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चौकीदार चोर है: भाग 2 - कैसे मोदी से जुड़ी एक फ़र्म ने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का पैसा गबन किया

इस तीन-भाग वाली श्रृंखला के भाग दो में बताएंगे कि कैसे मोदी सरकार ने बैंकों पर बार-बार दबाव बनाया कि वे उनके सहयोगी पूँजीपतियों को ऋण दें, सूरत-आधारित ट्रांसपोर्टर की कहानी को पीएम मोदी से जुड़ी कंपनी के रूप में पढ़ा जाए।
चौकीदार चोर है: भाग 2 - कैसे मोदी से जुड़ी एक फ़र्म ने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का पैसा गबन किया
एसवीएलएल चेयरमैन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

बैंकिंग उद्योग के एक स्रोत से प्राप्त दस्तावेज़ों के आधार पर, इस तीन-भाग की श्रृंखला में, न्यूज़क्लिक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप के तीन उदाहरणों की जांच की, जिससे सरकार के बड़े नेताओं ने बैंकों से अपने सहयोगी पूँजीपतियों ऋण दिलवाए और समय पर उनका भुगतान न किए जाने से इस तरह के ऋणों का ढेर लग गया। भाग 1 में, न्यूज़क्लिक ने इस मामले का खुलासा किया था कि कैसे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से जुड़ी एक कंपनी ने कथित तौर पर बैंक की नीतियों और पिछले फ़ैसलों का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से ऋण प्राप्त किया, और खाते को ग़ैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) या ख़राब ऋण बनने रोकने के लिए चालू होने से रोकने के लिए विभिन्न ऋण हासिल किए।

भाग 2 में, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंधित सूरत के एक ट्रांसपोर्टर की कहानी बताएंगे, जिसका कुछ भाग यहाँ पहली बार प्रकाशित हो रहा है। इसके प्रमोटर और निर्देशकों सहित कंपनी से जुड़े वरिष्ठ लोगों पर बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के साथ धोखाधड़ी और ऋण के रूप में प्राप्त धनराशि के गबन का आरोप लगाया गया था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने कंपनी के प्रमोटर और एक बैंक अधिकारी को अल्प समय गिरफ़्तार किया था। गिरफ़्तार बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र अधिकारी, जो कि संघ परिवार के एक संगठन से भी जुड़ा हुआ था, बाद में उसे बैंक द्वारा बहाल कर दिया गया था और उसे पेंशन के साथ रिटायर कर दिया गया था। उनके पुनर्स्थापन के बाद से, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के दो अध्यक्ष, जिनकी निगरानी में बैंक की आंतरिक जांच आगे बढ़ रही थी, को किसी ग़ैर-योग्य आधार पर उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया था। एक बैंकिंग सूत्र ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ये बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के निलंबित अधिकारी को बैंक द्वारा कार्रवाई से बचाने के लिए की गई थी।

मार्च 2019 तक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए जो 2014 में केवल 2 लाख करोड़ रुपये था से बढ़कर 8.96 लाख करोड़ रुपये हो गया, इस कुल राशि का 82 प्रतिशत से अधिक कॉर्पोरेट डिफ़ौल्टरों के कारण होने का अनुमान है। कॉर्पोरेट एनपीए के कुल एक तिहाई लिए केवल 40 कॉर्पोरेट समूह इसके ज़िम्मेदार हैं। 2014 और 2018 के बीच, देश के 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने इन ख़राब ऋणों का क़रीब 3.16 लाख करोड़ रुपये माफ़ किया है, और केवल 44,900 करोड़ रुपये की वसूली की है। वित्त धोखाधड़ी के 4693 मामले सामने आए हैं और इनके ज़रिये 2015-16 में 1 लाख करोड़ रूपए का गबन हुआ है। 2016-17 में यह संख्या बढ़कर 5,904 हो गई।


सिद्धि विनायक लॉजिस्टिक लिमिटेड (SVLL) ट्रांसपोर्ट कंपनी है जिसे सूरत स्थित व्यवसायी रूप चंद बैद चलाते हैं। अप्रैल 2014 में एक व्यापार से संबंधित प्रकाशन में छपी एक रिपोर्ट में इसे "देश की सबसे आगे बढ़ी हुई परिवहन कंपनियों में से एक है" का ज़िक्र किया गया था और इसे "भारतीय लोजिस्टिक/रसद की आवाजाही का चेहरा बदलने वाले कंपनी" के रूप में वर्णित किया था। कंपनी के बेड़े में 7,000 से अधिक वाणिज्यिक वाहन थी और उनकी कई महत्वाकांक्षी योजनाएँ थीं जिसके ज़रिये वे बड़े विस्तार की योजना कर रहे थे।

