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श्री नारायण गुरु को नज़राना केरल के सामाजिक इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा 

गुरुदेव ने भारत के इस स्थिर हिस्से में समानता, न्याय और एकता एवं सदाचार तथा 'संगठन' का एक क्रांतिकारी माहौल तैयार किया था।
श्री नारायण गुरु को नज़राना केरल के सामाजिक इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा 

पिनारयी विजयन के अपने सार्वजनिक जीवन के पांच दशकों से अधिक के समय में जिसे ऐतिहासिक विरासत के रूप में जाना जाएगा वह निश्चित तौर पर श्री नारायण गुरु के नाम पर एक ओपन विश्वविद्यालय की स्थापना होगी। इस निर्णय की घोषणा करते हुए, पिनाराई ने ट्वीट किया कि गुरुदेव ने "एक पूरे के पूरे युग को शिक्षित किया था" और यह विश्वविद्यालय उनसे प्रेरणा लेकर "हमारे समाज की सेवा" करेगा।

यह केरल का पहला ओपन विश्वविद्यालय होगा और यह केरल में कम्युनिस्ट आंदोलन के नायक का गुरुदेव को एक महान नज़राना भी होगा। गुरुदेव ने भारत के इस स्थिर हिस्से में समानता, न्याय और एकता एवं सदाचार तथा 'संगठन' का एक क्रांतिकारी माहौल तैयार किया था। गुरुदेव ने जिन सामाजिक धाराओं या विचारों का प्रसार किया था, वे 1940 के दशक में समाजवादी आदर्शों को उपजाऊ ज़मीन प्रदान करती थीं और कम्युनिस्ट पार्टी की जड़ें भी उस मिट्टी में अनिवार्य रूप से गहरी हुई थी। बाकी सब इतिहास है।

गुरुदेव ने शिक्षा को सबसे बड़ी धरोहर माना था और कहा था कि शिक्षा मानव जाति की तरक्की का सार है। मैं केवल उन बातों को याद कर सकता हूं जिन्हे मेरी दिवंगत मां जो गुरुदेव की बड़ी  महान शिष्या थी, अपने बच्चों के कानों में बुदबुदाती थी- आप शिक्षा को छोड़कर जीवन में अपनी बाकी सभी चीजों को गंवा सकते हैं; इसलिए, ज्ञान हासिल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा अवसरों का  लाभ उठाया जाना चाहिए।'

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो वंचित समुदायों के लाखों मलयाली लोगों ने गुरुदेव द्वारा खोले गए आत्मज्ञान का मार्ग अपनाया।

जब भी मैं भारतीय विदेश सेवा में नौकरी करने के बाद केरल के अपने घर जाता, तो मेरी माँ अनजाने में मुझे शिवगिरी मठ ले जाया करती थी और हम गुरुदेव की समाधि पर प्रार्थना कर पूरा दिन बिताते थे और बस वहीं बैठकर तब तक ध्यान-मग्न रहते जब तक कि शाम नहीं ढल जाती थी। बाग में गुरुदेव की उपदेशों के शिलालेख लगाए हुए थे।

हर शिलालेख पर लिखे उनके कथन पढ़ते जिनका अर्थ में काफी गहरा होता था। कुछ तो काफी प्रसिद्ध हैं जिन्हे आज के वक़्त में बार-बार दोहराए जाने की जरूरत है: मानव जाति की एक जाति, एक धर्म, एक भगवान है; और मानव की जाति के बारे में मत पूछो, मत कहो, मत सोचो; कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसका धर्म क्या है, अगर यह आपको एक बेहतर इंसान बनाता है तो इसका मक़सद पूरा हो जाता है; धर्म ईश्वर को पाने का साधन है, यह कोई ईश्वर नहीं है।

