Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

कोयले में ओवर-इनवॉइसिंग घोटाला: अडानी ग्रुप के पक्ष में फैसले पर डीआरआई अपील में जायेगा

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अडानी समूह के मामले की जाँच के लिए विदेशों से सूचना प्राप्त करने की डीआरआई की शक्तियों को रोक दिया है।इस पर  डीआरआई ने कहा है कि वह बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करेगा।
adani

1 नवंबर को भारतीय सीमा शुल्क अधिकारियों की जांच शाखा, राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कई कंपनियों द्वारा आयात में कथित मूल्य से अधिक का बिल बनाने (ओवर-इनवॉइसिंग) के बारे में अपनी जांच की स्थिति को स्पष्ट किया गया।इस आयात में- कोयले जैसी कैपिटल गुड्स और कच्चे माल की एक श्रृंखला शामिल थी, जिसे देश के बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों जैसे बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन, बंदरगाह और उर्वरक के क्षेत्र कार्यरत कंपनियों द्वारा किया गया था और वे पिछले छह वर्षों से डीआरआई  के राडार पर थे।
 
निदेशालय ने दावा किया है कि आयात की लागत को जानबूझकर और कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया और उसके बाद उसे उच्च शुल्क और उपभोक्ता शुल्क के रूप में जनता से वसूला गया। आगे आरोप लगाते हुए डीआरआई ने स्पष्ट किया है कि इस तरह से अर्जित अनुचित लाभ के एक हिस्से को विदेशी टैक्स हैवन जैसी जगहों पर छिपा दिया गया है।

2013 में शुरू हुई जांच जिसमें विस्तार देकर 2016 तक 40 कंपनियों को इस जाँच के दायरे में शामिल कर लिया गया था, जिनमें से अधिकांश अभी भी जांच के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से आठ मामलों में, जांच की प्रक्रिया पूरी हो गई है, और मामला न्यायिक फैसले तक पहुँच चुका है, और फैसला देने वाले अधिकारियों के समक्ष डीआरआई को आरोपों को सिद्ध करना है।

यह हलफनामा डीआरआई की और से कौशिक टी जी ने दायर किया है, जो डीआरआई की मुंबई जोनल यूनिट में डिप्टी डायरेक्टर हैं, और जिसे दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में दाखिल किया गया है।हलफनामे में बताया गया है कि एजेंसी अभी भी भौतिक साक्ष्य को हासिल करने की प्रक्रिया में लगी हुई है, जिसमें कथित तौर पर भारत से सम्बंधित ओवर-इनवॉइसिंग में शामिल सभी कंपनियों और उनकी सहायक कंपनियों और विदेशों में उनसे संबद्ध कंपनियों से संबंधित दस्तावेज शामिल हैं। और इसके अंत में डीआरआई  ने छह विदेशी देशों - सिंगापुर, दुबई, हांगकांग, स्विट्जरलैंड, इंडोनेशिया और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स से जानकारी प्राप्त करने के लिए इन देशों के साथ भारतीय सरकार के साथ होने वाली पारस्परिक क़ानूनी सहायता संधि के तहत पत्राचार (LRs) जारी करने के लिए न्यायिक सहायता की मांग की है।

एलआर एक भारतीय अदालत द्वारा देश के कानून-प्रवर्तन और जांच एजेंसियों की ओर से विदेशी क्षेत्राधिकारों में अदालतों को भारत के बाहर स्थित व्यक्तियों और संस्थाओं के बारे में सूचना एकत्र करने की सुविधा के लिए जारी सूचना के लिए एक औपचारिक अनुरोध है।अडानी समूह की एक कंपनी द्वारा इंडोनेशिया से कोयला आयात के संबंध में एक जांच के लिए जारी किए गए एलआर को 17 अक्टूबर को बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था। जैसा कि इन लेखकों द्वारा पहले भी बताया गया था, कि यह निर्णय न सिर्फ डीआरआई की शक्ति को जांच की मानक प्रक्रिया के तहत एलआर जारी करने की शक्ति को खतरे में डालने वाला है, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आयकर विभाग ( दोनों वित्त मंत्रालय में) और सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस (कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में) जैसी अन्य जांच और कानून-प्रवर्तन एजेंसियों की शक्तियों को भी प्रभावित करता है।

अपने लेख में, हमने यह सवाल उठाया था कि क्या वित्त मंत्रालय में स्थित राजस्व विभाग, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले पर अपील करेगा। डीआरआई  के हलफनामे में इस प्रश्न का सकारात्मक जवाब देते हुए सारांश में मामले के बारे में घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से बॉम्बे हाईकोर्ट तक  कैसे पहुंचे इसे रेखांकित किया और बताया है कि वह निर्णय के जांच करने की प्रक्रिया में है।

