Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

अब नौजवानों और मजदूरों को भी दिखानी होगी कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ बने दिल्ली मोर्चा में अपनी मौजूदगी!

अगर कुछ दिन नहीं,तो कुछ ही हफ़्तों में गेहूं कटाई का समय आने वाला है। ऐसे में सभी तो नहीं,मगर प्रदर्शन कर रहे किसानों के एक तबके लिए ज़रूरी होगा कि वे अपने गांव वापस लौटें।
kisan
पंजाब के बरनाला में रविवार को "मज़दूर किसान महा रैली" में एक लाख से ज़्यादा लोग शामिल हुए। सौजन्य: भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहान) ट्विटर।

नई दिल्ली: पिछले साल नवंबर के आख़िर में जिस समय दिल्ली में आंदोलनकारी किसानों की तरफ़ से घेरेबंदी की गयी थी,वह समय इन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर शिविर लगाने वाले मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए एकदम मुफ़ीद समय था।

इन दोनों राज्यों में ख़रीफ़ धान की कटाई और यहां तक कि नये रबी मौसम के लिए गेहूं की बुवाई भी हो चुकी थी,लिहाज़ा कहा गया कि किसानों के लिए वह "ख़ाली समय" था। ऐसे में वे महीनों तक अपने खेत से दूर रहने का जोखिम उठा सकते थे,उनकी मांगें तबतक जारी रह सकती थीं,जबतक कि ये तीनों क़ानून वापस नहीं हो जाते।

फ़रवरी के आख़िर में राजधानी के बॉर्डर पर इन धरनों के चलते हुए तीन महीने हो चुके हैं,इस दौरान इस आंदोलन की अगुवाई करने वाला छतरी संगठन- संयुक्त किसान मोर्चा सरकारी वार्ताकारों से बातचीत करते हुए मज़बूत स्थिति में दिख रहा है।

अगर कुछ दिन नहीं,तो कुछ ही हफ़्तों में  गेहूं कटाई का समय आने वाला है। ऐसे में सभी तो नहीं,मगर प्रदर्शन कर रहे किसानों के एक तबके लिए ज़रूरी होगा कि वे अपने गांव वापस लौटें। यह भी हो कि केंद्र के साथ यह गतिरोध जारी रहे,क्योंकि सरकार की तरफ़ से इन विवादास्पद क़ानूनों को कुछ समय के लिए टाल दिये जाने के एक प्रस्ताव को खारिज कर दिए जाने के बाद वार्ता पिछले महीने टूट गयी थी।

रविवार को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में एसकेएम नेतृत्व ने मीडिया को बताया कि 28 फ़रवरी को एक बैठक के बाद चल रहे इस आंदोलन के "तीसरे चरण" की योजना तय की जायेगी।

हालांकि,उक्त बैठक के लिए तैयार कार्यक्रमों पर एक नज़र डालने पर पता चलता है कि आने वाली चुनौती का अनुमान लगा रहे किसान नेता पहले से ही दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चा संभाले रखने को लेकर एक रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

मसलन,रविवार को घोषित कुल चार कार्यक्रमों में से दो कार्यक्रमों का लक्ष्य चल रहे इस आंदोलन में ख़ास तौर पर नौजवानों और श्रमिकों की भागीदारी को आकर्षित करना है। उस बैठक में कहा गया कि 26 फ़रवरी को "युवा किसान दिवस" का आयोजन किया जायेगा; इसके बाद,अगले दिन,गुरु रविदास जयंती और स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद के शहीदी दिवस पर "किसान मज़दूर एकता दिवस" मनाया जायेगा।

पंजाब स्थित क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष और एसकेएम में बड़े ओहदे वाले डॉ.दर्शन पाल ने सोमवार को फ़ोन पर न्यूज़क्लिक को बताया,"आने वाले दिनों में गेहूं की कटाई के समय का ध्यान रखते हुए दोनों कार्यक्रमों की घोषणा की गयी है।" उन्होंने आगे बताया कि इन सीमाओं (दिल्ली) पर मोर्चा चलाने के दोनों कार्यक्रम नौजवानों और मज़दूरों के समूहों की उस समय की भागीदारी को सुनिश्चित करेंगे,जब अनुमान है कि कुछ किसान छोटे से समय के लिए "घर वापस" चले जायेंगे।

हरियाणा स्थित भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रमुख और एसकेएम के एक दूसरे नेता,गुरनाम सिंह चारूनी ने भी ऐसा ही कहा। उन्होंने आगे कहा कि इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए समाज के अन्य वर्गों को आकर्षित करने पर भी ध्यान केन्द्रित किया जायेगा,ताकि चल रहे इस आंदोलन को "जनांदोलन" में बदला जा सके।

चारुनी ने कहा,“अभी हमारा ध्यान समाज के अलग-अलग वर्गों को कृषि कानूनों के इस विरोध में शामिल करने पर है; इस विरोध को जनांदोलन में बदलना है। हम इस बात को सामने ला रहे हैं कि कृषि में यह सुधार सिर्फ़ किसानों को ही नहीं,बल्कि दूसरों को भी किस तरह प्रभावित करेगा।'' आगे वे कहते हैं कि इस दिशा में बहुत कुछ हरियाणा में हाल ही में आयोजित हुए महापंचायतों से हासिल कर लिया गया है।

इस विरोध प्रदर्शन में गणतंत्र दिवस के विवाद के बाद कथित निरुत्साह देखा गया था,लेकिन महापंचायत,यानी बड़ी ग्राम सभा की बैठकों में महिलाओं,भूमिहीन कृषि श्रमिकों,और यहां तक कि वेतनभोगी रोज़गार में लगे लोगों की तरफ़ से जिस तरह की पर्याप्त भागीदारी देखी गयी है,उसके बाद किसानों के विरोध को और मज़बूती मिलती दिख रही है।

चारुनी ने बताया कि हरियाणा में गेहूं की कटाई के मौसम को देखते हुए एक "नियमित" योजना भी बनायी जा रही है।उन्होंने कहा,“ज़रूरत पड़ने पर किसान बारी-बारी से इस विरोध प्रदर्शन मे शामिल किये जायेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि एक-एक किसान की गेहूं पैदावार का ख़्याल रखा जाये।”

समाज के उन वर्गों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की ज़रूरत है,जो सही मायने में ज़मीन वाले खेतिहर नहीं हैं, इस बात को न सिर्फ़ एसकेएम महसूस कर रहा है,बल्कि इस विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय दूसरे किसान समूह भी महसूस कर रहे हैं।

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहन) ऐसा ही एक गुट है,जो पंजाब के सबसे बड़े किसान संघों में से एक है, और इस समय टिकरी बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। रविवार को एक वर्चुअल प्रदर्शन में बीकेयू (EU) और भूमिहीन कृषि श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली इसकी शाखा-पंजाब खेत मज़दूर यूनियन ने संयुक्त रूप से पंजाब के बरनाला में "मज़दूर किसान महा रैली" का आयोजन किया था,जिसमें माना जा रहा है कि कथित तौर पर एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौजूदगी देखी गयी थी।

बीकेयू (EU) के राज्य सचिव,शिंगारा मान सिंह ने टिकरी बार्डर से फ़ोन पर न्यूज़क्लीक को बताया, "यह भारी भीड़ उन सभी लोगों के लिए एक जवाब थी,जिन्होंने ग़लत तरीके से दावा किया था कि आंदोलन फ़ीका पड़ गया है।" उन्होंने कहा कि यह,"महा रैली" इस बिंदु पर ज़ोर देने पर भी कामयाब रही कि चल रहा आंदोलन महज़ किसानों की रोज़ी-रोटी को लेकर ही नहीं है।

सिंह ने कहा," काले क़ानूनों का यह विरोध सिर्फ़ किसानों का ही नहीं,बल्कि खेतिहर मज़दूरों का भी है।" सिंह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “खेती में महिलाओं की भूमिका का सम्मान करने के लिए” दिल्ली के बाहरी इलाक़े में स्थित सीमा शिविरों में आगामी 8 मार्च को महिला दिवस मनाने का भी आह्वान किया गया है।

पंजाब खेत मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष,जोरा सिंह नसराली ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर खेतिहर मज़दूरों की निरंतर भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए हाल ही में एकजुटता अभियान भी चलाये जा रहे हैं। नसराली ने पंजाब के भटिंडा से न्यूज़क्लिक को बताया,“ये कृषि क़ानून न सिर्फ़ किसानों की रोज़ी-रोटी पर असर डालेंगे, बल्कि कृषि कामगारों के रोजगार पर भी असर डालेंगे। इसके अलावा,इन श्रमिकों की खाद्य सुरक्षा को ख़तरे में डालते हुए इन सुधारों से पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) को भी गंभीर रूप से कमज़ोर कर दिया जायेगा।"

उन्होंने आगे कहा कि इस यूनियन की मंगलवार को होने वाली बैठक के बाद, 27 फ़रवरी तक "दिल्ली मोर्चा" में शामिल होने वाले सभी यूनियन सदस्यों की एक सूची तैयार करने का काम शुरू हो जायेगा। नसराली ने कहा, "हम किसानों के इस विरोध मंच का इस्तेमाल जाति-आधारित उत्पीड़न के मुद्दों को उजागर करने के लिए भी कर रहे हैं।" ग़ौरतलब है कि पंजाब में इन खेतिहर मज़दूरों की बड़ी संख्या दलित समूहों से है।

हाल ही में लॉकडाउन के दौरान सामने आये किसानों और खेतिहर मज़दूरों के हितों के बीच विरोधाभासों के बारे में पूछे जाने पर नसराली ने कहा कि इन दोनों समूहों के लिए सबसे पहले उस "निजीकरण और निगमीकरण" के ख़िलाफ़ लड़ने के लिहाज़ से लामबंद होना ज़रूरी है,जो केंद्र की तरफ़ से किया जा रहा है। नसराली ने बताया,"इस लामबंदी के ज़रिये ही इन विरोधाभासों को भी हल करने के तरीक़े मिलेंगे।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Farm Laws: With Harvesting Season Here, Focus Shifts on Youth, Workers to Keep Delhi Morchas Running

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest