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बजट 2021 : विनिवेश पर ज़ोर से नाराज़ हुए सरकारी कर्मचारी; आंदोलन तीव्र होगा

सभी यूनियनों की एक ही भावना है कि सार्वजनिक कंपनियां नागरिकों के सामाजिक कल्याण के प्रति सजग और जिम्मेदार रहती हैं; इसलिए इन्हें बेचने की सरकारी मुहिम के ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियन नेताओं ने किसानों जैसा "विरोध का मॉडल" अपनाने की बात कही है।  
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Image Courtesy: PTI

नई दिल्ली: आखिरकार सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए विनिवेश का लक्ष्य फिर से बड़ा रखा है जो वैसे तो पिछले वर्ष के "महत्वाकांक्षी" विनिवेश के लक्ष्य से कम है क्योंकि पिछले वर्ष सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के शेयरों को बेचने से प्राप्ति और बिक्री अनुमान से काफी कम रही है, इस बार नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति के तहत विनिवेश के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सार्वजनिक/सरकारी कंपनियों की पहचान के सरकार के इरादे ने सरकारी कर्मचारियों को सकते में डाल दिया है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को पेश केंद्रीय बजट 2021-22 में केंद्र सरकार के हवाले से 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य तय किया है- और 75,000 करोड़ रुपये की उगाही विनिवेश के ज़रीए तथा सार्वजनिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री से 1,00,000 करोड़ रुपये की उगाही की जाएगी। 2020-21 में यह लक्ष्य 2.1 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन बिक्री से मिले केवल 32,000 करोड़, जैसा कि वित्तीय वर्ष में संशोधित बजट में दिखाया गया है। 

पिछले साल विनिवेश की मुहिम को झटका इसलिए भी लगा था क्योंकि कोविड-19 महामारी ने सभी को आर्थिक तंगी में डाल दिया था, जिसने नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की प्रस्तावित बड़े निवेश की महत्वाकांक्षी योजना को पटरी से उतार दिया था। हालाँकि, ठीक उसी वक़्त, केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए एक नई नीति लेकर आई जिसे ‘आत्मनिर्भर’ पैकेज का नाम दिया गया था।

नीति: हुकूमत के स्वामित्व वाली महत्वपूर्ण क्षेत्र की अधिकतम चार कंपनियों, तथा अन्य क्षेत्रों की सार्वजनिक फर्मों का निजीकरण किया जाएगा या बंद किया जाएगा। 

सोमवार को, उसी रोडमैप को समझाते हुए, वित्तमंत्री सीतारमण ने घोषणा की कि केंद्र सरकार ने विनिवेश के लिए अब चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की है- जिसमें परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा; परिवहन और दूरसंचार; बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज; बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाएं आदि शामिल हैं- उनके मुताबिक इन केंद्रीय सार्वजनिक उद्यमों में से "बहुत कम" को बनाए रखा जाएगा।

महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान का आह्वान "राष्ट्रीय संपत्ति बेचने" की नीति को आगे बढ़ाने का  स्पष्ट आह्वान है, जबकि कई सरकारी कर्मचारी यूनियनों के नेताओं का मानना है कि सरकार ऐसा अतीत में ट्रेड यूनियनों के विनिवेश के खिलाफ कई विरोध/आंदोलन के बावजूद कर रही हैं। 

सभी यूनियनों की भावना एक ही है कि सार्वजनिक कंपनियां नागरिकों के सामाजिक कल्याण के प्रति सजग और जिम्मेदार हैं। और पिछले साल "निजीकरण विरोधी" आंदोलन तेज़ी से हुए थे, नेताओं के अनुसार, जब महामारी की वजह से लॉकडाउन किया गया तो उस वक़्त भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक कंपनियों के महत्व का पता चला था। 

प्रदर्शनों से परे कई यूनियन नेताओं ने कहा कि आज चल रहे किसान आंदोलन को देखने से लगता है कि हमें यानि सरकारी कर्मचारियों की यूनियनों को भी "विरोध के मॉडल" को अपनाने की जरूरत है। 

अनिल कुमार भटनागर, जो अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ (एआईआईईए) के अध्यक्ष हैं ने विनिवेश पर सरकारी मुहिम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, केंद्र के इरादे "दुर्भावनापूर्ण" हैं। आगामी वित्तीय वर्ष में, सरकारी क्षेत्र की एक जनरल बीमा कंपनी का निजीकरण किया जाएगा और भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को सार्वजनिक पेशकश के लिए रखा जाएगा। 

