Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

कितना ठीक है? ‘...ठीके तो है नीतीश कुमार’

बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी से ठीक पहले जदयू कार्यालय की बाहरी दीवार पर चस्पां 'क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार' पोस्टर कई संदेश लिए हुए है। 
nitish kumar
फोटो साभार : एनडीटीवी ख़बर

सोमवार को पटना के जदयू कार्यालय के बाहर अचानक लगाए गए एक पोस्टर ने सियासी हलकों में कानाफूसी तेज कर दी। बैंगनी पृष्ठभूमि वाले इस पोस्टर में एक तरफ नीतीश कुमार की तस्वीर है और दूसरी तरफ सफेद अक्षरों में लिखा है – क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार।

पोस्टर की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई। बहुत लोगों ने इन पोस्टर की तस्वीर एडिट कर जदयू को ट्रोल भी कर दिया। खैर..ट्रोलिंग अपनी जगह है, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी से ठीक पहले जदयू कार्यालय की बाहरी दीवार पर चस्पां ये पोस्टर कई संदेश लिए हुए है।

दरअसल, इस पोस्टर के जरिए जदयू ने अपनी तरफ से सहयोगी पार्टी भाजपा को स्पष्ट कर दिया है कि आनेवाला विधानसभा चुनाव एनडीए को नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ना होगा। 

गौरतलब हो कि वर्ष 2013 में एनडीए से अलग होने के बाद जदयू ने वर्ष 2015 का चुनाव राजद के साथ मिलकर लड़ा था और शानदार जीत दर्ज की थी। राजद और जदयू का साथ दो वर्ष तक ही चल पाया। वर्ष 2017 के मध्य में जदयू ने राजद से नाता तोड़ लिया था और दोबारा भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाई थी। इस साल जब लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हुई, तो जदयू ने अपनी तरफ से स्पष्ट कर दिया कि बिहार में चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ना होगा और बराबर सीटों की भी मांग की।

जीत को लेकर सशंकित भाजपा ने जदयू की कीमत पर रालोसपा और जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) को भी छोड़ दिया। इतना ही नहीं, 2014 के आम चुनाव में महज दो सीट जीतने वाले जदयू को भाजपा ने अपनी पांच जीती हुई सीटें कुर्बान कर 17 सीटें दे दीं। लेकिन, 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतीं और वोटों का मार्जिन भी बढ़ाया।

2019 की शानदार जीत से भाजपा के राज्य नेतृत्व को ये लगने लगा है कि बिहार में पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है। जानकारों का मानना है कि जदयू का शीर्ष नेतृत्व इस मंशा को भांप चुका है और इसलिए उसने पोस्टर जारी कर अपनी तरफ से ये साफ कर दिया है कि जदयू के साथ चुनाव लड़ना है, तो नीतीश के चेहरे पर ही लड़ना होगा।

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “विधानसभा चुनाव होने में अभी वक्त है, इसलिए इतनी जल्दी इस तरह का पोस्टर जारी कर जदयू बिहार की जनता को कोई संदेश नहीं देना चाहती है। उसका संदेश अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा के लिए है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत से जदयू आशंकित है कि कहीं भाजपा सीएम पद के लिए कोई नया चेहरा न पेश कर दे। इसलिए जदयू ने भाजपा को साफ-साफ संदेश दे दिया है कि अगला चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा जाएगा और इससे कोई समझौता नहीं होगा।”
उन्होंने आगे कहा, “इतना वक्त भी इसलिए दिया गया है कि अगर भाजपा में इस पर असहमति हो और ऐसा माहौल बन जाए कि उन्हें भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ना पड़े, तो जदयू इसी शर्त पर (नीतीश कुमार को चेहरा बनाने पर) राजद व कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सके। ”

हालांकि, इस पोस्टर को लेकर भाजपा की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अलबत्ता जदयू नेता नीरज कुमार मानते हैं कि सीएम के चेहरे को लेकर एनडीए में कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कहा, “सरकार का गठन विधानमंडल करता है। विधानमंडल में भाजपा के नेता सुशील मोदी हैं। उन्होंने पूर्व में ही ये स्पष्ट दिया है कि आगामी चुनाव नीतीश जी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।”

जदयू कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर में एक दिलचस्प बात ये है कि इस पोस्टर पर न तो जदयू का सिंबल है और न ही किसी निवेदक का ही नाम लिखा गया है। यही नहीं, जदयू ट्विटर हैंडल पर भी ये तस्वीर नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया गया है। इस पोस्टर के जरिए जदयू, भाजपा को टटोलना चाह रहा है कि वह क्या सोच रही है। 

इस पोस्टर को लेकर अगर भाजपा की तरफ से विरोध का स्वर उभरता है और जदयू को हर सूरत में भाजपा के साथ ही चुनाव लड़ना पड़ता है, तो पार्टी ये कह कर इस पोस्टर को खारिज कर सकती है कि किसी कार्यकर्ता ने इसे लगा दिया होगा, पार्टी का इससे कोई सरोकार नहीं क्योंकि इसमें पार्टी का कोई सिंबल नहीं है। ये आशंका इसलिए भी गहरा रही है क्योंकि जदयू ने अभी से इस पोस्टर से कन्नी काटना शुरू कर दिया है। 

नीरज कुमार से जब हमने पोस्टर को लेकर पूछा, तो उन्होंने जदयू के किसी कार्यकर्ता की भावना का प्रकटीकरण करार दे दिया। उन्होंने कहा, “आपलोगों ने ही देखा होगा कि पोस्टर का निवेदक कौन है। मुझे अभी ध्यान में नहीं आ रहा है।” जब हमने उनसे ये कहा कि पोस्टर में किसी निवेदक या पार्टी का नाम नहीं है, तो उन्होंने कहा कि किसी कार्यकर्ता ने अपनी भावना प्रकट की होगी।

नीरज कुमार ने ये भी कहा कि पोस्टर को लेकर भाजपा व जदयू में किसी तरह का न तो मतभेद है और न ही मनभेद। लेकिन, ये भी सच है कि बिहार भाजपा के भीतर ही एक गुट है, जो चाहता है कि बिहार में भाजपा अकेले चुनाव लड़े। 

राजनीतिक विश्लेषक सुरूर अहमद कहते हैं, “2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम से भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है, इसलिए इस अनुमान को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है कि भाजपा बिहार में अकेले चुनाव लड़ सकती है। हां, ये जरूर है कि ऐसा होने पर पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह शुरू हो जाएगी। क्योंकि भाजपा में एक गुट नीतीश कुमार को पसंद करता है जबकि दूसरे गुट को वह नापसंद हैं।”

बहरहाल, ‘क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार’ नारे को सियासी मायनों से इतर देखा जाए, तो ये नारा न सिर्फ 2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त चले नारे 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ से कमजोर है, बल्कि इसका अर्थ ये भी जाहिर हो रहा है कि नीतीश सरकार कामचलाऊ है। साथ ही पिछले एक डेढ़ साल के दौरान बिहार में घटी घटनाओं पर गौर करें, तो ये नारा उल्टा प्रभाव ही जगाता है। पिछले साल मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में बच्चियों के यौन शोषण की घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसमें जदयू की मंत्री के पति का नाम सामने आया था, जिसके बाद मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था।

इस साल चमकी बुखार ने 100 से ज्यादा बच्चों की जान ले ली। इन मौतों के पीछे भी  सरकारी मशीनरी की लापरवाही सामने आई। आपराधिक घटनाओं की बात करें, तो हत्या, बलात्कार और लिंचिंग जैसी घटनाओं में इजाफा हुआ है। अगस्त महीने में करीब आधा दर्जन रेप की वारदातें बिहार में हो चुकी हैं। इस महीने एक व दो सितंबर के बीच बिहार के अलग-अलग जिलों में 10 लोगों की हत्या कर दी गई। शिक्षकों से लेकर मिड डे मील बनानेवाले रसोइया तक मानदेय में इजाफे की मांग पर रोड पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
राजद नेता व विधायक तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर नीतीश आड़े हाथों लेते हुए कहा, “बिहार में कानून व व्यवस्था पूरी तरह धराशाई हो गई है। दोषियों पर कार्रवाई करने में सरकार पूरी तरह विफल है। दिनदहाड़े लोगों की बेरहमी से हत्या हो रही है और हत्यारों को एनडीए सरकार ने पूरी छूट दे रखी है।”    

इधर, जदयू के नारे के खिलाफ राजद कार्यालय के बाहर भी पोस्टर लगाया गया है जिसमें सूबे की कानून-व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर सवाल उठेते हुए लिखा गया है – ‘क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार।’

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest