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झारखंड विधानसभा चुनाव से मॉब लिंचिंग का मुद्दा क्यों गुम हो गया है?

झारखंड के सामाजिक संगठनों के मुताबिक, 2016 से लेकर अब तक करीब 20 लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है। लेकिन राज्य में पांच चरणों में होने वाला विधानसभा चुनाव जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है यह मुद्दा गायब होता जा रहा है।
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रांची: 18 मई 2017 को सरायकेला खरसांवा जिले के राजनगर (शोभापुर) इलाके में शेख हलीम, शेख नईम, सिराज खान और मोहम्मद साजिद को भीड़ ने इसलिए पीटकर मार डाला, क्योंकि उन्हें शक था कि इन लोगों ने एक वैवाहिक समारोह के भोज के लिए बीफ की सप्लाई की थी। झारखंड में पिछले लगभग तीन सालों में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से यह भी एक थी। झारखंड में काम कर रहे अलग-अलग सामाजिक संगठनों के मुताबिक, 2016 से लेकर अब तक करीब 20 लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है।

झारखंड में विपक्षी पार्टियां इसे चुनावी मुद्दा बना रही हैं लेकिन पीड़ित परिवारों को कोई पूछ नहीं रहा है। हालांकि चुनाव जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है मॉब लिंचिंग का मुद्दा गुम होता जा रहा है। मॉब लिंचिंग की घटना के शिकार हल्दीपोखर निवासी सिराज खान की पत्नी तारा खातून का कहना है कि उन्हें न्याय मिलना बाकी है। शुरुआत में कुछ लोग मिलने आए थे लेकिन पिछले एक साल से कोई पूछ नहीं रहा है।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में 21 वर्षीय तारा खातून कहती हैं, 'जब यह घटना घटी उस समय मेरी शादी के सिर्फ 1 महीने 18 दिन हुए थे। मेरे पति ड्राइवरी करने की बात कह कर गए थे लेकिन फिर वापस लौटकर नहीं आए। हमारी किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी। बाद में पता चला कि भीड़ ने उन्हें मार डाला। उस समय कुछ मुआवजा मिला लेकिन अब कोई नहीं आ रहा है। अब ससुराल वालों को मेरी कोई खास परवाह नहीं है तो सिलाई का काम करके अपना और अपनी बेटी का खर्चा उठा रही हूं। पहले सिलाई का काम भी रेगुलर मिल जाता था लेकिन अब उसमें भी 15 दिन बैठना पड़ता है। मुझे बस इतना ही कहना है कि जैसे जिंदगी मुझे मिली है वैसी किसी को नहीं मिले।'

इसी तरह 29 जून 2017 को रामगढ़ के बाजार टांड़ में करीब 100 लोगों की उन्मादी भीड़ ने अलीमुद्दीन अंसारी नामक एक मांस व्यापारी को इतना पीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो गई। भीड़ को शक था कि वे अपनी वैन में गाय का मांस ले जा रहे थे। यह घटना तब घटी, जब प्रधानमंत्री गौरक्षा के नाम पर हो रही कथित गुंडागर्दी के खिलाफ भाषण दे रहे थे।

21 मार्च 2018 को रामगढ़ कोर्ट ने इस मामले के 11 अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनायी। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई। हाईकोर्ट ने इनमें से 10 अभियुक्तों की सजा को निलंबित कर दिया। एक अभियुक्त ने अपना आवेदन वापस ले लिया, लिहाजा वह निरस्त कर दिया गया। अभी इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है।

हालांकि इस मामले में गौर करने वाली एक बात यह भी है कि हत्या के 8 आरोपियों को जब झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत दी तो जमानत मिलने के बाद तब के केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने इन आरोपियों का माला पहनाकर स्‍वागत किया था।
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अलीमुद्दीन की बेटी सबा परवीन 

