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चीन और म्यांमार के साझे भविष्य में भारत के लिए क्या है?

उभरती हुई परिस्थिति इस बात की ओर संकेत कर रही है कि दिल्ली और बीजिंग के बीच रणनीतिक मंत्रणा को गहरा करने की तत्काल आवश्यकता है।
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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने म्यांमार की राज्य सलाहकार आंग सान सू की के साथ 18 जनवरी, 2020 को ने पी ताव में वार्ता की।

17-18 जनवरी को संपन्न हुई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की म्यांमार की यह राजकीय यात्रा अपने तरह की उन्नीस वर्षों में पहली यात्रा रही है, जो चीन-म्यांमार द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण के लिहाज़ से इसे इस क्षेत्र की राजनीति के लिए एक परिवर्तनकारी घटना के रूप में कहा जा सकता है।

जैसा कि शी की यात्रा के उपरांत जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है, यह दोनों देशों के बीच “व्यापक रणनीतिक साझेदारी” को आगे विकसित करने वाला म्यांमार-चीन समुदाय के साझे भविष्य “साझा हितों, समानता और सहयोग के आधार पर दोनों देशों के लिए लाभ” पर आधारित है।

ने पी ताव के अपने प्रीतिभोज भाषण में शी ने कहा कि क्यों "भाईचारे वाली यह दोस्ती दो देशों के बीच हजारों साल तक चल सकती है", इसकी वजह यह है कि वे "अच्छे और बुरे वक़्त में एक साथ खड़े रहेंगे और पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक लाभ के लिए वचनबद्ध हैं।" उन्होंने दोनों देशों को “एक अच्छे पड़ोसी बनने, जैसा कि एक ही नाव पर सह-यात्री होते हैं” की ज़रूरत को बताया और एक बेहतर आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए और अधिक अनुकूल माहौल बनाने की अपील की।

अपने वक्तव्य में शी ने कहा कि दोनों देशों को "चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीएमईसी-CMEC) के ठोस निर्माण की पहल करनी चाहिए" और जैसे कि "नेक भाइयों को अपनी मित्रता को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते रहना होता है।"      

म्यांमार ने शी के लिए भव्य स्वागत का आयोजन किया। राज्य सलाहकार आंग सान सू की ने अपने वक्तव्य में कहा है कि चीन हमेशा से म्यांमार का अच्छा दोस्त रहा है, और किस्मत ने दोनों पक्षों को क़रीब से बांधे रखा है। दोनों पक्षों के बीच क्यौक्फ्यु स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, न्यू यांगोन सिटी और चीन-म्यांमार बॉर्डर इकोनॉमिक कोऑपरेशन ज़ोन के निर्माण के साथ-साथ सड़कों, रेलवे और पावर और एनर्जी इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को बढ़ावा देने पर सहमति बनी है। जैसा कि चीनी पार्षद और विदेश मंत्री वांग यी ने आंकलन किया, के अनुसार, कुल मिलाकर यह यात्रा सीएमईसी के वैचारिक योजना से महत्वपूर्ण निर्माण की ओर रूपान्तरित करने के प्रतीक के रूप में है।

वांग के अनुसार म्यांमार के रक्षा सेवा के कमांडर-इन-चीफ़ मिन आंग ह्लैंग ने शी से वादा किया है कि म्यांमार की सेना बेल्ट एंड रोड के संयुक्त निर्माण को मज़बूती से समर्थन और बढ़ावा देगी।

ग़ौरतलब है कि वांग ने इस साझेदारी को अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में एक सदी में अनदेखे महत्वपूर्ण बदलावों के रूप में चित्रित किया है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अन्याय और असमानता अभी भी प्रमुखता से मौजूद हैं, और "संरक्षणवाद, एकतरफावाद के साथ-साथ धमकाने वाली कार्रवाइयां ... बढ़ती जा रही हैं", जिसके चलते दो देशों की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के हितों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

