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पड़ताल: मैला ढोने की प्रथा पर मोदी सरकार का गैर-ज़िम्मेदार दावा

हम अगर सरकारी आंकड़े को ही मान लें जो बेहद अपर्याप्त है, फिर भी भारत के 17 राज्यों में 58,098 कामगार मैला प्रथा में संलग्न हैं। तो मोदी सरकार किस आधार पर दावा कर रही है कि देश से मैला प्रथा का ख़ात्मा हो चुका है।

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मोदी सरकार के आठ साल पूरा होने के मौके पर जमकर प्रचार किया जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों के बारे में तरह-तरह के दावे किये जा रहे हैं। इसी सिलसिले में MygovIndia ट्विटर हैंडल से हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा बारे एक पोस्टर ट्वीट किया गया। पोस्टर में लिखा है कि 2 लाख से अधिक लाभार्थियों को 1400 करोड़ का ऋण प्राप्त हुआ है। पोस्टर में मैला प्रथा के खात्मे का दावा किया गया है। तो क्या भारत से सचमुच मैला प्रथा का खात्मा हो गया है? आइये, पड़ताल करते हैं।

जांच-पड़ताल

आखिर सरकार किन प्रमाणों के आधार पर दावा कर रही है कि मैला ढोने की प्रथा का खात्मा हो गया है? जब इस बारे में खोजबीन की गई तो ऐसे अनेक उदाहरण मिले जो बता रहे हैं कि भारत में अब भी हाथ से मैला उठाने का काम हो रहा है और दलित आबादी आज भी  इसमें संलग्न हैं।

उदाहरण के तौर पर दिसंबर 2021 को कांग्रेस के सांसद नीरज डांगी ने मैला प्रथा बारे राज्यसभा में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से कुछ सवाल पूछे।

उन्होंने पूछा कि देश में हाथ से मैला उठाने में लगे लोगों का राज्यवार ब्यौरा क्या है? पिछले पांच साल में हाथ से मैला उठाने वाले कितने लोगों की मौत हुई है? वर्ष 2016 से लेकर अब तक हाथ से मैला उठाने वाले कितने लोगों का पुनर्वास किया गया है, वर्षवार और राज्यवार ब्यौरा क्या है? पुनर्वास प्रक्रिया के लिए कितनी निधि आवंटित की गई और कितनी निधि का उपयोग किया गया है? सरकार द्वारा ऐसे कामगारों का पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने इन सवालों का जवाब दिया है। उनके लिखित जवाब में साफ-साफ लिखा है कि देश में 58,098 लोग हाथ से मैला उठाने की प्रथा में संलग्न हैं। यहां ये भी स्पष्ट कर दें कि ये आंकड़ा मात्र 17 राज्यों का है। असल में आज तक सरकार को पता ही नहीं है कि भारत में कुल कितने लोग इस प्रथा का दंश झेल रहे हैं। देश में दो बार सर्वे की महज अपर्याप्त कोशिशें ही हुई हैं। जिसके आधार पर रामदास अठावले ने जवाब दिया है।

अजीब बात है कि मंत्रालय को ये तक नहीं पता कि देश में हाथ से मैला उठाने वाले कितने लोग हैं। सभी राज्यों का रिकॉर्ड तक नहीं है।

असल बात ये है कि इस अमानवीय प्रथा का दंश झेल रहे लोगों की पहचान तक करने की कोई गंभीर कोशिशें नहीं की गईं।

सफाई कर्मचारी आंदोलन के अनुसार भारत में 7,70,000 हाथ से मैला उठाने वाले कामगार हैं। अंतर्राष्ट्रीय दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क के अनुसार भारत में तकरीबन 13 लाख लोग मैला प्रथा में संलग्न हैं। जिनमें बड़ी संख्या में औरतें हैं। कुल मिलाकर बात ये है कि प्रथा चालू है लेकिन ढंग का रिकॉर्ड नहीं है। उल्टे मोदी सरकार इस समस्या को ही नकार रही है। कह रही है कि मैला प्रथा का खात्मा हो चुका है। भारत में मैला प्रथा में संलग्न कामगारों की संख्या, पुनर्वास के प्रयास तथा इसके सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक आयामों पर विस्तार से बात करने और समझने की जरूरत है। वो फिर कभी। फ़िलहाल बात को सरकार के दावे तक ही सीमित रखते हैं।

निष्कर्ष

हम अगर सरकारी आंकड़े को ही मान लें तो भारत के 17 राज्यों में 58,098 कामगार मैला प्रथा में संलग्न हैं। तो मोदी सरकार किस आधार पर दावा कर रही है कि देश से मैला प्रथा का खात्मा हो चुका है। सरकार का दावा गलत है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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