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मोदी के सेंट्रल विस्टा में अन्याय की गहरी छाप

मोदी सरकार द्वारा सेंट्रल विस्टा परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए जो कारण और तर्क दिए गए हैं, वे भयंकर रूप से त्रुटिपूर्ण हैं।
मोदी के सेंट्रल विस्टा में अन्याय की गहरी छाप

6 जनवरी को वाशिंगटन की कैपिटल बिल्डिंग पर हुए विरोध/हमले की पूरी दुनिया में साफ तौर पर निंदा की गई है। इस विरोध/हमले के बारे में हममें से कई लोगों की जो भी सामान्य भावना रही है उसके अलावा मुझे एक बात जानने की इच्छा हुई कि- यह "इमारत कितनी पुरानी है?" वह इमारत जिसे ट्रम्प के समर्थकों ने निशाना बनाया था। इस कैपिटल बिल्डिंग के निर्माण का काम खत्म होने के सात साल बाद यानि सन 1800 में चालू किया गया था जो आज भी मजबूती से खड़ी है और अपने उद्देश्य को पूरा कर रही है। तो हम कह सकते हैं कि यह इमारत लगभग 220 साल पुरानी है।

नई दिल्ली में बैठी हमारी सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है, क्योंकि सेंट्रल विस्टा के निर्माण की परियोजना को चुनौती देने वाले लोगों के विभिन्न समूहों ने करीब 10 रिट याचिकाएं दायर की हुई हैं। हलफनामे ने इस प्रस्ताव का पुरजोर समर्थन किया गया है कि सेंट्रल विस्टा में प्रस्तावित बदलावों के साथ-साथ नई संसद भवन का निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे पहले कि हम हलफनामे और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 6 जनवरी को दिए गए निर्णय के विवरण में जाएं, यह जानना बेहतर होगा कि नई संसद बनाने का सरकार का सबसे बड़ा तर्क क्या है, वह यह कि मौजूदा संसद भवन की इमारत काफी पुरानी है; और इसलिए इतने पुराने भवन से संसद को चलाना उपयुक्त नहीं है।

वर्तमान संसद भवन भवन की इमारत का निर्माण ब्रिटिश काल के दौरान किया गया था और इसे 1927 में इसे चालू किया गया था। इसलिए, यह इमारत 100 साल से कम यानी केवल 93 साल पुरानी है।

आइए हम दुनिया के कुछ जाने-माने संसद भवनों पर एक नजर डालते हैं। फ्रांसीसी संसद भवन का निर्माण 1722 में और 1871 में इतालवी संसद भवन का निर्माण किया गया था। इन इमारतों से फ्रांसीसी और इतालवी संसदों दोनों आज भी काम कर रहे हैं। जर्मन संसद भवन का निर्माण 1894 में हुआ था। भारतीय संसद भवन सहित ये इमारतें न केवल उस काल की आर्किटेक्चर अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, बल्कि क्षेत्र की परंपराओं और रीति-रिवाजों से भी जुड़ी हुई हैं। पूरा का पूरा विचार कि भारतीय संसद भवन बहुत पुराना है, बहुत गलत और  फर्जी है।

इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल की 5 जनवरी को 10 याचिकाओं पर फैसला सुना दिया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में दो न्यायाधीश जिसमें ए एम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी साथ हैं जिन्होने परियोजना को रद्द करने की याचिकाओं को खारिज किया है, लेकिन तीसरे जज संजीव खन्ना ने उनके फैंसले से असहमति जताई है। इसलिए इस फैसले को  2:1 अनुपात का फैसला माना जाएगा, जिसे सरकार के पक्ष में और केंद्रीय विस्टा (सीवी) परियोजना को आगे बढ़ाने वाला माना जाएगा। 

हालांकि इस पोर्टल के समाचार में सेंट्रल विस्टा परियोजना के बारे में पूरी जानकारी पहले भी दी गई है, लेकिन पाठकों का यह जानना जरूरी है कि आखिर यह परियोजना अस्तित्व में कैसे आई।

