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बच्चों को भूख और अमीरों को टैक्स में छूट

भारत में बच्चें भूख से बिलबिला रहे हैं, देश में अनाज के भंडार भरे पड़े हैं और बड़े पूँजीपतियों यानी कॉर्पोरेट को टैक्स में बड़ी राहत दी जा रही है।
Children go hungry in India

एक बच्चा होने के नाते मुझे नॉनवेज में जिगर यानी कलेजी खाना कभी पसंद नहीं था। जब मेज़ पर खाने के लिए बैठता तो मैं अपनी थाली लिए लंबे समय तक टकटकी लगाए बैठा रहता था, तब तक जब तक कि सभी लोग अपना खाना समाप्त नहीं कर लेते थे। "आप यहाँ बैठकर अपना भोजन बर्बाद कर रहे हैं," और वहाँ इथियोपिया में बच्चे भूख से मर रहे हैं, मेरी माँ मुझे डांटते हुए कहती।" यह सुनने वाला मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि मुझे लगता है कि लगभग हम सभी ने भूखे इथियोपियाई बच्चों के बारे में इस कल्पित कहानी को जरूर कहीं ना कहीं सुना होगा।

आज चालीस साल बाद, लगता है मेज़ बदल गई हैं। क्योंकि आज, इथियोपिया ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हमसे ऊपर चला गया है। इसका सबसे बड़ा और मुख्य कारण यह है कि इथियोपिया के बच्चों को हमारे देश के बच्चों की तुलना में बेहतर पोषण यानि पौष्टिक आहार मिलता है। केवल इथियोपिया ही नहीं बल्कि ऐसे कई अन्य गरीब अफ्रीकी देश हैं जैसे नाइजीरिया, तंजानिया, मोजाम्बिक, अंगोला, गिनी-बिसाऊ और नाइजर आदि जो हंगर इंडेक्स में हमसे काफी ऊपर हैं। और, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हमसे आगे हें।

हालांकि पूरी की पूरी रैंकिंग, कुछ खतरनाक तथ्यों  को छुपा जाती है। इसे समझने के लिए, हमें भूख सूचकांक की गणना कैसे की जाती है का थोड़ा खोल कर विश्लेषण करना होगा। यह चार व्यापक मुख्य उपायों का प्रयोग करता है, जिसके तीन बिन्दु पोषण के स्तर से सीधे संबंधित होते हैं। पहले, किसी भी देश के उन लोगों का प्रतिशत लिया जाता है, जो 'अल्पपोषित' हैं, यानी वे लोग जिन्हें पर्याप्त मात्रा में कैलोरी नहीं मिलती है।

दूसरा प्रतिशत पांच वर्ष से कम आयु के उन बच्चों का का लिया जाता है, जिनकी लंबाई के मुकाबले शरीर का वजन कम होता है। ये बहुत ही ‘कमज़ोर’ बच्चे होते हें और इन्हे भयानक कुपोषण का शिकार माना जाता है, या जिन्हे वर्तमान में खाना पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है।तीसरा संकेतक जिसका कि उपयोग किया जाता है वह उन पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का प्रतिशत है, जिनका वजन अपनी आयु के मुक़ाबले काफी कम होता है। इसे 'स्टंटिंग' यानि अविकसित बच्चे कहा जाता है, जो काफी लंबे समय से कुपोषण का शिकार रहते हैं।

जब कुपोषित लोगों के समग्र यानी पूरे के पूरे अनुपात की बात आती है, तो भारत उन कई देशों से बेहतर स्थिति में है, जो देश ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 के रैंक में ऊपर हैं। भारत की आबादी में कुपोषितों लोगों का प्रतिशत 14.5 प्रतिशत है, जो बांग्लादेश के 14.7 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से बेहतर है और पाकिस्तान के 20.3 प्रतिशत से ऊपर है। इथियोपिया में  भुखमरी का 20.6 प्रतिशत और रवांडा में 14.5 प्रतिशत है। दूसरे शब्दों में कहें तो, भारत में इन चार देशों की तुलना में भूखे लोगों का अनुपात बहुत कम है जो भारत को समग्र भूख सूचकांक में इनसे ऊपर लाता हैं।

यहां तक कि जब छोटे बच्चों के बीच पुरानी भूख की बात आती है, जैसा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग की व्यापकता से संकेत मिलता है, भारत का प्रदर्शन अन्य चार देशों की तुलना में खराब नहीं है। भारत में, 37.9 प्रतिशत छोटे बच्चों में अपने उम्र के मुक़ाबले वजन कम है। ऐसा ही संकेत बांग्लादेश से भी है जहां यह संख्या 36.2 प्रतिशत है, पाकिस्तान में यह 37.4 प्रतिशत है, जबकि इथियोपिया में 38.4 प्रतिशत और रवांडा में यह 37.6 प्रतिशत है। मोटे तौर पर, इन देशों में प्रत्येक 10 बच्चों में से चार अविकसित (स्टंटेड) बताया जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें कई वर्षों से प्रयाप्त या पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है।

जब भी ’वेस्टिंग’ यानि बहुत ही ‘कमज़ोर’ बच्चों की बात आती है तो तस्वीर बदल जाती है, जो दर्शाता है कि हाल के दिनों में बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन नहीं मिला है। रवांडा में, पांच साल से कम उम्र के ऐसे ‘कमज़ोर’ बच्चों की संख्या केवल 2.1 प्रतिशत है। इथियोपिया में यह 7.1 प्रतिशत है, पाकिस्तान में 10 प्रतिशत, बांग्लादेश में 14.4 प्रतिशत है। जबकि भारत में, यह सबसे अधिक 20.8 प्रतिशत है, यह संख्या ऐसे किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है जो इन संखयाओं को दर्ज़ करता है।

भारत में प्रत्येक पांच बच्चों में से एक को 2014-18 के बीच तीव्र यानि भयानक कुपोषण का सामना करना पड़ा है, जिसे कि नवीनतम हंगर इंडेक्स द्वारा कवर किया गया है। 2008-12 के बीच के तुलनीय आंकड़ों से पता चलता है कि उस वक़्त ‘कमज़ोर’ बच्चों की संख्या 16.5 प्रतिशत थी, या हर छह बच्चों में से एक थी। इससे पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में देश में तीव्र भूख एक बड़ी समस्या बन गई है, जो स्थिति करीब 10 साल पहले थी।

अगर कुपोषण के आंकड़े की पूरी आबादी से तुलना करें। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, तो 2014-18 के बीच 14.5 प्रतिशत भारतीयों को पर्याप्त कैलोरी नहीं मिल पाई है। 2008-12 के बीच यह प्रतिशत 17.5 प्रतिशत था। इससे पता चलता है कि बड़े बच्चों और वयस्कों को संभवतः छोटे बच्चों की तुलना में अब बेहतर पोषण मिल रहा है।

इन आंकड़ों का यह सबसे भयानाक हिस्सा है, क्योंकि यह सुझाता है कि सक्षम कामकाजी गरीब युवा बच्चों को कम खिलाने के लिए मजबूर है, क्योंकि अगले दिन काम पर वापस जाने के लिए खुद के लिए बेहतर खाने की जरूरत है। यह उस पारंपरिक ज्ञान की धज्जी उड़ा देता है, जिसमें कहा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चों का पेट भरने के लिए खुद को भूखे रखते हैं। भयंकर गरीबी में, यह संभव नहीं है। आखिरकार, काम करने वाले वयस्कों, चाहे उन्हे काम के एवज़ में पैसा मिलता हैं या फिर वे घर पर अवैतनिक काम करते हैं, को अपनी श्रम शक्ति को पुन: पाने के लिए कुछ बुनियादी मात्रा में कैलोरी का उपभोग करने की आवश्यकता होती है, ताकि अगले दिन काम करने की क्षमता को फिर से हासिल किया जा सके।

पूरे के पूरे नरेंद्र मोदी के शासन के दौरान यह किसी भी अन्य रूप में बढ़ती निर्धनता का संकेत है। खासतौर पर, जब इसे अन्य आंकड़ों के साथ देखा जाता है, जैसे कि बढ़ती हुई ग्रामीण बेरोजगारी, कम ग्रामीण मजदूरी, कृषि में वास्तविक आय में कम बढ़ोतरी आदि।

यह शर्मनाक बात है कि यह डेटा (आंकड़े) ऐसे समय में आया है जब भारतीय खाद्य निगम के भंडार भरे पड़े हैं। रिपोर्टों में कहा गया है, सचिवों की एक समिति ने पहले ही सिफारिश की है कि अतिरिक्त खाद्यान्न को मानवीय सहायता के रूप में जरूरत मंद ’देशों को निर्यात कर दिया जाए, और अब खाद्य मंत्रालय ने भी इसी अनुरोध के साथ विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा है।

जाहिर तौर पर, खाद्यान्न का बाजार मूल्य इतना कम है कि एफसीआई यदि इसे बेचता है तो वह इसकी लागत वसूल नहीं कर पाएगा। इसके लिए कोई भी कल्याणकारी सरकार अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त करती और भूखे गरीबों को अनाज के अतिरिक्त भंडार से नवाज़ती। लेकिन यह उस नव-उदारवादी सिद्धांत के खिलाफ होगा जिसे मोदी सरकार आर्थिक नीति निर्धारण के मामले में लागू करती है।

इसलिए, भारत के बच्चे भूखे रहते हैं जबकि भारत के कॉरपोरेट्स को बड़ी टैक्स राहत दी जाती है।
 
(औनिंद्यो चक्रवर्ती NDTV इंडिया और NDTV प्रॉफ़िट के वरिष्ठ प्रबंध संपादक थे। वे YouTube चैनल Desi Democracy चलाते हैं और न्यूज़क्लिक पर एक साप्ताहिक शो इकोनॉमी का हिसाब किताब चलाते है। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

 Disquiet on the Hunger Front

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