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कर्नाटक: विधानसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक तनाव की राजनीति

राज्य में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भी कुछ ऐसा ही माहौल था। ऐसे में विपक्ष और आलोचकों का कहना है कि सरकार के पास बड़ी उपलब्धियों के रूप में दिखाने के लिए बहुत कम चीजें हैं, शायद इसीलिए हिंदू राष्ट्रवाद का मुद्दा विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
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image credit- social media

कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पिछले कुछ समय में हुई घटनाओं, जिनमें कुछ हिंसक भी थीं, से यह आशंका पैदा हो रही है कि चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक एक बार फिर सांप्रदायिक तनाव की ओर बढ़ रहा है। साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भी प्रदेश में ऐसा ही कुछ माहौल था।  ताजा घटना तुमकुरु और शिमोगा की है जहां सावरकर और टीपू सुल्तान के पोस्टर को लेकर विवाद पैदा हो गया है। इलाके में भारी संख्या में पुलिसबल तैनात है, और धारा 144 भी लागू कर दी गई है।

बता दें कि कर्नाटक में बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार है और बीते दिनों राज्य में हिजाब, हलाल, कारोबार के मुद्दों सहित कभी अजान तो कभी हेडगेवार के भाषण को आधिकारिक तौर पर स्कूली पाठ में शामिल करने को लेकर काफी सांप्रदायिक तनाव देखा गया है। यहां इन तमाम विवादों पर लोगों की राय बंटी हुई है। विपक्ष और आलोचकों की मानें तो ये तमाम कदम बीजेपी की राष्ट्रवादी सरकार द्वारा मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने से जुड़ी कोशिशें हैं।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर शिमोगा के आमिर अहमद सर्किल पर दो गुटों में सावरकर और टीपू सुल्तान के पोस्टर को लेकर भिडंत हो गई। शाम को एक युवक को चाकू से मारने का मामला भी सामने आया। जिसके बाद शिवमोगा के जिला कलेक्टर आर सेल्वामणि ने मंगलवार, 16 अगस्त को शहर और भद्रावती शहर की सीमा में स्कूल और कॉलेज बंद करने का आदेश दे दिया। उन्होंने कहा कि इन दोनों जगहों पर 18 अगस्त तक निषेधाज्ञा लागू रहेगी। कुछ ऐसा ही मामला अब तुमकुर से भी सामने आ रहा है।

मालूम हो कि सावरकर को वीर बताकर दक्षिणपंथी संगठन जहां उनका महिमामंडन करते रहे हैं, तो वहीं टीपू सुल्तान को लेकर अक्सर सवाल उठाते रह। इससे पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 2019 में माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाने की बात की थी तो इस पर काफी विवाद हुआ था। कर्नाटक की सत्ता में आने के तुरंत बाद बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। बीजेपी इसका 2015 से ही विरोध कर रही थी।

लगातार होते तनाव और विवाद

इन तमाम विवादों को देखें तो मामला बस सावरकर या टीपू सुल्तान तक सीमित नहीं है। हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा कॉलेजों में मुसलमान लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी अच्छा खासा बवाल देखा गया। पिछले साल सरकार ने 13 फीसद मुसलमान आबादी वाले इस राज्य में गौ-हत्या और इससे जुड़े व्यापार को प्रतिबंधित किया है। इसके साथ ही स्कूल पाठ्यक्रम में 18वीं शताब्दी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान के अध्याय को हटाने और हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ भगवद् गीता को शामिल करने की योजनाओं की भी खबरें हैं।

इसके अलावा राज्य में इससे पहले हिंदू संगठन बार और पब आदि में युवक-युवतियों पर हमला करके मॉरल पुलिसिंग करने की कोशिश कर चुके हैं। इसके साथ ही यहां 'लव जिहाद' नामक कैंपेन भी चलाया गया है। लव जिहाद' एक ऐसा टर्म है जिसके ज़रिए कट्टरपंथी हिंदू संगठन मुसलमान युवकों पर शादी के ज़रिए हिंदू महिलाओं को मुसलमान बनाने का आरोप लगाते हैं।

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बीजेपी की नयी राजनीति

कुल मिलाकर देखें तो कर्नाटक एक ऐसा प्रदेश है जहां तमाम जातियां, भाषाई समूह और धार्मिक समुदाय हैं और बीजेपी ने इस राज्य में चार आम चुनावों में लगातार ज़्यादातर संसदीय सीटों पर जीत हासिल की है। बीजेपी ने कई सालों तक मुसलमानों की अच्छी-ख़ासी आबादी वाले कर्नाटक के तटवर्ती क्षेत्रों और गाँवों में हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति पर काम किया है और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने यहां पर अपनी गहरी जड़ें जमा ली हैं।

लेकिन कर्नाटक के चुनावी इतिहास की बात करें तो एक लंबे समय तक यहां की राजनीति जातिगत निष्ठाओं से तय होती रही है। साल 2008 में बीजेपी को पहली बार राज्य की सत्ता में लाने वाले बीएस येदियुरप्पा ने लिंगायतों का एक सफल गठबंधन बनाया। लिंगायत कर्नाटक की मतदान करने वाली आबादी और अन्य वंचित समाज का छठवां हिस्सा है। लिंगायत समाज का एक गुट चाहता है कि उसे हिंदू धर्म से अलग मान्यता दी जाए और वंचित जातियों में सकारात्मक कदम उठाने की मांग है।

येदियुरप्पा से सत्ता की बागडोर लेने वाले बोम्मई 61 वर्षीय राजनेता हैं। आलोचकों का मानना है कि उनकी सरकार का प्रदर्शन बेहतर नहीं है। उनकी सरकार पर कोरोना महामारी के दौरान कुप्रबंधन के भी आरोप हैं। एक प्रतिष्ठित स्थानीय न्यूज़ और इन्वेस्टिगेशन वेबसाइट द फाइल के मुताबिक़, एक आंतरिक समीक्षा में सामने आया है कि सरकार के आधे विभागों का प्रदर्शन ख़राब है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार भी विकास की राह में एक रोड़ा बना हुआ है। पिछले साल नवंबर में कर्नाटक के निजी कॉन्ट्रेक्टरों ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर शिकायत की थी कि उन्हें परियोजना की कुल राशि का लगभग 40 फीसद पैसा रिश्वत के रूप में अधिकारियों और मंत्रियों को देना पड़ता है। कुछ ख़बरों के मुताबिक़, विकास के लिए आवंटित किया गया धन ख़र्च नहीं किया गया है, परिवहन विभाग के कर्मचारियों की तनख़्वाह नहीं दी गयी है और वंचितों को वजीफे नहीं दिए गए हैं और राज्य में अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार के पास बड़ी उपलब्धियों के रूप में दिखाने के लिए बहुत कम चीजें हैं, शायद इसी के विकल्प के रूप में हिंदू राष्ट्रवाद का मुद्दा देखा जा रहा है।

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