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#महाराष्ट्र_सूखाः सरकार की प्रमुख लघु सिंचाई योजना लोगों को सुविधा देने में विफल

जिन गांवों में इस योजना को लागू किया गया है वहां के लोगों का कहना है कि जिन ठेकेदारों के पास जेसीबी है उन्हें ये काम सौंप दिया गया है और वे गंभीरता से इस काम को नहीं कर रहे हैं।
महाराष्ट्र सूखा

[वर्ष 1972 के बाद से महाराष्ट्र ने कई बार सूखे की मार झेली लेकिन इस बार ये राज्य सबसे ज़्यादा प्रभावित है। राज्य सरकार ने 350 में से 180 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। पूरा मराठवाड़ा (दक्षिणी और पूर्वी महाराष्ट्र का क्षेत्र) क्षेत्र अब बेहद ख़तरनाक स्थिति में है। न्यूज़क्लिक द्वारा ग्राउंड रिपोर्ट की श्रृंखला का अगला भाग।]

लातूर ज़िले में निलंगा तहसील के सवांगिरा गांव के ग्रामीण ‘जलयुक्त शिवार योजना’ को लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। ये महाराष्ट्र सरकार के एक प्रमुख लघु सिंचाई योजना है। सवांगिरा के शरद सोमवंशी कहते हैं, “मेरा खेत जलयुक्त शिवार परियोजना से सटा हुआ है। एक दिन एक जेसीबी आई थोड़ी-बहुत खुदाई की और चली गई। कुछ दिनों के बाद उन्होंने इस परियोजना के पूरा होने की घोषणा करते हुए एक बोर्ड लगा दिया। यह पूरी तरह से फ़र्ज़ी है, इसका कोई फायदा नहीं हुआ है। यहां पर खड़े सभी ग्रामीणों ने इस बात पर अपनी सहमति जताई। चूंकि महाराष्ट्र वर्ष 1972 के बाद से भीषण सूखे की मार झेल रहा है ऐसे में यहां की सरकार की बहुप्रचारित लघु सिंचाई योजना की ये हक़ीक़त है।

जलयुक्त शिवार का मतलब है ‘पानी से भरा खेत’। इसका उद्देश्य सीसीटी, डीप सीसीटी, नाला बन्डिंग, नाला चौड़ीकरण तथा अन्य साधनों सहित कई लघु सिंचाई कार्यों के माध्यम से किसानों और गांवों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराना है। राज्य में सत्ता हासिल करने के एक साल बाद वर्ष 2015 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा इसे शुरू किया गया था। तब से लगभग 8,808 करोड़ रुपये इस योजना पर खर्च किए गए हैं और अभी भी सिंचाई में 'गेम चेंजर’ के रूप में पेश किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है और इसका पूरा इतिहास राजनीतिक रूप से प्रभावित है। इसलिए पहले इसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं।

तत्कालीन कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सरकार को सिंचाई कार्यक्रमों के मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा था। वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जो उस समय बीजेपी के एक प्रमुख युवा विधायक थे, उन्होंने महाराष्ट्र के सिंचाई कार्यक्रम पर 70,000 करोड़ रुपये से अधिक के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था और इसको लेकर वे सबसे ज़्यादा आक्रामक भी थे। विशेष रूप से राकांपा नेता और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजीत पवार पर हमला किया गया था क्योंकि उन्होंने 10 वर्षों तक इस विभाग को संभाला था।

इसलिए जब बीजेपी सत्ता में आई तो इसने सिंचाई के लिए जलयुक्त शिवार योजना शुरू की जो कम खर्चीली और अधिक प्रभावी हो सकती थी। पुणे ज़िले में लघु सिंचाई का एक लघु स्तर का मॉडल था। इस मामले में भी वहीं हुआ जो सवांगीरा गांव में हुआ। एक तरह से यह पुणे और बाद में पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में सरकार द्वारा शुरू किया गया एक पायलट प्रोग्राम था।

सूत्रों ने बताया कि सीएम फडणवीस खुद इसे प्रदेशव्यापी शुरू करने के लिए इच्छुक थे ताकि यह बताया जा सके कि उनकी सरकार महाराष्ट्र की खेतों को सिंचित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।

लेकिन अब लगभग तीन साल बीत चुके हैं और धरातल पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। महाराष्ट्र ने वर्ष 2013, 2015, 2017 और 2019 में लगातार सूखे का सामना किया है। राज्य में अब तक जितने भी अकाल हुए हैं उनमें वर्तमान अकाल सबसे भीषण है। राज्य में इस साल औसतन 65 प्रतिशत वर्षा ही हुई है। इस सूखे की पृष्ठभूमि में जलयुक्त शिवर से उन गांवों की समस्याओं को समाप्त होने की उम्मीद की गई थी जहां इस योजना को लागू किया गया है।

