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ग्राउंड रिपोर्टः पूर्वांचल में बाढ़ और पिछाड़ की बारिश से फूलों की खेती बर्बाद

कोरोना संकट से उपजे लाकडाउन के बाद धीरे-धीरे उबर रहे बागबानों को अबकी दिवाली में अच्छी कमाई की उम्मीद थी, लेकिन पिछले एक महीने से रुक-रुककर हो रही बारिश के चलते और बनारस में आई बाढ़ ने फूलों की खेती करने वाले बागबानों के सपने तोड़ दिए हैं।
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उत्तर प्रदेश के बनारस में अबकी सुर्ख गुलाब का रंग फीका सा है। गेंदा और गुलदावदी ने भी खुद को मुरझाया सा मान लिया है। टेंगरी, बेला और कुंद की बगिया भी वीरान सी है। ठीक वैसी ही, जैसे विधवा की सूनी मांग हो। जानते हैं क्योंअसमय बारिश और बाढ़ के चलते फूलों में बड़े पैमाने पर कीड़े लग गए हैं। गेंदे के फूल मुरझा से गए हैं। कोरोना संकट से उपजे लाकडाउन के बाद धीरे-धीरे उबर रहे बागबानों को अबकी दिवाली में अच्छी कमाई की उम्मीद थी, लेकिन पिछले एक महीने से रुक-रुककर हो रही बारिश के चलते हजारा गेंदा के फूलों के रंग फीके और दौना व तुलसी की पत्तियां काली हो गई हैं। बनारस में आई बाढ़ ने भी फूलों की खेती करने वाले बागबानों के सपने तोड़ दिए हैं।

बनारस के सैकड़ों गांवों में फूलों की खेती होती है। कहीं गुलाब, बेला, चमेली तो कहीं ग्लेडुलस, रजनीगंधा और जरबेरा से लकदक खेत देखकर हर कोई मोहित हो जाता है। सीजन चाहे जो भी हो, बनारस में सर्वाधिक डिमांड गेंदा और गुलाब की है। मदार, दौना और तुलसी की माला की डिमांड भी ज्यादा है। दरअसल, बनारस मंदिरों का शहर है, इसलिए भी फूलों की खपत दूसरे शहरों के मुकाबले यहां बहुत ज्यादा है।

जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार के मुताबिक, "अकेले बनारस जिले में 565 हेक्टेयर में फूलों की खेती होती है। इसमें गेंदा का रकबा 130 हेक्टेयर से ज्यादा है। बनारस शहर से सटे काशी विद्यापीठ, हरहुआ, अराजीलाइन और चिरईगांव प्रखंड के कई गांव फूलों की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। एक हेक्टेयर फूलों की खेती से करीब पांच से दस किसानों के परिवार जुड़े हैं।" यह आंकड़ा तो सरकारी है, लेकिन बनारस में फूलों के उत्पादन और बिक्री से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की तादाद पांच लाख से अधिक है। किसानों का पूरा परिवार खेती में जुटता है, तब उनके घरों का खर्च किसी तरह से चल पाता है।

फूल ही नहीं, बागबानों के चेहरे भी मुरझाए

बनारस में फूल उत्पादन के लिए मशहूर लखीमपुर सरहरी, मिल्कीपुर, काशीपुर, भद्रकला, कैथी, इंद्रपुर, लोहता, भट्ठी में बड़े पैमाने पर हजारा गेंदे की खेती होती है। बेमौसम की मार से धन्नीपुर, गोपालपुर, दीनापुर, चिरईगांव और फूलपुर में बड़े पैमाने पर देसी-विदेशी गुलाब की खेती करने वाले बागबानों कि दिलों में इसके कांटे चुभ रहे हैं। खेतों में रंग-बिरंगे फूल तो हैं, लेकिन बागबानों की मुस्कान गायब है। बाढ़ और असमय बारिश से फूलों की खेती करने वाले किसानों की सांस फूल रही है और उद्यन महकमें का दावा है कि नुकसान सिर्फ पांच-छह फीसदी ही हुआ है।

