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मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक को मंजूरी, विपक्ष ने की सरकार से पुनर्विचार की मांग

राज्यसभा में विपक्षी दलों ने मानवाधिकार संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधन से मानवाधिकार आयोग की संस्था के कमजोर होने की आशंका व्यक्त करते हुये सोमवार को संबंधित संशोधन विधेयक के प्रावधानों पर सरकार से पुनर्विचार करने की मांग की। 
Protection of Human Rights Amendment Bill
Image Courtesy: Hindustan Times

नई दिल्ली। संसद ने सोमवार को मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी तथा सरकार ने भरोसा जताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों को और अधिक सक्षम बनाने में विधेयक के प्रावधानों से मदद मिलेगी।

राज्यसभा ने विधेयक को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के कुछ सदस्यों की इन आपत्तियों को निराधार बताया कि पुनर्नियुक्ति के प्रावधान के कारण यह ‘सरकार का आयोग’ बन जाएगा। शाह ने कहा कि आयोग के सदस्य की नियुक्ति एक समिति करती है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति तथा संसद के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता होते हैं। 

शाह ने कहा कि समिति द्वारा नियुक्ति के बारे में यदि इस तरह के संदेह किया जाएगा तो ‘कोई भी लोकतांत्रिक संस्था काम नहीं कर पाएगी।’उन्होंने कहा कि आयोग के सदस्यों के कार्यकाल को पांच साल से घटाकर तीन साल करने का उद्देश्य है कि खाली पदों को भरा जा सकेगा। 

उन्होंने पुनर्नियुक्ति के प्रावधानों को लेकर विपक्ष के सदस्यों के संदेहों पर कहा कि इनकी पुनर्नियुक्ति सरकार नहीं नियुक्ति समिति करेगी। साथ ही आयोग के नियम के तहत इसका कोई सदस्य या अध्यक्ष सरकार के किसी अन्य पद पर नियुक्त नहीं हो सकता है।

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि मोदी सरकार की नीति है कि ‘न किसी पर अत्याचार हो, न किसी अत्याचारी को बख्शा जाए’।

विधेयक के प्रावधान के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसा व्यक्ति होगा, जो उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश रहा हो। उसके अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त किया जा सके जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है। 

इसमें आयोग के सदस्यों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन करने का प्रावधान है जिसमें एक महिला हो। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जाए और वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे।

इस संशोधन विधेयक के माध्यम से आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है।  गृह राज्य मंत्री राय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नीत सरकार की नीतियों के केंद्र में ‘मानव और मानवता का संरक्षण’ है। 

 संशोधन प्रस्ताव संस्था को कमजोर करेगा: विपक्ष का आरोप

राज्यसभा में विपक्षी दलों ने मानवाधिकार संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधन से मानवाधिकार आयोग की संस्था के कमजोर होने की आशंका व्यक्त करते हुये सोमवार को संबंधित संशोधन विधेयक के प्रावधानों पर सरकार से पुनर्विचार करने की मांग की। 

उच्च सदन में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा पेश मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019 पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों के सदस्यों ने राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधानों में प्रस्तावित बदलाव से मानवाधिकारों के संरक्षण के लिये स्थापित इस संस्था के कमजोर होने की आशंका जतायी।

चर्चा में हिस्सा लेते हुये सपा के रामगोपाल यादव, कांग्रेस के विवेक तन्खा, माकपा के इलामारम करीम, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीएमसी) के के केशव राव और बीजद के प्रसन्ना आचार्य ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन विधेयक में आयोग के सदस्यों का कार्यकाल कम करने और इनकी पुनर्नियुक्ति के प्रावधान से यह संस्था कमजोर होगी। 

राज्यसभा में इस विधेयक पर हुयी चर्चा में हिस्सा लेते हुए यादव ने दलील दी कि सदस्यों का कार्यकाल कम करने और पुनर्नियुक्ति के प्रावधान के कारण फिर से नियुक्ति के इच्छुक सदस्य, सरकार को खुश करने वाली रिपोर्ट और सिफारिशें देंगे। उन्होंने कहा कि इन संशोधनों से आयोग कमजोर होगा। 

इससे पहले तन्खा ने विधेयक में शामिल संशोधन प्रावधानों में विसंगति होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अनुपलब्धता के कारण किसी भी उपलब्ध सेवानिवृत्त न्यायाधीश को आयोग का अध्यक्ष बनाने का प्रावधान करना चाहती है। लेकिन संशोधन विधेयक में यह भ्रम बरकरार है कि सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के उपलब्ध होने पर भी क्या किसी अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बना दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि इससे सत्तापक्ष की मनमानी बढ़ेगी। 

तन्खा ने सुझाव दिया कि अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति में मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में अनुभव को भी देखा जाना चाहिये। आचार्य ने उच्चतम न्यायालय द्वारा एनएचआरसी को ‘दंतहीन शेर’ करार दिये जाने का हवाला देते हुये सरकार ने सदस्यों का कार्यकाल कम करने और पुनर्नियुक्ति के प्रावधान पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी जैसी संस्थाओं को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने में ऐसे प्रावधान बाधक साबित होंगे। 

केशव राव ने कहा कि सरकार संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संबंधी स्थायी समिति की उस रिपोर्ट के दबाव में मानवाधिकार कानून में संशोधन प्रस्ताव लेकर आयी है जिसमें भारत में मानवाधिकार संरक्षण के प्रयासों पर सवाल उठाये गये थे। 

इस दौरान भाजपा के प्रभात झा और जदयू के आरसीपी सिंह ने कहा कि संशोधन प्रावधान मानवाधिकार आयोग की संस्था की कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मददगार होंगे। झा ने कहा कि सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों की उपलब्धता नहीं होने के कारण राष्ट्रीय और राज्य आयोग के पद लंबे समय तक तक रिक्त रहते हैं। संशोधन प्रस्ताव से इस समस्या का समाधान होगा। 

सिंह ने कहा कि विधेयक में छह प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है। इसमें सदस्यों की पुनर्नियुक्ति और अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल कम करने और कम से कम एक महिला सदस्य की नियुक्ति को अनिवार्य करने का प्रावधान शामिल है। चर्चा में शामिल सदस्यों ने महिला सदस्य की नियुक्ति को अनिवार्य बनाने का स्वागत किया। 

शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि विधेयक में प्रस्तावित संशोधन के कारण मानवाधिकार आयोग की कार्यक्षमता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार हनन के सर्वाधिक शिकार कश्मीरी पंडित हुये है और इनकी घरवापसी तक आयोग में एक सदस्य कश्मीरी पंडित होने चाहिये। 

द्रमुक के तिरुचि शिवा ने सरकार अपने चहेतों को आयोग में सदस्य बनाये रखने के लिये अगर पुनर्नियुक्ति करती है तो इससे कानून का मकसद पूरा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी को शक्तिसंपन्न बनाने के उच्चतम न्यायालय के सुझावों का गंभीरता से पालन होना चाहिये। 

भाजपा के राकेश सिन्हा ने कहा कि विदेशों में निर्वाचित संस्थाओं पर गैर निर्वाचित संस्थाओं के हावी होने के कारण मानवाधिकारों का हनन बढ़ा है। भारत में स्थिति इसके उलट है। उन्होंने सदस्यों का कार्यकाल कम किये जाने को उचित ठहराया। भारत मानवता को ध्यान में रखकर मानवाधिकार की बात करता है जबकि अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देश नस्लवाद और आर्थिक हितों को वरीयता देते हैं। 

कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री ने आयोग के समक्ष जांच करने संबंधी संस्थागत जरूरी संसाधनों के अभाव का हवाला देते हुये कहा कि संशोधनों के बावजूद कानून निष्प्रभावी ही रहेगा। उन्होंने कहा कि यह संशोधन सिर्फ संयुक्त राष्ट्र को खुश करने के लिये किया जा रहा है। 

तेदेपा के के रविन्द्र कुमार ने कहा कि आयोग के पास अपनी स्वतंत्र जांच एजेंसी सहित अन्य संसाधन होने चाहिये। उन्होंने सदस्यों के कार्यकाल में कटौती और पुनर्नियुक्ति के प्रावधानों को विरोधाभाषी बताते हुये कहा कि इससे राजनीतिक नियुक्तियां बढ़ेंगी। उन्होंने आयोग को अर्धन्यायिक अधिकार संपन्न बनाने का सुझाव दिया। 

कांग्रेस के रिपुन बोरा ने कहा कि सबसे ज्यादा मानवाधिकारों का हनन सैन्य क्षेत्रों में होता है। ऐसे में आयोग के पास सेना के खिलाफ शिकायतें स्वीकार करने का अधिकार और स्वायत्तता होनी चाहिये। उन्होंने महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन सर्वाधिक होने की दलील देते हुये आयोगों में महिला सदस्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का सुझाव दिया।

आप के संजय सिंह ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह दिल्ली सरकार के प्रति दुर्भावना से काम कर रही है। उन्होंने इसे काला कानून बताया और इसके विरोध में सदन से वाकआउट किया। चर्चा में भाजपा के चुन्नीभाई गोहेल, वाईएसआर के वी विजय साई रेड्डी, बसपा के राजाराम ने भी भाग लिया। 

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
 

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