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पीएम की आधिकारिक यात्रा के मद्देनज़र गुजरात आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 5 जिलों से तड़ीपार

राजपीपला के एसडीएम के आदेशानुसार लखन मुसाफिर को उनके गृह जनपद नर्मदा समेत पाँच जिलों से छह महीनों के लिए तड़ीपार कर दिया गया है। इसमें यह घोषणा की गई है कि उन्हें “तब तक निर्दोष नहीं माना जा सकता जबतक हाल के दिनों में लम्बित पड़े अन्य मामलों में भी वे निर्दोष साबित नहीं कर दिए जाते।”
लखन मुसाफ़िर
लखन मुसाफ़िर

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 59 वर्षीय लखन मुसाफिर को गुजरात सरकार द्वारा छह महीनों के लिए पांच जिलों- नर्मदा, भरूच, वड़ोदरा, छोटा उदयपुर और तापी से तड़ीपार कर दिया गया है। राजपीपला के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की ओर से आया यह आदेश असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित दौरे के मद्देनजर लिया गया है, जिसमें उन्हें जेट्टी सेवा के साथ-साथ साबरमती रिवर फ्रंट और नर्मदा जिले में नर्मदा नदी को जोड़ने वाली समुद्री हवाई सेवा का उद्घाटन करना है।

दिनांक 14 सितंबर के अपने इस निर्वासन आदेश में राजपीपला के एसडीएम के डी भगत ने मुसाफिर पर “स्थानीय लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने, हिंसक गतिविधियों में शरीक होने, हथियारबंद होकर घूमने-फिरने एवं शराब का धंधा करने के साथ साथ-साथ असामाजिक तत्वों के हिस्से” के तौर पर आरोपित किया है।

हालाँकि मुसाफ़िर जो कि नर्मदा के एक गाँव के रहने वाले हैं, को इससे पहले इस साल 8 मार्च को गुजरात पुलिस अधिनियम 1951 की धारा 56 (ए) के तहत नर्मदा जिले के केवड़िया के सब-इंस्पेक्टर द्वारा दो वर्षों के लिए भरूच, नर्मदा, वड़ोदरा, छोटा उदयपुर और तापी जिले से दरबदर कर दिया था।

इसके बाद इस साल के 12 मार्च, 9 अप्रैल और 6 जुलाई को महामारी के बावजूद इस मामले की सुनवाई गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये सीमित कामकाज के तहत संपन्न की गई थी।

इस सम्बंध में न्यूज़क्लिक से बात करते हुये गुजरात में रह रहे पर्यावरण कार्यकर्ता रोहित प्रजापति ने बताया है कि “लखन मुसाफिर ने 13 जुलाई के दिन अपना विस्तृत जवाब दायर कर दिया था और यह केस पुलिस प्रशासन की ओर से इसके बारे में प्रतिउत्तर दिए जाने के लिए लम्बित पड़ा था। लेकिन अचानक से 14 सितंबर को इस केस की सुनवाई पूरी कर दी गई थी और अंतिम फैसला सुना दिया गया।”

इसमें गौर करने वाली बात यह है कि एसडीएम द्वारा यह आदेश असल में 2019 में मुसाफिर के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर पर आधारित है, जिसमें दंगा-फसाद करने, गैर-क़ानूनी तौर पर इकट्ठा होने, सरकारी कर्मचारियों को चोट पहुँचाने और आपराधिक धमकी देने के आरोप लगाये गए थे। इस निर्वासन आदेश में मुसाफिर पर अवैध शराब के धंधे में लिप्त होने के आरोप भी लगाये गए हैं, हालाँकि अभी तक उनके खिलाफ निषेधाज्ञा अधिनियम के तहत कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है।

निर्वासन आदेश में कहा गया है “नर्मदा जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रस्तुत आवेदन को देखते हुए यह पाया गया है कि लखन मुसाफिर एक संदेहास्पद व्यक्ति है। मुझे बखूबी मालूम है कि उसके पास अपनी आजिविका का कोई ईमानदार तरीका नहीं है और अपने गुर्गों के साथ वह केवड़िया सहित स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के साथ-साथ नर्मदा बाँध के आस-पास के स्थानीय ग्रामीणों को निरंतर भड़काता रहता है।  अन्य असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर यह आदमी स्थानीय लोगों को सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए गुमराह करने के लिए आम लोगों की सभा आयोजित करने के तौर पर मशहूर है।”

आदेश में आगे कहा गया है कि “मुसाफिर को सरकार विरोधी नारे (लगाने) और सरकार के कामों में टांग अड़ाने के लिए कानून-व्यवस्था भंग करने के तौर पर शोहरत हासिल है। अतीत में हुई कई घटनाओं में मुसाफिर और उनके गुर्गों ने सरकारी अधिकारियों एवं सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएनएल) के अधिकारियों के साथ मारपीट करने का काम किया है और इस क्षेत्र की शांति और कानून-व्यवस्था को भंग किया है। मुसाफिर ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना पर भी निशाना साधा था, जिसने केवडिया को इस दौरान भारी शौहरत दिलाई है। लोगों के बीच में मुसाफिर का इस कदर खौफ व्याप्त है, जिसके चलते कोई भी ग्रामीण उसके खिलाफ गवाही देने को तैयार नहीं है।”

मुसाफिर के खिलाफ केवडिया पुलिस थाने में जनवरी और अक्टूबर 2019 में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। इसमें पहला जनवरी 2019 में मुसाफ़िर के खिलाफ एक भीड़ का नेतृत्व करने पर लगाया गया था, जिसमें दंगे का सहारा लिया गया था। इस दौरान इलाके के आदिवासियों ने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर की यात्रा के दौरान विरोध किया था, जब वे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के समीप बने हरियाणा भवन के भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। यह मामला अभी भी अदालत में लंबित पड़ा है। मुसाफिर के खिलाफ दूसरी प्राथमिकी 31 अक्टूबर, 2019 को तब दर्ज की गई थी, जब पीएम नरेंद्र मोदी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के इर्दगिर्द बने कई पर्यटक केन्द्रों के उद्घाटन के सिलसिले में इस क्षेत्र में थे और आदिवासियों ने एक बार फिर से अपना विरोध दर्ज कराया था।

प्रजापति जो कि नर्मदा जिले में चल रही कई परियोजनाओं की मुखालफत के दौरान मुसाफिर के साथ काम कर चुके हैं, का इस बारे में कहना है “लखन मुसाफिर कोई राजकीय निकाय नहीं है, बल्कि वे एक इंसान हैं। उनके खिलाफ जिस प्रकार के गंभीर मनगढ़ंत आरोप लगाये गए हैं, उनसे बचाव के लिए उन्हें पर्याप्त समय और संसाधनों की जरूरत है। अपने जवाब में मुसाफिर ने गवाहों के नाम दिए हैं, लेकिन एक ऐसे समय में जब राज्य महामारी की चपेट में है, इन गवाहों को राजपीपला ला पाना तकरीबन नामुमकिन है। आखिर कैसे किसी इंसान को दस्तावेजों और गवाहों की मदद लेने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है?”

मुसाफिर ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश चंद्र मेहता सहित पांच अन्य मित्रों की सिफारिशों का भी हवाला दिया था। लेकिन राजपीपला के एसडीएम का इस बारे में कथित तौर पर कहना था कि उनके खिलाफ दो लंबित एफआईआर ही उन्हें निर्वासित करने के लिए पर्याप्त सबूत के तौर पर हैं। आदेश यह भी कहता है कि चूंकि मुसाफिर के खिलाफ पहले से ही मामले लंबित हैं, इसलिए उसे तब तक निर्दोष नहीं माना जा सकता जब तक कि उसकी बेगुनाही साबित नहीं हो जाती।

प्रजापति कहते हैं “मुसाफिर वर्षों से एक कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहे हैं और उन्होंने अपने जीवन को निस्सहाय लोगों के सशक्तीकरण के प्रति समर्पित कर रखा है। इसके तहत वे उन्हें खेती के लिए टिकाऊ और जैविक तकनीक तक पहुँच बना सकने में मदद पहुँचाने के साथ-साथ बायोगैस संयंत्रों और पर्यावरण के अनुकूल वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में जुटे हुए हैं। विशेषतौर उन्होंने पर गदुरेश्वर मेड और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से विस्थापित होने वाले आदिवासी परिवारों के हकों की लड़ाई लड़ने का काम किया है।”

 “जबसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण हुआ है तबसे केवाडिया के हालात बदलते चले गए हैं, और धीरे-धीरे इस इलाके में टूरिज्म से जुडी परियोजनाओं ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। जो कोई भी इसके विरोध में आवाज बुलंद करता है, वह स्थानीय पुलिस की निगाह में आ जाता है ” नाम जाहिर न किये जाने की शर्त पर एक आदिवासी कार्यकर्ता ने इस तथ्य से अवगत कराया।

इस सम्बंध में मुसाफिर ही गुजरात के एकमात्र ऐसे कार्यकर्ता नहीं हैं जिन्हें इस वर्ष बहिरागत होने का नोटिस दिया गया है। इससे पूर्व जुलाई में, अहमदाबाद में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए अहमदाबाद के कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी को भी इसी तरह का एक नोटिस मिला था।

मुसाफिर जो अब सूरत के नजदीक मांडवी में आकर रह रहे हैं,  का कहना है "मैं हमेशा से उन सभी का पक्षधर रहा हूँ, जिन्हें गुजरात के किसी भी हिस्से में अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ा है।"

मुसाफिर को हर 15 दिन में एक बार मांडवी पुलिस को रिपोर्ट करना होता है, जब तक कि उनके तड़ीपार होने की अवधि खत्म नहीं हो जाती। मूलतः भावनगर जिले के रहने वाले इस कार्यकर्ता ने 1986 में केवडिया के मठावड़ी गांव को अपना नया आशियाना बनाया था, जब नर्मदा बांध के निर्माण हेतु भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आदिवासियों ने आंदोलन का सिलसिला शुरू हुआ था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Gujarat Tribal Rights Activist Externed from 5 Districts Amid Reports of PM’s Scheduled Visit

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