Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

'हम अब यहां नहीं रहेंगे': शांति-सुरक्षा के लिए बहुत से लोग कश्मीर छोड़ने को मजबूर

समृद्ध व्यावसायिक परिवार और छात्र "हमेशा के लिए" एक सुरक्षित स्थान चाहते हैं।
srinagar market
प्रतीकात्मक तस्वीर

श्रीनगर शहर के मुख्य बाजार के मध्य में स्थित एक भव्य अल बर्क़ सेनिटेशन वेयरहाउस के मालिक ने यहां से जाने का "विकल्प तलाशना" शुरू कर दिया है। यह उनके द्वारा अपना बोरिया बिस्तर बांधने और खूंखार कश्मीर घाटी को हमेशा के लिए अलविदा कहने की योजना का कोड वर्ड है।

5 अगस्त को नई दिल्ली के "ऐतिहासिक" फैसले के बाद, एक पूर्ण राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील करने और इसे दो केंद्र प्रशासित प्रदेशों में बाँटने क के बाद, आम कश्मीरी भय की जिंदगी जी रहे हैं। इसमें वे परिवार भी शामिल हैं, जिन्होंने 1963 में अल बर्क़ वेयरहाउस की शुरुआत की थी।

रियाज़ हकीम के दादाजी ने इस कंपनी को शुरू किया था और आज यह एक समृद्ध कंपनी है। लेकिन 5 अगस्त के बाद से, जिस दिन से कश्मीर की घेरेबंदी की गई है, परिवार ने एक बार भी गोदाम-शोरूम नहीं खोला है। हकीम कहते हैं, ''हम इस घेरेबंदी के कारण सैकड़ों हजार रुपये का घाटा झेल रहे हैं।

श्रीनगर में अपने भव्य निवास पर, हकीम ने भविष्य में अपने व्यापार के बढ़ने की संभावनाओं पर, वर्तमान में हुए नुकसान को कैसे पुरा करेंगे और केंद्रशासित प्रदेश के रूप में कश्मीर की राजनीति पर चर्चा की। उनके पिता और दो भाई-बहन भी पारिवारिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

एक डरे हुए हकीम ने कहा  "हमने तुर्की जाने का फैसला किया है, हम यहाँ पूरे के पूरे काम-धंधे को बंद कर देंगे और कहीं सुरक्षित जगह पर चले जाएंगे।

यहां से परिवार के चले जाने के कारणों में कश्मीर में "जीवन की कोई गारंटी नहीं" भी एक बड़ा कारण है। हड़ताल या हमलों की वजह से लगातार वेयर हाउस के बंद रहने से वे परेशान हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'मैंने अपने बेटों से कहा है कि वे बाहर (देश से बाहर) जाकर देखें कि हम अपना व्यवसाय कहां स्थापित कर सकते हैं। हम अब यहां रहना नहीं चाहते हैं। हकीम के पिता अब्दुल हकीम अहंगर कहते हैं, हम खुद को और अपने व्यवसाय को स्थानांतरित करने के लिए दो से चार देशों का जायज़ा ले रहे हैं।

अहांगर का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्ज़े को वापस लेने के बाद से कई दक्षिणपंथी समूहों के हौसले बुलंद हो गए हैं। वे अब कश्मीर को पूरी तरह से स्वाहा करना चाहते हैं। अनुच्छेद 370 हमारे लिए एक ढाल [सुरक्षा की] थी। उन्होंने हमसे वह ढाल भी छीन ली। वे केवल हमारी जमीन चाहते थे। वे ऐसा कर कश्मीर को दूसरा फिलिस्तीन बनाना चाहते हैं।

अहंगर के सबसे बड़े बेटे माजिद, जो एक मीठे स्वभाव के व्यक्ति हैं, जो परिवार के व्यवसाय में भी मदद करते हैं, उनके मन में मीडिया के बारे में संदेह हैं: और कहते हैं कि "हम किसी को भी यह बताना नहीं चाहते हैं कि हम किस देश में जा रहे हैं। लेकिन हम निश्चित रूप से यहां से चले जाएंगे।उनकी माँ चुपचाप दुर बैठी हमारी बातें सुन रही थी।