गुरुदेव की एक कहावत/उपदेश जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, बेशक यह उनका उनका उद्बोधन भी था, 'शिक्षा के जरिए प्रगति और संगठन के जरिए ताक़त को पाना। गुरुदेव ने सामाजिक उत्पीड़न और जातिगत पूर्वाग्रहों और भेदभाव को चुनौती देने और इन सब से मुक्ति की दिशा में जीवन की कठिन यात्रा में शिक्षा और सामाजिक एकजुटता पर जोर दिया था।

1950 और 1960 के दशक में जाने-माने राजनेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री आर॰ शंकर की देखरेख में उच्च शिक्षण संस्थानों ने ईझावा समुदाय के उत्थान में प्रमुख भूमिका निभाई थी। आज कोल्लम और वर्कला के आसपास पूरे दक्षिणी केरल बेल्ट में शायद ही कोई एझावा परिवार होगा, जिस परिवार में कोई पोस्ट-ग्रेजुएट न हो।

मैंने अपनी माँ से सुना कि कुछ परिवार, जिनमें मेरे एक अंकल सी॰ केशवन भी शामिल है, जो एक मुख्यमंत्री भी थे, पिछली सदी के शुरुआती दौर में आजीविका के लिए बुनाई जैसे व्यवसाय में शामिल थे।

जब मैंने 1971 में अपनी एमए की परीक्षा रैंक धारक के रूप में पास की, तो आर॰ शंकर जो मेरे पिता के करीबी दोस्त थे, ने उन्हें फोन किया और कहा कि मुझे कोल्लम के श्री नारायण कॉलेज में अपना ‘करियर’ शुरू कर लेना चाहिए। शंकर ने कहा, "मैं उसे बचपन से जानता हूं, और मुझे यह भी पता है कि वह आईएएस में जाएगा। इसलिए मैं चाहता हूं कि वह श्री नारायण कॉलेज में एक महीने काम करे।"

अंतिम फैंसलाकुन अंदाज़ में, शंकर ने कहा, "गुरुदेव बहुत खुश होंगे।" इसलिए, मैंने कोल्लम में एक लेक्चरर/व्याख्याता के रूप में अगले सप्ताह से काम करने की सूचना दे दी! मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं था कि अपने समुदाय से सबसे पहले जब में 22 साल की उम्र में पहले ही प्रयास में मेरिट लिस्ट में ऊंचे रैंक के साथ भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो जाऊंगा तो गुरुदेव बेहद खुश होंगे।

प्रस्तावित ओपन विश्वविद्यालय की घोषणा की पूर्व संध्या पर, पिनाराई ने गुरुदेव की  विचारधारा ’के बारे में कुछ विचार-उत्तेजक टिप्पणियां कीं हैं। पिनाराई ने कहा कि गुरुदेव की विशिष्टता इस बात में निहित है कि उन्होंने अपनी हर बात में इंसान और उसकी इंसानियत को सबसे पहले रखा। यह वास्तव में ऐसा है। और समय रहते यह याद रखना चाहिए कि हाल ही  में गुरुदेव को अद्वैत दर्शन के अन्य-सांसारिक वक्ता के रूप में चित्रित करने के बड़े ठोस प्रयास किए जा रहे है।

सबसे मुख्य बात यह है कि गुरुदेव ने शिक्षा, स्वस्थ जीवन, व्यापार और अन्य व्यवसायों के माध्यम से- इस दुनिया में मनुष्य के अभावों और पीड़ाओं का व्यावहारिक समाधान खोजने की कोशिश की थी। उनकी पूर्वधारणाएँ मोटे तौर पर जीवन में मनुष्य की वर्तमान समस्याओं के बारे में थीं, न कि आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में थी।