संयुक्त बयान में इस बात को रेखांकित किया गया है कि चीन “म्यांमार के विकास के पथ पर उसके उद्देश्य जो कि इसके राष्ट्रीय परिस्थितियों से मेल खाता है को अंगीकार करने, एवं इसके स्वंय के वैध अधिकारों और हितों की रक्षा के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर राष्ट्रीय गरिमा को बनाए रखने और विकास एवं स्थिरता को कायम रखने के लक्ष्य को अपना पूर्ण समर्थन देता है।“ 

इसमें कहा गया है कि दोनों देशों ने "क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों जैसे कि संयुक्त राष्ट्र, चीन-आसियान सहयोग और लंकांग-मेकांग सहयोग मंचों" में समन्वय और सहयोग को बढ़ाने और जारी रखने पर अपनी सहमति व्यक्त की है, और "एक दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंता वाले मुद्दों पर आपसी समर्थन प्रदान करते रहेंगे।"  विशेष तौर पर चीन ने "राखीन प्रान्त में म्यांमार के मानवतावादी परिस्थिति से निपटने के लिए और वहाँ पर स्थित सभी समुदायों के बीच शांति, स्थिरता और विकास को बढ़ावा दिए जाने वाले प्रयासों” का समर्थन किया है।

इन उभरते हुए सम्बन्धों में स्पष्ट तौर पर तीन महत्वपूर्ण बिंदु हैं: दोनों पक्षों की ओर से जारी निरंतर और गहन रणनीतिक संचार के माध्यम से नेतृत्व के उच्चतम स्तर पर एक दूसरे के प्रति बेहतर समझ और प्रतिबद्धता विकसित हुई है (जून 2015 और अप्रैल 2019 के बीच कुल छह बार सू की ने शी से मुलाक़ात की है)। इसके अलावा सीमेक-CMEC का शुभारंभ; और म्यांमार के प्रमुख हितों और प्रमुख चिंताओं के प्रति चीन का दृढ़ समर्थन और पश्चिम की ओर से धमकाने की कोशिशों का ख़ात्मा करने में म्यांमार की मदद (संयुक्त बयान में इस बात को रेखांकित किया गया है कि चीन "राखीन प्रान्त में म्यांमार के मानवतावादी परिस्थिति से निपटने के लिए और वहाँ पर स्थित समस्त समुदायों के बीच शांति, स्थिरता और विकास को बढ़ावा दिए जाने वाले प्रयासों” का समर्थन करता है।“)

यह देखते हुए कि 1600 किलोमीटर लम्बे सीमेक-क्यौक्फ्यु स्पेशल इकनोमिक ज़ोन के साथ बंगाल की खाड़ी में गहरे पानी के बंदरगाह का टर्मिनस राखीन प्रांत में पड़ता है, रोहिंग्या मुद्दे के समाधान के सवाल पर चीन उसका एक प्रमुख हितधारक बनकर उभरा है, यहाँ तक कि वह इसका गारंटर तक बन गया है। सीमेक-CMEC के अंतर्गत सीमा पार विशाल तेल और गैस पाइपलाइन का काम शामिल है जिसपर पहले से ही काम चल रहा है, जबकि एक औद्योगिक पार्क और प्रमुख रेलवे की भी योजना है, जिसमें भारी मात्रा में चीनी निवेश शामिल है। सिन्हुआ रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि बंदरगाह और औद्योगिक पार्क संयुक्त रूप से स्थानीय निवासियों के लिए हर साल 1,00,000 से अधिक नौकरियां पैदा करेंगे और इसके ज़रिये "50 वर्षों की शुरुआती फ्रैंचाइज़ी अवधि" के दौरान 15 बिलियन डॉलर का राजस्व टैक्स पैदा होने जा रहा है।

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चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा -CMEC

सीमेक के कारण चीन की पहुँच हिंद महासागर तक हो जाती है, और फ़ारस की खाड़ी से उसके तेल और गैस आयात के लिए मार्ग की दूरी भी कम को जाने वाली है। इसके अलावा यह चीन के अपेक्षाकृत कम विकसित दक्षिणी क्षेत्रों को विश्व बाजार से जोड़ने का काम करेगा। अमेरिका के जबर्दस्त विरोध पर काबू पाते हुए चीनी रणनीतिक योजनाकारों में इसे एक बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिए जाने के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय परिपेक्ष्य में सीमेक का महत्व उसके लिए बड़ा झटका साबित होने जा रहा है, जिसमें जवाबी रणनीति के तौर पर बीआरआई प्रोजेक्ट को इस क्षेत्र से बदनाम करने, पर्दाफ़ाश करने और पटरी से उतारने की रही है।

इस बीच नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) ने बांग्लादेश में घृणा और गुस्से को पैदा करने का काम किया है और ढाका और बीजिंग के बीच संबंधों के और गहरे होते जाने की उम्मीद है। जाहिर है, भारत के बिम्सटेक एजेंडे की हवा निकल रही है। क्षेत्रीय एकजुटता के मामले में भी भारतीय कथानक कहीं खो सा गया है। बीआरआई में नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जा रहे हैं, जबकि भारत अलग थलग पड़ गया है। चीजों को इस तरह की खेदजनक स्थिति से नहीं गुज़रने देना चाहिए।

हिंद महासागर में भारी समुद्री यातायात का अर्थ है बेहद भारी मात्रा में चीनी नौसैनिक उपस्थिति को आमन्त्रण देना। यह पूरी तरह से दिमाग में आ जाने वाला विचार होना चाहिए कि, एक समय ऐसा आने वाला है जो कि भविष्य में जल्द ही होने जा रहा है, कि चीनी नौसेना बीआरआई इलाकों- ग्वादर, हंबनटोटा, चटगाँव और क्युक्फीयू के बंदरगाहों पर अपनी पकड़ बनाने में जुट जाने वाले हैं। बंगाल की खाड़ी के लिए सीमेक-CMEC  के भू-राजनीतिक दुष्परिणाम बेहद गहरे पड़ने वाले हैं।

यदि भारत और चीन के बीच नौसैनिक शक्ति के भविष्य के संतुलन को मापने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य को थर्मामीटर माना जाता था, तो आगे से इसे अच्छा मापक नहीं माना जा सकता है। भारत हिंद महासागर में चीनी समुद्री हितों के विस्तार को चुनौती देने के उद्देश्य से जलडमरूमध्य के पश्चिमी मुहाने की ओर अपना रुख करता रहा है, लेकिन सीपेक-CPEC और सीमेक-CMEC ने हिंद महासागर में क्षेत्रीय शक्ति को काफ़ी हद तक एक बार फिर से संतुलन में ला दिया है।

इसमें कोई संदेह नहीं, और ऐसा होने में अभी काफ़ी वक़्त है कि आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य शक्ति के मामले में प्रबल चीन भी भारत पर दबाव डाले और हिंद महासागर में ख़ुद को प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश करे। वहीं दूसरी ओर एक अमेरिकी विश्लेषक ने हाल ही में इस संभावना पर आनंद लिया है कि “अंडमान सागर में एक चीनी-भारतीय विशाल खेल खेला जाना तय है। इस खेल में खेल कौशल को देखते हुए विजेता का निर्धारण करने के लिए, कुछ वर्षों की देर लगेगी, कई दशकों की नहीं।”

ऐसे में निश्चित तौर पर भारतीय हित इस बात में नहीं हैं कि वह इन गुप्त खेल के सिद्धांतों में ख़ुद को उलझा कर रख दे। तत्कालीन परिस्थिति के संकेत के हिसाब से दिल्ली और बीजिंग के बीच रणनीतिक मंत्रणा की तत्काल आवश्यकता है। राजनीतिक नेतृत्व को नीतिगत पुनर्विचार के लिए संस्थागत प्रतिरोध को पीछे करने की ज़रूरत है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

China, Myanmar Plan Shared Future. What’s There for India?

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