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अमित जेठवा हत्या मामले के मुख्य गवाह ने बेटे के अपहरण मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की

हाई प्रोफाइल अमित जेठवा हत्या मामले के मुख्य गवाह, धर्मेन्द्रगिरी बालुगिरी गोस्वामी को 2018 में उनके बेटे के अपहरण के बाद अपने बयान से मुकरने के लिये मजबूर होना पड़ा था।
परिवार सहित अमित जेठवा की पुरानी तस्वीर 
परिवार सहित अमित जेठवा की पुरानी तस्वीर 

आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में एक प्रमुख गवाह ने गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष 2018 में हुए अपने बेटे के अपहरण के मामले की तहकीकात को उना पुलिस से स्थानांतरित कर सीबीआई को सौंपे जाने की मांग की है।

इस हाई प्रोफाइल मामले के एक प्रमुख गवाह धर्मेन्द्रगिरी बालुगिरी गोस्वामी उन 26 गवाहों में शामिल थे जिनसे जेठवा की हत्या के मुकदमे के दौरान अहमदाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने दोबारा से पूछताछ की थी। 2018 में, गोस्वामी के बेटे का अपहरण तब कर लिया गया था, जब वे अदलत में गवाही दे रहे थे, जिसके चलते उन्हें अपने बयान से मुकरने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

याचिकाकर्ताओं में गोस्वामी और जेठवा के पिता भीखाभाई जेठवा शामिल हैं, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आनंद याज्ञनिक और भव्यराज गोहिल कर रहे हैं। उन्होंने मांग की है कि गुजरात उच्च न्यायालय इस मामले की जांच के काम को या तो सीबीआई को सौंप दे अन्यथा उना जांच को गुजरात कैडर के आईजी रैंक के अधिकारी के हाथ स्थानांतरित करने के निर्देश दे।

गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के उना के निवासी गोस्वामी ने इस साल 10 जून को गुजरात उच्च नयायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने अपने बेटे के अपहरण के मामले को उना पुलिस से सीबीआई को स्थानांतरित करने की गुहार लगाई थी। एक व्यसायी के तौर पर उनका दीव में अपना कारोबार है। उनका आरोप है कि कथित तौर पर दीव स्थानीय प्रशासन ने उन पर अपने बेटे के अपहरण के सिलसिले में दायर एफआईआर को रद्द करने का दबाव डाला है। 

केस की सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले पर केंद्र और राज्य सरकार सहित सीबीआई और दीव के जिलाधिकारी सहित गुजरात के अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। 

याचिका में कहा गया है कि “अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में बयान के दौरान, धमकी, जबरदस्ती और दबाव के तौर पर (गोस्वामी) के बेटे का अपहरण कर लिया गया था, ताकि एक मिसाल रखी जा सके कि यदि गवाह ने पुलिस के सामने दिए गए बयान को दोहराया तो इसका क्या अंजाम हो सकता है। अदलात कक्ष के बाहर कोर्ट परिसर में, दिनु सोलंकी और उसके भतीजे प्रताप उर्फ़ शिवा सोलंकी (सिक) के इशारे पर कुछ विशेष व्यक्तियों ने (गोस्वामी) को इस संबंध में डराया-धमकाया था।

याचिका में आगे कहा गया है: “उना पुलिस थाने द्वारा चलाई जा रही जांच एक धोखा है और पूरी तरह से अनुचित और गैर-पारदर्शी है। गोस्वामी अपनी प्राथमिकी को रद्द करने के लिए राजी नहीं हो रहे हैं, इसलिए याचिकाकर्ता के व्यवसाय को तहस-नहस कर देने के लिए दीव पुलिस थाने के साथ-साथ उना पुलिस स्टेशन की ओर से सभी प्रकार के गैर-कानूनी एवं अन्य दबावों को इस्तेमाल में लाया जा रहा है।”

उल्लेखनीय तौर पर, जिस सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद दिनु बोघा सोलंकी और उनके भतीजे शिवा सोलंकी को अमित जेठवा की हत्या का दोषी पाया था, उसने जुलाई 2019 में अपने अंतिम निष्कर्ष में इस घटना पर टिप्पणी की थी। तब अदालत ने निर्देश दिया था कि जेठवा हत्याकांड मामले में जांच अधिकारी मुकेश शर्मा और सतीश कुमार चौधरी संयुक्त जांच करेंगे और छह से आठ हफ़्तों के भीतर इसकी रिपोर्ट अदालत और संबंधित विभागों को सौंप देंगे। अदालत ने आगे कहा था “अगर अपराध की पुष्टि होती है तो फिर मामले में आगे की कार्यवाई करने की व्यवस्था की जानी चाहिये।”

इसके उपरांत सीबीआई और गुजरात पुलिस की ओर से एक संयुक्त जांच संचालित की गई थी और इसने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला था और कहा था कि “प्रथम-दृष्टया यह स्थापित हो जाता है कि दिनु सोलंकी, शिवा सोलंकी और अन्य लोगों ने आपराधिक षड्यंत्र के तहत दंडनीय अपराध को अंजाम दिया था, जिसमें व्यक्ति को धमकाने, अपरहरण और अगवा करने जैसे अपराध शामिल हैं।”

हालाँकि, इस रिपोर्ट के बाद सीबीआई द्वारा कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी। गुजरात सीआइडी के अपराध ईकाई के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने ऊना पुलिस स्टेशन को एक एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिया था, जिसे मार्च 2020 में दर्ज किया गया था। 

सितंबर 2020 में अंतिम चार्जशीट दाखिल की गई थी और इसमें सिर्फ उस्मान काज़ी को एकमात्र आरोपी के तौर पर नामित किया था, जिसने गोस्वामी के बेटे का शारीरिक तौर पर अपहरण किया था। संयुक्त जांच रिपोर्ट से निकले निष्कर्ष की अन्य तफसीलों का चार्जशीट में उल्लेख नहीं किया गया था।

अमित जेठवा की हत्या का मामला 

आरटीआई कार्यकर्त्ता अमित जेठवा गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में अमरेली जिले के एक छोटे से गाँव खंभा के निवासी थे। वे एक मध्य-वर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखते थे और एक ऐसे घर में रहते थे जहाँ जेठवा और उनके तीन सहोदर पैदा और पले-बढे थे, जब तक कि परिवार के एकमात्र कमाने वाले ज्येष्ठ पुत्र अमित की अहमदाबाद में गुजरात उच्च नयायालय के ठीक सामने 20 जुलाई, 2010 को गोली मारकर हत्या नहीं कर दी गई थी।

2007 में, जेठवा ने गिर के जंगल में शेरों की रहस्यमयी मौतों का खुलासा किया था और इसमें शेर का शिकार करने वाले एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया था। उसी साल, उन्होंने कोडीनार (जूनागढ़) से दिनु बोघा सोलंकी के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन इसमें सोलंकी को जीत हासिल हुई थी। 2008 में, जेठवा ने आरटीआई के जरिये अवैध खनन के बारे में जानकारी इकट्ठी करनी शुरू कर दी थी, जिसके चलते उनपर जानलेवा हमला किया गया था और उन्हें गंभीर रूप से घायल होने के कारण तीन महीने तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। इस हमले के बाद, जेठवा उनकी पत्नी और दोनों बच्चों ने खंभा छोड़ अहमदाबाद में रहने लगे थे। 2010 में, उन्होंने आरटीआई के जरिये मांगे गये सुबूतों के आधार पर एक जनहित याचिका दाखिल की थी और उसमें सोलंकी का नाम लिया था। 

जेठवा की हत्या के बाद, भावनात्मक और आर्थिक तौर पर टूट चुके परिवार को धमकियां मिलने लगीं क्योंकि उनके पिता, भीखाभाई जेठवा ने केस को जारी रखने का फैसला लिया था। इन वर्षों के दौरान  भीखाभाई को छोड़कर जेठवा परिवार के सभी सदस्यों को सुरक्षा कारणों और आजीविका कमाने के लिए खंभा से बाहर का रुख करना पड़ा।

इससे पूर्व भीखाभाई जेठवा ने न्यूज़क्लिक को बताया था “उसकी (अमित) मौत के फौरन बाद ही मुझे करीब एक दर्जन के आस-पास धमकियां मिली थीं, जिसमें मुझे शिकायत दर्ज न करने के बारे में चेताया गया था। मेरी पत्नी को धमकाया गया और मेरे दामाद पर हमला किया गया था। उन्होंने मुझे पैसों का लालच देने का भी प्रयास किया था।” 

जब मुकदमा शुरू हुआ तो 195 गवाहों में से 105 लोग अपने बयान से मुकर गये। भीखाभाई ने उच्च न्यायालय का रुख किया और इस आधार पर फिर से सुनवाई की जाने की मांग की कि अधिकांश गवाह अपने बयानों से मुकर गए थे और साथ में जोड़ा था कि उन्हें धमकियां मिल रही थीं। अदालत ने नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया था और इस केस की सुनवाई कर रहे विशेष नयायाधीश को बदलने के भी आदेश जारी किये थे। 

इसकी प्रतिक्रिया में, दिनु सोलंकी ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया जिसमें गुजरात उच्च न्यायालय के पुनर्विचार के आदेश को चुनौती दी गई थी। 30 अक्टूबर, 2017 को शीर्ष अदालत ने सोलंकी की जमानत याचिका को रद्द कर दिया और उसे तत्काल आत्मसमर्पण करने के आदेश सहित 26 अन्य गवाहों से दोबारा से पूछताछ करने की अनुमति दे दी, जिस दौरान प्रमुख गवाह गोस्वामी को अपना बयान देने के लिए पेश किया गया था और उनके बयान के दौरान उनके बेटे का अपहरण कर लिया गया था।

सीबीआई की विशेष अदालत ने 26 गवाहों से फिर से पूछताछ की और पाया कि पूर्व भाजपा सांसद दिनु बोघा सोलंकी, जिसे अमित शाह का करीबी माना जाता है, सहित छह अन्य को आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के दोषी थे। इन सात आरोपियों में पुलिस कांस्टेबल बहादुर सिंह वडेर, दिनु सोलंकी का भतीजा शिवा सोलंकी, संजय चौहान, शैलेश पांड्या, पाचन देसाई और उदयजी ठाकोर शामिल थे, जिनपर धारा 302 (हत्या), 201 (अपराध के सबूतों को गायब कर देने), भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी के तहत (अपराध करने के लिए आपराधिक साजिश रचने) और शस्त्र अधिनियम की धारा 25(1) के तहत (हथियारों या गोला-बारूद को अवैध रुप से अपने कब्जे में रखने) का दोषी पाया गया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Key Witness in Amit Jethwa Murder Case Seeks Transfer of Son's Kidnapping Case to CBI

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