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कैग रिपोर्ट : रफ़ाल डील का एक ख़राब बचाव

रफ़ाल डील के संबंध में जल्दबाजी में तैयार की गई और खराब ढंग बचाव करने वाली कैग रिपोर्ट आने वाले दिनों में मोदी की बहुत ज्यादा मदद नहीं कर पाएगी।
Rafale

फ़ाल और 10 अन्य रक्षा अधिग्रहण सौदे पर लंबे समय से की जा रही प्रतीक्षित कैग रिपोर्ट दो गलत नोट्स से शुरू होती है। पहली तो उसके द्वारा मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) या रफ़ाल सौदे के मूल्य विवरण को कम करने की सरकार की मांग को स्वीकार करना है; इसका खुलासा तब हुआ जब इसकी प्रस्तावना में 11 रक्षा अधिग्रहणों की कुल लागत को 95,000 करोड़ रुये बताया गया था, जो प्रभावी रूप से रफ़ाल सौदे के मूल्य को बता रही थी। दो मिनट की एक साधारण गणना (नीचे दी गई तालिका देखें) से पता चलता है कि कैग की कीमतों की तालिका में रफ़ाल सौदे या बीएक्सएक्स की कीमत (तालिका 1 सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक ) 60,576.54 करोड़ रुपये थी। क्या यह संपादन में लापरवाही का मामला है? या फिर जिन्होंने संपादन किया उन्होंने प्रस्तावना नहीं पढ़ी?

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बेशक, इसका मतलब यह नहीं है कि संपादन का रपट पर कोई प्रभाव नहीं था। सभी मद अनुसार आंकड़ें और अन्य गणना वर्णमाला के अक्षरों के साथ संख्याएँ प्रतिस्थापित करती हैं, और वह भी केवल दो या तीन-अक्षर के संयोजन वाले शब्दों के साथ न कि चार-अक्षर वाले शब्दों के साथ। इससे यह समझना भी मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में CAG किसी चीज़ की तुलना कर रहा है या नही। संभवतः इसका यही इरादा था?

सीएजी ने 5 फरवरी, 2019 को अपने पत्र में इन संपादनो पर आपत्ति जताई थी, यह कहते हुए कि यह रिपोर्ट को समझ के दायरे से बाहर कर देगी। रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए: “इस कार्यालय ने 05 फरवरी 2019 को MoD को लिखे पत्र में इस मुद्दे को उठाया था, जिसमें CAG की अनिच्छा के बारे में मंत्रालय को सूचित किया गया था जिसमें उन्होंने मूल्य की जानकारी को संशोधित करने से इनकार किया था क्योंकि समझने में कठिनाइयों और ऑडिट रिपोर्ट के वाणिज्यिक विवरण को संशोधित करने की परंपरा न होने के की वजह से ऐसा किया गया। ” अंत में, कैग ने समर्पण कर दिया और रफ़ाल सौदे की कीमतों पर रिपोर्ट को फिर से तैयार करने के लिए सहमत हुआ, लेकिन रप पर नज़र डालने से लगता नहीं ऐसा कुछ हुआ है। भारत की सुरक्षा के साथ समझौता केवल रफ़ाल सौदे की कीमत और उसके मद में खर्च के आंकड़ें के साथ ही क्यों किया गया है, फिर अन्य मदों में ऐसा क्यों नहीं हुआ, इसे लोगों के फैसले पर छोड़ दिया गया है। शायद, हमें पूछना चाहिए कि क्या यह भारत की सुरक्षा है जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं, या मोदी सरकार की चुनावी सुरक्षा।

इससे भी अधिक पेचीदा, सुप्रीम कोर्ट ने रफ़ाल सौदे पर अपने फैसले में कहा था कि रफ़ाल पर मूल्य विवरण सीएजी के सामने प्रस्तुत किया गया है, और इसकी कीमतों के संबंध में रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की गई है। यह 14 दिसंबर को संसद में कैग रिपोर्ट की वास्तविक प्रस्तुति से लगभग दो महीने पहले ही कह दिया गया था। और जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, इसलिए यह इस स्तर तक आ गया है कि: राफेल सौदे पर सीएजी रिपोर्ट में मूल्य विवरण को फिर से लिखा गया है। वह भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लगभग दो महीने बाद सीएजी की रक्षा मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में प्रारंभिक अनिच्छा के बाद ऐसा किया गया है। सुप्रीम कोर्ट को कैसे पता चला कि CAG मूल्य विवरण को फिर से तैयार करेगी? क्या उनके पास भविष्य बताने वाली बॉल थी? या सरकार द्वारा न्यायालय को प्रस्तुत सीलबंद कवर के नोट में ऐसा दावा किया गया था? और क्या यह केवल व्याकरण की गलती थी जिसने सरकार के भविष्य के तनाव को सर्वोच्च न्यायालय के अतीत के तनाव में बदल दिया था, या सरकार ने न्यायालय को गुमराह किया था?

CAG रिपोर्ट में प्रमुख मुद्दों को लेते हैं। CAG ने विवरण दिया है - 126 विमानों के मूल सौदे में, जिनमें से 18 को फ्लाईवे की स्थिति में दिया जाना था, और वर्तमान सौदे के मुताबिक 36 एयरक्रॉफ्ट को फ्लाईअवे की स्थिति में दिया जाना था – इसका संपादन समझ से बाहर की स्थिति है। इस तरह के संपादन के साथ, हम नहीं जानते कि सीएजी ने दो अनुबंधों की तुलना कैसे की है, क्योंकि आधार मूल्य और संयोजन, दो सौदों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मूल्य सहित, काफी भिन्न हैं। आइए हम स्वीकार करें कि कैग ने अपना काम ठीक से किया है, और देखें कि वह क्या कहता है। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार की मोल-भाव में 2.86 प्रतिशत की कीमत का फायदा हुआ है, लेकिन बैंक गारंटी देने के लिए डसॉल्ट के लागत लाभ से इसकी भरपाई होती है। दूसरे शब्दों में, डसॉल्ट कम कीमत दे सकता है क्योंकि उसे बैंक गारंटी नहीं देनी थी।

इन बैंक गारंटी की कीमत क्या थी? इसी 13 फरवरी को द हिंदू में भारत की तरफ से नेगोशिएशन करने वाली टीम में तीन डोमेन विशेषज्ञों द्वारा असहमति नोट पर एन. राम की रिपोर्ट के अनुसार, बैंक गारंटी नहीं देने में डसॉल्ट को कीमत में 7.8 प्रतिशत का लाभ मिल रहा था। दूसरे शब्दों में, यदि हम इस मूल्य के लाभ को देखें, जिस पर सीएजी डसाल्ट को हुए लाभ पर सहमत है, लेकिन इसकी कीमत की तुलना के दौरान खरीद की संख्या मौजूद नहीं थी, अगर ऐसा होता तो मोदी सरकार की कीमत 5 प्रतिशत अधिक होती!

मोदी सरकार के मंत्रियों ने दावा किया है कि विपक्ष रफ़ाल के आंकड़ों के बारे में झूठ बोल रहा है। मोदी सरकार के मंत्रियों और उनकी कीमत के दावों का क्या है? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अगस्त 2018 में ANI को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि NDA ने UPA की बातचीत के दौरान तय कीमत से 20 प्रतिशत कम कीमत पर बातचीत की है। वीके सिंह, राज्य मंत्री और पूर्व रक्षा प्रमुख, ने 30 सितंबर, 2018 को दावा किया कि मोदी द्वारा किए सौदे में यूपीए की तुलना में 40 प्रतिशत सस्ता है। एक अन्य झूठ में? कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूपीए की कीमत के मुकाबले एनडीए के तहत 9 प्रतिशत मूल्य लाभ का दावा किया था। तो क्या अब मंत्री मानेंगे कि वे भी इन आंकड़ों के हवाले से झूठ बोल रहे थे?

इन सभी मूल्य के आंकड़ों के साथ समस्या यह है कि एक अध्ययन से पता चल जाता हैं कि सीएजी जो वास्तव में कह रही है वह कैसे असंभव है। इसने भारत विशिष्ट संवर्द्धन (बढ़ोतरी) को कैसे नापा जबकि सीएजी ने खुद ही स्वीकार किया है कि इन नई आवश्यकताओं की जरूरत नहीं हैं, लेकिन मूल अनुरोध में (आरएफपी), केवल डसाल्ट के लिए संवर्द्धन हैं। इसने 126 विमानों के लिए यूरो 1.3 अरब डॉलर इंडिया विशिष्ट सौदे को कैसे 36 विमानों के सौदे के साथ तुलना की? इन विवरणों को जाने बिना, हम सभी सिर्फ इतना ही कर सकते हैं कि सीएजी रिपोर्ट को अच्छे विश्वास में स्वीकार कर लिया जाए। यह देखते हुए कि राजीव महर्षि, जो वर्तमान सीएजी हैं, उस व़क्त वित्त सचिव थे, जब मौजूदा रफ़ाल सौदे पर बातचीत हो रही थी, तो क्या उन्हें अपने आपको ऑडिट से खुद को दूर नहीं रखना चाहिए था और कैग के किसी अन्य सहयोगी से इस मुद्दे से निपटने के लिए कहा जाना चाहिए था? वित्त मंत्री का यह कथन कि इस सौदे से उनका कोई लेना-देना नहीं है, महर्षि के बारे में अच्छी बात नहीं हैं, क्योंकि ऐसे सौदों पर वित्तीय मामलों में वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि जेटली सही हैं, तो महर्षि ने वित्त सचिव के रूप में अपना कार्य नहीं किया! या क्या ऑडिट के दोनों तरफ उनके हितों का टकराव है?

दूसरी बात जो मोदी सरकार कर रही है वह यह है कि मोदी सौदे ने रफ़ाल की डिलीवरी को और तेज़ कर दिया। यह संकेत देता है कि यदि हम भारत विशिष्ट संवर्द्धन (भारत के मुताबिक तैयार विमान) लेते हैं, और याद करते हैं कि ये मूल विशिष्टताओं इसकी आधार सुविधाएँ थीं  न कि संवर्द्धन, तो समय का अंतर केवल एक महीने का है। CAG के अनुसार, मूल UPA सौदे में, डिलीवरी में 72 महीने लगने थे; और एनडीए सौदे में 71 महीने लगेंगे।

डिलीवरी के समय की इस गणना में, हमें निगोशिएशन टीम में तीन विशेषज्ञों द्वारा असहमति नोट के कारणों को भी ध्यान में रखना चाहिए डसॉल्ट की क्षमता नही है कि वह निर्धारित समय में 36 विमानों की आपूर्ति कर पाएगी।

CAG रिपोर्ट में कौन से प्रश्न छोड़े गए हैं? हालांकि CAG MMRCA विनिर्देशों, प्रक्रियाओं और देरी की आलोचना करता है, लेकिन यह 27 मार्च, 2015 को MMRCA निविदा रद्द करने के 15 दिनों के भीतर पेरिस में 10 अप्रैल को 36 विमानों में एक नया सौदा हुआ पर पूरी तरह से चुप क्यों है। भले ही यह एक अंतर-सरकारी समझौता था, क्या प्रक्रियाओं का पालन किया गया था? और यह कैसे संभव है कि DPP 13 में रखी गई सभी प्रक्रियाओं का 14 दिनों में पालन कर लिया गया? यह कैसे हो सकता है कि अगर MMRCA टेंडर को रद्द करने का निर्णय 27 मार्च, 2015 को लिया गया था, जैसा कि CAG कहती हैं, फिर रक्षा मंत्री और विदेश सचिव जय शंकर इससे पूरी तरह से अनभिज्ञ क्यों थे? प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आवश्यकताओं को अचानक क्यों छोड़ दिया गया था? भारतीय वायु सेना को 126 की आवश्यकता थी फिर इसे 36 विमानों पर किस आधार पर लाया गया? और क्या यह महज संयोग है कि अनिल अंबानी की कंपनी, जो अंततः रफ़ाल सौदे में शामिल हो गई, और जिसे मूल सौदे को रद्द करने के अगले दिन ही शामिल कर लिया गया था?

सीएजी सिर्फ संख्याओं पर काम करने के लिए है, बल्कि सरकार में निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं का भी ऑडिट करने की उसकी जिम्मेदारी है और वह सुनिश्चित कर रही है कि उनका पालन किया गया है या नहीं। दो सरकारों के बीच खरीद के लिए भी, प्रक्रियाएं निर्धारित की गई हैं। सीएजी रिपोर्ट में चर्चा नहीं की गई है कि 36 रफ़ाल की खरीद के लिए रक्षा खरीद नीति 2013 प्रक्रियाएं कैसे लागू की गई थीं: रिपोर्ट में यह एक भयावह छेद है। यदि मोदी द्वारा सौदे की डसॉल्ट बोली केवल उसे ही माना जाता तो यह निविदा से पहले L1 थी, तो इस निविदा को - CAG रिपोर्ट के अनुसार - 27 मार्च 2015 को रद्द कर दिया गया था। तो यह L1 बोली विचार के लिए कैसे मान्य मान ली गयी थी। वह भी एक अंतर-सरकारी खरीद में? और अगर यह एक नई प्रक्रिया थी, तो अन्य कंपनियों की पेशकश पर विचार क्यों नहीं किया गया था?

कैग रिपोर्ट में दूसरी बड़ी कमजोरी यह है कि ऑफसेट अनुबंध की कोई समीक्षा नहीं करती है जिसने दिवालिया अनिल अंबानी समूह (अनिल अंबानी की आरकॉम ने हाल ही में दिवालियापन के लिए याचिका दायर की है) को डसॉल्ट के लिए ऑफसेट भागीदार के रूप में चुना है। सरकार का दावा है कि यह विशुद्ध रूप से डसॉल्ट की पसंद थी, भले ही यह 2015 में डीपीपी 13, ऑपरेटिव डिफेंस प्रोक्योरमेंट पॉलिसी का उल्लंघन करती हो। इन सभी को कैग समीक्षा में आसानी से छोड़ दिया गया है। यह केवल एक उद्देश्य है, यह दिखाने के लिए कि मोदी सरकार यूपीए की तुलना में कम कीमत और बेहतर सौदे पर पहुंच गई है, यह एक उपलब्धि है जो विभिन्न कठिन अंतर्विरोधों से प्राप्त होती है। इन विरोधाभासों में बैंक गारंटी न मिलने की बत को छोड़ दिया गया है, कि नए सौदे में कोई प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भी नहीं हो रहा है, दो कीमतों के मूल्यांकन में 1.3 अरब यूरो इंडिया स्पेसिफिक एन्हांसमेंट का कोई विवरण नहीं दिया गया है - यूपीए और एनडीए, इसका कोई उल्लेख नहीं है इस नए मोदी सौदे में DPP 13 प्रक्रियाओं का पालन किया गया है या नहीं।

इस रिपोर्ट के साथ, कैग ने अपनी साख को बुरी तरह से दाग दिया है। यह मोदी सरकार के तहत - RBI, CBI, सांख्यिकी आयोग, और अब CAG एक अन्य संस्था के पतन का प्रतीक है। रफ़ाल डील की जल्दबाजी में तैयार की गई और बुरी तरह से बदली हुई यह कैग रिपोर्ट आने वाले दिनों में मोदी की बहुत मदद करने वाली नहीं है। राफेल एक प्रमुख मुद्दा बनने जा रहा है, इस घटिया कैग रिपोर्ट के बावजूद।

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