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चारधाम सड़क परियोजना को लेकर जल्दबाज़ी क्यों?

चारधाम सड़क परियोजना को लेकर केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें बेहद जल्दबाज़ी में हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पहले ही कह चुके हैं कि एनजीटी और अदालती आदेशों की वजह से परियोजना तय समय में पूरी नहीं हो पायी।
चारधाम सड़क परियोजना

सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी 2019 को अपने फैसले में चारधाम विकास योजना के तहत चल रहे निर्माण कार्यों को पूरा करने के निर्देश दिये थे। साथ ही ये भी कहा था कि इस परियोजना के तहत जिन निर्माण कार्यों पर रोक लगी थी, वो जारी रहेगी। बिना पर्यावरणीय अनुमति के नये कार्य नहीं शुरू होंगे।

15 मार्च 2019 को इस मुद्दे पर फिर सुनवाई हुई। अधिवक्ता संजय पारेख ने बताया कि उच्चतम अदालत की रोक के बावजूद राज्य सरकार ने नई जगहों पर निर्माण कार्य शुरू कर दिये हैं। ये अदालत की अवमानना है। उन्होंने बताया गया कि राज्य सरकार नई जगहों पर भी खुदाई शुरू कर रही है, इसके लिए पेड़ काट रहे हैं। जबकि अदालत ने कहा था कि जिन जगहों पर कार्य जारी है, वही कार्य पूरे किये जाएं।

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याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में बताया कि एनएच-94 पर 76 किलोमीटर से 144 किलोमीटर (चंबा-धरासू मार्ग) पर जनवरी में अदालत के आदेश के पहले ऑल वेदर रोड के तहत कोई कार्य नहीं चल रहा था। वहां अब बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं और नया कार्य शुरू कर दिया गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने 4 फरवरी को ली गईं तस्वीरें कोर्ट में दिखायीं। इसके साथ ही एनएच-94, एनएच-109 और एनएच-34 समेत विभिन्न हाईवे पर नये निर्माण कार्य के बारे में भी अदालत को जानकारी दी।

अधिवक्ता संजय पारेख का कहना है कि ये अदालत की अवमानना है। उनका कहना है कि जिन जगहों पर पहले से निर्माण कार्य चल रहे हैं, उनसे सटे इलाकों में भी कार्य शुरू कर दिये गये हैं और उन्हें पुराने जारी कार्य में ही दर्शाया जा रहा है।

सात फरवरी को लोकसभा में सड़क परिवहन राज्य मंत्री मनसुख एल मानदविया ने कहा कि मार्च 2020 तक भी ये परियोजना शायद पूरी न हो सके। उन्होंने कहा कि ये नहीं बताया जा सकता कि ये परियोजना कब तक पूरी हो सकेगी। हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ने परियोजना को लेकर सवाल पूछा था। सड़क परिवहन राज्य मंत्री ने बताया कि राज्य के चार धामों को जोड़ने की इस पर 1,800 करोड़ रुपये पहले ही खर्च हो चुके हैं।

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पर्यावरण की कीमत पर ‘विकास का महामार्ग’

उत्तराखंड के चारों धाम को जोड़ने वाली और हर मौसम में सफ़र के लिए तैयार की जा रही ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्य को देखने और हिमालय पर पड़ने वाले उसके असर को समझने के लिए मैं टिहरी-गढ़वाल के रास्ते पर थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये महत्वकांक्षी सड़क परियोजना क्या वाकई उत्तराखंड में समृद्धि के द्वार खोलेगी या कहीं तबाही की आशंका तो साथ नहीं लिए आएगी। इस विचार का आधार वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा भी है। केदारनाथ आपदा इसीलिए इतनी भयावह मानी गई क्योंकि नदियों के पानी के वेग में जल-विद्युत परियोजनाओं का मलबा जानलेवा साबित हुआ था और अपने पीछे हज़ारों मृतकों को छोड़ गया था।

ऋषिकेश से नई टिहरी के रास्ते पर ऑल वेदर रोड का निर्माण कार्य ज़ोरों से चल रहा है। हिमालयी पहाड़ों की श्रृंखला पर जेसीबी के प्रहार देखे जा सकते हैं। कहीं-कहीं सड़क पर मानों पूरा पहाड़ टूटकर बिखरा पड़ा हो। उनका मलबा वहीं नीचे खाइयों की ओर उड़ेला हुआ था। प्रकृति की सुंदरता के लिए विख्यात उत्तराखंड के लिए, ये दृश्य फिलहाल तो छलनी कर देने वाले थे। गाड़ी रोक कर कार्यस्थल पर मौजूद लोगों से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने मना कर दिया। मैं तस्वीरें लेने लगीं, तो वे आशंकित हो उठे।

मार्च के पहले हफ्ते में बारिश से भीगी इस सड़क पर पड़ा हुआ मलबा इस पर से गुजरती गाड़ियों के लिए जानलेवा हो रहा था। मेरी गाड़ी के ठीक आगे एक ट्रक जा रहा था। मलबे पर ट्रक के टायर फिसलने लगे और ट्रक पीछे की ओर खिसकने लगा। वहां मौजूद एक जेसीबी ने ट्रक को रोका और उसे आगे की ओर धकेला। यानी हमारी किस्मत उस समय अच्छी थी और एक हादसा टल गया। इस पूरी सड़क पर गाड़ियां 20-30 किमी प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार नहीं पकड़ सकती थीं।