अल बर्क सेनिटेशन में 23 कर्मचारी काम करते हैं। हकीम कहते हैं कि, ''हम अपने सभी कर्मचारियों को हर महीने लगभग 400,000 डॉलर का भुगतान करते हैं।काफी समय से हकीम और उनके दोस्त के बीच यह चर्चा चल रही है कि ऐसे कौन से देश हैं जिनमें वे शरण ले सकते हैं। उनके कुछ दोस्त अपने परिवारों के साथ बैंगलोर यानि दक्षिण में चले गए हैं और वहां अपने उद्यमों को फिर से शुरू कर दिया हैं। लेकिन हकीम "हमेशा के लिए किसी सुरक्षित स्थान पर जाने की बात करते हैं।  भारत के भीतर, जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, उसी देश में किसी अन्य स्थान में स्थानांतरित होना बेहतर विकल्प नहीं है जिसे कि गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

इस परिवार के कई अन्य रिश्तेदार और दोस्त अब कश्मीर से बाहर जाने की योजना बना रहे हैं, वह भी "एक प्रमुख हिंदू बहुमतवादी राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यक" होने के डर से ऐसा क़दम उठा रहे हैं।

उत्पीड़न के डर से भागते छात्र

कश्मीर में ज्यादातर संपन्न परिवार अपने बच्चों को देश के बाहर शिक्षित करने की योजना बना रहे हैं। श्रीनगर के सिविल लाइन्स इलाके के हैदरपोरा के निवासी कहते हैं, "एक बार जब घेरेबंदी खत्म हो जाएगी और संचार माध्यम बहाल हो जाएंगे, तो हम अपने बच्चों को कनाडा या यूनाइटेड किंगडम भेजने की संभावना पर काम करेंगे।"

इस आदमी का कहना है कि 2016 में कश्मीर में नागरिक अशांति के दौरान, छात्रों को स्कूल नहीं जाने के दर्दनाक दौर से गुजरना पड़ा था। इस तरह “एक पूरा शैक्षणिक वर्ष तबाह हो गया था। बार-बार की इस अशांति से हमारे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अब हम उन्हें भी बाहर भेजने की योजना बना रहे हैं।

उत्तरी कश्मीर के बारामूला शहर के एक अन्य निवासी का कहना है कि यदि उनका बेटा घाटी के बाहर कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाता है तो उसे पूरा शैक्षणिक वर्ष गंवाना पड़ेगा। उनके विश्वविद्यालय से आखरी बार कोई  समाचार [इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी] केवल 7 अगस्त को आया था, जब सेमेस्टर परीक्षाएं चल रही थीं। उस घोषणा में कहा गया कि उनकी परीक्षाएं 9 अगस्त से दो दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई हैं। लेकिन अभी तक विश्वविद्यालय और छात्रों के बीच कोई संवाद कायम नहीं हुआ है।

एक बी. टेक छात्र के पिता ने कहा उनका बेटा, नई दिल्ली जाने की योजना बना रहा है और वे अपने बेटे को दिल्ली के एक विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाने की कोशिश कर रहे है। उसके दोस्त उन्हें शारदा विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए कह रहे हैं, जहां अभी भी कुछ सीटें खाली हैं क्योंकि प्रवेश प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। यह बेहतर होता कि वह वहां चला जाता, एक डिग्री प्राप्त करके विदेश के लिए उड़ान भर जाता इससे पहले कि हालात यहां ज्यादा खराब हो जाए।

कश्मीर के छात्र पहले से ही उत्तरी अमेरिकी विश्वविद्यालयों या पूर्व एशियाई देशों में जाते हैं, जैसे कि मलेशिया आदि। एक छात्र ने कहा “मुझे इस वर्ष 10 वीं कक्षा की परीक्षा देनी है; लेकिन मलेशिया की प्रवेश प्रक्रिया की पड़ताल करने के लिए मैं वहां की यात्रा करने जा रहा हूं। मलेशियाई विश्वविद्यालय सितंबर और जनवरी में छात्रों की भर्ती करते हैं। अगर मुझे अपनी 10 वीं कक्षा के लिए दोबारा आवेदन करना पड़े, तो मैं अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए खुशी से ऐसा करूंगा।

जिन लोगो ने चर्चा की है वे गिरफ्तार होने के डर से अपना असली नाम नहीं बताना चाहते।
 
दानिश बिन नबी श्रीनगर, कश्मीर में स्थित एक पत्रकार है। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं। 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest