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'मौत की शराब' की बिक्री में ऊपर से नीचे तक सब शामिल!

ये घटना सीधे तौर पर आपराधिक लापरवाही है। ऊपर से नीचे तक, नेताओं से अधिकारियों तक, बिना किसी मिलीभगत के इतने बड़े स्तर पर अवैध शराब का कारोबार क्या संभव है?
Death by poisonous liquor

ऐसा नहीं है कि ज़हरीली शराब से उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में, या देश में, पहली बार मौतें हुई हैं। ऐसा भी नहीं है कि अधिकारियों से लेकर नेताओं तक को, नहीं पता होता कि अवैध शराब का कारोबार कैसे फलता-फूलता रहता है। हुआ सिर्फ इतना कि जब सौ लोगों से अधिक की मौत हो गई, तब अधिकारी से लेकर नेता तक सकते में आते हैं, मुआवज़ा, निलंबन, इधर छापे-उधर छापे, कुछ दिन बाद माहौल शांत हो जाएगा। लोग घटना को भूल जाएंगे। अवैध शराब की भट्टियां फिर सुलगने लगेंगी। सस्ती शराब फिर मिलने लगेगी। लेकिन जिन परिवारों के लोग ज़हरीली शराब पीकर मौत की नींद सो गये, वो परिवार हमेशा सदमे और मुश्किल हालात से जूझते रहेंगे।

और इस बार तो इस कांड को लेकर एक अजीब सी चुप्पी भी है। मुख्य धारा के मीडिया में इस पर बहुत कम बात हुई है।

अवैध शराब का कारोबार उत्तराखंड में भी खूब चलता है, और उत्तर प्रदेश में भी। इस घटना के बाद दोनों ही राज्यों में ताबड़तोड़ छापेमारी की कार्रवाइयां भी चल रही हैं। ऐसी कार्रवाई हमेशा चलती रहती, तो शायद इतनी मौतें नहीं होतीं। ये घटना सीधे तौर पर आपराधिक लापरवाही है। ऊपर से नीचे तक, नेताओं से अधिकारियों तक, बिना किसी मिलीभगत के इतने बड़े स्तर पर अवैध शराब का कारोबार क्या संभव है?

तंत्र की मिलीभगत से अवैध शराब का कारोबार?

उत्तराखंड में सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि लोगों के शराब पीकर मरने के चलते इस कारोबार का खुलासा हुआ है। अवैध शराब रोकने के लिए एक पूरा तंत्र है,जिसमें आबकारी और पुलिस शामिल हैं। उसके बावजूद अवैध शराब बिकती है, तो साफ है कि उस तंत्र की मिलीभगत से ही बिकती है।

इंद्रेश के मुताबिक हरिद्वार की इस घटना से त्रिवेंद्र रावत सरकार सीधे सवालों के घेरे में है।

इस घटना के बाद, हरिद्वार की झबरेड़ा सीट से भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल ने बयान दिया है कि हरिद्वार में शराब माफिया का दबदबा है। सत्ताधारी पार्टी के विधायक का यह बयान तो राज्य सरकार को ही कठघरे में खड़ा करता है कि सरकार की नाक के नीचे शराब माफिया का दबदबा कैसे है? या तो सरकार कमजोर है या फिर माफिया से उसकी साँठगाँठ है?

उत्तराखंड में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नेता किशोर उपाध्याय का कहना है कि बिना शासन-प्रशासन की संलिप्तता के ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कुछ कर्मचारियों को निलंबित करने से असर नहीं पड़ने वाला है। कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार की तरफ से अस्पताल में भर्ती बीमार लोगों और उनके परिवार वालों का हालचाल लेने के लिए कोई नहीं गया। वह कहते हैं कि ये सीधे तौर पर सरकार की लापरवाही है और उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। किशोर उपाध्याय कहते हैं कि इस धंधे में नीचे से ऊपर तक पैसा भेजा जाता है, इसी तरीके से राजनीतिक दलों की पॉकेट भरती है, इसमें टॉप टु बॉटम पूरा सिस्टम शामिल है।

प्रदेश कांग्रेस के नेता किशोर उपाध्याय कहते हैं कि कच्ची शराब के खिलाफ उत्तराखंड में हमेशा ही आंदोलन होते रहे हैं। राज्य बनने के बाद कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में शराबबंदी तो नहीं, लेकिन इसे नियंत्रित करने की जरूर बात कही थी। उन्होंने कहा कि जब वे विधानसभा में थे, तो शराबबंदी को लेकर दो बार प्रस्ताव भी लेकर आए थे। उनका कहना है कि उत्तराखंड में नशे का कारोबार ज़ोर पकड़ रहा है। सिर्फ शराब ही नहीं, अन्य मादक पदार्थों की भी यहां अवैध तरीके से खूब खरीद-फरोख्त होती है।

हरिद्वार में दशकों से फल-फूल रहा अवैध शराब का कारोबार

हरिद्वार के स्थानीय पत्रकार प्रदीप झा बताते हैं कि पूरे जनपद में कई दशकों से अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। जबकि हरिद्वार शहर आस्था के चलते ड्राई ज़ोन घोषित है। वे बताते हैं कि शराब माफिया अपने खेतों के बीच या जंगल में चोरी-छिपे इस कारोबार को करते हैं। झा के मुताबिक हरिद्वार में एक दर्जन गांव ऐसे हैं जहां कच्ची शराब बनाने का कारोबार बड़े स्तर पर होता है, यहां इन्हें बारह गढ़ कहा जाता है। उन्होंने जानकारी दी कि झबरेड़ा और लक्सर क्षेत्र के कम से कम सौ गांव हैं जहां शराब की भट्टियां कई सालों से चल रही हैं। यही नहीं कई गांव तो ऐसे हैं जहां ज्यादातर लोग अवैध शराब के कारोबार से जुड़े हुए हैं।

अक्सर गन्ने के खेतों के बीच छिपाकर या खादर क्षेत्र में जहां कीचड़-गारा-मिट्टी इतनी अधिक होती है कि आम लोग आसानी से पैदल नहीं चल सकते हैं, वहां शराब की भट्टियां लगायी जाती हैं। पुलिस या आबकारी की टीम जब तक यहां छापेमारी के लिए पहुंचे, लोग भाग जाते हैं। कार्रवाई करने गई टीम भट्टियां तोड़ कर और लाहन गिराकर खानापूर्ति कर लेती है।

आबकारी अधिनियम की धारा-60 नहीं पर्याप्त

अवैध शराब के कारोबार के फलने-फूलने की एक वजह ये भी है कि इसके लिए आबकारी अधिनियम की एक मात्र धारा-60 ही है, जिसमें मामला दर्ज होने पर आरोपियों को थाने से ही ज़मानत मिल जाती है। ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 272 का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, जिसमें सजा के कड़े प्रावधान हैं। इसके बावजूद ये धारा नहीं लगायी जाती। जिससे अवैध शराब का कारोबार खूब फलता फूलता है।

पुलिस-आबकारी विभाग में तालमेल नहीं

मामले में दूसरी कमज़ोर कड़ी ये है कि आबकारी विभाग के पास संसाधन ही नहीं हैं। जब वे कार्रवाई के लिए या छापेमारी के लिए जाते हैं तो उनके पास लाठी-डंडा तक नहीं होता है। जबकि माफिया के पास हर किस्म के हथियार होते हैं। लाठी-डंडे, कुल्हाड़े-तलवार से लेकर बंदूकें तक होती हैं। इसके साथ ही पुलिस और आबकारी विभाग के बीच सामंजस्य न होना भी अवैध शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाता है।

स्थानीय पत्रकार प्रदीप झा बताते हैं कि हरिद्वार के ही सलेमपुर में अंग्रेजी शराब की फैक्ट्री पकड़ी गई थी। जहां से कई हजार बोतलें मिलीं, होलोग्राम मिले, ढक्कन मिले। पुलिस चाहती थी कि इस कार्रवाई का श्रेय उन्हें मिले, जबकि आबकारी विभाग ने ये कार्रवाई की थी और वे खुद इसका श्रेय लेना चाहते थे। घटनास्थल पर ही आबकारी विभाग और पुलिस की टीमें आपस में ही भिड़ गईं। उस मामले में पुलिस ने जिला आबकारी अधिकारी प्रशांत सिंह पर भी मुकदमा दर्ज कराया था।

गांवों में चलाये जाएं जागरुकता अभियान

नशे के खिलाफ़ जागरुकता का अभियान चलाने वाले सजग इंडिया संस्था के ललित जोशी का कहना है कि कच्ची शराब बाज़ार में मिलने वाली अंग्रेजी या देसी शराब की तुलना में बहुत सस्ती होती है। शराब की जितनी मात्रा सरकारी दुकान पर सत्तर रुपये में मिलती हैं, उतनी ही मात्रा में कच्ची शराब बीस रुपये में मिल जाती है। जोशी बताते हैं कि कच्ची शराब तो बकायदा ऑर्डर देकर बनवायी जाती है। इसे जल्दी बनाने के लिए यूरिया और दूसरे कैमिकल मिलाये जाते हैं। इसके उत्पादन से लेकर बेचने तक का एक पूरा व्यवस्थित तंत्र है। इसमें निवेश के मुकाबले मुनाफा कहीं ज्यादा है, इसलिए ये धंधा खूब फलता-फूलता है।

ज़हरीली शराब के चलते मरने वाले ज्यादातर लोग श्रमिक वर्ग से थे। सस्ती शराब खरीदने के चक्कर में उनकी मौत हुई। ललित जोशी कहते हैं कि अभी तक नशा विरोधी अभियान ज्यादातर स्कूलों और कॉलेजों में ही चलाया जाता है। लेकिन अब इसे गांवों में भी व्यापक स्तर पर चलाना चाहिए।

अवैध शराब के कारोबार पर सख्ती पहले क्यों नहीं?

ज़हरीली शराब से हुई मौतों के मामले में आज उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष ने जोरदारा हंगामा किया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विधानसभा में मीडिया से बातचीत में कहा कि इस सत्र में एक विधेयक लाया जायेगाजिसमें जहरीली शराब बेचने और अवैध तरीके से इस तरह का कारोबार करने वालों लिए सख्त प्रावधान होंगे। ताकि इस तरह के अपराधियों को कठोर दण्ड दिया जा सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह के मामलों की जांच के लिए एक आयोग का गठन भी किया जायेगा। 

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि हरिद्वार जनपद में हुई घटना की तह तक जाकर जांच की जायेगी। इसके लिए आईजी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में एसआईटी गठित की जा रही हैताकि इस मामले की गहराई और सोर्स तक पंहुचा जा सके। इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच के आदेश पहले ही दिये जा चुके हैं। उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त कमेटी बनाई गई है। हरिद्वार और सहरानपुर के एसएसपी इस पूरे मामले का खुलासा कर चुके हैं कि शराब किनके द्वारा बनाई गईकहां बनाई गई और किसके द्वारा बेची गई। हमारा प्रयास है कि इस मामले में संलिप्त सभी लोगों तक पहुंचा जाय। 

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