वर्ष 2014 में कंपनी के लिए कुछ शिखर को छूने का वर्ष था, इसके मुताबिक़ कंपनी ने वार्षिक कारोबार कुछ 1,500 करोड़ का किया था और 80 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की थी। एसवीएलएल ने घोषणा की कि वह अंतरराष्ट्रीय लक्जरी बस निर्माता, स्कैनिया के साथ समझोता कर रहा है और इसके तहत वह "इन-हाउस टॉयलेट और पैंट्रीस और निहायत-शानदार सुविधाएँ जैसे पर्सनल एलसीडी स्क्रीन, यूएसबी कॉम्पैटिबिलिटी के साथ, और सेनहाइज़र हेडफ़ोन साथ ही चार्ज करने के लिए मोबाइल/लैपटॉप पॉइंट्स और वाईफ़ाई कनेक्शन उप्लब्ध काराएगा।"
मई 2014 में, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर इंडियन प्रीमियर लीग फ्रेंचाइज़ी के लिए एक एस.वी.एल.एल. ब्रांड के लिए "एस.वी.एल.एल. कनेक्ट" को आधिकारिक परिवहन भागीदार के रूप में घोषित किया गया था। अब तक इसकी सबसे बड़ी सफ़लता तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के अभियान से जुड़ी हुई थी, उनके लिए वे 3 डी प्रोजेक्शन तकनीक से लैस विशेष वीडियो ट्रकों की आपूर्ति कर रहे थे। एस.वी.एल.एल. के ट्रकों का उपयोग करते हुए, मोदी ने अपनी छवि के होलोग्राफ़िक अनुमानों के माध्यम से एक साथ कई स्थानों पर अभियान रैलियों को सम्बोधित कर दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था।

हालांकि बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ, इसी दौरान, एसवाईएलएल पर अपने बैंकरों से बढ़ते क़र्ज़ के बोझ को कम करने का दबाव शुरू हो गया था। अन्ततः फ़रवरी 2015 में यह बांध उस वक़्त टूट गया, जब कंपनी में गिरावट शुरू हुई। इंडिया टुडे द्वारा 2 फ़रवरी, 2015 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि एसवाईएलएल बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का सबसे बड़ा डिफ़ौल्टर है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि बैंक के पास कई अनियमितताओं की जानकारी होने के बावजूद, बैंक के वरिष्ठ प्रबंधन ने कंपनी के ऋण के खातों को एनपीए के रूप में टैग करने और कंपनी के प्रबंधन को स्वेच्छा से डिफ़ौल्टर्स घोषित होने से बचा लिया था। उस रिपोर्ट के बाद, जल्दबाज़ी में बुलाई गई बोर्ड मीटिंग में, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र प्रबंधन ने एसवाईएलएल के कुछ ऋण खातों को एनपीए घोषित कर दिया और कंपनी के वित्त के साथ-साथ क़ानूनी और रिकवरी कार्रवाई का फोरेंसिक ऑडिट प्रस्तावित किया। इंडिया टुडे की फॉलो-अप रिपोर्ट में कहा गया है कि सीबीआई ने कंपनी की विचारशील जांच शुरू कर दी थी।

मार्च 2015 में, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र ने एसवीएलएल को ऋण देने से जुड़े तीन वरिष्ठ अधिकारियों को कथित तौर पर बैंकिंग दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए निलंबित कर दिया था। तीन अधिकारियो में पीएन देशपांडे जो महाप्रबंधक थे, और जिनके ज़िम्मे संसाधन नियोजन, सरकारी व्यवसाय, विपणन और प्रचार, एबीसी, सीपीओ और एसएलबीसी पोर्टफ़ोलियो थे, राजेश एम जैन, बैंक की कोलकाता परिसंपत्ति वसूली शाखा में सहायक महाप्रबंधक थे, और एएम मेनन, बैंक की अमरावती शाखा में सहायक महाप्रबंधक थे। इन तीनों को बैंक अधिकारियों को तब तक निलंबित रहना था जब तक कि बैंक अपनी आंतरिक जांच पुरी नहीं कर लेता।