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पहाड़ को थामने के लिए कंक्रीट की दीवार बनाई गई है। लेकिन छोटे-छोटे पत्थरों की ये दीवार एक पूरे पहाड़ को रोकने में कारगर नहीं दिखायी देती। मेरी यात्रा के ठीक चार दिन बाद 6 मार्च को इसी मार्ग पर भू-स्खलन से हादसा हुआ। पहाड़ से गिरे मलबे में मशीन का ऑपरेटर और उसका सहायक जिंदा दफ्न हो गये। करीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद उनके शव बाहर निकाले जा सके।

फरवरी महीने में भी चंपावत में टनकपुर से पिथौरागढ़ तक बन रही ऑल वेदर रोड पर हादसा हुआ। सड़क पर ऑल वेदर रोड के लिए निर्माण कार्य चल रहा था। सड़क चौड़ी करने के लिए काटी गई पहाड़ी के पर एक पेड़ नीचे गुजर रही कार पर जा गिरा। जिसमें दो महिलाओं की मौत हो गई।

ऑल वेदर रोड पर चल रहे निर्माण कार्य आए दिन हादसे की वजह बन रहे हैं।

टिहरी में पहाड़ तोड़ने के चलते इसके किनारे बसे कई गांवों का बाकी दुनिया से संपर्क कट गया है। पहाड़ पर बसे गांवों से सड़क तक पहुंचने के लिए बने रास्ते टूट गये हैं। कई जगह लोगों के खेत ढह गये हैं। मकानों में दरारें पड़ी हैं। पशुओं का आवागमन मुश्किल हो गया है।

चौड़ी सड़कें चाहिए तो पेड़ कटेंगे ही!

जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के गढ़वाल क्षेत्र के साइंटिस्ट इंचार्ज डॉ. आरके मैखुरी कहते हैं कि एनजीटी के आदेशों के बाद ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्य में जरूरी सावधानी बरती जा रही है। मलबे को डंपिंग ज़ोन में ही फेंका जा रहा है। डॉ. मैखुरी कहते हैं कि जरूरी विकास के लिए पर्यावरण को कीमत चुकानी पड़ती है। ऑल वेदर रोड में भी ऐसा ही है। यदि आपको चौड़ी सड़कें चाहिए तो पेड़ तो कटेंगे ही। वे कहते हैं कि जो पेड़ काटे जा रहे हैं, उसके बदले जो पेड़ लगाएं जाएं, उन्हें उत्तराखंड में ही लगाना चाहिए। न कि टिहरी डैम के निर्माण के समय की तरह। जब जंगल कटे उत्तराखंड के और पेड़ लगाने की बात हुई लखीमपुर खीरी में। वे पेड़ भी लगे या नहीं, कोई नहीं जानता।

इस वर्ष 11 जनवरी को देहरादून की गैर लाभकारी संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन दून की याचिका पर चारधाम सड़क परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर अधिवक्ता संजय पारेख ने कहा था कि यदि ये परियोजना चलती रही तो ये हिमालयी इकोलॉजी के लिए ऐसा नुकसान होगा, जिसकी भरपायी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि ये 10 हाईड्रो पॉवर प्रोजेक्ट्स से होने वाले नुकसान के बराबर है।

मज़बूत नहीं पहाड़ थामने के लिए बनी रिटेनिंग वॉल!

वाडिया इंस्टीट्यूट में जियोलॉजिस्ट डॉ. सुशील कुमार कहते हैं कि टिहरी डैम के निर्माण के लिए भी चारों ओर पहाड़ काटे गये, फिर उन पहाड़ों का उपचार कर उन्हें बेहद मज़बूत बनाया गया, लेकिन ऑल वेदर रोड में ऐसा नहीं हो रहा है। उनका कहना है कि कुछ जगहों पर तो पहाड़ मज़बूत हैं, लेकिन कुछ जगहों पर बेहद कमज़ोर भी हैं। मानसून में वहां भू-स्खलन का खतरा बढ़ जाएगा। ऑल वेदर रोड के लिए पहाड़ काटने के बाद उसे थामने के लिए जो रिटेनिंग वॉल बनायी गई है, वो पर से टूट कर आए मलबे को रोकने में सक्षम नहीं दिखती। उसकी ऊंचाई भी ज्यादा नहीं रखी गई है। बल्कि उलटा मानसून में वो सड़कों को ब्लॉक कर सकती है। पहाड़ों को काटने के बाद उनका पूरा उपचार नहीं किया जा रहा है। उन्हें मज़बूत नहीं किया जा रहा है। डॉ. सुशील का कहना है कि पहाड़ों को दरकने से रोकने के लिए जरूरी इंतज़ाम के साथ इसकी पूरी मॉनीटरिंग भी जरूरी है।

उत्तराखंड के चारों धाम को जोड़ने के साथ पर्यटकों की आवाजाही के लिए हर मौसम में यात्रा करने योग्य सड़क के साथ, चार धाम सड़क परियोजना सामरिक दृष्टि से भी अहम मानी जा रही है। चमोली, उत्तरकाशी या पिथौरागढ़ में हमारी सड़कें बेहद संकरी हैं, जबकि सीमा पार चीन ने कई लेन की सड़कें तैयार कर ली हैं। लेकिन इस सबके बीच पर्यावरण के लिहाज़ से अति संवेदनशील हिमालयी श्रृंखला को आघात नहीं पंहुचाया जा सकता है। सड़क निर्माण के लिए जरूरी पर्यावरणीय मानकों को पूरा करना और पहाड़ों की मरम्मत करके उसे मज़बूत बनाना बेहद जरूरी है। केदारनाथ आपदा से हमें यही सबक मिले थे।

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