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प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो या भाजपा प्रोपगेंडा सेल!  

शुक्रवार, 17 मार्च को पीआइबी ने एक ग्रैफ़िक ट्वीट किया। जिसमें लिखा है भारत में मेडिकल शिक्षा में जबरदस्त उछाल। आइए ज़रा इसकी तथ्यात्मक पड़ताल करते हैं।
PIB

यह दौर सूचनाओं का दौर है। सूचनाओं के जरिये ना सिर्फ एक नैरेटिव तैयार किया जाता है बल्कि आपके सोचने-समझने और महसूस करने को भी नियंत्रित किया जाता है। एक डिज़ाइन के तहत न सिर्फ ये तय किया जाता है कि आपको क्या सूचना देनी और किस तरह से देनी है बल्कि इसका भी ध्यान रखा जाता है कि आपको क्या सूचना नहीं देनी है।

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (PIB) की रिसर्च विंग के द्वारा भारत में मेडिकल शिक्षा के संदर्भ में तैयार किया ग्रैफिक इसका एक उदाहरण है। इसे देखकर समझना मुश्किल है कि ये इनफार्मेशन ब्यूरो की विज्ञप्ति है या भाजपा के प्रोपगेंडा सेल का ग्रैफिक।

17 मार्च 2023 को पीआइबी ने एक ग्रैफिक ट्वीट किया। जिसमें लिखा है भारत में मेडिकल शिक्षा में जबरदस्त उछाल। इसे केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, स्वस्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीन पवार, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडवीय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और इसके अलावा भी कई राज्यों के पीआईबी के ट्विटर हैंडल से रिट्वीट किया गया है।

ट्वीट में लिखा है कि वर्ष 2014 में मेडिकल कॉलेज़ की संख्या 387, वर्ष 2023 में 660. पोस्टर में 1951 से लेकर वर्ष 2023 तक मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या को एक ग्राफ के जरिये दिखाया गया है। ट्वीट में लिखा है कि वर्ष 1951 की तुलना में 23 गुणा बढ़ोतरी और पिछले एक दशक में मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें गलत क्या है? अगर पिछले एक दशक में मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या दोगुनी हुई है तो बताने में क्या हर्ज़ है? असल में सारा खेल यहीं है। क्योंकि इस पोस्ट में बहुत सी सूचनाएं आपसे छिपा ली गई हैं ताकि एक खास तरह का नैरेटिव तैयार किया जा सके। कैसे? आइये, इसे समझते हैं।

आधी-अधूरी जानकारी और प्रोपगेंडा का डिज़ाइन

आपको ये तो बताया गया है कि देश में फिलहाल 660 मेडिकल कॉलेज़ हैं। आपको ये भी बताया गया है कि पिछले एक दशक में मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई हैं। ट्वीट के अनुसार वर्ष 2011 में 334 मेडिकल कॉलेज़ थे जो वर्ष 2023 में बढ़कर 660 हो गए। यानी लगभग 197% की बढ़ोतरी हुई। लेकिन आपको सिर्फ पिछले दशक के बारे में बताया गया है। यानी भाजपा के शासनकाल के बारे में।  आपको पिछले से पिछले दशक यानी 2002-2011 के बारे में नहीं बताया गया। सच्चाई ये है कि वर्ष 2002 में देश में 190 मेडिकल कॉलेज़ थे जो संख्या वर्ष 2011 में बढ़कर 334 हो गई। यानी 175% की बढ़ोतरी हुई थी।

आपको मात्र ये बताया गया है कि वर्ष 2023 में देश में कितने मेडिकल कॉलेज़ हैं ये नहीं बताया गया कि इनमें से कितने प्राइवेट हैं और कितने सरकारी हैं। राज्यसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से भारत में मेडिकल कॉलेज़ों के बारे में एक सवाल पूछा गया। 7 फरवरी 2023 को इसके लिखित जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीन पवार ने बताया कि देश 358 सरकारी और 296 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज़ हैं। देश में लगभग आधे यानी 46% मेडिकल कॉलेज़ प्राइवेट हैं। क्या सरकार इन प्राइवेट कॉलेज़ों को भी अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही है? क्या इतने बड़े पैमाने पर मेडिकल शिक्षा का नीजिकरण कोई उपलब्धि है?

देश के मेडिकल शिक्षण स्थानों की स्थिति

आपको ये भी नहीं बताया गया कि इन मेडिकल शिक्षण संस्थानों की स्थिति क्या है? इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति क्या है? क्या पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक और सहयाक स्टाफ इन संस्थानों में है? इसे समझने के लिए हम एम्स का उदाहरण लेते हैं। जो स्थिति स्पष्ट कर देगा कि सरकार मेडिकल शिक्षा को लेकर कितना गंभीर है।

इसे भी पढ़ेंपड़ताल: देश के एक भी एम्स में पूरा स्टाफ नहीं है!

राज्यसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से एम्स में शिक्षक और गैर-शिक्षक रिक्त पदों के बारे में पूछा गया। जिसका लिखित जवाब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीन पवार ने 15 मार्च 2022 को दिया था।

डॉ. भारती ने 19 एम्स का ब्यौरा अपने लिखित जवाब में दिया है। जिसके अनुसार इन एम्स में शिक्षकों के 4,209 पद स्वीकृत हैं। जिनमें से 2211 यानी 47% लगभग आधे पद खाली पड़े हैं। सीनियर रेजिडेंट के 2,794 पद स्वीकृत है जिनमें से 1,190 पद यानी 42.5% पद खाली पड़े हैं। जूनियर रेजिडेंट के 2,638 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 470 पद खाली पड़े हैं। इन सभी 19 एम्स में ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 35,346 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 17,804 पद खाली पड़े हैं। यानी आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। हमें देश की मेडिकल शिक्षा को इस रोशनी में भी देखने की ज़रूरत है।

ऊपर वो तमाम जानकारी आपको दी गई हैं जिन्हें आपसे छिपा लिया गया है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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