अप्रैल 2015 में, बैंक ने सीबीआई के समक्ष शिकायत दर्ज की, और अगस्त 2015 में, केंद्रीय एजेंसी ने पुणे में एसवीएलएल और बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के कार्यालयों पर छापे मारे, और इसके प्रमोटर रोहन चंद बैद समेत एसवीएलएल के पांच निदेशकों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। कंपनी का वित्त फ़ोरेंसिक ऑडिट सितंबर 2015 तक पूरा हो गया था।

हालांकि, अप्रैल 2016 में, हिंदू ने बताया कि बर्खास्त किए गए तीन अधिकारियों में से दो को बहाल कर दिया गया था। इसके तुरंत बाद, सितंबर 2016 में, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (CMD) सुशील मुनोट को रिटायर होने के चार दिन पहले बर्खास्त कर दिया गया था। चूंकि सीएमडी मुन्नोट देशपांडे के निलंबन के लिए जिम्मेदार थे, और उन्होंने उनके ख़िलाफ़ तीन कारण बताओ नोटिस जारी किए थे। उनकी बर्खास्तगी इस आधार पर की गई थी कि उन्होंने पुणे और मुंबई में दो सरकारी स्वीकृत घरों पर क़ब्ज़ा किया हुआ था। हालांकि यह एक तकनीकी उल्लंघन हो सकता है, जबकि यह वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के मामले में एक सामान्य घटना है, लेकिन शायद ही ऐसा मामला एक दम बर्खास्तगी का बनता है, बल्कि यह आमतौर पर ऐसा मामला अक्सर "हल्की चेतावनी" का बनता है। मीडिया रिपोर्टों में इसके लिए "दुर्लभ" और "अभूतपूर्व" शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, जबकि एक रिपोर्ट में इसे "तुच्छ मुद्दा" कहा गया था। उस पर अपनी बर्खास्तगी का वर्णन करने के लिए हिंदू बिज़नेस लाइन ने बताया था कि "राजनीतिक दबाव ने वित्त मंत्रालय को मुनोट को हटाने के लिए प्रेरित किया होगा।"

जुलाई 2017 में, बैद और बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के अफ़सर पी.एन. देशपांडे को सी.बी.आई. ने गिरफ़्तार किया था। देशपांडे उन बैंक अधिकारियों में से एक थे जिन्हें 2015 में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र द्वारा निलंबित कर दिया गया था, हालांकि एक साल बाद उनका निलंबन वापस ले लिया गया था। यह व्यक्ति हमारी कहानी के केंद्रीय पात्रों में से एक है।

इसलिये एक साल से भी कम समय में, 20 जून, 2018 को, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में सीएमडी के रूप में मुह्नोट के स्थान पर जिन्हें लाया गया था, उन रविन्द्र मराठे को पुणे पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था, साथ ही साथ मुह्नोट और कुछ अन्य बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र अधिकारियों को एक रियल एस्टेट डेवलपर से संबंधित एक अलग मामले से संबंधित आरोपों पर गिरफ़्तार कर लिया गया था। इसके कारण एक और उथल-पुथल हुई और इसे " "बेईमानी का खेल" और "राजनीतिक मक़सद" से की गई कार्यवाही का आरोप एक अनाम बैंक के सीईओ द्वारा इकोनॉमिक टाइम्स में छपा। रिपोर्ट में बताया गया कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई असामान्य थी क्योंकि "यह एक ऐसा कोई अग्रणी बैंक भी नहीं था जो रियल एस्टेट डेवलपर को धन देता था ... और वह इसमें जांच में सहयोग कर रहा था।" लाइवमिंट ने एक अनाम वित्त मंत्रालय के अधिकारी को उद्धृत करते हुए कहा  कि "यह हमारे जैसे एक विशाल देश में एक मतिभ्रंश है। सामान्य मामले में, राज्य पुलिस का केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर कोई अधिकार नहीं है। यदि केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की जानी है तो उसके लिए एक उचित व्यवस्था है। राज्य को इसे सीबीआई को संदर्भित करना चाहिए। "यहाँ तक ​​कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गिरफ़्तारी का हवाला देते हुए कहा कि "अगर राज्य पुलिस को खुली छूट दी गई है तो बैंकरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की अनुमति दी गई है, तो इससे संघीय ढांचा कमज़ोर हो सकता है।"