सेंट्रल विस्टा का दायरा जैसा कि कहा जाता है, राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक है। इसमें नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक, संसद भवन, और राजपथ के साथ केंद्र सरकार के सचिवालय दफ्तर, पूरा इंडिया गेट सर्कल और इसके आसपास की जमीन के सभी प्लॉट आते हैं। प्रस्ताव के अनुसार, सेंट्रल विस्टा का पुनर्विकास किया जाना है, जिसमें रेड क्रॉस रोड और रायसीना रोड के त्रिकोण चौराहे पर नए संसद भवन का निर्माण किया जाना शामिल है। शास्त्री भवन, रेल भवन आदि जैसे कुछ मौजूदा सचिवालय दफ्तर की इमारतों, साथ ही राष्ट्रीय संग्रहालय, विदेश मंत्रालय भवन, उपराष्ट्रपति निवास और राजपथ के साथ अन्य सभी भवनों के विध्वंस के बाद केवल  राष्ट्रीय अभिलेखागार ही एकमात्र अपवाद होगा। साथ ही, आईजीएनसीए (इंद्रा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र) की जगह पर नई इमारतों का निर्माण किया जाएगा।

नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी पुरानी इमारतों का इस्तेमाल संग्रहालयों के निर्माण के लिए किया जाएगा। साउथ ब्लॉक से सटे प्लॉट पर एक नए पीएमओ और उनकी हवेली का निर्माण किया जाएगा। पीएम का घर एक भूमिगत सुरंग के माध्यम से नए पीएम कार्यालय और नई संसद से जोड़ा जाएगा। कहा जा रहा है कि यह स्थान परमाणु हमला प्रतिरोधी होगा। लगभग 2,500,000 वर्ग मीटर का नया निर्माण किया जाएगा।

परियोजना का उद्देश्य

भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दिए गए हलफनामे के अनुसार, परियोजना के निम्नलिखित उद्देश्यों हैं:

(i) तंग जगह- आज़ादी के 73 सालों के बाद भी, देश में एक सामान्य सचिवालय भवन नहीं है; उपलब्ध जगह की कमी की वजह से विभिन्न मंत्रालयों के दफ्तर किराए पर चल रहे है।

(ii) अधिकांश मौजूदा इमारतों की संरचनात्मक उम्र पार हो गई है और वे भूकंप प्रतिरोधी भी नहीं हैं।

(iii) क्योंकि कोई सामान्य केंद्रीय सचिवालय नहीं है और मंत्रालयों के दफ्तर दूर स्थानों में फैले हुए हैं, जिसके परिणाम स्वरूप प्रशासनिक अक्षमता बढ़ती है और अंतर-विभागीय समन्वय में कठिनाई आती है। इससे यात्रा भी बढ़ती है और परिणामस्वरूप यातायात की भीड़ और प्रदूषण होता है।

(iv) इससे केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों का कामकाज एकीकृत होगा।

(v) नियमित प्रशासनिक कार्यों को सुचारू से चलाने के लिए भूमिगत शटल परिवहन प्रणाली लागू की जाएगी ताकि सभी मंत्रालयों के कार्यालयों को जोड़ा जा सके। 

(vi) कि मौजूदा संसद भवन का निर्माण 1921-1927 के दौरान किया गया था। इसलिए यह बहुत पुराना है।

(vii) 2026 तक, लोकसभा में सीटों की संख्या मौजूदा 545 से बढ़ जाएगी। लोकसभा और राज्यसभा दोनों पहले से भरे हुए हैं और सीटों की संख्या में वृद्धि की कोई क्षमता नहीं है खासकर जब सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। जल्द ही होने वाले परिसीमन को देखते हुए   स्थानिक जरूरतों के लिए संसद के सदनों को तैयार करना होगा।

(viii) ग्रेडेड हेरिटेज संरचनाओं में आक्रामक पुनर्निर्माण गतिविधि न करके उनके निर्मित विरासत को संरक्षित करना है और कानून के अनुसार केवल मामूली फेर-बदल किया जाएगा। 

मामला कैसे सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा?

भारत सरकार द्वारा दायर उपरोक्त कारणों की बारीकी में न जाकर जिनके बारे में पहले ही पोर्टल के अन्य लेखों में जिक्र किया जा चुका है, यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका सेंट्रल विस्टा परियोजना की अनुमति की प्रक्रिया में बरती गई अनियमितताओं को उजागर करना था। जिन प्रक्रियाओं के मुख्य मुद्दे; पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, केंद्रीय विस्टा समिति की मंजूरी, दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन की मंजूरी, हेरिटेज कनजर्वेशन कमेटी द्वारा मंजूरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भूमि के इस्तेमाल में बदलाव थे।

नए संसद भवन के निर्माण के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण ने भूमि के इस्तेमाल में बदलाव प्रस्तावित किया गया था। डीडीए द्वारा भूमि के इस्तेमाल में प्रस्तावित बदलाव पर आपत्तियां प्राप्त होने के बाद और सार्वजनिक सुनवाई की गई, याचिकाकर्ताओं (लोगों का एक समूह- जिसमें आर्किटेक्ट, पर्यावरणविद और संबंधित नागरिक थे) ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 21 दिसंबर 2019 के सार्वजनिक नोटिस को चुनौती दी। 

11 फरवरी, 2020 को हाईकोर्ट के अपने आदेश में डीडीए को निर्देश दिया कि वह किसी भी विवादित सार्वजनिक नोटिस को आगे बढ़ाने से पहले अदालत को सूचित करे। हालांकि, जिस अकेले न्यायाधीश ने इस निषेधाज्ञा को जारी किया था उसे तुरंत स्थानांतरित कर दिया गया और उच्च न्यायालय की एक डबल बेंच ने आदेश पर एक्स-पार्टी स्टे दे दिया, इस प्रकार डीडीए को भूमि इस्तेमाल में परिवर्तन किए डिजाइनों के साथ आगे बढ़ने की अनुमति मिल गई।  इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इस याचिका के साथ, केंद्रीय विस्टा के विभिन्न पहलुओं पर नौ अन्य याचिकाएं भी दायर की गई थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार 5 जनवरी, 2021 के अपने आदेश में सेंट्रल विस्टा के निर्माण की अनुमति दे दी। 

सर्वोच्च न्यायालय में याचिका के मुख्य तर्क 

सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि जिस संसद भवन के सामने वाले 9.5 एकड़ वाले जिस भूखंड यानि प्लॉट नंबर 2 का भूमि उपयोग बदला है और जहाँ नया संसद भवन प्रस्तावित है, वह एक पहले के इस्तेमाल के मुताबिक एक डिस्ट्रिक्ट पार्क है। यह क्षेत्र हेरिटेज ज़ोन के अंतर्गत आता है और इसलिए, हेरिटेज संरक्षण समिति की पूर्व स्वीकृति के बिना, डीडीए भूमि उपयोग में बदलाव  की अनुमति नहीं दे सकता था।

दूसरी आपत्ति यह थी कि सेंट्रल विस्टा के निर्माण में तेजी लाने के लिए सेंट्रल विस्टा कमेटी में  मनमाने ढंग से गैर-सरकारी वास्तुकारों और योजनाकारों की संख्या को कम किया और सरकार समर्थक अधिकारियों से उसे भर लिया। और स्पष्ट रूप से यहाँ हितों का टकराव साफ नज़र आ रहा था।

तीसरा विवाद यह था कि दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन एक वैधानिक संस्था है और इसलिए, इसके साथ परामर्श योजना के स्तर पर ही किया जाना चाहिए था। इसमें व्यापक परामर्श का अभाव था और चुनिंदा तरीके से मंजूरी दी गई थी। पूरी सीवी परियोजना को प्रोसेस किया जान चाहिए था न केवल संसद भवन को प्रोसेस किया जाना चाहिए था।

चौथा विवाद हेरिटेज की मंजूरी से संबंधित है। सरकार हेरिटेज संरक्षण समिति से परामर्श करने में विफल रही, जो हेरिटेज बिल्डिंग के मामले में विशेषज्ञों से भरा एक निकाय है। इस समिति से कभी सलाह ही नहीं ली गई। इस तरह का परामर्श परियोजना चरण की शुरुआत लिया जाना  चाहिए था और इस समिति से पूरे डिजाइन की मंजूरी मिलनी चाहिए थी।

पांचवीं आपत्ति पर्यावरण मंजूरी के पहलू से थी। पूरे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की वजह से पर्यावरण पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव के बारे में जानकारी देने के बजाय सरकार को एक सेक्टोरल तरीके से मंजूरी मिली, जो प्रभाव निश्चित रूप से पूरे प्रोजेक्ट के संचयी प्रभाव की तुलना में कम होगा।  जिस विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने मंजूरी दी उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि परियोजना बहु-क्षेत्रीय है और निकाय के पास इस तरह की परियोजना से निपटने के लिए कोई विशेषज्ञता नहीं थी क्योंकि क्षेत्रीय प्रभाव को ईएसी के मुद्दे नहीं किया गया था।

यदि सभी तर्कों को रिकॉर्ड पर रखा जाता है, तो इसमें एक बड़ी साजिश की बदबू आएगी जिसे  चुनिंदा प्रक्रियाओं और चयन प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए एक बड़ी साजिश के तहत किया गया, जो कि वैधानिक और पहले के स्थापित प्राथमिकताओं के खिलाफ हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश 

जैसा कि बताया गया है, सर्वोच्च न्यायालय ने (2: 1 के अनुपात में) ने इन आपत्तियों को अलग रखा और पाया कि सरकार ने प्रक्रियाओं का कोई उल्लंघन नहीं किया है। लेकिन क्या यह सच है? निषेधाज्ञा वाला आदेश स्वयं उन कुछ प्रक्रियाओं के बारे में बोलता है जो पूरे नहीं थी।  यहां तक कि बहुमत के आदेश का दृष्टिकोण भी यही था कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में बदलाव मामूली हैं और पर्याप्त नहीं हैं।

दिलचस्प है असंतोष का आदेश 

डीडीए की अधिसूचना को अलग करते हुए, बहुमत के फैंसले से असंतुष्ट न्यायाधीश संजीव खन्ना ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।

1. केंद्र सरकार/प्राधिकरण सात दिनों के भीतर, ड्राइंग, लेआउट योजनाओं के साथ-साथ उसके पीछे की समझ को समझाते हुए पर्याप्त जानकारी के साथ सार्वजनिक डोमेन में यानि वेब पर सामाग्री डालेंगी।

2. प्रिंट मीडिया में उचित प्रकाशन के साथ प्राधिकरण और केंद्र सरकार की वेबसाइट पर सार्वजनिक विज्ञापन सात दिनों के भीतर किया जाएगा। 

3. किसी भी इच्छुक व्यक्ति या संस्थान को सुझाव/आपत्तियां दर्ज करने के लिए प्रकाशन की तारीख से चार सप्ताह का समय दिया जा सकता है। आपत्तियां/सुझाव ईमेल द्वारा या डाक पते पर भेजे जा सकते हैं जो सार्वजनिक नोटिस में इंगित/उल्लिखित होंगे।

4. सार्वजनिक नोटिस, जनसुनवाई के दौरान तारीख, समय और स्थान की सूचना भी देगा, जिसे  हेरिटेज संरक्षण समिति द्वारा उक्त समिति के समक्ष उपस्थित होने वाले इच्छुक व्यक्तियों को दिया जाएगा।

5. प्राधिकरण द्वारा प्राप्त आपत्तियां/सुझाव जिसमें BoEH के रिकॉर्ड और अन्य रिकोर्ड्स को हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी को भेजे जाएंगे। अनुमोदन/अनुमति के सवाल पर निर्णय लेते समय इन आपत्तियों आदि को भी ध्यान में रखा जाएगा।

6. हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी यूनिफाइड बिल्डिंग बाय-लॉ और दिल्ली के मास्टर प्लान के अनुसार सभी विवादों को तय करेगी।

7. हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी सार्वजनिक सुनवाई की कवायद के लिए स्वतंत्र होगी, अगर वह परामर्श, सुनवाई आदि के लिए यूनिफाइड बिल्डिंग बाय लॉ के पैराग्राफ 1.3 या अन्य पैराग्राफ के संदर्भ में उचित और आवश्यक मानती है। यह राजपथ पर सेंट्रल विस्टा प्रिकिंक्टस की सीमा से जुड़े विवाद की भी जांच करेगी।

बेतुके तर्क 

सरकार ने सेंट्रल विस्टा के काम को आगे बढ़ाने के लिए जो कारण या तर्क दिए गए हैं, वे बेहद त्रुटिपूर्ण हैं।

मौजूदा संसद भवन और सेंट्रल विस्टा निरंतर और जीवित विरासत हैं जिन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए। लगभग 80 एकड़ भूमि का पुन: विकास, राष्ट्रीय संग्रहालय का विध्वंस, नई संसद का निर्माण आदि स्थायी रूप से इस प्रतिष्ठित चरित्र, क्षितिज, लेआउट और सेंट्रल विस्टा के वास्तुशिल्प सद्भाव को प्रभावित करेगा। यह ग्रेड1 की विरासत वाली इमारतों और उसकी आभा को अपूरणीय और गैर-परिवर्तनीय नुकसान करेगा। 

अगर पुन: विकास यानि रिडेवलपमेंट की जरूरत हो तो उसे ऐतिहासिक हित वाले स्थानों के लिए बने स्थापित मानदंडों के अनुसार किया जाना चाहिए। विरासत के संरक्षण की सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करने में उपरोक्त प्रक्रिया असफल रही है।