पिनाराई ने कहा, “नारायण गुरु और शंकराचार्य दोनों अद्वैत दर्शन के पैरोकार थे। लेकिन नारायण गुरु के बारे में जो बात अलग थी वह यह है कि उन्होंने अद्वैत का उपयोग मानव जीवन की बेहतरी के लिए किया न कि रूढ़िवादी मूल्यों को बढ़ाने के लिए। नारायण गुरु ने उनमें सुधार करने की कोशिश की और अपना समय प्रगतिशील प्रकृति के मानवीय और व्यावहारिक मार्गों को प्रस्तावित करने के लिए समर्पित किया था।”

पिनाराई ने जो कहा उसमें बहुत बड़ी सच्चाई है। उत्सुकता की बात है कि गृहमंत्री अमित शाह इस बिंदु पर पिनाराई से सहमत हैं। बुधवार को गुरदेव की 166 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए, अमित शाह ने लिखा, “दलितों/वंचितों के सशक्तीकरण और शिक्षा के प्रति नारायण गुरु का योगदान अविस्मरणीय है। उनका दर्शन और सलाह देश में लोगों के जीवन को रोशन देता रहेगा।”

हालांकि, हमें उनकी आध्यात्मिकता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जो गुरुदेव के जीवन और काम को कवर करती है। दरअसल, यहां कोई विरोधाभास भी नहीं है- कि एक ही समय में कोई व्यक्ति मानवतावादी और आध्यात्मिक भी हो सकता है। समस्या तब पैदा होती है जब आध्यात्मिकता धर्म से विमुख हो जाती है।

आध्यात्मिकता एक बेहतर और बेहतर इंसान बनने के बारे में है। यह अकेले व्यक्ति की अपनी यात्रा है। इसके लिए आपको धर्म का चौगा नहीं पहनना पड़ेगा। जबकि, मानवतावाद व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से इंसानी मूल्य पर जोर देता है। मेरे दिमाग में, गुरुदेव भारत के आध्यात्मिक इतिहास में गौतम बुद्ध के सबसे करीब आते हैं।

जैसा कि लगता है, कि पिनाराई ने अपने कंधों पर एक विशाल जिम्मेदारी ले ली है। एक ओपन विश्वविद्यालय जिसे गुरुदेव के नाम पर बनाया जा रहा है, वह आने वाले दशकों तक समाज में रोशनी का स्रोत बनेगा। यह गुरुदेव की उस उद्घोषणा के मुताबिक होना चाहिए कि शिक्षा से ही समाज की प्रगति संभव है।

निहित स्वार्थों को इसकी प्रतिबद्धता को नष्ट न करने दें जो कि ओपन विश्वविद्यालय द्वारा राज्य में दूरस्थ शिक्षा संस्थानों की एक छतरी की तरह काम करेगा। समान रूप से, इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं कि विज्ञान विषयों को पाठ्यक्रम में पेश किया जाना चाहिए। गुरुदेव एक वैज्ञानिक स्वभाव वाले संत थे।

सबसे महत्वपूर्ण बात, पिनाराई विजयन को इसकी स्थापना के समय एक प्रबुद्ध दिमाग को विश्वविद्यालय की कमान सौंपनी चाहिए। ऐसा कराते वक़्त सभी प्रकार के दबाव समूह काम कर रहे होंगे लेकिन इस ऐतिहासिक परियोजना की सफलता काफी हद तक इसके नाविकों और रचनात्मक अवधि पर निर्भर करेगी।

केरल के मामले में ओपन यूनिवर्सिटी की बहुत बड़ी प्रासंगिकता है जहां जन साक्षरता पहले से मौजूद है, लेकिन आर्थिक मजबूरियां युवा लोगों को अपने परिवारों का समर्थन करने के लिए नौकरियां लेने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने के अवसर में बाधा उत्पन्न होती है। हर कोई इस बात का अंदाज़ा लगा सकता है कि अगर प्रगतिशील दृष्टिकोण के साथ इसे स्थापित किया जाता है तो ओपन विश्वविद्यालय में लाखों छात्र आसानी से दाखिला लेंगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Homage to Sree Narayana Guru and Landmark in Kerala’s Social History

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