अलीमुद्दीन की पत्नी मरियम खातून न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहती हैं, 'बीजेपी के नेता आरोपियों को फूल माला पहनाकर स्वागत कर रहे हैं। यह गलत कर रहे हैं। वे ऐसी घटनाओं को हिंदू मुसलमान का रंग दे रहे हैं। लोगों को समझना चाहिए ऐसी घटना में दोनों तरफ के परिवार बर्बाद होते हैं। बीजेपी के नेता आजतक मेरे पास नहीं आए हैं, जबकि उन्हें मेरे पास आना चाहिए था। मेरा हालचाल जानना चाहिए था कि कैसे हम अपने पति के बगैर रह रहे हैं। मेरे बच्चों की पढ़ाई छूट गई है। किस तरह हम खाने पीने का जुगाड़ कर रहे हैं। इससे सद्भावना बढ़ती लेकिन जो बीजेपी के लोग कर रहे हैं उनसे नफरत बढ़ रही है।'

मरियम आगे कहती हैं, 'सिर्फ बीजेपी नहीं बाकी पार्टियों के लोग भी अब हमारे पास नहीं आए हैं। सरकारी अधिकारी नौकरी देने की बात करते रहे लेकिन अभी तक वो भी नहीं मिल पाई है। मिलने जाने पर अधिकारी टरका देते हैं। लोगों को इतनी फिक्र नहीं है कि हमारे परिवार को खर्च कैसे चल रहा है। मुआवजे के पैसे से घर बन गया है लेकिन रोटी का जुगाड़ करना अब भी मुश्किल है। 2 बेटा और एक बेटी पढ़ाई कर रही है, जबकि बड़ी बेटी सबा परवीन की पढ़ाई छूट गई है।'

इसी तरह इसी साल सितंबर महीने में खूंटी जिले के सुवारी गांव में हिंसक भीड़ ने कथित तौर पर प्रतिबंधित मांस बेचने के आरोप में एक आदिवासी को पीट-पीटकर मार डाला। उनके साथ दो और लोगों की पिटाई की गई। पुलिस ने इस मामले में करीब आधा दर्जन लोगों को हिरासत में लिया तो उन्हें छुड़ाने के लिए करीब 150 लोगों ने कर्रा थाने को घेर लिया था। थाना घेरने वालों में महिलाएं भी शामिल थीं।

इस घटना में केलेम बारला की मौत हो गई थी। वह विकलांग थे और अपनी बहन के गांव सुवारी आए थे। इस घटना में कर्रा महुवाटोली कांटी निवासी फागू कच्छप और सुवारी गांव निवासी फिलिप होरो भी भीड़ की पिटाई में घायल हुए थे।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में फिलिप होरो कहते हैं, 'मुझे बांस की डंडों से पीटा गया। किसी तरह से बस मेरी जान बच गई। महीनों अस्पताल में रहने के बाद भी अभी मेरी हालत सही नहीं है। मैं चीजों को याद नहीं रख पाता लेकिन अब भी दिन रात सोते समय सपने में वही सब दिखता है। किसी ने मेरी परवाह नहीं की। मैं अब कोलकाता में ही रहता हूं। मैंने अपने पत्नी बच्चों को भी वहीं रखा है।'

झारखंड के चर्चित तबरेज अंसारी लिंचिंग मामले में आरोपी को रांची हाईकोर्ट ने मंगलवार, 10 दिसंबर को जमानत दे दी है। गौरतलब है कि तबरेज अंसारी की 17 जून को भीड़ ने बाइक चोरी के शक में बुरी तरह पिटाई की थी। तबरेज़ की बाद में 22 जून को अस्पताल में मौत हो गई थी। तबरेज अंसारी की मौत के मामले में पुलिस ने 11 लोगों को जेल भेजा था। वहीं काम में लापरवाही बरतने को लेकर दो पुलिस अधिकारियों को भी निलंबित किया गया था।

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आपको बता दें कि अपने जंगलों और खनिज के लिए मशहूर झारखंड में ये घटनाएं गायों की कथित तस्करी और गोकशी के आरोप समेत बच्चा उठाने व अन्य चोरी की अफवाहों के कारण हुई है। सबसे बुरी बात यह रही है कि कुछेक मामलों को छोड़कर ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण या छोटे कस्बाई इलाकों में हुई हैं।

विधानसभा चुनावों के समय पीड़ित परिवारों का दुख है कि उन्हें राजनेताओं द्वारा मदद नहीं मिल रही है, इसके उलट कथित गो-तस्करी के मामले में आरोपियों को सत्ताधारी दल द्वारा संरक्षण दिए जाने की घटनाएं उनका दुख बढ़ा रही हैं।

इस चुनाव में बड़ी पार्टियों में कांग्रेस ने मॉब लिंचिंग को अपने चुनावी घोषणा पत्र में जगह दी है। पार्टी ने मॉब लिंचिंग पर कड़ा कानून बनाने की बात कही है। हालांकि बाकी विपक्षी नेता सिर्फ चुनावी भाषणों में इसे जगह देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहे हैं।

इन मामलों पर झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता अफजल अनीस कहते हैं, 'झारखंड में इस तरह की 20 से ज्यादा घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। पहली बड़ी घटना मार्च 2016 में लातेहार जिले में हुई थी। उसके बाद से यह सिलसिला चल पड़ा जो अब तक जारी है। इसमें से कई घटनाओं में आपको लगेगा कि ये प्रिप्लान थी। नफ़रत के नाम पर सुबह चार बजे या फिर सूनसान इलाकों में सैकड़ों की भीड़ कुछ घंटों में एकत्र हो जाती थी। खासकर ऐसे मामले जो कथित गो-तस्करी या गो-मांस से जुड़े होते थे।'

वे आगे कहते हैं,'झारखंड में मॉब लिंचिंग के कुछ मामलों में पुलिस की भूमिका सही थी लेकिन ज्यादातर मामलों में प्रशासन की ओर से जिस तरीके के कदम उठाने चाहिए थे वो नहीं उठाए गए हैं। जैसे जब झारखंड के रामगढ़ में बीफ ले जाने के शक में मारे गए युवक अलीमुद्दीन की हत्या के 8 आरोपियों को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दी तो जमानत मिलने के बाद तब के केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने इन आरोपियों का माला पहनाकर स्‍वागत किया था। इस तरह का काम अपराध‍ियों के हौसला ही बढ़ा। इस घटना के बाद ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ी।'

अफजल अनीस कहते हैं, 'आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण मिलना एक खतरनाक ट्रेंड है। इसे लेकर समझदार जनता में काफी आक्रोश है। इन चुनावों में सत्ताधारी दल को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।'

कुछ ऐसा ही कहना झारखंड के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बलराम का कहना है, 'झारखंड में मॉब लिंचिंग की घटनाएं एक बड़ी आबादी को उन्मादी बना रही हैं। यह एक सीरियस मुद्दा है। कथित गोतस्करी से शुरू हुई घटनाएं अब खुद जनता के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। किसी भी मसले को लेकर भीड़ अब आपकी पिटाई कर सकती है। इसे जनता भी समझ रही है, नेता भी समझ रहे हैं लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल इसे सही ढंग से प्रजेंट नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस ने एक लाइन में कहा है कि हम इसके खिलाफ कानून बनाएंगे। विपक्षी दलों को इसे और बेहतर तरीके से प्रजेंट करना चाहिए।'

झारखंड के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शुरुआती चरणों में मॉब लिंचिंग का मुद्दा उठा था लेकिन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा यह मुद्दा लगभग गायब हो गया है। इसकी मूल वजह स्थानीय मुद्दे, भाषा, क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरण रहे हैं। कोल्हान, कोयलांचल, संथाल समेत सारे क्षेत्रों के अपने मुद्दे हैं। मॉब लिंचिंग मुद्दा विपक्षी पार्टियों को बनाना था लेकिन उन्हें बड़ा लाभ इस मुद्दे से नहीं मिल रहा था। इसके उलट स्थानीय मुद्दों पर उन्हें जनसमर्थन ज्यादा मिल रहा था इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को पीछे छोड़ दिया। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद से राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। वह राज्य की विपक्षी पार्टियों पर हमला कर रहे हैं तो विपक्षी पार्टियों का फोकस भी उनपर हो गया है।
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आपको बता दें कि पिछले 15 दिनों में नरेंद्र मोदी ने झारखंड में तीन दिन चुनावी दौरा किया है और छह रैलियों को संबोधित किया है। इसके अलावा राजनाथ सिंह, केशव प्रसाद मौर्या, जेपी नड्डा, संबित पात्रा, मनोज तिवारी, नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ जैसे तमाम बड़े नेता झारखंड में डेरा डाले हुए हैं।

