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रूसी गैस से यूरोप की दोस्ती: क्या अब यूरोप को अमेरिका दूर नज़र आ रहा है?

अमेरिका और यूरोप की में बड़े पैमाने पर कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर नीतिगत अलगाव नज़र आया है।
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ISIS चीफ अबु बकर अल-बगदादी के मारे जाने के उत्साह के बीच डेनमार्क अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाले एक अहम फ़ैसले पर मुहर लगा चुका है। 30 अक्टूबर को डेनमार्क ने प्रस्तावित नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन को अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ-एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन) से गुजरने की अनुमति देने की घोषणा की है। कोपेनहेगन ने कहा कि वह ''यूनाइटेड कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS)'' के प्रावाधानों के चलते ''ट्रांज़िट पाइपलाइन के निर्माण की अनुमति देने को बाध्य'' है।

नॉर्ड स्ट्रीम-2, पारंपरिक यूक्रेन रूट को बायपास करते हुए रूस के लेनिनग्राद क्षेत्र को जर्मनी के बाल्टिक तट से जोड़ेगी। इसका लक्ष्य पहले से बनी नॉर्ड स्ट्रीम-1 की क्षमता को बढ़ाकर 110 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) सालाना करना है। यह यूरोप के कुल गैस खपत के एक चौथाई से भी ज़्यादा है। 31 अक्टूबर को रूस की बड़ी गैस कंपनी गैज़प्रॉम ने कहा कि 2100 किलोमीटर से ज़्यादा पाइपलाइन का निर्माण हो चुका है, जो कुल लंबाई का 83 प्रतिशत है। डेनमार्क के विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत, बोर्नोहोम के दक्षिण-पूर्व में पाइपलाइन का 147 किलोमीटर लंबा सेक्शन गुज़रता है। इसी हिस्से के निर्माण की अनुमति अब दी गई है।
 
रूस, फिनलैंड, स्वीडन समेत जर्मनी की सीमा के ज़्यादातर इलाकों में पाइपलाइन का काम पूरा हो चुका है। रूस और जर्मनी में गैस पाइपलाइन जहां ज़मीन पर उतरेगी, वहां कारखानों का निर्माण भी लगभग पूरा है। डेनमार्क की अनुमति के बाद अनुमान है कि साल के आखिर तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा।अमेरिका से तनाव के बीच, रूस का समुद्र के रास्ते यूरोप के साथ एक बेहद विशाल ऊर्जा कार्यक्रम तैयार है। अमेरिका ने इसमें कई अड़ंगे लगाने की कोशिश की, लेकिन जर्मनी और रूस ने इनसे पार पा लिया।
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आशा है कि इस प्रोजेक्ट से यूरोप को सुरक्षित और स्थिर गैस की आपूर्ति होगी। रूस की आपूर्ति से यूरोप के ग्राहकों को 2020 में लगभग 8 बिलियन यूरो की बचत होगी। पर सबसे ज्यादा अहम बात कॉलॉन यूनिवर्सिटी EWI के एक अध्ययन से पता चलती है। इसके मुताब़िक, 'जब नर्ड स्ट्रीम 2 उपलब्ध हो जाएगी, तब रूस, EU को ज्यादा गैस की आपूर्ति करवा सकेगा। इससे मंहगी एलएनजी पर निर्भरता कम होगी और बची हुई एलएनजी की मांग कम होने के कारण EU-28 की कीमतों में भी गिरावट आएगी।'

यहीं से टकराहट शुरू होती है। यूरोप अब अमेरिका और रूस के बीच प्राकृतिक गैस की लड़ाई का मैदान बन चुका है। ऊंची कीमत वाले बाज़ार के अलावा, यूरोप अमेरिका और रूस के बीच राजनीतिक दांव-पेंचों का अखाड़ा भी है। पारंपरिक तौर पर रूस का यूरोप के बाजारों में दबदबा रहा है। लेकिन EU, भूराजनीतिक स्थितियों के चलते मॉस्को पर ऊर्जा आपूर्ति में बहुत ज़्यादा निर्भर होने से बचता रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका यूरोप को अपनी ''लिक्विड नेचुरल गैस (LNG)'' की आपूर्ति बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका के सामने, रूस के रूप में अब एक प्रचुर संसाधनों वाला ऐसा प्रतिस्पर्धी है जिसे बाज़ार से हटाया नहीं जा सकता।

रूस, 2018 में EU का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस आपूर्तिकर्ता था। अक्टूबर में आए यूरोपियन कमीशन के ताजा आंकड़ों के मुताब़िक, 2018 में यूनियन के 11 सदस्य राज्यों ने प्राकृतिक गैस की अपनी मांग का 75 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा रूस से आयात किया था।रूस के पास कई गैस पाइपलाइन चालू अवस्था मे हैं। अमेरिका से आने वाली एलएनजी के उलट, रूस के पास यूरोपियन ग्राहकों के लिए गैस की परिवहन कीमत में बड़ी कटौती करने की सहूलियत है। इस वक्त भूराजनीति और भूअर्थशास्त्र, दोनों का खेल चल रहा है।

यहां अमेरिकी नेतृत्व, यूरोप और रूस, खासकर रूस-जर्मनी के बीच संबंधों पर आधारित है। वाशिंगटन के हुक़्मरान बहुत अच्छे से जानते हैं कि नॉर्ड स्ट्रीम-2 से यूरोप और रूस के बीच एक स्थायी संबंध का आधार बन सकता है। यह ट्रंप प्रशासन के हितों के माकूल नहीं होगा, जो रूस को एक उभरती ताकत के तौर पर पेश करता है, जिसे अमेरिका रोकने की कोशिश में है।

कुलमिलाकर वाशिंगटन को अनुमान है कि अगर यह प्रोजेक्ट पूरा होता है तो इससे उसके यूरोप से संबंधो को कड़ा झटका लगेगा। अमेरिका का दावा है कि यह प्रोजेक्ट, क्रीमिया के राज्य हरण के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ जाता है।

रूसी ऊर्जा आपूर्ति पर यूरोप की निर्भरता सोवियत संघ के दिनों से है। इसलिए अमेरिका का यह तर्क बस अपनी सहूलियत के लिए है। यूरोप में प्रतिस्पर्धी कीमतों पर स्थिर और भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के तौर पर रूस एक दावेदार है। यूरोपीय ग्राहकों के अमेरिका से आयातित LNG के बज़ाए सस्ती रूसी गैस को प्राथमिकता दिए जाने में भी इसकी झलक मिल जाती है।

इस बीच यूक्रेन संकट ने रूस को भूराजनीतिक वास्तिविकताओं पर सावधान कर दिया है। उसे समझ में आ गया है कि वो अमेरिका के राजनीतिक दबाव का शिकार हो सकता है। इसके चलते रूस ने चीन को अपनी ऊर्जा आपूर्ति बढ़ा दी है। गैज़प्रॉम 2035 तक चीन का सबसे बड़ा गैस निर्यातक हो जाएगा। इस साल जब साइबेरिया पाइपलाइन का काम खत्म हो जाएगा, तो जर्मनी के बाद चीन रूस की गैस का सबसे बड़ा आयातक हो जाएगा। तब रूस सालाना चीन को 38 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस का निर्यात कर रहा होगा। साइबेरिया गैस पाइपलाइन का काम फिलहाल ज़ारी है और इससे सुदूर पूर्व के देशों को गैस पहुंचाने की योजना है।

लेकिन, तमाम स्थितियों के उलट रूस का यूरोप को गैस निर्यात हाल के सालों में बढ़ता ही जा रहा है। 2018 में गैज़प्रॉम का यूरोप को निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। नॉर्ड स्ट्रीम-2 और इस साल जल्द चालू होने वाली तुर्क स्ट्रीम पाइपलाइन के बाद यूरोपीय गैस आपूर्ति में रूस की हिस्सेदारी बढ़ती ही जाएगी। रूस अब सालाना 86.5 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की अतिरिक्त आपूर्ति यूरोप को कर सकेगा।

सीधे शब्दों में रूसी गैस के लिए यूरोपीय नशा बढ़ता ही जाएगा और यह एक असलियत है। चूंकि यूरोप में प्राकृतिक गैस का उत्पादन ढलान पर है, इसलिए अब महाद्वीप को ज़्यादा गैस की जरूरत होगी, जिसका बड़ा हिस्सा रूस से आएगा।

नॉर्ड स्ट्रीम-2 पर अमेरिकी दबाव का जर्मनी द्वारा सफल प्रतिरोध भी गौर करने लायक है। अमेरिकी कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास कर पाइपलाइन के निर्माण को रोकने को कहा। यहां तक की अमेरिका ने जर्मनी की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की भी धमकी दी। जर्मनी की विनिर्माण केंद्रित अर्थव्यवस्था, अपनी खपत में इस्तेमाल होने वाले तेल का 98 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का 92 प्रतिशत आयात करती है। सस्ती गैस जर्मनी की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है।

लेकिन राजनीतिक तौर पर तस्वीर ज़्यादा बड़ी हो सकती है। क्या यह संयोग है कि जर्मनी, चीन की कंपनी ह्यूवाई पर प्रतिबंध लगाए जाने के अमेरिकी दबाव का प्रतिरोध कर रहा है? अमेरिका ह्यूवाई को जर्मनी में 5G नेटवर्क के इस्तेमाल को रोकना चाहता है। नॉर्ड स्ट्रीम-2 की तरह, अमेरिका ने इसके लिए भी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता को आधार बनाया है। लेकिन जर्मनी ने अमेरिका की बात नहीं मानी।

द इकनॉमिस्ट मैगजीन में कुछ महीने पहले लिखा गया, ''अब अटलांटिक समुद्र बुरी तरह लंबा लगने लगा है। यूरोपीय लोगों को अमेरिका अब हमेशा से ज़्यादा दूर नज़र आ रहा है।''  नॉर्ड स्ट्रीम-2 का निर्माण पुष्टि करता है कि अटलांटिक के दूसरी तरफ अमेरिका से यूरोप के संबंध नई चुनौतियों से गुज़र रहे हैं।

अमेरिका और यूरोप की में बड़े पैमाने पर कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर नीतिगत अलगाव नज़र आया है। हालांकि रूस के प्रति अमेरिका और यूरोप की नीतियां मोटे तौर पर एक जैसी रही हैं, लेकिन नॉर्ड स्ट्रीम-2 दोनों के बीच टकराव का मुद्दा बन गया है।  

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Europe’s Gas Alliance with Russia is a Match Made in Heaven

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