श्रमिक और मालिकों की प्रबंधन एकता के एक दुर्लभ और संभवतः अभूतपूर्व उदाहरण में, कई बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र की कर्मचारी यूनियनों ने मिलकर "यूनाइटेड फ़ोरम बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र यूनियन्स" नामक एक मोर्चा बनाया और मराठे के समर्थन में आवाज़ उठाते हुए कहा कि वह पुणे पुलिस द्वारा मराठे की गिरफ़्तारी बैंक को बदनाम करने की सोची-समझी साज़िश है। मराठे को उनकी गिरफ़्तारी के आठ दिन बाद, 28 जून को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था और अगले दिन बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के बोर्ड द्वारा उन्हें तुरंत निलंबित कर दिया गया था।

इस हंगामे की ज़रूरत नहीं थी। महीनों की जांच के बाद, 21 अक्टूबर 2018 को पूणे पोलिके ने क्लोज़र रपट दाख़िल कर दी। “हमने क्लोज़र रपट सी.आर.पी.सी. की धारा 169 के तहत दाख़िल कर दी क्योंकि हमें तीन बैंक अफ़सरों के विरुद्ध कोई सबुत नहीं मिले हैं,” पूणे पुलिस कमिशनर के. वेंकेतेशम ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया। और साथ ही उन्हे 3 नवंबर 2018 को उनके पदों पर वापस बहाल कर दिया गया था। एक महीने बाद, दिसंबर में, मराठे को पेंशनशुदा रिटायर कर दिया गया। देश्पांदे के ख़िलाफ़ फिर केस आगे नहीं बढ़ा और उन्हे भी पेंशनशुदा रिटायर कर दिया गया। 
अपने पहचान छिपाने की शर्त पर एक बैंक अधिकारी ने न्युजक्लिक से विस्तार से चर्चा की और मुन्होत और मराठे के विरुद्ध कार्यवाही की पीछे की कहानी बतायी और विभिन्न दस्तावेज़ भी साझा किए। स्रोत के मुताबिक़, एस.वी.एल.एल. और ताकतवर राजनेताओं के गठजोड़ से जुड़े बैद और देशपांडे ने मुन्होत और मराठे की गिरफ़्तारी और फिर उनके निलंबन की कार्यवाही पर काफ़ी असर डाला। बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के मुख्य प्रबंध निदेशक होने के नाते वे अनुशासनतमक अधिकारी थे और जिनकी देख-रेख में देशपांडे के व्यवहार और उनके द्वारा एस.वी.एल.एल. क़र्ज़ मुहैया करवाने और अन्य आरोपों पर जांच चल रही थी। उनकी गिरफ़्तारी और उनके ख़िलाफ़ की गई अन्य कार्यवाही, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में देशपांडे के ख़िलाफ़ आगे बढ़ने में नाकामयाब रही।

चालक से मालिक 

वर्ष 2012 में एस.वी.एल.एल. ने एक सी.एस.आर. योजना लागू की जिसे ‘चालक से मालिक’ कहा गया। कंपनी ने कहा कि वह अपने ट्रकों (नए और पुराने) की मालिकाना अधिकारों को आहिस्ता आहिस्ता उनके चालकों के नाम कर देगी, जो बाद में उप-ठेकेदार के रूप में काम करेंगे और कंपनी को अपनी सेवाएँ बेंचेंगे। शुरुआत में कंपनी पहले चालक के नम पर क़र्ज़ लेगी और उसकी महीनावार किश्त (हर महीने की एक बराबर किश्त) उस पैसे में से भरेगी जो चालक को कंपनी द्वारा अदा किया जाना है। एक बार जब पूरी राशि अदा कर दी जाएगी तो ट्रक का मालिकाना हक़ चालक को दे दिया जाएगा। यह तय पाया गया कि इस योजना के वित्तपोषण की ज़िम्मेदारी बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र की होगी।.