बनारस के धन्नीपुर के बागबान मोतीलाल मौर्य अपने उन खेतों में ले गए जहां उन्होंने हजारा गेंदे की खेती कर रखी है। खेतों में गेंदे के पौधे तो लहलहा रहे हैं, लेकिन फूलों की कलियां मुरझा सी गई हैं। कलियों के अंदर कीड़े घुस गए हैं। मोतीलाल कहते हैं, "फूलों की खेती के लिए जून, जुलाई और अगस्त महीने की बारिश काफी मुफीद मानी जाती है। जब बारिश की जरूरत थी, तब हुई नहीं। अब जरूरत नहीं है तो मौसम बदरंग है। पिछाड़ की बारिश का फूलों की खेती पर जबर्दस्त असर पड़ा है। हजारा गेंदे की जो माला दिवाली से पहले 10 हजार रुपये प्रति सैकड़ा बिक जाया करती थी उन्हें अब 2 हजार में भी कोई नहीं पूछ रहा है। सितंबर और अक्टूबर में हुई बारिश के चलते गेंदा के फूलों पर दाग पड़ गए हैं। अजीब हाल है। खेती का खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है। बागबानों की असल कमाई का वक्त दिवाली ही होती है और अबकी फूलों की खेती चौपट होने से लगता है कि यह त्योहार भी फीका ही गुजरेगा।"

पिछड़ बारिश के चलते मायूस बागबान मोतीलाल

मोतीलाल मौर्य की बातों पर रामनारायण मधुकर भी हामी भरते हैं। वह कहते हैं, "दिवाली के वक्त जाफरी गेंदे की डिमांड बढ़ जाती है। अबकी हाल ठीक नहीं है। फूलों की खेती करने वाले बागबान घाटे में हैं। समय पर बारिश न होने की वजह से इस बार फूलों की खेती देर से हुई। खासतौर पर दिवाली और नए साल के अलावा वैवाहिक सीजजन में फूलों की डिमांड बढ़ जाती है। इस बार दिवाली का त्योहार सिर पर है और फूलों की खेती पिछड़ गई है। हम तो सिर्फ माला बनाने और उसे मंडियों में ले जाकर बेचने का काम करते हैं। इस बार बनारस की बांसफाटक मंडी में हजारा और जाफरी गेंदे का दाम गिरा हुआ है।"

बनारस के हजारों किसानों की आजीविका फूलों पर टिकी है। चाहे आप चिरईगांव जाएं या फिर धन्नीपुर, गोपालपुर और दीनापुर। सड़कें भले ही बदहाल हैं, लेकिन इन गांवों की पगडंडियां शुरू होने से पहले ही फूलों की खुशबू आपका इस्तेमाल करेंगी। दूर-दूर तक फूल ही फूल। आबो-हवा में बिखरती फूलों की खुशबू, मादकता से भर देती है। कहीं गुड़हल, कुंद, बेला के फूल तो कहीं गुलाब और हजारा गेंदा की क्यारियां फूलों की घाटी सरीखी नजर आती हैं। दीनापुर और धन्नीपुर बनारस से ऐसे गांव हैं जिसे लोग रोज विलेज के नाम से भी जानते हैं। ये दोनों ऐसे अनूठे गांव हैं जहां धान-गेहूं की खेती सिर्फ नाम के लिए होती है। अधिसंख्य बागबान फूल ही उगाते हैं। पीक सीजन में इन गांवों से हर रोज लाखों का फूल बनारस की फूल मंडियों के होते हुए मंदिरों तक पहुंचता है। सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, बिहार से लगायत कोलकाता तक के फूल कारोबारी यहीं से रंग-बिरंगे फूल ले जाते हैं।