“शुरु से ही बीमा कर्मचारी एलआईसी की सार्वजनिक पेशकश के खिलाफ हैं। केंद्र ने कहा है कि ऐसा करने से पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी- भटनागर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ये दोनों तत्व एलआईसी के लिए सही नहीं हैं,”।

भटनागर के अनुसार, हुकूमत के स्वामित्व वाली इस बीमा और निवेश निगम को 1956 में स्थापित किया गया था, ये त्रैमासिक रिपोर्टों देती है, और इसके खातों का ऑडिट आईआरडीए (IRDA) के साथ-साथ बाहरी लेखा परीक्षकों द्वारा भी किया जाता है, और अनुमोदन के लिए संसदीय निकायों को भेजा जाता है। "जहां तक जवाबदेही का सवाल है, तो मीडिया रिपोर्ट्स स्पष्ट रूप से बताती हैं कि निजी कंपनियों कम अनुपालन करती हैं," उन्होंने यस बैंक और "कई सहकारी बैंकों" का हवाला देते हुए उक्त तर्क दिया।

यह पूछे जाने पर कि आईपीओ के कारण किसे नुकसान होगा, भटनागर ने जवाब दिया कि इसका नुकसान उन "40 करोड़ एलआईसी बीमा धारकों" को होगा जो वर्तमान में "कंपनी के लाभांश का 95 प्रतिशत" लाभ उठाते हैं। "अगर केंद्र अपनी योजना को आगे बढ़ाता है- जिसके लिए उन्हें एलआईसी अधिनियम 1956 में संशोधन करना होगा- तो उस दिन देश भर के बीमा कर्मचारी एक दिन के लिए काम की हड़ताल करेंगे," उन्होंने कहा।

इसी तरह, बैंक एंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीईएफआई) के देबाशीष बसु चौधरी सोमवार को वित्तमंत्री सीतारमण द्वारा दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (आईडीबीआई बैंक के अलावा) के निजीकरण की घोषणा से भड़के हुए हैं- उनका तर्क है कि बैंक के संबंध में "भारत के नियामक कानून उपयुक्त नहीं हैं जो निजी बैंकों के संचालन पर निगरानी रख सकें।"

इसके अलावा, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जोकि 1969 में हुआ था, ऐसा "बैंकिंग सेवाओं को गरीब लोगों और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने में सक्षम बनाने के लिए किया गया था", चौधरी ने तर्क दिया। "अगर हम आगे बढ़ें और देश के बैंकों का निजीकरण किया तो ऐसे सामाजिक उद्देश्यों का क्या होगा?"

एस॰ गिरिश, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) कर्मचारी यूनियन के महासचिव ने भी यही तर्क दिया कि "लाभ कमाने वाली कंपनी जिसे वर्तमान में 3,000 करोड़ रुपये से अधिक के ऑर्डर मिले हैं" के निजीकरण के पीछे का विचार "हमारी समझ से परे है।"

विनिवेश के लिए तैयार कंपनियों में बीईएमएल, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं, जिनकी प्रक्रिया 2021-22 में पूरी होने की संभावना है।

गिरीश ने न्यूजक्लिक को बताया कि रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के कर्मचारी केरल की पलक्कड़ इकाई में लगातार धरने पर हैं मंगलवार को इस अनिश्चितकालीन धरने को 28 दिन हो गए है। "हम आने वाले दिनों में अपने विरोध प्रदर्शन को तेज करेंगे, जिसके लिए बैठकें चल रही हैं," उन्होंने कहा।

कोजी रिफाइनरी वर्कर्स एसोसिएशन (CRWA) के महासचिव एजी एमजी ने भी कहा कि केरल के कोच्चि में बीपीसीएल की तेल रिफाइनरी में आंदोलन तेज़ किया जाएगा। 

न्यूजक्लिक को बताया कि “बीपीसीएल के कर्मचारियों ने अतीत में काम की हड़ताल की है; हमने निजीकरण अभियान को रोकने के लिए अदालतों से भी संपर्क साधा है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आज (मंगलवार को) केंद्रीय बजट के विरोध में गेट मीटिंग का आयोजन किया गया था। 

आने वाले दिनों के लिए तेल उधयोग के कर्मचारी क्या योजना बना रहे हैं? अजी एमजी ने कहा, "हमारा मानना हैं कि सरकार ने हमारे सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा और अब एकमात्र तरीका यही है की हम भी विरोध का किसान मॉडल अपनाएं जिसे वर्तमान में किसान यूनियनों द्वारा चलाया जा रहा है।"

बिनय कुमार चौधरी, जो सीओएनसीओआर (CONCOR) कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष हैं इस बात से सहमत दिखे। उन्होंने कहा, "केंद्र सभी सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण करने की अपनी कवायद में आगे बढ़ रहा है क्योंकि सरकार पहली बात तो कर्मचारियों की यूनियनों के साथ कोई  परामर्श करना पसंद नहीं करती है- जोकि सबसे बड़े हितधारक है," उन्होंने सवाल दागते हुए पूछा  कि निजीकरण के बाद सरकारी कर्मचारियों की सेवा शर्तों का क्या होगा।

संभवतः, इन बहुत से मुद्दों को उठाने की उम्मीद में, जो किसी खास उद्यम या उधयोग के लिए अद्वितीय नहीं हैं, सीआरडब्लूए (CRWA) के एजी एमजी ने सुझाव दिया कि बैठकें "निकट भविष्य में" न केवल तेल कर्मचारियों की यूनियनों बल्कि अन्य लोगों के साथ भी होंगी। देशव्यापी विरोध कार्य योजना का चार्ट तैयार किया जाएगा। 

देश की सबसे बड़ी कर्मचारी यूनियन में से एक, ऑल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन (AIRF) के शिव गोपाल मिश्रा ने इस बात पर भी गंभीर चिंता जताई कि सरकार "केंद्रीय बजट में भारतीय रेलवे का निजीकरण करने की दिशा में" बढ़ रही है। 

वित्तमंत्री सीतारमण ने सोमवार को भारतीय रेलवे को "रिकॉर्ड" धन के आवंटन का प्रस्ताव किया था जो 1.1 लाख करोड़ है और पिछले साल महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुआ था, जिसके लिए पूंजीगत व्यय अगले वित्त वर्ष के लिए 2.15 लाख करोड़ रुपये रखा गया है।

हालांकि मिश्रा ने कहा कि 2021-22 के लिए पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी से "निश्चित तौर पर रेलवे की क्षमता में वृद्धि होगी और सुरक्षा बढ़ेगी," उन्हें अभी भी केंद्र सरकार की उन योजनाओं के बारे में संदेह है जो बुनियादी ढांचे को अपडेट करने और इसे राष्ट्र की जरूरत के हिसाब से विकसित करने पर ज़ोर देती हैं।"

मिश्रा ने कहा, "बजट किसी भी तरह से रेलवे, रेलवे कर्मचारियों या रेल यात्रियों के लिए अच्छा नहीं है।" भारतीय रेलवे के संभावित निजीकरण पर, उन्होंने दोहराया कि रेलवेमैन "ऐसा नहीं होने देंगे।"

“हमारे ‘देश बचाओ, रेल बचाओ’ मिशन के तहत, हम वर्तमान में देश भर के रेलवे स्टेशनों के साथ समितियों के गठन की प्रक्रिया चला रहे हैं, जो ऐसी समितियों के कामकाज के लिए नोडल बिन्दु हैं। रेलवे के निजीकरण को रोकने के लिए न केवल रेलवेमैन बल्कि वकील, एकाउंटेंट, कार्यकर्ता भी इन संस्थाओं में शामिल हो रहे हैं।

आलोक कुमार रॉय, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ़ ऑफ़िसर्स एसोसिएशन (NCOA) के अध्यक्ष ने कुछ अलग राग अलापना पसंद किया। उन्होंने कहा कि केंद्र के विनिवेश कार्यक्रम पर "अंधा विरोध" ठीक बात नहीं है। 

"मैं एक ही क्षेत्र में कई सार्वजनिक कंपनियों को जारी न रखने के केंद्र के तर्क से सहमत हूं," इसलिए मैं सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश का अंधा विरोध नहीं करता हु।

इतना कहने के बाद, रॉय ने कहा कि सार्वजनिक हिस्सेदारी की बिक्री के बजाय किसी क्षेत्र में सार्वजनिक उद्यमों में "विलय और अधिग्रहण या संपत्ति के मुद्रीकरण" का कदम "बेहतर" विकल्प होगा। 

रॉय ने कहा कि केंद्र सरकार अपने वित्तीय घाटे को दूर करने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रही है, और ऐसा करने के लिए सरकार गलत तरीके से सार्वजनिक कंपनियों के खातों की तुलना उनके निजी समकक्षों से कर रही है।

उन्होंने कहा, "आखिरकार, केंद्र को यह नहीं भूलना चाहिए कि निजी कंपनियां सिर्फ मुनाफा चाहती हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र नागरिकों के सामाजिक कल्याण के प्रति अधिक सजग और जिम्मेदार होते हैं।”

इस लेख को मूलत: अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Budget 2021: Disinvestment Push Irks Govt Employees; Protests to Intensify

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