योजना निजी ठेकेदारों को दे दी गई

इस योजना का उद्देश्य लोगों को उनके गांव में सिंचाई कार्य में शामिल करना था और उन्हें राज्य सरकार द्वारा तकनीकी सहायता दिया जाना था। इस योजना के कार्यान्वयन को लेकर बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले प्रोफेसर एचएम देसरादा कहते हैं, “बल्कि यह अब ठेकेदारों के हाथों में चला गया है। जिनके पास जेसीबी है उन्हें काम मिलता है और बाद में कोई काम नहीं होता है। अब इस योजना की ये सबसे बड़ी समस्या है।”

प्रोफेसर देसरादा के आरोपों के वास्तविकता का समर्थन महाराष्ट्र के कई गांवों के लोग करते हैं। इसी तहसील में एक गांव है जिसका नाम मुगव है। हाल के कार्यक्रम में जब कई अन्य सरकारी योजनाओं को शुरु किया गया तो गांव में जलयुक्त शिवर के सफल होने का उल्लेख था। जब ग्रामीणों ने इसे सुना तो वे आश्चर्यचकित रह गए। मुगव के विजयकुमार चंदाराव पाटिल कहते हैं, “हमारे गांव में जलयुक्त शिवार परियोजना कहां है? हमें सरकार की विज्ञापन पुस्तिकाओं के माध्यम से इसके बारे में पता चला।”

बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रोफेसर एचएम देसराडा की जनहित याचिका पर सच्चाई का पता लगाने के लिए पूर्व मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ के अधीन एक समिति नियुक्त की है। इसने अदालत को रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन रिपोर्ट में कई ख़ामियां हैं। महाराष्ट्र के सिंचाई विशेषज्ञ इस योजना को विभिन्न कारणों से तुरंत रोकने के लिए भी दलील पेश कर रहे हैं।

वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूशन (डब्ल्यूएएलएमआई) के जल विशेषज्ञ प्रदीप पुरंदारे कहते हैं, “यह योजना पूरी तरह अवैज्ञानिक है। नाला में कितनी खुदाई होनी चाहिए इस पर कोई उचित मार्गदर्शन नहीं किया गया है। सतह के नीचे पानी के संवेदनशील स्रोतों के प्रबंधन में विशेषज्ञता का पूर्ण अभाव है। जेसीबी मालिक को काम देने के लिए कहीं भी खुदाई करने से भूमिगत जल स्रोत खुले रह जाते हैं। सिंचाई के लिए सहायता को भूल जाइए, ये काम अब खुद सिंचाई की संभावना को नुकसान पहुंचा रहा है।”

पानी फाउंडेशन : जनता की लघु सिंचाई परियोजना

अब आइए बीड ज़िले के धरुर तहसील के गांव जयभयवाड़ी की कहानी बताते हैं। सरकार की जलयुक्त शिवार योजना के समान लोग अपनी लघु सिंचाई परियोजना चला रहे हैं। इसे पानी फाउंडेशन के रूप में जाना जाता है। इसके ब्रांड अम्बेस्डर बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान हैं। यह परियोजना तीन साल पुरानी है और महाराष्ट्र के बंजर इलाक़े में अपनी जड़ें जमा चुका है।

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(भूम तहसील के हिवरा गांव में पानी फाउंडेशन के अधीन ग्रामीण काम करते हुए)

वर्ष 2017 में पानी फाउंडेशन के अधीन ग्रामीणों द्वारा किए जा रहे कार्यों की तुलना करने के लिए आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में जयभयवाड़ी ने दूसरा स्थान हासिल किया था।

नव निर्वाचित उप सरपंच डॉ. अर्जुन जयभाई कहते हैं, “हमारे गांव में पानी फाउंडेशन का काम अब परिणाम दे रहा है। गांवों में कुओं का जल स्तर बढ़ गया है। लोग स्वेच्छा से भाग लेते हैं और अब अपनी मेहनत का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन हमारे गांव में इसका मुकाबला जलयुक्त शिवार योजना से दूर-दूर तक नहीं होता है। ठेकेदार ग्रामीणों की तरह गंभीरता से काम नहीं करते हैं।” उन्होंने कहा, "हर जगह अब इस योजना की यही वास्तविकता है।"

महाराष्ट्र को लघु सिंचाई योजना की सख्त ज़रूरत है और इसके लिए लगातार प्रयास होने चाहिए। कई सफल गांवों के उदाहरण हैं जो लघु सिंचाई से लाभान्वित हुआ है जैसे कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का रालेगण सिद्धि गांव या अत्यधिक सफल गांव हिवारे बजर जो बारिश की हर बूंद को बचाने के लिए प्रसिद्ध है।

जलयुक्त शिवार को भी इसी उद्देश्य के साथ लॉन्च किया गया था लेकिन ऐसा लगता है कि यह बुरी तरह से विफल हो गया है। सवांगिरा गांव के कमलाकर जाधव कहते हैं, “अगर उन्होंने हमें 12 लाख रुपये दिए होते तो हम बेहतर काम करते। ये सूखे के समय में हमारी मदद करता।” इस योजना की विफलता राज्य सरकार द्वारा ठेकेदार के माध्यम से संचालित योजनाओं पर सूखे से लड़ने के लिए लोगों की भागीदारी की आवश्यकता की याद दिलाती है।

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