कोई सुनता नहीं, कहां करें शिकायत

धन्नीपुर के बागबानों के लिए गेंदा और गुलाब के फूल सोना-चांदी से कम नहीं हैं। धन्नीपुर के पूर्व प्रधान मनीष कुमार मौर्य छह बीघे में देसी और अंग्रेजी गुलाब की खेती करते हैं। पिछाड़ की बारिश ने इनका मुनाफा लूट लिया। चंद दिनों बाद दिवाली आएगी और इनके खेतों में गुलाब के फूलों की कलियां अभी नहीं निकल पाई हैं। वह कहते हैं, "बेवक्त की बारिश से गुलाब की डंडियों की कटाई देर के हुई, जिसके चलते दिवाली का बड़ा पर्व निकल जाएगा और हमारे जैसे हजारों बागबानों को एक धेले की कमाई नहीं होगी। हम पहले पपीते की खेती करते थे। फिर बैगन उगाने लगे। कीटों ने हमला बोला तो गुलाब की खेती शुरू कर दी। मानसून की बेरुखी ने अबकी ऐसा रंग दिखाया कि समझ में ही नहीं आ रहा है कि अब क्या करेंधन्नीपुर, गोपालपुर, फूलपुर, पचरांव, महासी से लगायत दीनापुर के हजारों किसान रोजाना लाखों के फूल बनारस की मंडियों में पहुंचाते हैं। पिछाड़ की बारिश से करीब फूलों की खेती पिछड़ गई है। जिन बागबानों ने रिस्क लेकर फूल लगाए भी, उन्हें कड़ी मेहनत के बावजूद घाटा उठाना पड़ रहा है। बागबान भला मानसून से क्या शिकायत करेंगेहम सभी की शिकायत तो जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों से है। कोई सुनता ही नहीं। कहां और किसकी शिकायत करें?"

धननीपुर के पूर्व प्रधान मनीष कउम्र मौर्य

बागबानों की उपेक्षा का आलम यह है कि उन सभी गांवों में सुविधाएं नदारद हैं, जहां बड़े पैमाने पर फूलों की खेती होती है। धन्नीपुर के नेहरू मौर्य कहते हैं, "हमारे गांव में आकर देखिए। यहां सड़कें तो हैं, लेकिन चलने लायक नहीं हैं। पता ही नहीं चलता कि गड्ढ़ों में सड़के हैं या फिर सड़कों पर गड्ढ़े हैं। इसके बावजूद अपनी हाड़तोड़ मेहनत और जज्बे के दम पर हमारे जैसे बागबानों ने धन्नीपुर को अनूठा गांव बना दिया है।"

धन्नीपुर के बाबूलाल मौर्य, शिव मुरारी राजभर, राजेंद्र मौर्य, राम सागर मौर्य, चंद्रेश मौर्य, ईश्वरचंद मौर्य, राम बदन मौर्य विनोद राजभर बनारस में फूलों के प्रसिद्ध उत्पादक हैं। धन्नीपुर के बागबान उमा प्रसाद राजभर ने करीब 15 बिस्वा में देसी गुलाब की खेती कर रखी है। पिछाड़ की बारिश के चलते गुलाब के डंडियों की कटिंग देर से हुई। इसलिए इनके खेतों में फिलहाल निराई-गुड़ाई का काम चल रहा है। दिवाली पर इनके खेतों में फूल आने की कोई गुंजाइश नहीं है। वह कहते हैं, "बागबानों को छुट्टा पशुओं से ज्यादा दिक्कत है। जहां देखिए, इनका जखेड़ा घूमते मिल जाएगा। कीट-पतंगों से ज्यादा फूलों की खेती छुट्टा पशुओं के चलते चौपट हो रही है। कोरोनाकाल से पहले हम अपने खेतों से 80-85 हजार रुपये कमा लेते थे और मगर अब खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है।" फूलपुर के शिवपूजन चौहान, गुलाब चौहान, काजू, विजय चौहान, विजय मौर्य और गोपालपुर के बबलू प्रसाद मौर्य, अजय प्रसाद मौर्य, विद्यानंद मौर्य और राजेश मौर्य का दर्द भी कुछ ऐसा ही है।

