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डीयूः पिछले 70 वर्षों से दलित प्रोफेसर को एचओडी नहीं बनाया गया

प्रोफेसर श्योराज सिंह बैचेन विभाग के वरिष्ठतम संकाय (फैकल्टी) सदस्य हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में गिनती के दलित प्रोफेसरों में से एक हैं। जाति-विरोधी और दलित साहित्य में भी उनका एक प्रसिद्ध नाम है। प्रोफेसर बैचेन हिंदी अकादमी मध्य प्रदेश और दिल्ली सरकारों द्वारा भी सम्मानित हो चुके है। पिछले 70 वर्षों में एक भी दलित संकाय सदस्य को विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है।
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दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने सोमवार को विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुख की नियुक्ति नहीं किए जाने को लेकर प्रदर्शन किया। हिंदी विभाग के पूर्व प्रमुख का कार्यकाल 12 सितंबर को समाप्त हो गया है जिसके बाद विभाग के प्रमुख का पद खाली है।

हालांकि, शिक्षकों और छात्रों का दावा है कि विश्वविद्यालय के कुलपति, अगले एचओडी को लेकर निवर्तमान एचओडी से परामर्श करने की औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। हालांकि, विभाग को एचओडी की नियुक्ति के बारे में कोई घोषणा नहीं की गई है ।

प्रदर्शनकारी छात्रों और शिक्षकों ने यह भी कहा कि एचओडी की तत्काल नियुक्ति के लिए कुलपति के कार्यालय को एक ज्ञापन और एक पत्र सौंपा लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। प्रदर्शनकारी शिक्षकों और छात्रों ने यह सवाल उठाया है कि प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन को नियुक्त करने की सभी औपचारिकताओं के बावजूद नियुक्ति में देरी क्यों हो रही है?

प्रोफेसर श्योराज सिंह बैचेन विभाग के वरिष्ठतम संकाय (फैकल्टी) सदस्य हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में गिनती के दलित प्रोफेसरों में से एक हैं। जाति-विरोधी और दलित साहित्य में भी उनका एक प्रसिद्ध नाम है। प्रोफेसर बैचेन हिंदी अकादमी मध्य प्रदेश और दिल्ली सरकारों द्वारा भी सम्मानित हो चुके है। पिछले 70 वर्षों में एक भी दलित संकाय सदस्य को विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने आर्ट्स फैकल्टी से कुलपति कार्यालय तक मार्च निकालकर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ विरोध किया और वरिष्ठता खंड के अनुसार प्रोफेसर बैचन की नियुक्ति की मांग की।


 

प्रशासन की ओर से इस भेदभाव का विरोध करने के लिए एसएफआई और आइसा जैसे प्रगतिशील छात्र संगठन और शिक्षकों ने मार्च निकाला। ये मार्च कला संकाय से वीसी कार्यालय तक 'मार्च फॉर जस्टिस' के नाम से निकाला गया। इस दौरान वरिष्ठता खंड के अनुसार प्रोफेसर बैचन को नियुक्त करने की मांग की गई। साथ इन्होंने कुलपति को सरकार की कठपुतली कहा और संघ के इशारे पर काम करने का आरोप लगया।

इस पूरे मामले पर लक्ष्मण यादव जो खुद डीयू में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर है उन्होंने टप्पणी करते हुए अपने फेसबुक पर लिखा और इस घटना को सामाजिक न्याय की सांस्थानिक हत्या का संकेत कहा। आगे वो लिखते है...अब ये लड़ाई किसी एक एचओ़डी की नहीं रही। ये लड़ाई संविधान व सामाजिक न्याय की बन चुकी है। अगर एक प्रोफ़ेसर के साथ हक़मारी का अन्याय हो सकता है, तो कौन कब तक सुरक्षित बचेगा। इसके खिलाफ़ दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी व छात्रों ने मिलकर प्रतिरोध की ठानी है। संविधान जीते, इसलिए लड़ना होगा।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम तब तक विरोध करते रहेंगे जब तक कि प्रोफ़ेसर बैचेन को एचओडी के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता और दिल्ली विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय को लागू न किया जाता।

 

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