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गूगल टीम को क्वांटम कंप्यूटर के पहले रासायनिक अनुरूपण (सिमुलेशन) में मिली कामयाबी

साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ डायजीन अणु के रासायनिक अनुरूपण (सिमुलेशन) करने से एक परिवर्तित कॉन्फिगरेशन सामने आ रही है।
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गूगल की ओर से एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) क्वांटम टीम में काम करने वाले दल ने पहली बार किसी क्वांटम कंप्यूटर पर एक पूर्ण रासायनिक अनुरूपण (सिमुलेशन) में सफलता हासिल करने की सूचना दी है। यह टीम गूगल के क्वांटम कंप्यूटर, सिकामोर पर रासायनिक अनुरूपण संपन्न करने में सफल रही है। साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ डायजीन अणु की प्रतिक्रिया के नतीजे के तौर पर रासायनिक अनुरूपण से एक परिवर्तित कॉन्फिगरेशन निकल कर आ रही है।

इस प्रयोग में कठिन पहलू यह सुनिश्चित करने को लेकर था कि परिणाम सटीक साबित हों। क्वांटम कंप्यूटर में त्रुटियों की संभावना भारी मात्रा में बनी रहती है, इसलिए इसके सत्यापन को लेकर भी चुनौती बनी हुई थी। इसे संभव बनाने के लिए टीम की ओर से क्वांटम कंप्यूटिंग सुविधा को पारम्परिक कंप्यूटर के साथ अटैच कर दिया गया था, वही कम्प्यूटर जिन्हें हम अपने दिन-प्रतिदिन के काम-काज में इस्तेमाल में लाते हैं। इसमें पारम्परिक कंप्यूटिंग का इस्तेमाल सिकामोर क्वांटम कंप्यूटर द्वारा मुहैय्या कराये गए परिणामों के विश्लेषण करने के लिए किया गया था। इसके बाद इसमें नए मापदंडों को जोड़ा गया और इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया गया, जब तक कि क्वांटम कंप्यूटर ने न्यूनतम मूल्य निकालकर नहीं दिए। इसके अलावा टीम की ओर से क्वांटम कंप्यूटर द्वारा उत्पादित परिणामों के विश्लेषण के बाद इसमें जो भी त्रुटियाँ रह गई थीं उन्हें दुरुस्त करने के लिए जाँच की अन्य पद्धतियों को भी इस्तेमाल में लाया गया था।

अनुरूपण (सिमुलेशन) क्या है, इसे समझने के लिए हमें सबसे पहले इस बात को जानने की जरूरत है कि कैसे एक डायजीन अणु अपनी बनावट में बदलाव की प्रक्रिया से गुजरता है, जिसे तकनीकी तौर पर अणु के समावयवीकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसके विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए, जैसे कि डायज़ीन अणु के एंगल, प्लानारिटी इत्यादि में अनुकूलित परिवर्तनों के दौर से गुजरते हुए अनुरूपण तकनीक को उपयोग में लाया जा सकता है।

 मान लीजिए कि अपने प्रारंभिक समय में, जैसे कि इसे टी1 कह सकते हैं, परमाणुओं के बीच में विशिष्ट कोणों के साथ अणु एक विशिष्ट तौर पर अनुकूलित अवस्था में मौजूद रहता है। कुछ समय के बाद जब हाइड्रोजन परमाणु जैसे अन्य परमाणुओं के साथ अणु की प्रतिक्रिया शुरू होने लगती है तो इसके चलते अंततः इसकी पिछली स्थिति में बदलाव आना शुरू हो जाता है। 

अब अनुरूपण (सिमुलेशन) के लिए कंप्यूटर को अध्ययन की प्रणाली के विभिन्न मापदंडों और उनके बीच बातचीत के लिए सूचनाओं को कोडिंग के जरिये संप्रेषित करने का काम किया जाता है। कंप्यूटर अनुरूपण (सिमुलेशन) के काम को आजकल वैज्ञानिक शोधों से लेकर बाजार की स्थिति की भविष्यवाणी जैसे लगभग सभी कामों में धड़ल्ले से इस्तेमाल में लाया जा रहा है। लेकिन किसी अत्यंत जटिल शारीरिक प्रणाली या रासायनिक प्रणाली के लिए, इस तरह के अनुरूपण (सिमुलेशन) के काम को करने में काफी समय जाया होने के साथ-साथ यह काम बेहद उबाऊ भी साबित होता है। हालांकि क्वांटम कंप्यूटर के माध्यम से पारम्परिक कंप्यूटिंग सुविधा का इस्तेमाल करते हुए भी जटिल और लंबे अनुरूपण के काम में लगने वाले समय को कम किया जा सकता है।

इस बात को भी नोट करने की जरूरत है कि गूगल ने जिस तथ्य से आज अवगत कराया है, उसे इसके पिछले साल की रिपोर्ट की निरन्तरता में देखने की जरूरत है।पिछले साल भी करीब-करीब इसी समय के दौरान गूगल की क्वांटम कंप्यूटिंग फैसिलिटी सुर्खियों में छाई हुई थी। एक लीक पेपर में इस बात का दावा किया गया था कि गूगल ने तथाकथित क्वांटम क्षेत्र में वर्चस्व हासिल कर लिया है। गूगल के 53 क्युबिट कंप्यूटर के जरिये मात्र 200 सेकंड में जिस सवाल को हल किया जा सकता है, उसे हल करने में पारम्परिक कंप्यूटर को तकरीबन 10,000 वर्षों तक का समय लग सकता है। इस खबर ने काफी हद तक सनसनी मचा रखी थी। इसमें सिकामोर ने क्वांटम वर्चस्व की एक संकीर्ण परिभाषा के महत्व को दर्शाने का काम किया था, जिसमें क्वांटम कंप्यूटर को एक अति विशिष्ट कार्य को हल करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है और यहाँ पर यह बाकी के सभी परम्परागत कंप्यूटरों को पटखनी देने में सक्षम है।

सिकामोर द्वारा नवीनतम अनुरूपण (सिमुलेशन) का कार्य भी खास तौर पर एक विशिष्ट समस्या को हल करने के प्रति लक्षित है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक मानकीकृत रसायन विज्ञान की समस्या को हल करने के लिए किया गया एक सफल परीक्षण है।

 

 

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