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा कहते हैं, 'मॉब लिंचिंग का मुद्दा चुनावी हवा के हिसाब से गायब है। इसका कारण वोट, समीकरण, क्षेत्रीय मुद्दे और बीजेपी द्वारा चुनावी फ्रंट खोला जाना है। इसमें विपक्षी दलों की गलती नहीं है। उनके जेहन में यह मुद्दा है। लेकिन इस मुद्दे पर उन्हें उतना वोट नहीं मिलेगा जितना बाकी मुद्दों पर मिलेगा। जैसे झरिया में अगर चुनाव हो रहा है तो वहां का समीकरण पहले उठाया जाएगा। वहां आग, पानी, प्रदूषण का मसला उठेगा। अगर आदिवासी इलाके की सीटों पर मुद्दे उछाले जाएंगे तो जाहिर तौर पर जमीन की सुरक्षा, जंगल पर अधिकार, विस्थापन और रोजगार होगा। इसी के चलते मॉब लिंचिंग का मसला गायब हुआ है।'

हालांकि झारखंड में मॉब लिंचिंग के मसले पर मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता और महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य न्यूज़क्लिक से कहते हैं, 'मॉब लिंचिंग बहुत ही गंभीर मसला है और बीजेपी ने झारखंड को मॉब लिंचिंग की लेबोटरी बनाकर रख दिया है। अभी तक 12 मॉब लिंचिंग धर्म के नाम पर हुए हैं। इसके अलावा बच्चा चोरी समेत तमाम अफवाहों पर न जाने कितनी लिंचिंग हुई है। सबसे सिहरन पैदा करने वाली बात यह है कि रामगढ़ में मॉब लिंचिंग के दोषियों के समर्थन में जयश्री राम के नारे लगाए गए और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ने माला पहनकर लड्डू खिलाया। तो आपको साफ दिख जाएगा कि सत्ताधारी पार्टी चाहती है कि इस तरह की घटनाएं हो और आरोपियों का माला फूल पहनाकर स्वागत किया जाय।'

वो आगे कहते हैं,'अगर राज्य में हमारी सरकार आती है तो चुन-चुनकर ऐसे सभी मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई कराई जाएगी। और सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगी कि सभी दोषियों को सजा मिले।'

वहीं, इसके उलट सत्ताधारी बीजेपी के नेता मॉब लिंचिंग की घटनाओं को विपक्ष द्वारा राज्य को बदनाम करने की साजिश बताते हैं। बीजेपी प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल कहते हैं, 'राज्य में मॉब लिचिंग की घटनाएं नहीं हुई हैं। झारखंड को लूटखंड में बदल देने वाले विपक्ष की यह साजिश थी। वो हर घटना को मॉब लिंचिंग बता रहे थे। जबकि सुनियोजित प्लानिंग करके अगर किसी घटना को अंजाम दिया जाता है तो वह मॉब लिंचिंग कहलाता है। अब हर घटना को मॉब लिंचिंग बताकर राज्य को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास विपक्षी दलों द्वारा किया जा रहा है। दरअसल कांग्रेस, जेएमएम जैसी पार्टियां झारखंड को चरागाह समझती थी। भाजपा शासनकाल में उनके लूट पर रोक लग गई है। इसलिए ये पार्टियां राज्य को बदनाम कर रही हैं।'

गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा चुनाव पांच चरणों में हो रहा है। राज्य में 30 नवंबर को पहले चरण और सात दिसंबर को दूसरे चरण के लिए मतदान हुआ। वहीं, 12 दिसंबर को तीसरे चरण, 16 दिसंबर को चौथे और 20 दिसंबर को पांचवें एवं आखिरी चरण का मतदान होगा। मतगणना एक साथ 23 दिसंबर को होगी। 

(स्वास्तिका मेहता और अविनाश सौरव के सहयोग से)

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