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...पता चला कि सांप्रदायिकता का ज़हर लोगों में कितना गहरा उतर गया है!

फिर वो हुआ जो पहले सुना था, देखा कभी नहीं था। दंगाई फल लूट कर लाते और पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों को खिलाने लगे। यहाँ पता चला कम्प्लिसिटी (Complicity) क्या होती है। फिर कुछ पुलिस वालों के पास गया तो पता चला सांप्रदायिकता इनमें कितनी गहरी उतर चुकी है।
Delhi Violence

(न्यूज़क्लिक के रिपोर्टर रवि कौशल ने सोमवार, 24 फरवरी को दिल्ली की हिंसा को बेहद क़रीब से देखा। वे कुछ पीड़ितों के घर भी गए। जब तक वे घर लौटे आधी रात हो चुकी थी। लेकिन उनकी आँखों में नींद नहीं थी। उन्होंने रात करीब एक बजे सोशल मीडिया पर  पोस्ट लिखकर अपने अनुभव साझा किए। कुछ नई जानकारियों के साथ उनकी यह पोस्ट आपके लिए)

अभी अभी उत्तर पूर्वी दिल्ली के चाँद बाग़ से आ रहा हूँ। दिमाग़ कुछ ख़ाली सा हो गया है। सुबह ऑफ़िस में था जब कुछ कॉल आने शुरू हुए कि चाँद बाग़ में हालात ख़राब होने वाले हैं। दंगाइयों की एक भीड़ चाँदबाग़ के धरना स्थल की ओर बढ़ रही है। पहले लगा कि शायद अफ़वाह है। फिर एक साथ कई फ़ोन आए कि जल्दी आइए। मैं ऑफ़िस से निकला और कश्मीरी गेट पहुँचकर बाहर निकला ही था कि पता चला मुस्लिम समाज का एक ख़ास जलसा चल रहा है। इसे इस्तेमा कहा जाता है। हज़ारों लोग पैदल ही अपने अपने घरों को जा रहे थे। 

जब गाड़ी शास्त्री पार्क की ओर बढ़ी, तो आसमान में धुएँ का एक ग़ुबार उठता दिखा। पहले लगा कहीं आग लगी हुई है। किसी तरह खज़ूरी पहुँचा। खज़ूरी चौक पर एक हिंसक भीड़ कुछ दुकाने तोड़ रही थी। फिर भड़काऊ नारे लगने शुरू हुए। इसी बीच थोड़ा आगे बढ़ा तो पाया कि एक लड़का अपने परिचितों को समझा रहा था कि सामने से जाने के बजाय गलियों में से जाना आगे हालात ख़राब है।

थोड़ा पैदल चलने के बाद स्पष्ट हुआ कि एक कोने की दुकान में आग लगा दी गयी है। धुआँ धू धू कर उठ रहा था। चौक के सामने से लगातार पत्थर चल रहे थे। इसी बीच पाया कि कुछ दंगाई दूसरी दूकानों में आग लगा रहे थे। इन दंगाइयों की उम्र 14 से 18 साल होगी। मैंने कोशिश की कि कुछ वीडियो लूँ। अचानक एक दंगाई मेरी तरफ़ लपका और बोला वीडियो डिलीट कर वरना अंजाम ठीक नहीं होगा। मैं पीछे की तरफ़ भागा। इसी बीच दंगाई फलों की रेहड़ियां लूटते रहे।

फिर वो हुआ जो पहले सुना थादेखा कभी नहीं था। दंगाई फल लूट कर लाते और पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों को खिलाने लगे।

यहाँ पता चला कम्प्लिसिटी (Complicity) क्या होती है। फिर कुछ पुलिस वालों के पास गया तो पता चला सांप्रदायिकता इनमें कितनी गहरी उतर चुकी है। एक पुलिस वाला कहता कि अगर ये दंगाई न होते तो सामने वाले दंगाई उन्हें मार देते।