2015 की शुरुआत में कंपनी के बारे में मीडिया रिपोर्टों आने के बाद, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र ने आदेश दिया कि कंपनी को दिए गए क़र्ज़ के संबंध में एक फ़ोरेंसिक ऑडिट किया जाए। एक आज़ाद फ़र्म ने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के लिए किए इस फ़ोरेंसिक ऑडिट का आंतरिक विवरण जिसे सितंबर 2015 में ख़त्म कर दिया गया था के दस्तावेज़ न्यूज़क्लिक के पास हैं। पुणे में इसकी डेक्कन जिमखाना शाखा ने कुल 798.4 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया जिसमें से 160 करोड़ रुपये का टर्म ऋण नए ट्रक खरीदने के लिए दिया गया और 638.4 करोड़ रुपये का क़र्ज़ एस.वी.एल.एल. के चालकों को 1150 नए ट्रक ख़रीदने के लिए दिया गया और 1,152 कंपनी के पुराने ट्रक ख़रीदने के लिए। पुणे बैंक की मॉडल कॉलोनी शाखा ने एसवीएलएल के ड्राइवरों को ऋण में 99.85 करोड़ रुपये दिए। सूरत में बैंक की रिंग रोड शाखा ने कार्यशील पूंजी के रूप में 35 करोड़ रुपये दिए।

फ़ोरेंसिक ऑडिट में पाया गया कि दिए गए क़र्ज़ का ज़्यादातर "ग़लत इस्तेमाल" हुआ है। यह पाया गया कि क़रीब 252.06 करोड़ रुपये की राशि उनके अपने आपूर्तिकर्ताओं से वापस एस.वी.एल.एल. में आ गयी थी। आगे फिर 296.25 करोड़ रुपये का धन ऐसा पाया गया जिसे "संभावित दुरुपयोग" के रूप में वर्गीकृत किया गया, जबकि ऋण के अंतिम लाभार्थी को 81.53 करोड़ रुपये के लिए सत्यापित नहीं किया जा सका। बैंक ऑफ महाराष्ट्र द्वारा दिए गए 933.25 करोड़ रुपये में से कुल 629.84 करोड़ रुपये का इस प्रकार ग़लत इस्तेमाल किया गया।

मार्च 2015 में, ब्याज़ की दरों में बढ़ोतरी के बाद, ऑडिट में पाया गया कि बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र का बकाया 839.70 करोड़ रुपये था।
इस बीच, ट्रकों को ड्राइवरों को हस्तांतरित नहीं किया गया था, जैसा कि एसवाईएलएल ने वादा किया था। अगस्त 2015 में जब सीबीआई ने छापेमारी की थी, तो कहा गया था कि कई उदाहरणों में, वाहन अन्य ऋणदाताओं के नकली नाम थे। कई उदाहरणों में, नए वाहनों के पंजीकरण दस्तावेज़ बैंक को जमा नहीं किए गए थे, और कई अन्य उदाहरणों में, पुराने वाहनों को ही नए के रूप में पारित कर दिया गया था। इस लेख से जुड़ी रिपोर्टों में धोखाधड़ी के बारे में कई और जानकारी देने वाले विवरण पहले ही सामने आ चुके हैं।

यह सिर्फ़ कंपनी नहीं थी बल्कि उद्योगपतियों का बैंक के साथ धोखाधड़ी का यह ऐसा मामला था जिसे बेंकर्स के शामिल हुए बिना अंजाम दिया गया था। मीडिया एक्सपोज़र से जांच तेज़ हो गई, इसलिए कुछ बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई। इस विषय पर पहली इंडिया टुडे की रिपोर्ट ने नोट किया कि बैंक की आंतरिक जांच ने पाया कि बोर्ड द्वारा अनुमोदित क्रेडिट नीति के तहत परिभाषित समूह के संपर्क के बारे में अपनी स्वयं की क्रेडिट नीति का उल्लंघन करते हुए, [बैंकों के] ज़ोनल अधिकारियों ने इस विशाल एक्सपोज़र के संबंध में हेड ऑफ़िस की सहमति नहीं ली थी।
सार्वजनिक पर्दाफाश से पहले, बैंक ने एस.वी.एल.एल. के अनुरोध पर एस.वी.एल.एल. के ऋणों के पुनर्गठन करने का भी प्रयास किया था। ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स (OBC), एक स्टॉक ऑडिट और तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन के नेतृत्व में 2014 में एक संयुक्त ऋणदाता फोरम (JLF) का गठन किया गया था और 9 दिसंबर, 2014 को JLF द्वारा पुनर्गठन प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी गई थी। इसके बाद, प्रस्ताव को ओबीसी द्वारा गठित एक स्वतंत्र मूल्यांकन समिति को सौंप दिया गया, जिसने पुनर्गठन योजना को आगे बढ़ाने के लिए सिफ़ारिशें तैयार कीं। तृतीय-पक्ष फर्म द्वारा संचालित तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन की प्रतियाँ, और मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट, न्यूज़क्लिक के पास हैं।

