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दिल्ली : डेयरी उत्पादों और मशीनरी पर जीएसटी वृद्धि के ख़िलाफ़ किसानों का विरोध प्रदर्शन!

किसान सभा ने जीएसटी परिषद द्वारा डेयरी उत्पादों पर 5% तथा मशीनरी पर 12 से 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने की तीखी निंदा की है तथा इसे किसानों, उपभोक्ताओं व डेयरी सहकारी समितियों को बर्बाद करने वाला और बड़ी पूंजीपति घरानों के पक्ष में उठाया गया क़दम बताया है।
दिल्ली

देशभर के डेयरी किसानों ने 27 जुलाई बुधवार को संसद के पास जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। ये किसान डेयरी उत्पादों, मशीनरी और दूध उत्पादों संबंधी मशीनों पर जीएसटी लगाने को लेकर विरोध कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन का आह्वान अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) से संबंधित डेयरी फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीएफएफआई) ने किया है।

डीएफएफआई ने देश के सभी किसान संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) सहित संयुक्त प्लेटफॉर्म से विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने का आह्वान किया है जिससे संघर्षों के माध्यम से सरकार के किसान विरोधी निर्णय को निरस्त करने को सुनिश्चित किया जा सके।

दरअसल जीएसटी काउंसिल की 47वीं बैठक में एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिसके चलते कई रोजमर्रा की ज़रूरी चीज़ों की कीमत बढ़ जाएगी। ये बढ़ोतरी सोमवार 18 जुलाई से लागू हो गई है। इससे आम आदमी के किचन का बजट तो बिगड़ ही रहा है इसके अलावा इसने किसानों के लिए भी मुश्किल बढ़ा दी है। जीएसटी की नई दरें बढ़ने से दही, लस्सी, चावल समेत कई ज़रूरी चीज़े महंगी हो गई हैं।

पैकिंग वाला दही, लस्सी, पनीर और छाछ जैसे प्रोडक्ट्स पर जीएसटी की दरें बढ़ने का सीधा असर देखने को मिलने लगा है। इन पर 18 जुलाई से 5 फीसदी जीएसटी लगा दिया गया। अभी तक इन चीजों पर कोई जीएसटी नहीं लगता था। यही नहीं रिपोर्टों से पता चलता है कि राज्यों में पशुचारे की कीमतों में भारी वृद्धि ने भी डेयरी किसानों को संकट में डाल दिया है।

डीएफएफआई ने देश के सभी किसान संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) सहित संयुक्त प्लेटफॉर्म से विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने का आह्वान किया है जिससे संघर्षों के माध्यम से सरकार के किसान विरोधी निर्णय को निरस्त करने को सुनिश्चित किया जा सके।

आज के प्रदर्शन को सांकेतिक बताते हुए उत्तर प्रदेश के किसान भरत सिंह ने कहा, "सरकार के लिए ये चेतावनी है कि वो अपने किसान और आमजन विरोधी फैसले को वापस ले अन्यथा हम पहले की तरह आंदोलन करेंगे।"

उन्होंने कहा कि वो जिस क्षेत्र से आते हैं वहां किसानों के लिए दूध और उससे बने उत्पाद उनकी आय का एक अहम स्रोत है परन्तु सरकार द्वारा जीएसटी थोपे जाने से किसानो का उत्पादन शुल्क तो बढ़ेगा ही और दूसरा उनके उत्पाद मार्किट में महंगे होंगे, जिससे लोग कम खरीदेंगे। दोनों तरफ से इसकी मार किसानों पर ही पड़ेगी क्योंकि किसान उत्पादक के साथ ही उपभोगकर्ता भी है।

किसान सभा के नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र की भाजपा सरकार संविधान में निहित सहकारी संघवाद की अवधारणा पर हमला कर रही है और जीएसटी को इसके लिए हथियार के तौर पर उपयोग में ला रही है। उन्होंने कहा, "जीएसटी में वृद्धि होने से इस क्षेत्र में काम कर रही सहकारी समितियां और मूल्य संवर्धन के काम करने वाली छोटी फर्में व्यय और कार्यशील पूंजी बढ़ने के कारण बड़ी पूंजी का मुकाबला नहीं कर पाने से बर्बाद हो जाएगी। यह राज्यों के अधिकार और उनकी वित्तीय स्वायत्तता पर हमला है और राजनीतिक सत्ता और पूंजी का घृणित केंद्रीकरण है।"

एआईकेएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा, "कृषि क्षेत्र के उत्पादन के मूल्य में पशुधन क्षेत्र का योगदान लगभग 25 प्रतिशत है और प्रदेश के 9 करोड़ परिवारों की आय का बड़ा ज़रिया दूध और उससे बने उत्पादों का उत्पादन है। इसका सीधा संबंध घरेलू खाद्य सुरक्षा से है और डेयरी उत्पादों पर जीएसटी इसे खत्म करने का काम करेगी।"

हरियाणा से आई महिला किसान नेता डिंपल यादव ने कहा, "हरियाणा की तो पहचान ही दूध-दही से है। बारिश की वजह से पहले ही हरियाणा के दुग्ध उत्पादक किसान परेशान हैं। उन्होंने बताया, "खेतों में पानी भरे होने से चारे की दिक़्क़त हो रही है। चारे से लेकर भूसे के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है जिसने पहले की तुलना में किसानो के खर्चे में भारी बढ़ोतरी की है। ऊपर से अब ये नया जीएसटी हमारे लिए घाव पे नमक का काम कर रहा है।"

उन्होंने बताया कि सरकार ने किसानों की मदद करने के बजाए उन्हें और परेशान किया है। हरियाणा में एक जिले से दूसरे जिले तक हरा चारा ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

आगे वो कहती हैं, "पिछले कुछ सालो में पशु पालना काफी महंगा हो गया है। सरकार ने पशु मेला भी रोक लगा दिया है जिसमें किसान अपने बूढ़े और उपयोग में न आने वाले पशुओं को बेचकर पैसा कमा लेता था परन्तु अब ऐसा नहीं होता है जिसके कारण गाँवों में आवारा पशुओ की संख्या काफ़ी बढ़ गई है।"

हरियाणा से ही आईं महिला किसान अनीता ने कहा, "पशुपालन गाँवो में महिलाओं और किसान की आमदनी का एक सहारा है। ये ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को आर्थिक रूप से भी मज़बूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परन्तु ऐसे किसान विरोधी फैसलों से पूरा अर्थतंत्र ध्वस्त हो जाएगा।"

सनद रहे कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है। डीएफएफआई के नेता और किसान सभा के वित्तीय सचिव कृष्णप्रसाद का कहना है कि देश में डेयरी क्षेत्र से 9 करोड़ से अधिक परिवार जुड़े हैं, जिनमें से तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास 2-4 गायें ही हैं। डेयरी उत्पादों और मशीनरी पर जीएसटी बढ़ाने से इन किसानों की आजीविका और साथ ही इनके पोषण स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही कीमतों में वृद्धि होने से आर्थिक रूप से कमजोर और उत्पीड़ित वर्गों के लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकताएं नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगी।

उन्होंने बताया कि दुग्ध उत्पादक किसानों की लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। उनकी मांग है कि लागत कम करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा के तहत दो गाय पालने वाले किसानों को 200 दिन का वेतन भुगतान दिया जाए। उन्होंने आगे बताया कि केरल सरकार ऐसी ही एक योजना के तहत शहरी इलाकों में पशुपालन करने वाले किसानों को भुगतान कर रही है। जिससे किसानों का उत्पादन शुल्क कम हुआ है। वो सवाल करते है कि जब केरल की वाम फ्रंट कर सकती तो केंद्र की मोदी सरकार भी कर सकती है।

कृष्णप्रसाद ने डेयरी क्षेत्र में जीएसटी वृद्धि को तत्काल वापस लेने की मांग की है। उन्होंने बताया कि किसानों और खेती-किसानी को बर्बाद करने वाली इस नीति के खिलाफ किसान सभा देश भर के डेयरी किसानों, छोटे उद्यमियों और सहकारी क्षेत्र को एकजुट करके प्रतिरोध आंदोलन विकसित करेगी।

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