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न्यूनतम मजदूरी के मसले पर दिल्ली के मजदूरों की ऐतिहासिक जीत

दिल्ली के लाखों मजदूरों के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक सुखद एहसास लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि दिल्ली सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी में 37 फीसदी वृद्धि सही है और इसे लागू किया जाए।
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दिल्ली के लाखों मजदूरों के लिए  सोमवर 14 अक्टूबर  का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक सुखद एहसास लेकर आया। यह सुखद एहसास दिल्ली के मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि दिल्ली सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी में 37 फीसदी वृद्धि सही है और इसे लागू किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली सरकार और कई उद्योगपतियों के बीच न्यूनतम मजदूरी मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा है कि वह जनवरी 2019 में न्यूनतम मजदूरी सलाहकार समिति द्वारा तय किए गए नए न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना को लागू करे।

इससे पहले  दिल्ली उच्च न्यायलय ने दिल्ली सरकार के वेतन वृद्धि  पर रोक लगा दी थी और  दिल्ली सरकार के 31 मई को जारी हुए न्यूनतम मजदूरी से जुड़े  नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था। इसी नोटिफिकेशन में  दिल्ली के मजदूरों के न्यूनतम मजदूरी में 37 % की वृद्धि की गई थी |इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट मे था , जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम राहत देते हुए  दिल्ली सरकार निर्देश दिया कि वह इस दौरन न्यूनतम मजदूरी बोर्ड का पुनर्गठन करे और नई दरों को तय करने  के लिए अपनी पद्धति को संशोधित करे।

दिल्ली सरकार ने नवंबर 2018 में फिर से न्यूनतम मजदूरी बोर्ड का गठन किया और न्यूनतम मजदूरी को अंतिम रूप दिया। जो इस प्रकार है अकुशल श्रमिक 14,842 / - रूपये प्रति महीन। इसे ही सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया। सोमवर को न्यूनतम वेतन मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और दिल्ली सरकार को भी न्यूनतम मजदूरी को  अधिसूचित करने को कहा। इसलिए इसमें अब डीए  जोड़ने के बाद इसे अधिसूचित किया जाएगा।

नियोक्ताओं द्वारा उठाए गए सभी आपत्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

क्या है पूरा मामला ?

दिल्ली में विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी राज्य सरकार द्वारा तय की जाती है। एक न्यूनतम मजदूरी बोर्ड के माध्यम से जिसमें श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकार के प्रतिनिधि  शामिल  होते हैं। मई 2017 में, सरकार ने  इसी बोर्ड सिफारिश के बाद न्यूनतम मजदूरी में 37% की वृद्धि की घोषणा की थी। हालांकि, दिल्ली में विभिन्न उद्योग निकायों द्वारा इस आदेश की काफ़ी आलोचना की थी। ट्रेड यूनियनों ने वृद्धि का स्वागत किया था और इसे श्रमिकों के लिए एक बहुत ही आवश्यक राहत बतया  था।

बाद में, उद्योग निकाय इस मामले को अदालत में ले गए, उद्योग मालिको ने बहस करते हुए कहा कि वृद्धि बहुत अधिक और अन्यायपूर्ण है । उन्होंने तर्क दिया कि बढ़ी हुई दरों को तय करने में प्रक्रियाओ का पालन नही किया गया है।

इस मामले को उच्च न्यायालय ने कई महीनों तक सुनवाई की और दिसंबर 2017 में निर्णय को सुरिक्षित रख लिया था । आखिरकार, अगस्त 2018 में, उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया की कि दिल्ली सरकार  मजदूरी में बढ़ोतरी करने का आदेश अस्थिर था क्योंकि उसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। जिसके बाद दिल्ली सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गई थी। इसमें कई ट्रेड यूनियन भी शामिल हुए |

इस बीच, दिल्ली के ट्रेड यूनियनों ने सुप्रीम कोर्ट  के इस आदेश का स्वागत किया है। सीआईटीयू ने बयान में कहा कि  दिल्ली के मज़दूरों के लिए ऐतिहासिक जीत  है। ऐतिहासिक फैसले से दिल्ली में संगठित और असंगठित क्षेत्रों के लाखों श्रमिक लाभान्वित होंगे। सभी स्थायी, संविदात्मक, फिक्स टर्म ,  के साथ दिहाड़ी मज़दूरों को भी इसका लाभ मिलेगा। इस संबंध में उनके द्वारा उठाए गए कदमों के लिए दिल्ली के एन.सी.टी. सीटू दिल्ली सरकार से इस लागू करने का भी आग्रह किया ।

अभी यह साफ नहीं हो पाया की क्या कोर्ट ने एरियर भुगतान आदेश दिया है नहीं ? सुप्रीम कोर्ट  आदेश का विवरण इंतजार कर रहे हैं।

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