"कॉल बुक"

हलफनामा विस्तार से  डीआरआई के अंदर चलने वाली आंतरिक प्रक्रियाओं के एक पहलू के बारे में बताता है जिसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया था। यह स्पष्ट करता है कि डीआरआई  अपने यहाँ हर चीज को "कॉल बुक" के जरिये रिकॉर्ड में रखता है जिसमें इस बात का रिकॉर्ड रखा जाता है (1) वे मामले जहाँ जाँच पूरी हो चुकी है, (2) ऐसे मामले जो एक ऐसे चरण में पहुँच चुके हैं जहाँ आगे कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है, या उसकी जरुरत नहीं है, या जिन्हें शीघ्रता निपटाने में कम से कम छह महीने लगेंगे, और (3) ऐसे मामले जो दूसरी जगह "हस्तांतरित" किए जा सकते हैं।

वास्तव में, किसी केस को कॉल बुक में “ट्रान्सफर” कर फाइल करने का मतलब, इसे "होल्ड" पर रख दिया गया है क्योंकि ऐसे मामलों पर तुरंत फैसले नहीं आने वाले हैं। यह आमतौर पर इस तथ्य की वजह से  होता है कि इस तरह के या एक जैसे मामलों से संबंधित फैसलों या अपील पर काम चल रहा होता है, और कॉल बुक में चले गए मामलों का भाग्य अब उन फैसलों या अपीलों के परिणाम पर निर्भर करेगा।

जिन आठ मामलों की जाँच पूरी हो गई है, उसके बारे में डीआरआई के हलफनामे में कहा गया है कि उसमें से तीन फैसले या अपील की प्रक्रिया में हैं, जबकि पांच मामलों को पहले तीन मामलों के फैसले के परिणाम की प्रतीक्षा में कॉल बुक में स्थानांतरित कर दिया गया है। हम इन सभी आठ मामलों में से प्रत्येक को सूचीबद्ध करते हैं, जो कि इस अधिनिर्णय के तहत शुरू होते हैं।

अडानी पावर

अडानी समूह द्वारा निर्मित दो बिजली संयंत्र डीआरआई की जांच के दायरे में हैं जिनमें पहला- तिरोदा, महाराष्ट्र और दूसरा कोरबा, राजस्थान में है जिसमें बिजली कारखानों में उपयोग किये जाने वाले कैपिटल गुड्स पर कथित तौर पर ओवर इनवॉइसिंग का मामला है। मई 2014 में इन मामलों पर जारी किए गए कारण बताओ नोटिस (SCN) को अगस्त 2017 में डीआरआई  के निर्णयन प्राधिकारी के वी एस सिंह ने एक फैसले में खारिज कर दिया था, जिसकी वरुण संतोष द्वारा विस्तार से जाँच को theafiles.in में यह दावा करते हुए प्रकाशित किया था की इसमें दोहरे मापदण्ड अपनाये गए (इस लेख के लेखकों में से एक लेखक द्वारा प्रकाशित) हैं। डीआरआई  के हलफनामे में कहा गया है कि उसने सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) के समक्ष न्यायिक निर्णय की अपील कर रखी है, और जिस पर फोरम में सुनवाई चल रही है।

यहाँ पर यह बात गौर करने लायक है कि इन दोनों थर्मल पावर प्लांट के मामलों में, डीआरआई ने  आयातित होने वाले उपकरणों के साथ-साथ कोयले में होने वाली ओवर-इनवॉइसिंग के आरोप लगाए गए हैं। इन उपकरणों और कोयले में कथित रूप से बढाई हुई दोनों कीमतों को न सिर्फ बिजली उपभोक्ताओं के उपर थोपा गया और इसके जरिये अडानी समूह की कंपनियों ने अनुचित लाभ अपनी जेब में रख लिया, बल्कि इन दो मामलों के अलावा भी इस भारी-भरकम कॉर्पोरेट को एक और लाभ पहुँचाने के काम किया गया है।

इन लेखकों ने अपने पहले की गई जाँच में पाया है कि जून 2019 में, राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग द्वारा पारित एक आदेश में अडानी ग्रुप के कवाई बिजली संयंत्र को "क्षतिपूरक टैरिफ" के रूप में भुगतान करने की अनुमति दी, जिसका हवाला दिया गया कि इंडोनेशियाई कानून में बदलाव के चलते आयातित कोयले की लागत में वृद्धि हुई है। इसी तरह की राहत अडानी के महाराष्ट्र ईकाई को भी राज्य के बिजली नियामकों से मिली है।