छुट्टा पशुओं से बागबान परेशान

धन्नीपुर और गोपालपुर के समीप के गांव दीनापुर भी फूलों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यह गांव सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, बिहार, कोलकाता से लगायत नेपाल की राजधानी काठमांडू तक में अपनी खुशबू फैला रहा है। समूचा दीनापुर फूलों का बाग सरीखा दिखता है। यह गांव कभी पीले-नारंगी गेंदे से पटा रहता है तो तो कभी सफेद बेले, कुंद, गुड़हल और टेंगरी से। देसी गुलाब की खुशबू की तो बात ही अलग है। खेतों के किनारे बड़ी-बड़ी झाड़ियों में सुर्ख लाल गुड़हल के फूल हर किसी को दीवाना बना देते हैं। विकास मौर्य, सुनील, राजेश, रामपति राजभर कहते हैं, "हाड़तोड़ मेहनत का दूसरा नाम है फूलों की खेती। पौधे लगाना, पानी देना और ताजीवन उसकी देख-रेख करना आसान काम नहीं है। फूल आने पर उन्हें तोड़ना, उनकी माला बनाना और फिर उसे मंडियों में ले जाकर बेचना हर किसी के बूते में नहीं है।"

करीब तीन दशक से फूलों की खेती कर रहे मंगला प्रसाद मौर्य बताते हैं, "दीनापुर वालों की देखा-देखी धन्नीपुर, गोपालपुर, फूलपुर के बागबानों ने फूलों की खेती शुरू की। पहले जितना धान-गेहूं से मुनाफा होता था, उससे तीन गुना ज्यादा फूलों से हो जाया करता था। बाढ़ और बारिश ने इस साल बागबानों के अरमान धो डाले। दीनापुर के बागबानों का सबसे बड़ा दर्द है एसटीपी। बनारस शहर से निकलने वाले मल-जल का शोधन यहीं होता है। एसटीपी बनने के बाद बागबानों की ज्यादातर जमीनें चली गईं। रकबा कम होने की वजह से फूलों की खेती ही अब सहारा है। पिछाड़ की बारिश के चलते गेंदा और गुलदावदी की खेती रसातल में मिल गई है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या बेचें और दिवाली कैसे मनाएं? "

इसी गांव के बागबान लालजी मौर्य बताते हैं, "यह जानकर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि फूलों से ही दीनापुर के बागबान पहले हर रोज करीब डेढ़ लाख की कमाई किया करते थे। पहले हर कोई खुशहाल और समृद्ध था। हाड़तोड़ मेहनत और जज्बे के बावजूद असमय बारिश में हमारे जैसे बागबानों के सारे अरमान धुल गए हैं। नौकरशाही भी हमारी उपेक्षा करती है। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए हम खेतों में दिन-रात डटे रहते हैं। दिन में खेती का काम करते हैं तो रात में छुट्टा पशुओं को भगाने में नींद उड़ी रहती है। नवरात्र का त्योहार फीका चला गया और अब दिवाली में भी उम्मीद नहीं बची है। दोनों पर्वों पर गुलाबगेंदागुड़हलगुलदावदीकुंदजूहीबेला जैसे फूलों की डिमांड ज्यादा होती है। इन फूलों से घरों और मंदिरों में न सिर्फ सजावट होती है, बल्कि मंदिरों में चढ़ाने के लिए मालाएं भी बनाई जाती हैं। कुंद के फूल खास तौर पर गजरे और जयमाल बनाने के लिए उगाए जाते हैं। पिछाड़ की बारिश ने अबकी कुंद की खेती पर भी विपरीत असर डाला है।"

दीनापुर के बगल में है चिरईगांव। यूं तो यह बाग-बगीचों का गांव है, लेकिन यहां फूलों की खेती करने वाले कम नहीं है। करीब 10,000 की आबादी वाले इस गांव में बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका फूलों पर टिकी है। मानसून और मौसम की बेरुखी ने इस गांव के बागबानों को बुरी तरह तोड़ दिया है। गुलाब की खेती करने वाले विनोद कुमार टूटे मन से कहते हैं, "पिछाड़ की बारिश ने हमारा मुनाफा लूट लिया है। सबकी दिवाली अच्छी मनेगी, लेकिन हम इस पर्व को बस किसी तरह मनाएंगे। शायद हमारे दीपों में तेल और बाती भी न हो।"

विनोद ने करीब दस बिस्वा में देसी गुलाब की खेती कर रखी है। इसी तरह परमात्मा मौर्य, अजय मौर्य, अनिल मौर्य, नंदू मौर्य, पंकज मौर्य और प्रीतम मौर्य की आखों में आंसुओं की धुंध कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। वो कहते हैं, "दो साल तक हमारी कमाई कोरोना की भेंट चढ़ गई और अबकी पिछाड़ की बारिश ने। फूलों की खेती कच्चा रोजगार है। लाकडाउन में हम दो वक्त की रोटी भले ही मुश्किल से जुटा पाए, लेकिन फूलों को मरने नहीं दिया। गुलाब और गेंदा के फूलों को खाद, पानी और दवा तो चाहिए ही। जीना है तो कुछ ना कुछ करना ही पड़ेगा।"

फूलों की खेती से बच गई ज़मीनें

बनारस के शिवपुर से सटे इंद्रपुर का दर्ज दीनापुरधनीपुरगोपालपुर और चिरईगांव के बागबानों से अलग नहीं है। इस गांव के बागबान मदन, मांगेराम, रामधनी मौर्य, हरिशंकर मौर्य, किशन मौर्य, फूलचंद सोनकर, राजाराम मौर्य, संग्राम मौर्य, अमरनाथ, रामकरन यादव, प्रेमचंद यादव, राम किसुन मौर्य समेत दर्जनों बागबान गुलाब और गेंदे की खेती कर रहे हैं। शोभनाथ मौर्य तो इंद्रपुर में पैदा होने वाला गुलाब सोनभद्र के राबर्ट्सगंज, रेनूकूट, शक्तिनगर के अलावा भदोही में भी भेजते रहे हैं। अबकी न नवरात्र में कमाई हुई, न ही दिवाली में कोई खास उम्मीद है। इंद्रपुर के राजेंद्र कुमार मौर्य कहते हैं, "फूलों की खेती की वजह से ही हमारी जमीनें बची हैं। अगर फूल हमारी आजीविका के साधन नहीं होते तो हमारी जमीनों पर भूमाफियाओं की गंगनचुंबी इमारतें तन गई होतीं। पहले कोरोना की मार और अब मौसम की दगाबाजी ने हजारों बागबानों को कर्ज की दलदल में फंसा दिया है। सरकार भी हमारी मदद नहीं कर रही है। जब कोई उपाय नहीं बचेगा तो फूलों की खेती वाली जमीनें जरूर बिक जाएंगी। तब वो जमीनें भी भूमाफिया के कब्जे में चल जाएंगी जो उन पर सालों से गिद्ध नजर जमाए हुए हैं।"

"हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी मुश्किलें इतनी बढ़ जाएंगी, जिसका कोई ओर-छोर नहीं होगा। आखिर कोरोना का दंश, छुट्टा पशुओं के आतंक और अब पिछाड़ की बारिश के साथ फूलों पर कीटों के हमलों का दंश सिर्फ किसान ही क्यों झेलेंयूपी में तो डबल इंजन की सरकार है। देश के पीएम नरेंद्र मोदी बनारस के सांसद हैं। सरकार हमारे दर्द को समझे और बागबानों के नुकसान की भरपाई करे। पूरा न सही, थोड़ी सी राहत भी हमारे लिए संजीवन साबितच हो सकती है।"

