंने पिछली बार जीती हुई सीट से अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया है।
इस बार के चुनाव प्रचार के दौरान सत्तारूढ़ एनडीए से सम्बद्ध दर्जनों विधायकों एवं सांसदों के खिलाफ ग्रामीणों द्वारा इस प्रकार के विरोध प्रदर्शनों की खबरें लगातार सुर्ख़ियों में है। विकास कार्यों का अभाव, चारों ओर बेरोजगारी के बोलबाले एवं वादाखिलाफी से लोगों के बीच असंतोष गहराता जा रहा है और वे अपनी निराशा को जाहिर करने में संकोच नहीं कर रहे हैं।
इसी तरह सितंबर में बिहार के कृषि मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता प्रेम कुमार को औरंगाबाद जिले के गोह के चतरा गाँव में प्रदर्शनकारियों का सामना करना पड़ा था। विरोध कर रहे लोगों का कहना था कि “बिना सड़क के” इस बार वे बीजेपी को वोट नहीं देने जा रहे हैं। इस घटना से बुरी तरह से बौखलाए मंत्री ने आरजेडी कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाते हुए कहा था कि राजद कार्यकर्ताओं ने उनपर हमला करने और सार्वजनिक सभा को बाधित करने का प्रयास किया था।
इसी प्रकार प्रदर्शनकारियों ने बिहार के ग्रामीण निर्माण मंत्री और वरिष्ठ जेडीयू नेता शैलेश कुमार को उनके विधानसभा क्षेत्र जमालपुर के इन्द्रुख गाँव में घेर लिया था। शैलेश कुमार तब बेतरह चिढ बैठे जब ग्रामीणों ने उनसे सड़क, सिंचाई और अन्य बुनियादी सुविधाओं को लेकर सवालों की झड़ी लगा डाली थी, जिसमें गर्मागर्म तूतू-मैंमैं भी देखने को मिली। लोगों के मूड भांपते हुए वे जनसभा को संबोधित किये बिना ही वहां से निकल लिए।
मजेदार तथ्य यह है कि प्रदेश में बीजेपी के शीर्ष नेता सुशील कुमार मोदी ने हाल ही में इस बात का दावा किया था कि बिहार में सडकों के निर्माण का काम तो इस बार कोई मुद्दा ही नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने सभी गाँवों को जोड़ दिया है।
एक जेडीयू नेता ने इस बात को स्वीकार किया है कि सत्ता-विरोधी लहर इस बार जमीनी स्तर पर दिखने को मिल रही है क्योंकि नवंबर 2015 से लेकर जुलाई 2017 के बीच के समय को यदि छोड़ दें जब नीतीश कुमार और आरजेडी के बीच के गठबंधन की वजह से बीजेपी विपक्ष में थी, वर्ना एनडीए बिहार में 2005 से ही सत्ता पर काबिज है।
वहीँ, एक बीजेपी नेता का कहना था कि इस बात में कोई शक नहीं कि इस बार लोग नाराज और दुखी हैं। हालाँकि पार्टी की चिंता नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट को लेकर है, क्योंकि वही एनडीए का चेहरा हैं। वे आगे कहते हैं “हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 12 चुनावी रैलियों से माहौल एनडीए के पक्ष में बदल सकता है।”
वहीँ, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईइ) के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार हाल के महीनों में बिहार में बेरोजगारी की दर में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। इसे इन तथ्यों के आलोक में भी देखा जा सकता है कि मार्च माह में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के बाद से आधिकारिक तौर पर 21 लाख प्रवासी मजदूरों ने बिहार वापसी की है।
बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है जिससे हर कोई प्रभावित है, इस बात को समझते हुए आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों द्वारा बेरोजगारी, रिवर्स माइग्रेशन के साथ-साथ सरकार द्वारा उनके लिए काम-काज की व्यवस्था कर पाने में विफलता जैसे मुद्दों को लगातार उठाने का काम किया जा रहा है।
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Bihar Elections: JD-U, BJP Leaders Face Protests by Angry Voters during Campaign