अडानी ट्रांसमिशन

अडानी समूह से जुड़े एक अन्य मामले में, इस बार DRI ने आरोप लगाया है कि कोरबा में अपने पावर प्लांट से एक ट्रांसमिशन लाइन स्थापित करने के अपने प्रयासों में, अडानी समूह के  पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी की प्रमुख कम्पनी अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण के लिए आयातित मशीनरी में  ओवर-इनवॉइसिंग का घपला किया है। इसमें शामिल कंपनी, महाराष्ट्र ईस्टर्न ग्रिड पावर ट्रेज़िशन, और इसके द्वारा निर्माण के लिए नियुक्त निर्माण एजेंसी, पीएमसी प्रोजेक्ट्स (इंडिया) को मई 2014 में कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया था, और उसी दिन अडानी पावर को भी कारण बताओ नोटिस भेजा गया था।

इस केस में भी, उसी न्यायिक अधिकारी- के वी एस सिंह - ने अक्टूबर 2017 में डीआरआई  की जांच को खारिज कर दिया। डीआरआई  ने इस निर्णय के खिलाफ CESTAT के समक्ष इसे चुनौती के लिए रखा है और इस मामले में सुनवाई चल रही है।

एस्सार और मैटिक्स प्रोजेक्ट्स

इस प्रकार की चार और कम्पनियाँ हैं जिनके खिलाफ डीआरआई ने इसी तरह के आरोप लगाए गए हैं। इनमें से तीन रुइया परिवार द्वारा प्रवर्तित कम्पनियाँ, एस्सार एम.पी. लिमिटेड, एस्सार ऑयल लिमिटेड, एस्सार प्रोजेक्ट्स (इंडिया) लिमिटेड एस्सार ग्रुप से सम्बद्ध हैं, और एक चौथी कंपनी है जिसका नाम  मैटिक्स फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड है।

2015 में इन कंपनियों के खिलाफ जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को अधिनिर्णय के लिए नहीं भेजा गया क्योंकि ये मामले भी अडानी ग्रुप की कंपनियों से जुड़े उपरोक्त मामलों जैसे ही हैं। डीआरआई ने विशेष रूप से अपने हलफनामे में जिक्र किया है कि इन कंपनियों के खिलाफ आरोपों में थर्मल पावर प्लांट के निर्माण, कच्चे तेल की रिफाइनरी के साथ-साथ यूरिया खाद बनाने की फैक्ट्री के लिए आयात किये गए कैपिटल गुड्स में की गई ओवर-इनवॉइसिंग शामिल है।
नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर सिस्टमस कंपनी 

इन सभी केस में से एकमात्र मामला ही उच्च न्यायालय के स्तर तक पहुँच सका है, जो नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित है, और जिसे इन लेखकों द्वारा कारवां में 2017 में प्रकाशित एक लेख में "टेस्ट केस" के रूप में दर्शाया गया था।

मजे की बात यह है कि इस मामले में केवीएस सिंह ने न्यायिक आदेश पारित कर दिया, जो कि अडानी ग्रुप की कंपनियों से संबंधित मामलों में उनके खुद के लिए गए फैसले से विपरीत था – इस केस में डीआरआई  की जांच को मान्यता दे दी, जिसमें आयातित इंडोनेशियाई कोयले के ओवर-इनवॉइसिंग के लिए KISPL को दोषी पाया गया- जबकि अपीलीय निकाय , CESTAT ने डीआरआई के आरोपों को खारिज कर दिया।

हालांकि CESTAT के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए सबसे उचित मंच सर्वोच्च न्यायालय है, लेकिन पता नहीं क्यों डीआरआई ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की। अदालत ने गलत अधिकार क्षेत्र में अपील दायर करने का हवाला देते हुए याचिका ख़ारिज कर दी और सुझाव दिया कि यह अपील सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की जाए।

इस हलफनामे ने हम लेखकों द्वारा लिए गए दृष्टिकोण की ही पुष्टि की है। डीआरआई ने माना है कि कम से कम दो मामलों में  KISPL का यह केस एक नजीर के रूप में कार्य करेगा। ये हैं रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (अनिल धीरूभाई अंबानी समूह में) और चेन्नई स्थित कोस्टल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित केस। इन मामलों में अंतिम निष्कर्ष इस बात पर निर्भर करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष DRI की अपील पर क्या फैसला आता है?