इसी बीच दिल्ली फ़ायर सर्विस की एक गाड़ी काफ़ी देर बाद आई। इसके कर्मचारियों ने आग बुझाने की नाकाम कोशिश की। इतने में दिल्ली पुलिस की अतिरिक्त टुकड़ी पहुँची। लेकिन दंगा बदस्तूर जारी रहा। थोड़ी देर बाद दंगाइयों को पीछे धकेला गया। इससे पहले कोने की दुकान बालाजी स्वीट्स में आग लगाई जा चुकी थी। इसी दुकान के सामने आज़ाद चिकन कॉर्नर धू धू कर जल रहा था। चौक पर एक मज़ार है। नाम पता नहीं किसकी। ये भी आग के हवाले थी । इसी बीच पुलिस ने किसी को दबोचा ही था कि मेरा साथी शूट करने के लिए दौड़ा। 

पुलिस की गिरफ़्त में इस आदमी को कई लोगों ने घेर लिया और मारने लगे। शूट चल ही रहा था कि मेरे साथी पर एक लाठी से हमला हुआ। हम सन्न रह गए। मैंने मेरे साथी को पीछे किया। थोड़ी देर बाद पता चला कि इंडियन ऑइल का पेट्रोल पंप। मारुति सुज़ुकी का शो रूम को आग के हवाले किया जा चुका था।

हम बड़ी हिम्मत करके आगे बढ़े तो पाया कि चाँद बाग़ के धरना स्थल आग में ख़त्म हो चुका था। जब हम अंदर की तरफ़ बढ़े तो एक लड़के ने बताया कि एक गर्भवती महिला के साथ मार पीट हुई है। जब हम घर पहुँचे तो पाया कि इनके सर पर गहरी चोट थी। इनके बाँह और बाक़ी अंगों पर बेंत के निशान थे। महिला बता रही थी कि दंगाइयों ने उनका सर कुचलने की कोशिश की। हम आगे निकले तो जगह जगह हमें रोक कर पहचान पत्र जाँचा गया, कहा गया कि सच्ची ख़बर दिखाना। 

इसी बीच किसी ने बताया कि मुस्तफ़ाबाद में एक लड़के के गोली लगने से मौत हो चुकी है। जब हम इस लड़के के घर पहुँचे तो पूरा परिवार बिलख कर रो रहा था। ये लड़का ऑटो चलाता था। दो महीने पहले ही इसकी शादी हुई थी। इस्तेमा के बाद घर आ रहा था जब इसको गोली मार दी गई। इस लड़के का भाई जिसकी उम्र दस साल होगी रो रोकर एक सवाल पूछना चाहता है। “वो मेरे भाई से क्या लेना चाहते है।”

यहाँ से आगे बढ़े तो पता चला कि इलाक़े के सारे छोटे अस्पताल घायलों से पटे पड़े है। हम मदीना चेरिटबल अस्पताल पहुँचे तो एक आदमी मिले उन्होंने बताया कि पुलिस ने इन्हें इतनी बुरी तरह से मारा की इनकी एक आँख चली गई है। एक डॉक्टर ने बताया कि उनके पास 40 से ज़्यादा घायल आए थे। उन्होंने कहा आप आगे जाइए अल हिंद हॉस्पिटल। वहाँ कुछ लोग मिलेंगे। हम यहाँ पहुँचे तो लोग आरोप लगाने लगे पुलिस एम्बुलेंस को आने नहीं दे रही है। घायल लोग अपने मोटर साइकिल पर ही अस्पताल जा रहे थे। हम अंदर गए तो एक डॉक्टर ने एक आदमी का अंगूठा दिखाया। ये उसके हाथ से अलग हो चुका था। 

शूट करके हम बचते बचाते इस इलाक़े से निकले। दंगाई अभी अभी सड़क पर थे। हालाँकि अब संख्या कम थी। थोड़ा चलने के बाद एक ऑटो वाला मिला। ये शेयर ऑटो था जिसमें पाँच लोग बैठे। इसमें बैठा एक आदमी कुछ कुछ बोलने लगा। हम सुनते रहे। पता चला कि सांप्रदायिकता का ज़हर लोगों में कितना गहरा उतर गया है। ये अब पीढ़ियों तक रिस रिस कर जाएगा। कश्मीरी गेट उतरने पर मैं और मेरे साथी निशब्द और ख़ाली हो चुके थे

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