मोदी के संबन्ध का हुआ खुलासा 
2016 में नई घटनाएँ घटीं

2016 की शुरुआत में, इस बात की आशंकाएँ बढ़ने लगी थीं कि एसवाईएलएल मामले में "बाहरी दबाव" और राजनीतिक हस्तक्षेप काम कर रहा था। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, के वी चौधरी को सौंपी गई शिकायत में, 23 फ़रवरी, 2016 को देशपांडे से जुड़े एक अन्य मामले में, जो न्यूज़क्लिक के पास है, एसवाईएलएल मामले में एक संदर्भ किया गया है। उस शिकायत में आरोप लगाया गया है कि "आंतरिक BoM चार्जशीट एसवीएलएल और समूह की कंपनियाँ शायद बाहरी दबाव के कारण लंबित हैं।" देशपांडे ने ज़ोनल मैनेजर के पद पर रहते हुए ऋण से संबंधित आवेदन को मंजूरी दी थी। 2012 में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के अहमदाबाद ज़ोन में कंपनियों के एक समूह के बारे में इस शिकायत के साथ-साथ सीबीआई द्वारा एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई। हम इस लेख के अगले भाग में इस पर लौटेंगे।

इसके तुरंत बाद, 20 अप्रैल, 2016 को द हिंदू की रिपोर्ट से पता चला कि बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र के तीन निलंबित अधिकारियों में से दो को बहाल कर दिया गया है। उस स्तर पर, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने जेटली को पत्र लिखकर मामले को उजागर किया था। 23 अप्रैल, 2016 को सिंह के पत्र को, एस.वी.एल.एल. प्रमोटर बैद के प्रधान मंत्री मोदी के साथ संबंध के सबूत के रूप में जोड़ा गया।

स्क्रॉल.इन द्वारा पहले सबूत के दो मुख्य अंश को रिपोर्ट किया गया था, जो अब न्यूज़क्लिक के पास भी हैं। पहला 11 जून 2014 को लिखा गया एक पत्र था, जिसे बैद ने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र द्वारा लिखा था, ज़ाहिर तौर पर बैंक द्वारा उठाए गई चिंताओं का जवाब था। इसमें, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र की डेक्कन जिमखाना शाखा में सहायक महाप्रबंधक को संबोधित करते हुए, बैद ने दावा किया कि वह 3डी अभियान के लिए अति विशिष्ट वाहनों की तैयारी जिन्हे नरेंद्रभाई मोदी (अब भारत के माननीय प्रधानमंत्री) और उनकी टीम के अभियान की तैयारे में व्यस्त बताया था। बैद ने लिखा “यह हमारे निचले रैंक के कर्मचारियों द्वारा वाहनों के हस्तांतरण के बारे में बैंक को ग़लत रिपोर्टिंग के परिणामस्वरूप हुआ।” बाद के एक पत्र में, जिसे 16 सितंबर 2014 को लिखा गया था जिसमें बैद ने इस बार प्रधान मंत्री से अपनी कंपनी को प्राप्त पत्र की एक प्रति अग्रेषित करते हुए प्रधान मंत्री के प्रति अपनी निकटता को दर्शाया था और कहा कि प्रधान मंत्री ने कंपनी को "ड्राइवर्स डे" के रूप में मनाने के लिए बधाई दी थी, एक उत्सव जो कंपनी ने शुरू किया था और और जिसे वह लोकप्रिय बनाने की इच्छा रखती थी।

कंपनी की वेबसाइट पर, मोदी और बैद की एक तस्वीर हुआ करती थी। अब यह अधिक उपलब्ध नहीं है, क्योंकि कंपनी की वेबसाइट पर क़ब्ज़ा लिया गया है और सभी सामग्री को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के समक्ष दिवालिया होने की कार्यवाही के बाद परिसमापन नोटिस द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
सिंह के पत्र में यह भी आरोप लगाया गया कि देशपांडे के संघ परिवार से संबंध थे। देशपांडे, जो 1978 में बैंक ऑफ महाराष्ट्र में शामिल हुए, 1981 में एक अधिकारी बने, और तब से राष्ट्रीय बैंक अधिकारियों के संगठन एक कार्यकर्ता बन गए, यह संगठन भारतीय मजदूर संघ से संबंधित है जो - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-से संबद्ध ट्रेड युनियन हैं।

