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क्या इंडियाबुल्स मामले में यस बैंक के संस्थापक का परिवार भी शामिल है?

वरिष्ठ वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण जो एक NGO का प्रतिनिधित्व करने के रूप में भी जाने जाते हैं, ने इंडियाबुल्स समूह द्वारा उनके ऊपर झूठे साक्ष्य प्रस्तुत करने के आरोपों से इंकार किया है, वहीं इस बात के नए दावे पेश किये हैं जिसमें इस समूह की कंपनियों और यस बैंक (Yes Bank) के सह-संस्थापक राणा कपूर के परिवार के सदस्यों के स्वामित्व या नियंत्रित कंपनियों के बीच की संदिग्ध लेनदेन हुए हैं।
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दिल्ली उच्च न्यायालय में 24 अक्टूबर को इंडियाबुल्स समूह में वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाने वाली याचिका की सुनवाई से दो दिन पहले, गैर-सरकारी संगठन, नागरिक व्हिसल ब्लोअर फोरम (Citizens Whistle Blower Forum ) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनी और इसके प्रमोटर समीर गहलौत के खिलाफ नए आरोप लगाए हैं। इस बार यह दावा किया गया है कि ग्रुप का यस बैंक के सह-संस्थापक और प्रमोटर राणा कपूर, उनकी पत्नी बिंदू राणा कपूर, और उनके परिवार में उनकी तीन बेटियों के स्वामित्व वाले या नियंत्रित कॉर्पोरेट संस्थाओं के बीच कई संदिग्ध लेनदेन हुए हैं।

आरोप है कि यस बैंक की ओर से इंडियाबुल्स ग्रुप की कंपनियों को 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का लोन दिया गया और "बदले में" इंडियाबुल्स ग्रुप ने कपूर परिवार के सदस्यों से जुड़ी संस्थाओं को 2,000 करोड़ रुपये बाँट दिए।

एनजीओ द्वारा 6 सितंबर को दायर रिट को झूठी याचिका बताकर खारिज करने की मांग करने वाले इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (IHFL) द्वारा दायर याचिका और दलील पर सिटीजंस व्हिसल ब्लोअर फोरम ने मंगलवार, 22 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय में जवाब दिया जिसमें आरोप लगाये थे कि कंपनी के संस्थापक और प्रमोटर समीर गहलौत के नेतृत्व में हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं। अदालत से निवेदन किया गया है कि एक विशेष जांच दल (SIT) गठित कर इस मामले की स्वतंत्र जांच शुरू की जाए ताकि इंडियाबुल्स ग्रुप के विरुद्ध लगे आरोपों की जांच की जा सके।

इंडियाबुल्स समूह के अंदर IHFL उसकी एक प्रमुख कंपनी है। कंपनी के खिलाफ याचिका में आरोप लगाया गया है कि इसमें अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की संस्थाओं और के पी सिंह द्वारा प्रवर्तित डीएलएफ समूह की अन्य कंपनियों के बीच गोल-गोल घुमाकर जटिल लेन-देन की प्रक्रिया के तहत पैसों का लेनदेन हुआ है। यस बैंक के संस्थापक के परिवार के सदस्यों से जुड़े ये नए आरोप, मंगलवार को अदालत में दायर किए गए।

एनजीओ की यह प्रतिक्रिया 1 अक्टूबर को तब आई है जब IHFL द्वारा दायर प्रति आवेदन और दलील पर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की बेंच ने एनजीओ और उसके मुख्य संस्थापक सदस्य, प्रशांत भूषण को इस मामले में नोटिस जारी किया।

अपने जवाब में, NGO ने दावा किया कि IHFL और उसके प्रमोटर गहलोत द्वारा लगाए गए आरोप “आत्म-हित साधन” और कानून को लागू कराने वाले अधिकारीयों को “गहन जाँच को बाधित करने के लिए गढ़े गए” के मकसद से लगाये गए हैं। इसमें आगे यह दावा किया गया है कि गैर-सरकारी संगठन के उपर तथ्यहीन आरोप लगाने का आरोप असल में उच्च न्यायालय के समक्ष पेश केस पर तथ्यों से ध्यान "जानबूझकर और सावधानी से भटकाने के लिए निर्मित किया गया" है।

दिलचस्प बात यह है कि अपनी प्रतिक्रिया में, NGO ने IHFL के खिलाफ और कई नए आरोप लगाए हैं, जिसमें दावा किया गया है कि यस बैंक और राणा कपूर की पत्नी और बेटियों के बीच प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वामित्व वाली कंपनियों के बीच "संदिग्ध लेनदेन" हुए हैं।

क्या इंडियाबुल्स को यस बैंक से “संदेहास्पद” ऋण मिले?

NGO का आरोप है कि यस बैंक ने इंडियाबुल्स ग्रुप की 14 कंपनियों जिसमें IHFL भी शामिल है को 2009-10 और 2018-19 के बीच ढेर सारे संदिग्ध लोन दिए थे, जिसका कुछ हिस्सा Yes बैंक के संस्थापक के परिवार के लोगों की मालिकाना हक़ वाली संस्थाओं में हस्तांतरित कर दिया गया।

इनमें से कई जाहिरा तौर पर नकारात्मक निवल मूल्य (negative net worth) की नाममात्र की फर्जी कम्पनियाँ हैं, जिनके धंधे में कोई लाभ अर्जित नहीं हो रहा है, बल्कि वे लगातार घाटे में हैं। कथित तौर पर इन ज्यादातर कम्पनियाँ को प्राप्त ऋण की धनराशि का उपयोग अन्य कंपनियों को एडवांस देने के लिए किया गया है या अन्य कंपनियों द्वारा जारी परिवर्तनीय डिबेंचर में इस धनराशि का निवेश किया गया है, जिसकी ब्याज दर 0.001% प्रति वर्ष तक कम है।

इससे आगे जाकर NGO ने आरोप लगाया है कि "इस अहसान के बदले में," IHFL ने बिंदु राणा कपूर के प्रत्यक्ष स्वामित्व वाली सातों कंपनियों या उनकी सहायक कंपनियों के जरिये ये एडवांस बांटे। ऐसा दावा है कि यह धनराशि 5,698.12 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है जिसमें यस बैंक ने इंडियाबुल्स कंज्यूमर फाइनेंस लिमिटेड और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड को क्रमशः 2,100 करोड़ रुपये और 850 करोड़ रुपये के ऋण दिए।

इंडियाबुल्स समूह की एक कंपनी पेडिया (Paidia) कनेक्शन प्राइवेट लिमिटेड के पास शेयर पूंजी के रूप में मात्र 1 लाख रुपये ही थे, और जिसकी नेट वर्थ नकारात्मक थी और व्यावसायिक संचालन से कोई आय नहीं थी, के बावजूद उसे कथित तौर पर बैंक से 408 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। एनजीओ ने यह भी आरोप लगाया कि गोमिनी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को 315 करोड़ रुपये दिए गए, जो एक घाटे में चल रही कंपनी है और जिसे अपने बिजनेस से कोई आय नहीं हो रही और यह नकारात्मक निवल मूल्य की कम्पनी है।

इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि एक और घाटे में चल रही कंपनी एयरमीड (Airmid) एविएशन सर्विसेज लिमिटेड को आईएचएफएल (IHFL) से 245 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जिसकी शेयर पूंजी मात्र 1 लाख रुपये है, और नकारात्मक नेट वर्थ के साथ 2017-18 में उसकी आय मात्र 7.18 लाख रुपये हुई।

इसी तरह विश्वामुख प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को कथित तौर पर उसी वित्तीय वर्ष के अंत में कुल 27.90 करोड़ का घाटा होने के बावजूद, धंधे में बिना किसी आय और नकारात्मक नेट वर्थ  के बावजूद उसे 170 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त करने में सफलता मिली। इसी कंपनी ने यस बैंक से प्राप्त ऋण से कथित रूप से अन्य कंपनियों को 158.87 करोड़ रुपये बाँट दिए। एक बार फिर से, कथित लाभ की अदलाबदली के रूप में, बिंदु राणा कपूर या उनकी तीन बेटियों की स्वामित्व वाली कंपनियों को आईएचएफएल से 2,034 करोड़ रुपये प्राप्त हुए।

इसमें यह भी आरोप लगाये गए हैं कि इनमें से किसी भी कंपनी ने इन ऋण के खिलाफ कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के समक्ष कोई "आरोप" दायर नहीं किये हैं और इनमें से अधिकतर कंपनियों ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इन ऋणों का खुलासा नहीं किया है।

जब भी कोई कंपनी ऋण लेती है, तो उसे 2013 के कंपनी अधिनियम के अनुसार “प्रभार” के रूप में इसकी सुरक्षा की घोषणा और तदनुसार एमसीए को सूचित करना आवश्यक है। इसके अलावा, मानक लेखांकन प्रक्रियाओं के स्पष्ट उल्लंघन के तौर पर,  इन सभी ऋणों के लिए एकल-बुलेटिन के जरिये ऋण चुकता करने की रुपरेखा खींची गई है।

इंडियाबुल्स द्वारा बिंदु राणा कपूर की स्वामित्व की कंपनियों को कर्ज देना

कथित तौर पर IHFL ने बिंदु राणा कपूर की स्वामित्व वाली कंपनी रब (Rab) इंटरप्राइजेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को 735 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। इसने आगे बढ़कर रब एंटरप्राइजेज के स्वामित्व वाली कंपनी ब्लिस एबोड प्राइवेट लिमिटेड को भी 375 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। कथित तौर पर रब एंटरप्राइजेज के पूर्ण स्वामित्व वाली दो सहायक कंपनियों, इमेजिन रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड और ब्लिस हैबिटेट प्राइवेट लिमिटेड को 225 करोड़ रुपये और 200 करोड़ रुपये प्रदान किये गये।

एडवांस के तौर पर एक और 300 करोड़ रूपये का ऋण आईएचएफएल द्वारा मॉर्गन क्रेडिट्स प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया, जिसका स्वामित्व राणा कपूर की पत्नी और तीन बेटियों - राधा, राखी और रोशनी के के पास है। इस ऋण को 2017-18 में रिलायंस म्यूचुअल फंड के डिबेंचर जारी करने से प्राप्त 600 करोड़ रुपये की धनराशि के जरिये चुकाया गया था।

मॉर्गन क्रेडिट्स की सहायक कंपनी डोईट (Doit) क्रिएशंस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को IHFL से 169 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। इसने मॉर्गन क्रेडिट्स से प्राप्त धन के जरिये इस कर्जे को चुकाया। मॉर्गन क्रेडिट्स के स्वामित्व वाली एक अन्य कंपनी डूइट अर्बन वेंचर्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को 30 करोड़ प्राप्त हुए।

जिन सभी सात कंपनियों को IHFL ने कर्ज बांटें हैं वे सभी घाटे में चल रही हैं, और न तो उनके पास अपनी कोई अचल संपत्ति है और न ही धंधे से कोई लाभ हासिल हो रहा है। वास्तव में कहें तो ऐसे आरोप हैं जो बताते हैं कि IHFL ने निजी रूप से अपनी दौलत में इजाफा करने के लिए, यस बैंक से प्राप्त धन का उपयोग, पॉश इलाकों में रिहायशी अपार्टमेंट खरीदने और निजी इक्विटी हासिल करने के लिए किया है।
यस बैंक के मामले हाल ही में नियामक प्राधिकरणों के जांच के दायरे में आए हैं। इस बीच बैंक के शेयर के मूल्य में भारी गिरावट देखने को मिली। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा राणा कपूर को बैंक से हट जाने का निर्देश दिया गया था, और उसने कथित तौर पर बैंक में निवेशित अपने अधिकांश शेयर बेच दिए हैं।

इंडियाबुल्स का हालिया संकट

अक्टूबर की शुरुआत में आरबीआई ने, बिना किसी कारण का हवाला दिए, IHFL और लक्ष्मी विलास बैंक के विलय की योजना को खारिज कर दिया था। और यह आश्चर्य की बात नहीं कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में IHFL के शेयर के दाम धड़ाम से 52 हफ्ते के निचले स्तर 240.10 रुपये पर पहुंच गए। ऐसा दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा नागरिक व्हिसल ब्लोअर फोरम की याचिका को स्वीकार करने के कुछ दिनों बाद हुआ।
इससे पहले, जून में इसी प्रकार के आरोपों वाली एक याचिका समीर गहलौत और ग्रुप के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।

कुछ दिनों बाद ही अभय यादव नाम के इस याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली और इंडियाबुल्स प्रबंधन ने आरोप लगाया था कि उसने यह याचिका फिरौती माँगने की कोशिश में लगे पेशेवर ब्लैकमेलर्स के इशारे पर लगाई थी। कथित ब्लैकमेलरों में से एक (किसलय पाण्डेय) के पिता मणि राम पांडे को 29 जून को गुरुग्राम पुलिस ने लखनऊ से गिरफ्तार किया और उसे जेल में डाल दिया।

इंडियाबुल्स ने स्पष्ट तौर पर अपनी ओर से किसी भी गलत काम से इंकार किया है और उसने 6 सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका में लगे आरोपों से इंकार करते हुए अपना बयान जारी किया है।

कंपनी सेक्रेटरी अमित जैन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है : “कथित पीआईएल स्वीकार करती है कि उसने उन्हीं आरोपों को दोहराया है जो पहले के याचिकाकर्ता अभय यादव की याचिका में लगाये गए थे, जिसे बाद में वापस ले लिए गया। अभय यादव ने अपने बयान में स्वीकार किया था कि कंपनी के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे, असत्य और तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किये गए थे और यह याचिका उसने ब्लैकमेलिंग रैकेट के सरगना के इशारे पर दायर की थी, जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था और अब वह जेल में है। अदालत ने इस सरगना की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है।”

बताया जाता है कि इंडियाबुल्स ग्रुप के प्रमोटर समीर गहलौत की राजनीतिक पहुँच काफी तगड़ी है। उनकी कंपनी में इन दावों का इतिहास है कि जिसने भी उनके काम काज पर ऊँगली उठाई, वे सभी जबरन वसूली करने वाले या ब्लैकमेलर हैं, जिनमें कनाडाई फर्म वेरिटास भी शामिल है।

यह देखना बाकी है कि क्या यह समूह इस संकट से उबर पायेगा। अदालत में दाखिल याचिका में फण्ड के फंड के डायवर्जन और गोल-गोल घुमाने, सदाबहार ऋण की भरमार और सार्वजनिक धन का इस्तेमाल निजी दौलत के रूप में करने जैसे बेहद संगीन आरोप लगे हैं। प्रशांत भूषण ने आरोप लगाये हैं कि समूह से जुड़े लोग “विभिन्न संचार माध्यमों के जरिये मुझे मनाने के लिए व्यग्र थे कि मैं यह जनहित याचिका PIL किसी भी तरह न दायर करूँ/वापस ले लूँ।”

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