बनारस का बागबानों का फूल मलदहिया और बांसफाटक फूल मंडी में पहुंचता है। दोनों मंडियों से फूल व उसकी माला पूरे पूर्वांचल और बिहार में भेजी जाती है। यहां आमतौर पर गुलाब, गुड़हल, गेंदा, गुलदावदी, कुंद, जूही, बेला जैसे फूलों की खेती होती है। इन्हीं फूलों से खासतौर पर मंदिरों में चढ़ाने के लिए मालाएं बनाई जाती हैं। शादी-विवाह और त्योहार के मौके पर फूलों की डिमांड बढ़ जाती है। फूलों से कमाई के मामले में दिवाली सबसे अहम पर्व मना जाता है। बनारस के बागबानों को इस बात का अफसोस है कि अबकी उनकी दिवाली फीकी ही रहेगी।

बाढ़ और बारिश ने बिगाड़ा अर्थशास्त्र

पूर्वांचल में बनारस के अलावा बलिया के सिकंदरपुर और जौनपुर के कुछ इलाकों में फूलों की खेती होती है। असमय बारिश ने पूर्वांचल के बागबानों का अर्थशास्त्र बिगाड़ दिया है। लेट-लतीफ बारिश से खेती तो पिछड़ ही गई, फूलों से लकदक खेतों में कीटों ने भी हमला बोल दिया है। बलिया के सिकंदरपुर इलाके में बड़े पैमाने पर गुलाब की खेती होती है। पिछाड़ की बारिश का असर कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित इत्र उद्योग पर भी पड़ा है।

बागबान नियाज अहमद कहते हैं, "लाकडाउन के बाद से ही फूल हमारे लिए अंगारे सरीखे हो गए हैं। बस किसी तरह से पारंपरिक खेती के सहारे जीवनयापन कर रहे हैं। लाकडाउन के बाद से ही फूलों से इत्र, तेल, गुलाब जल, गुलकंद बनाने के कारखाने बंद हैं। लगन के दिनों में गुलाब के फूलों की माला और सेहरा बनता है। दिवाली में फूलों की डिमांड ज्यादा होती है, लेकिन अबकी बागबान खून के आंसू रो रहे हैं।" कुछ ऐसा ही हाल है जौनपुर के फूल उत्पादकों का। सिपाह क्षेत्र में कुछ बागबान फूलों की करते हैं। पहले जौनपुर में चमेली के तेल का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था, लेकिन वह अब इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया है। बारिश और देर से आई बाढ़ ने इस कारोबार का दिवाला पीट दिया है। किसान मायूस हैं। पूर्वांचल की मंडियों में पहले हर रोज 50 लाख के फूल बिक जाया करते थे और अब फूलों की आवक घटने से कारोबार सिमटकर एक तिहाई रह गया है।

प्यारमित्रता और शांति का प्रतीक माने जाने वाले गुलाब से गुलाब जलतेलइत्र और गुलकंद बनाया जाता है। मऊ के जिला उद्यान अधिकारी संदीप गुप्ता कहते हैं, "गुलाब का तेल एक से सवा लाख रुपये प्रति किग्रा की दर से बिकता है। पूर्वांचल में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। इसका इस्तेमाल कट फ्लावर के रूप में अधिक होता है। यदि वागवान थोड़ा प्रयास करें तो वे खुद इसकी पौध तैयार कर सकते हैं। खुद इसकी रोपाई कर सकते हैं और इसकी बिक्री करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। दुनिया में गुलाब की करीब 20 हजार प्रजातियां हैं, जिनमें एम्बेस्डरअमेरिकन प्रइडबरगंडाडबल डिलाइटफ्रेंडशिपसुपर स्टाररक्तगंधा, जंबराअरेबियन नाइट्सरंबा वर्गचरियाआइसवर्ग,   बंजारनसदाबहारप्रेमा आदि प्रमुख हैं।"

"मिनिएचर गुलाब के पौधे छोटे होते हैं, जिन्हें क्यारियों में उगाया जाता है। इसकी प्रमुख किस्में हैं क्रिकीलालीपापनटखटपिक्सीबेबली गोल्डक्रीको आदि। पूर्वांचल में लता गुलाब भी लोकप्रिय है। इसकी शाखाएं लताओं की तरह बढ़ती हैं, जिनकी प्रमुख किस्में हैं कासिनोप्रोस्पेरिटीमार्शलनीलक्लाइबिंगसदाबहारकोट टेल आदि। गुलाब पर भी कई तरह के कीट हमला करते हैं। जनवरी-फरवरी महीने में एफिट कीट गुलाब को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा शल्क कीटथिप्सरोज चेफरचूर्णी फंफूदी की रोकथाम के लिए विशेषज्ञों की सलाह पर बागबानों को पहले से ही प्रबंध शुरू कर देना चाहिए।"

सरकार करे नुकसान की भरपाई

बनारस के जाने-माने उद्यानविद लालजी पाठक कहते हैं, "बनारस में गेंदे की खेती पूरे साल होती है। इसके फूल मुख्य रूप से माला बनानेविवाह आदि में मंडप सजाने आदि के काम आते हैं। इसे गमलों और क्यारियों में भी सजावट के लिए उगाया जा सकता है। यह सब्जियों में पैदा होने वाले सूत्र कृमियों को भी नियंत्रित करती है। पिछले कुछ सालों से गेदें के फूलों का प्रयोग मुर्गियों के अंडों की जर्दी का रंग अधिक गहरा करने के लिए हो रहा है। शहरों के पास इसकी खेती कट फ्लावर के लिए की जाती है। पूर्वांचल में हजारा गेंदे की खेती बेहद लोकप्रिय है। गेंदे की खेती के लोकप्रिय होने का मुख्य कारण यह है कि इसको शीत या ग्रीष्म ऋतु दोनों में हर तरह की भूमि में उगाया जा सकता है। फूलों के समुचित विकास के लिए धूप वाला वातावरण सर्वोत्तम माना गया है। उचित जल निकाल वाली बलुआर दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।"

"पूर्वांचल में अफ्रीकन गेंदा काफी लोकप्रिय है। मुख्य प्रजातियां हैं स्नोबर्डबर्पिस जायंटस्वीट एंड यलोस्वीट एंड गोल्डगंधहीनआरेंज हवाईक्रेंकर जेकगोल्डन एज। इसके अलावा फ्रेंच की भी कई प्रजातियां लोकप्रिय हैं। इसमें रेड विगमीहेप्पी आरेंजहेप्पी यलोक्वीन सोफियांआरेंज सोफियाहनी सोफियागोल्डी बोलेरोहनी काम्बगोल्डन बायकर्मिन रेड चेरी आदि हैं। गेंदी की हाइब्रिड प्रजातियों में ब्यूटी गोल्ड आरेंजब्यूटी यलोरायल यलोऔर आरेंज रायल गोल्ड हैं।"

बागबानों को सलाह देते हुए लालजी कहते हैं, "पिछाड़ की बारिश के चलते जिन खेतों में फली छेदक (बड कैटर पिलर) का प्रकोप होता है इस कीट का लारवा कलियों को अंदर ही अंदर खाकर हानि पहुंचाने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर 250 मिली को प्रति पंप में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करना चाहिए। गेंदे पर एफिड का भी प्रकोप होता है। यह कीट मुख्य रूप से फूलों के निचले भाग पर हमला करता है। कीट के शिशु और वयस्क कलियों व फूलों का रस चूसकर फूलों को रंगहीन और सिकुड़ा हुआ बना देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर 250 मिली को प्रति पम्प में डालकर फसल में छिड़कना चाहिए।"

"कई बार थ्रिप्स भी गेंदे की नई पत्तियोंकलियों और फूलों का रस चूसकर उन्हें सुखा देता है। गेंदे में तना सड़न की बीमारी आम है। इसकी रोकथाम के लिए भूमि में नीम की खाद का प्रयोग करें और ज्यादा नमी न होने पाएइसका ख्याल करना जरूरी है। लीफ स्पाट और ब्लाइट की रोकथाम भी नीम के काड़े और गोमूत्र से किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि बागबानी करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए ईमानदार अफसरों को टास्क सौंपे और पिछाड़ की बारिश से हुए नुकसान की भरपाई भी करे।"

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