देशपांडे पुणे क्षेत्रीय ज़ोनल हेड के रूप में काम करते हुए, ऐसे अधिकारी थे, जिन्होंने एसवाईएलएल और उसके सहयोगियों को चालाक से मालिक योजना के लिए ऋण स्वीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह खुलासा ने इस सुझाव को मज़बूती दी कि, पहली बार जब 2015 में इंडिया टुडे रपट में बताया गया कि बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र को धोखा देने में शामिल व्यक्तियों की सांठगांठ को सत्तारूढ़ दल के साथ निकटता से जोड़ा गया था। इसके पहले लेख में बैंक ऑफ महाराष्ट्र के सूत्रों के हवाले से लिखा गया था कि "एस.वी.एल.एल. के वरिष्ठ अधिकारी हमेशा राज्य के गुजरात सत्तारूढ़ दल और कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ राजनीतिक संबंधों को बढ़ावा देते रहे हैं।"

अहमदाबाद केस 

एसवीएलएल मामला केवल एक मामला नहीं है जिसमें पी एन देशपांडे को बैंक को धोखा देने की योजना से जोड़ा गया है। नवंबर 2016 में, सीबीआई ने गुजरात के पाटन में स्थित तीन कंपनियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की, जो अहमदाबाद स्थित अरविंद श्रीमल जैन नामक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से जुड़ी थी। प्राथमिकी अहमदाबाद में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र की आश्रम रोड शाखा को धोखा देने की योजना से संबंधित है और बैंक को 9.15 करोड़ रुपये के नुकसान का दावा करती है।

एफ़आईआर, जिसकी एक प्रति सीबीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध है, मामले का विवरण देती है। 2012 में, जैन ने आशीषकुमार रतिलाल सोनी का बैंक से परिचय कराया था, जिसमें सोनी ने विभिन्न व्यक्तियों और कंपनियों के नाम पर ऋण की मांग की थी, जिसमें व्यवसायिक रूप से कपास और उपोत्पादों का प्रसंस्करण शामिल था। इसमें शामिल कंपनियों का नाम आशापुरा कॉटन इंडस्ट्रीज, सोनी कॉटन इंडस्ट्रीज, उमंग स्टील, नारनदेवी कॉटन इंडस्ट्रीज़, साईनाथ कॉटन इंडस्ट्रीज़ और शिवकृपा कॉटन इंडस्ट्रीज़ था। सामूहिक रूप से, 2012 में, छह कंपनियों को 31.4 करोड़ रुपये के ऋण स्वीकृत किया गया था। इन सभी को अगस्त 2013 से जनवरी 2014 के बीच एनपीए घोषित कर दिया गया था।

एफ़आईआर मोडस ऑपरेंडी (जुर्म करने का तरीक़ा) का वर्णन इस प्रकार करती है: सोनी "मशीनरी की दरों की तालिका जारी करेगा", जैन "ऋण दस्तावेज़ तैयार करने में सहायता करेगा" और मयूर जी शाह, एक तीसरा नाम "प्रतिभूति के रूप में पेश की जाने वाली संपत्तियों के अत्यधिक दाम को पेश करेगा।" "एक बार ऋण स्वीकृत हो जाने के बाद," उन दरों के अनुसार नई और उचित मशीनों की आपूर्ति नहीं की गई और कभी भी कोई उत्पादन नहीं हुआ। इसमें कहा गया है कि "सभी मामलों में मुख्य अभियुक्तों की भूमिका नज़र आई है और खातों में अंतर-फ़र्म लेनदेन हुआ है।”

देशपांडे उस समय अहमदाबाद ज़ोन के ज़ोनल हेड थे और उन्होंने इन ऋणों को मंजूरी दी थी। सी.वी.सी. को सौंपी गई शिकायत में उपरोक्त उल्लेख किया गया है कि बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र प्रबंधन ने "निहित स्वार्थ हितों की रक्षा और लाभ में सभी सीमाएँ पार कर दी थीं, जब बैंक ने साईनाथ कॉटन इंडस्ट्रीज़ और शिवकृपा कॉटन इंडस्ट्रीज़ की वित्तीय परिसंपत्तियों को बेचने का फ़ैसला किया था।" बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र शाखा प्रमुख को शिकायत में जिनके बैंकों के पास ये खाते थे, वे बैंक आरोपी व्यक्तियों से बकाया राशि वसूलने की प्रक्रिया में थे, जिन्होंने ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के समक्ष वाद दायर किया हुआ था और संपत्ति बेचने के इस फ़ैसले के बाद अपने पक्ष में आदेश प्राप्त किए थे। यह तब हुआ जब एक परिसंपत्ति वसूली कंपनी को बेचने का आदेश हुआ था।
सी.वी.सी. को शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि CBI के लिए एक शिकायत का मसौदा जून 2015 में तैयार किया गया था, और उसे बैंक के सतर्कता अधिकारी को भी प्रस्तुत किया गया था, लेकिन उसे अभी तक सी.बी.आई. को नहीं भेजा गया था। शिकायत ने ईमेल के एक अनुक्रम के साक्ष्य को और साथ ही एक सबूतो का पुलिंदा उन्हे जमा किया गया था वह भी अक्टूबर 2014 में तब से इस धोखाधड़ी के बारे में जानकारी होने के बावजुद कोई कार्रवाई नहीं की गयी। शिकायत ने दावा किया कि "स्टाफ़ जवाबदेही प्रक्रिया के साथ समझौता किया गया था और सीवीसी के हस्तक्षेप की मांग की गयी थी।" यह इस पृष्ठभूमि में था कि शिकायत एसवाईएलएल मामले को भी सामने ले आयी, क्योंकि देशपांडे एक अन्य मामले से भे जुड़े थे, और जो शिकायत के दृष्टिकोण में बैंक की ओर से कार्रवाई को देख रहा था।

केस आख़िर कहाँ जा रहा है?

24 फ़रवरी, 2018 को सीबीआई ने एसवीएलएल के ख़िलाफ़ अपनी जांच का आरोप पत्र दायर किया। इसमें आरोप लगाया गया कि बैंक ऑफ़ बड़ौदा, ओबीसी और इंडियन ओवरसीज़ बैंक सहित तीन अन्य मामलों में, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र मामले के साथ, कंपनी ने चालक से मालिक योजना के नाम पर लिए गए ऋण में 2,000 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी की थी। एक अन्य कार्रवाई में, प्रवर्तन निदेशालय, जिसने शेल कंपनियों और संबंधित-पार्टी के लेनदेन के माध्यम से एसवाईएलएल ऋणों की मनी लॉन्ड्रिंग में नवंबर 2016 में एक अंतरिम रुप से जांच शुरू की थी, ने जून 2017 में कंपनी के 19.62 करोड़ रुपये और सम्पत्ति को संलग्न किया था और इससे जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की थी। संपत्तियों में दो होटल, कई फ़्लैट, कार्यालय और दुकानें, चार लग्ज़री कारें और बैंक खाते शामिल हैं। सितंबर 2018 में, सीबीआई ने एस.वी.एल.एल के लिए एक और एफआईआर दर्ज की - इस बार पीड़ित बैंक ऑफ़ इंडिया था और संबंधित राशि 43 करोड़ रुपये थी।

एस.वी.एल.एल. को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के समक्ष दिवालिया होने के लिए मजबूर किया गया, और कंपनी को विघटन परिसमापन का सामना करना पड़ रहा है। यह देखा जाना है कि विघटन के ज़रिये बिक्री के माध्यम से बैंक के खोए हुए धन की कितनी वसूली होगी।
इस बीच, देशपांडे को पेंशनशुदा रिटायर करने से पहले बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र द्वारा लगभग पूरी तरह से बहाल कर दिया गया था। क्या यह उनकी तरफ़ से राजनीतिक हस्तक्षेप का परिणाम है यह साबित करना असंभव है। दूसरी तरफ़, उन दो अध्यक्षों पर अंकुश लगा दिया था, जो देशपांडे के कृत्यों की आंतरिक को आगे बढ़ाने बढ़ने वाले थे, जो आगे नहीं बढ़ सके।

बहरहाल, घटनाओं के साक्ष्य और अनुक्रम से यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल हो जाता है कि यह एक राजनीतिक रूप से जुड़े समूह का मामला है, जिसने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से पैसा गबन किया है, जिसका अधिकांश हिस्सा जनता की नज़रों में हमेशा के लिए ख़त्म हो गया हैं, जिनके पैसे का नुकसान पूरे एनपीए घोटाले की शक्ल में याद किया जाएगा।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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