कोई भी विशेषज्ञ या किसी प्रकार का विशेष अध्ययन और आकलन इस बारे में नहीं किया गया है और ऐसे आंकलन की अनुपस्थिति में, संरचनात्मक अखंडता, अग्नि सुरक्षा और भूकंपीय चिंता  आदि की हिमायत केवल अवलोकन और गलतफहमी हैं। सरकार द्वारा संसद भवन के जीवन को रेखांकित करने के दावे के समर्थन में कोई प्रयोगसिद्ध डेटा नहीं है। जबकि इस बात के कई जीवंत उदाहरण हैं कि भारतीय संसद की तुलना में दुनिया की पुरानी इमारतें किस तरह से  उद्देश्य की पूर्ति करती है। नॉर्थ और साउथ ब्लॉक और राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतों के संबंध में कोई संदेह नहीं उठाया गया है।

हेरिटेज के मूल्यांकन के लिए अध्ययन किया जाना चाहिए था और उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए था। मौजूदा संसद भवन को अपग्रेड किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, एक नई संसद के निर्माण के बजाय विस्तार या अतिरिक्त निर्माण का पता लगाया जा सकता था। ऑफिस स्पेस, नौकरशाही के आधिकारिक निवास स्थानों के पास बनाए जा सकते है। इस बारे में लागत और लाभ का विश्लेषण नहीं किया गया है, जबकि इस पर 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का महत्वपूर्ण पूंजीगत व्यय स्पष्ट रूप से खर्च किया जाएगा। पूंजीगत लागत अधिक होगी क्योंकि लॉजिस्टिक्स, अस्थायी आवास लागत और परिपक्व पेड़ों को हटाने या प्रत्यारोपण की लागत आदि को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

दावा किया गया है कि किराया आदि से प्रतिवर्ष 1,000 करोड़ रुपये आएगा लेकिन सरकार के किसी भी दस्तावेज में इसका स्पष्टीकरण नहीं है और यह केवल धारणात्मक दावा है। समय के साथ-सात सेंट्रल विस्टा के हरित क्षेत्र में कमी आई है, जो आम जनता के लिए खुला और सुलभ है। इस पुनर्विकास योजना से सार्वजनिक क्षेत्र ओर कम हो जाएगा।

ज़ोन सी’ वह है जहाँ न्यू इंडिया गार्डन प्रस्तावित है, जो एक अलग स्थान पर है और ज़ोन डी’ के भीतर नहीं है, जिसमें सेंट्रल विस्टा स्थित है। एक प्रमुख और प्रतिष्ठित स्थान सेंट्रल विस्टा में हरे/मनोरंजक क्षेत्र की कमी का खामियाजा किसी स्थान पर एक बगीचे से पूरा नहीं किया जा सकता है।

संविधान के (84वें संशोधन अधिनियम), 2002 ने राष्ट्रीय जनसंख्या रणनीति के तौर पर नए सिरे से परिसीमन करने पर रोक को बढ़ा दिया है। उसी कारण से परिसीमन हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। किसी भी मामले में, यह अगली जनगणना 2026 के बाद ही होगा, जिसका वर्ष 2031 होगा।

तो, इतनी जल्दी से नई संसद भवन के निर्माण को आगे बढ़ाने का निहित इरादा क्या है?

सरकार परियोजना के वास्तविक इरादों को उजागर कर सकती है या उसे मीठी गोली बना कर सकती है, लेकिन कठिन तथ्य यह है कि ये प्रधानमंत्री साहब है जो सुनिश्चित करना चाहता है कि नए संसद भवन सहित यह पूरी परियोजना 2024 में उनके कार्यकाल के अंत से पहले पूरी हो जाए। वे अपनी महिमा और विरासत की छाप छोड़ना चाहता है, 'एक ऐसा युग जो मोदी युग था', जिसकी बर्लिन में हिटलर ने वोक्सशाल के निर्माण के माध्यम से कल्पना की थी। अल्बर्ट स्पीयर (एडोल्फ हिटलर के निजी वास्तुकार) इसे अंजाम नहीं डे सके, क्योंकि जर्मनी युद्ध में कूद गया था और नतीजतन परियोजना पूरी नहीं हुई, अब नए संसद भवन के मुख्य वास्तुकार बिमल पटेल, मोदी के लिए योजना बना रहे हैं। फासीवाद की नैतिकता और संस्कृति के मामले में जो कुछ बड़ा और समान है- वह सेंट्रल विस्टा का मॉडल है।

दुर्भाग्य से, गंभीर हालात में जब सार्वजनिक खर्च आम लोगों पर होना चाहिए, तब एक निरंकुश शासक अपने लिए एक महल का निर्माण करेगा! और यही हम देख रहे हैं।

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