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क्या आपको मालूम है श्रम क़ानूनों में बदलाव का क्यों हो रहा है विरोध?

ट्रेड यूनियनों के मुताबिक नया कानून मजदूर-मालिक संबंध के संतुलन को निर्णायक रूप से मालिक के पक्ष में स्थानांतरित कर देगा। इस नए कानून में ऐसे कई प्रावधान हैं जो श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के कई छोटे अधिकारों को खत्म कर देंगे। 
Labour law

श्रम कानूनों में संशोधन के ख़िलाफ़ शुक्रवार को पूरे देश में ट्रेड यूनियन प्रतिरोध दिवस मना रही हैं। सरकार ने 44 कानूनों को चार कानून में बदलने का फैसला लिया है। ये कानून मजदूरी और कर्मचारियों की सुरक्षा से जुड़े हैं। 

क्या है मजदूरी संहिता 2019 संबंधी विधेयक

लोकसभा ने मंगलवार को मजदूरी संहिता 2019 संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी। विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल में संशोधन किया जाएगा। वेतन संहिता विधेयक सरकार की ओर से परिकल्पित चार संहिताओं (कानून) में से एक है। ये चार संहिताएं पुराने 44श्रम कानूनों की जगह लेंगी।

विधेयक के उद्देश्यों में बताया गया है कि ये निवेशकों की सहूलियत और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए निवेश को आकर्षित करने में मदद करेंगी। ये चार संहिताएं वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा एवं कल्याण और औद्योगिक संबंध से जुड़ी हैं।

इसे पढ़ें : मोदी बनाम मज़दूर: मज़दूरों की सुरक्षा वाले श्रम क़ानूनों का सत्यानाश

वर्तमान में न्‍यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोजगारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान है। सरकार का कहना है कि इस विधेयक से हर कामगार के लिए भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्‍यूनतम मजदूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्‍यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।

इस विधेयक में राज्‍यों द्वारा कामगारों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान को अधिसूचित करने की परिकल्‍पना की गई है। इसमें कहा गया है कि विभिन्‍न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्‍हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। इस परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और एक नियोक्‍ता के लिए इसका अनुपालन सरल करने की उम्‍मीद है। इससे प्रतिष्‍ठान भी लाभान्वित होंगे, क्‍योंकि रजिस्‍टरों की संख्‍या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्‍पना की गई है कि कानूनों के माध्‍यम से एक से अधिक नमूना निर्धारित नहीं किया जाएगा।

वर्तमान में अधिकांश राज्‍यों में विविध न्‍यूनतम वेतन हैं। वेतन पर कोड के माध्‍यम से न्‍यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोजगार के विभिन्‍न प्रकारों को अलग करके न्‍यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड बनाया गया है। न्‍यूनतम वेतन निर्धारण मुख्‍य रूप से स्‍थान और कौशल पर आधारित होगा। इसके तहत निरीक्षण व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। इनमें वेब आधारित बिना बारी के कम्‍प्‍यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्‍त निरीक्षण, निरीक्षण के लिए इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं। इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी।

ट्रेड यूनियन की क्या है आपत्ति 

देश भर की ट्रेड यूनियन का कहना है कि ये बदलाव मजदूर विरोधी हैं और इससे सिर्फ चुनिंदा कंपनियों और कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचेगा। विधेयक में विपक्ष की तरफ से उठाये गये सभी मुद्दों और आपत्तियों की अनदेखी की गई। इसमें कर्मचारियों के अधिकारों की कटौती की गयी है।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इस विधेयक में वेतन की तीन जरूरी विशेषताओं को बदला जा रहा है। इस विधेयक में यह साफ नहीं न्यूनतम मजदूरी की गणना कैसे की जाएगी, कार्य दिवस क्या होगा और वे कौन से तरीके होंगे जिनसे कानून को इन पर लागू किया जाएगा।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि पहले इन कानूनों के पीछे भावना यह होती थी कि श्रमिक एक वंचित तबके से हैं और जो सामाजिक और आर्थिक रूप से मालिकों के शोषण के दबाव का मुकाबला करने में असमर्थ हैं और इसलिए उन्हें सुरक्षात्मक कानून की आवश्यकता है। इस विधेयक से लगता है कि सरकार की सोच यह है कि इस तरह के संरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं है और इससे मालिकों को कम से कम मुआवजा या वेतन देकर असहाय श्रमिकों से अधिक से अधिक काम लेने में खुली छूट मिलेगी।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि कोड ऑन वेजेज बिल में न्यूनतम मजदूरी का ठोस फॉर्मूला (2700 कैलोरीज प्रतिदिन इनटेक पर आधारित) शामिल नहीं है। इस फॉर्मूले को 15वीं भारतीय श्रम कॉन्फ्रेंस में सर्वसम्मति से अपनाया गया था। नए बिल ने व्यावहारिक तौर पर न्यूनतम मजदूरी तय करने का फैसला पूरी तरह सरकार और नौकरशाही पर छोड़ दिया है। हालांकि त्रिपक्षीय न्यूनतम मजदूरी सलाहकार बोर्ड का प्रावधान बिल में रखा गया है लेकिन इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बोर्ड की सिफारिशें सरकार पर बाध्य नहीं होंगी।

ट्रेड यूनियनों के मुताबिक यह विधेयक मजदूर-मालिक संबंध के संतुलन को निर्णायक रूप से मालिक के पक्ष में स्थानांतरित कर देगा। उनके मुताबिक नई संहिता में ऐसे कई प्रावधान हैं जो श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के कई छोटे अधिकारों को खत्म कर देगा। साथ ही उनका कहना है कि इसे न्यूनतम मजूदरी जैसे प्रावधान ठीक तो हैं लेकिन क्या सरकार इसे लागू करा पाएगी?

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