एक बार फिर अडानी ग्रुप 

मुकदमे में डीआरआई से इस केस से सम्बन्धित नवीनतम सूचना प्रदान करने के अलावा, एजेंसी ने अपने हलफनामे में इससे जुडी पांच अन्य जांचों को भी शामिल किया है जो कि अडानी ग्रुप, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य कंपनियों के खिलाफ चल रहे हैं। इन संस्थाओं में अडानी रिन्यूएबल एनर्जी, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड, अडानी हजीरा पोर्ट, अडानी इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल, अडानी विजाग कोल टर्मिनल शामिल हैं - जिन पर डीआरआई ने खराब-गुणवत्ता वाले सौर ऊर्जा निर्माण संबंधी मशीनरी की ओवर-इनवॉइसिंग करने का आरोप है। KISPL मामले में कारण बताओ नोटिस काल बुक में दर्ज कर दी गई है और यह केस देश की शीर्ष अदालत में चक्कर काट रहा है।

रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजा पावर

इंडोनेशिया से आयातित कोयले की ओवर-इनवॉइसिंग से संबंधित दो मामले भी सर्वोच्च न्यायालय में केआईएसपीएल मामले के परिणाम पर निर्भर होने के कारण लंबित कॉल बुक में पड़े हैं। डीआरआई ने आरोप लगाया है कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोजा पॉवर सप्लाई कंपनी लिमिटेड, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश स्थित (जो कि अनिल अंबानी समूह का भी एक हिस्सा है) ने मिलकर कोस्टल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर इंडोनेशिया से आयातित होने वाले कोयले की कीमत बढ़ाकर दिखाई और बाद बढ़ी हुई बिजली दरों के माध्यम से यह रकम बिजली उपभोक्ताओं से वसूली गई। 

वाडीनार पावर, एस्सार पावर और अडानी पावर

इन कंपनियों से जुड़े तीन मामले डीआरआई की कॉल बुक में पड़े हैं क्योंकि CESTAT के समक्ष अडानी ट्रांसमिशन और अडानी पावर से संबंधित मामले अटके पड़े हैं। ये तीनों क्रमशः (a) "कैप्टिव को-जेनरेशन प्लांट" और एक बंदरगाह पर मटेरियल हैंडलिंग फैसिलिटी जैसे कैपिटल गुड्स, (b) एक थर्मल पावर प्लांट के लिए कैपिटल गुड्स, और (c) महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान में बिजली उत्पादन संयंत्रों की स्‍थापना के लिए कैपिटल गुड्स और ट्रांसमिशन लाइनों को स्थापित करने के सम्बन्ध में ओवर-इनवॉइसिंग करने के अपराधी हैं।

डीआरआई द्वारा दर्ज इन सभी केसों का क्या हुआ?

निश्चित तौर पर डीआरआई के हलफनामे ने ओवर-इनवॉइसिंग की जांच में एक बेहतर स्पष्टता का स्तर पैदा कर दिया है जैसा पहले नहीं देखने को मिला था। जैसा कि विदित है कि इनमें से कई मामलों का भाग्य उन तीन केस के फैसले पर निर्भर करता है, जिनमें से दो में तो डीआरआई को खुद की एजेंसी के द्वारा खुद के अधिनिर्णय अधिकारी से हार का स्वाद चखना पड़ा, और इससे पाठकों को स्वयं अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मशीनों और कच्चे माल की ओवर-इनवॉइसिंग से संबंधित पूरी जांच में स्थिति कितनी अनिश्चित बनी हुई है, जिसमें कथित तौर पर 50,000 करोड़ रुपये के आसपास का घपला जुड़ा हुआ है।डीआरआई का संकट तब और घनीभूत हो जाता है, अगर सुप्रीम कोर्ट इंडोनेशिया से होने वाले कोयले के आयात की ओवर-इनवॉयसिंग की जांच में विदेशी न्यायाधिकरणों को जारी किए गए एलआर की वैधता की पुष्टि करने में विफल रहता है। यदि ऐसा होता है, तो मामलों की एक पूरी श्रृंखला, जिसमें व्यावहारिक रूप से इसके सभी ओवर-इनवॉइसिंग मामले शामिल हैं, एक अंधे कुएं में चले जाने के समान साबित होंगे। कई मामलों में एलआर जारी किए गए हैं, लेकिन यह सवाल बरकरार है कि क्या सुप्रीम कोर्ट उनकी वैधता को बरकरार रख सकेगा।

यदि शीर्ष अदालत, अपने जारी किए गए एलआर की कानूनी वैधता की पुष्टि करने में विफल रहती है, तो विदेशी कॉरपोरेट्स और भारतीय कॉरपोरेट से जुडी संस्थाओं की गतिविधियों की जांच करने के लिए डीआरआई के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला यही हथियार ही अपनी वैधता नहीं खो देगा बल्कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) और सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस और आयकर विभाग जैसे अन्य जांच करने और कानून को लागू कराने वाली एजेंसियों की वैधता पर भी सवालिया निशान खड़े कर देगा। 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।


 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest